chanderi-jhansi-orchha-gwalior ki sair 4 in Hindi Travel stories by राज बोहरे books and stories PDF | चन्देरी, झांसी-ओरछा और ग्वालियर की सैर 4

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चन्देरी, झांसी-ओरछा और ग्वालियर की सैर 4

चन्देरी, झांसी-ओरछा और ग्वालियर की सैर 4

chanderi-jhansi-orchha-gwalior ki sair 4

यात्रा वृत्तांत

चन्देरी बत्तीसी बावड़ी प्रसंग

लेखक

राजनारायण बोहरे

अब हमारी यात्रा बत्तीसी बावड़ी की तरफ हो रही थी, मैंने बच्चों को बताया कि मैंने कहीं पढ़ रखा था कि बत्तीसी बावड़ी का निर्माण ग्यासुददीन खिलजी ने सन 1485 ईसवी में करवाया था। इस बावड़ी के किनारे पत्थर पर खुदवाकर एक शिलालेख भी लगवाया गया था-कहा जाता है कि इसका पानी मिश्री, शक्कर यानि चीनी और शकरकंदी से मीठा है ं।

बत्तीसी बावड़ी में अंदर जाने के लिए एक बड़ा सा दरवाजा था। दरवाजे का निर्माण पुराने पत्थर और चूना से किया गया था और इस दरवाजे की मेहराब बड़ी कलात्मत थी चूंकि यह ग्यासुद्दीन खिलजी के समय हर इमारत के कोने में बनने वाले वैसे कंगूरे बने हुए थे जैसे कि सुलतान के सिर पर रखे जाने वाले हीरों जवाहरातों से जड़े राजमुकुट या कलगीदार पगड़ी में लगे होते थे।

बत्तीसी बावडी एक चौकोर कुण्ड है । यह 60 फिट लंबी है तथा 60 फिट चौड़ी है । और चालीस फिट गहरी इसमे चार मंजिलंे हैं और हर मंजिल पर आठ-आठ घाट है । घाट यानि वह स्थान जहॉ पर पानी खींचकर स्नान किया जाता है । आठ घाट और चार मंजिल हैं तो मैंने बच्चों को समझाया कि एक मंजिल पर आठ पनिहारिन खड़ी होती थी तो चार मंजिल पर बत्तीस पनिहाािन खड़ी होती होंगी इस तरह बत्तीसी बावड़ी में बत्तीस पनिहारिन एक साथ इस बावड़ी पर खड़ी होकर नहाती होंगी।

अभिशेक का सवाल था कि आपने पानी के इस बड़े से कुण्ड को देखके कुंआ या तालाब क्यों नही कहा इसे बावड़ी क्यों कहते हैं

मैने कहा कि छोटे आकार के ऐसे पानी से भरे कुण्डों को बावड़ी ही कहा जाता है त्र इन बावड़ीयों के चारों ओर नक्कासीदार दीवार और सीड़िया बनाई जाती है।

सन्नी ने पूछा कि आपने यह क्यों कहा कि नहाती होंगी?

तो मैंने उसे समझाया कि इस बावड़ी के चारों ओर चहार दिवारी यानि बाउण्डरी वाल बनी है यानि कि बाहर से देखने पर भीतर बावड़ी को कोई हिस्सा या घाट नहीं दिखता है। इन दीवारों से पर्दे जैसी ओट बन गई है और यह पर्दे जैसी ओट ही महिलाओं को नहाने के लिए बनायी जाती थी। राजस्थान में ऐसी बावड़ी बहुत बनाई जाती थी। आपने सुना होगा कि जब माता पार्वती नहाने को कुण्ड में गयी तो बाहर प्रवेश द्वार गणेश जी पहरा दे रहे थे, वो कुण्ड ऐसी ही बावड़ी होगा।

तो पुरूश कहां नहाते होंगे ? अभिशेक का अगला सवाल था।

सही सवाल किया तुमने ! पुरूशों के नहाने के लिए चंदेरी के राजा ने परमेश्वरन तालाब बनवाया था जो दूर दूर से खुल दिखाई देता है , यहां के बाद हम वहीं चलेंगे।

बत्तीसी बावड़ी हर घाट से निचली मंजिल के लिए आड़ी-तिरछी सीड़ियां उतरती बनाई गयी है जो सांपसीड़ी के खेल की तरह बहुत सुंदर दिखाई देती है। हमलोग नीचे उतरे तो देखा कि अब इस बावड़ी का पानी काम में नही लाया जाता न ही कोई यहां नहाने आता है इस कारण बावड़ी का पानी बदलता नही हैं और यहां का रूका हुआ पानी हरा और बदबूदार हो गया है ।

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साधन-दिल्ली मुम्बई के झांसी वाले रेल मार्ग पर बीना जंक्शन उतर कर यहां से रेल द्वारा अशोकनगर और वहां से बस द्वारा पहुंचा जा सकता हैा

चन्देरी तक पहुंचने के साधन-अशोकनगर, ललितपुर और शिवपुरी तीनों स्थान से बस चलती है या निजी किराये के टैक्सी वाहन

चंदेरी से ललितपूर की दूरी 34 किलामीटर है। ललितपुर रेलवे स्टेशन हमारे देश की दिल्ली भोपाल रेल लाईन पर झांसी के पास मौजुद है । चंदेरी से अशोंक नगर की दूरी 66 किलामीटर है ओर मुगांवली की दूरी 39 किलोमीटर। अशोकनगर और मुगांवली दोनो ही गुना जिला म0प्र0 की तहसीलें है। दोनो जगह रेल्वेस्टेशन है। चंदेरी पंहुचने के लिए ललितपुर, मुंगावली या अशोकनगर तीनो जगह में से किसी भी जगह से सड़क के रास्ते केा काम मे लाया जा सकता है। एक चौथा रास्ता चंदेरी से शिवपुरी के लिए भी है, यह सड़क मार्ग बामोर कलां, खनियाधाना-पिछोर ओर सिरसोद चौराहे से निकलता है। चंदेरी वर्तमान मे अलग तहसील है जो अशोकनगर जिले में आती है । यहॉं एक डिग्री कॉलेज दो इंटर कालेज और छः मिडिल स्कुल है। चंदेरी में विशिष्ट क्षेत्र प्राधिकारण गठित कियागया है। जिसका काम चंदेरी का विकास करना है।

ठहरने के लिए स्थान- चंदेरी में म0प्र0 पर्यटन विकास निगम का होटल ताना बाना, म0प्र0 लोक निर्माण विभाग का विश्राम गृह और 2 निजी होटल