The Author amit sonu Follow Current Read अपना - अपना संघर्ष By amit sonu Hindi Short Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books स्वयंवधू - 27 सुहासिनी चुपके से नीचे चली गई। हवा की तरह चलने का गुण विरासत... ग्रीन मेन “शंकर चाचा, ज़ल्दी से दरवाज़ा खोलिए!” बाहर से कोई इंसान के चिल... नफ़रत-ए-इश्क - 7 अग्निहोत्री हाउसविराट तूफान की तेजी से गाड़ी ड्राइव कर 30 मि... स्मृतियों का सत्य किशोर काका जल्दी-जल्दी अपनी चाय की लारी का सामान समेट रहे थे... मुनस्यारी( उत्तराखण्ड) यात्रा-२ मुनस्यारी( उत्तराखण्ड) यात्रा-२मुनस्यारी से लौटते हुये हिमाल... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Share अपना - अपना संघर्ष (1) 897 5.8k हथेली पर चीनी के दाने छन - छन करते.... कितने अच्छे लगते है न, लेकिन थोड़ी सी नमी आ जाए तो अपनी चिपचिपाहट छोड़ने में देरी भी नहीं करती।देव का जीवन भी ऐसा ही था।वो दूसरो की मदद करने के चक्कर में अपने जीवन में एक्सट्रा चिपचिपाहट ले ही आता।परिवार और रिश्तेदार वाले उसे समझाते और वो समझ भी जाता ,लेकिन कहते है ना जिसे समझाना आसान होता है वो नासमझ भी उतना ही होता है।इतने सालों में देव की हालत के बारे में सब अच्छे से समझ चुके थे।परिवार वाले गाहे - बगाहे अपनी जिम्मेवारी समझ उसे समझा देते।जीवन का यथार्थ है -घड़ी की सुई पर जब तक नजरे है तभी तक वो धीमी चलती है जैसे ही नजरे हटी की समय का पहिया आपको ब्रेक लगाने का मौका भी नहीं देती है।जीवन के ऐसे ही मौड़ पर देव आज खड़ा था।करने और कहने को बहुत कुछ था उसके जीवन में अभी भी।पर एक घटना ने सबकुछ बदल दिया।आज जब सब उसे गीली आंखों से देख रहे थे तो उसे कुछ अजीब सा लग रहा था क्योंकि अब तक ये आंखे उन्हें घूरती ही थी।वो समझ नहीं पा रहा था कि उसे ऐसे मौकों पर क्या करना चाहिए।तभी उसे सामने से एक बच्चा आता दिखाई पड़ा,बहुत ही मासूम जिसकी चाल को देखकर ये अनुमान लगाया जा सकता था कि वो दो या तीन साल का होगा।चलते चलते उसके पैर एक बांस के टुकड़े में जा लगे,गिरते ही रोने की जोरदार आवाज लेकिन तभी .…सामने से मां ने एक पुकार लगाई बच्चा तुरंत खड़ा हो गया और फिर से दौड़ते हुए आगे बढ़ गया।अब तक लोगों की चाय की तलब हिलोरे मार रही थी।चुस्कियों के बेतरतीब माहौल में फिर से वो बच्चा वापस आया और इस बार बांस के टुकड़े को लांघने की कोशिश में धड़ाम से गिर पड़ा।एक बार फिर रोने कि जोरदार आवाज़ पर मां इस बार आसपास नहीं थी।इस बार बच्चा खुद ही उठा और दौड़ने की जगह चलने लगा।आसपास किसी को इस बात की फ़िक्र नहीं थी कि उस बांस के टुकड़ों को हटा दे ताकि बच्चे को कोई दिक्कत ना हो।देव चाहता था कि वो वहां जाए और उस टुकड़े को हटा दे लेकिन वो ......वो तो मजबूर था।उसे बच्चे के गिरने और उठने में एक संघर्ष दिखाई दिया जो उसका अपना था,जिसके लिए वो खुद जिम्मेदार था ।आज देव को चिता पर लेटे हुए इस बात का सुकून था कि उसका संघर्ष भी उसका अपना था।उसने जिंदगी की जंग हारी थी लेकिन संघर्ष की जंग में जीत उसी की हुई थी।देव की लड़ाई किसी से नहीं थी वो खुद से ही संघर्ष करता और खुद में बदलाव लाता।उसने बहुत पहले ही इस बात को गांठ बांध लिया था कि आप का कोई भी लक्ष्य जब तक आपका नहीं होगा तब तक आपका संघर्ष कोई मायने नहीं रखता।क्योंकि संघर्ष एक यात्रा है जिसमें आप उसके यात्री।पर सदियों से हमारे जीवन का लक्ष्य वो है जो हमारा नहीं है बल्कि वो है जो हमें विरासत में सौंप दी जाती है,कभी परंपरा कभी संस्कृति तो कभी परिवार के नाम पर। ऐसे में हमारा संघर्ष भी खोखला ही होता है,क्षणिक होता है।जीवन में किसी मुकाम पर पहुंच जाना आपका अपना संघर्ष नहीं है बल्कि आप पर थोपे गए सपनों के आज़ाद होने का संघर्ष है।जब संघर्ष आपका अपना होगा तब उस सफर में कोई अपना आपके साथ हो या ना हो ये मायने नहीं रखता। लेकिन ये तो तय है कि जीवन एक ही बार के लिए मिला है और अगर इसमें भी आप संघर्ष की मूल भावना क्या है ये नहीं समझ पाए तो जीवन का होना या ना होना एक ही बात है। देव यही बात सबको समझाने की कोशिश कर रहा था कि असली संघर्ष धर्म,जाति,रंग,नस्ल,विचार,धन आदि के लिए लड़ने में नहीं है बल्कि आपके अंदर बैठे अच्छे और बूरे के बीच है ।जो अपने अंदर के इस संघर्ष को समझ पाएगा वहीं मानव है।बच्चे ने बांस के टुकड़ों को लांघने की कोशिश की और गिर पड़ा, पर बात उसके समझ में आ गई कि बांस को लांघना उसका संघर्ष नहीं है बल्कि उसका संघर्ष है अपनी लांघने की शक्ति का सही जगह प्रयोग करना।अगर बांस को आराम से चलकर ही पार किया जा सकता है तो लांघ कर गिरने का संकट क्यों मोल लिया जाए। हम मानव ऐसे ही है किसी ने कहा नहीं की हम कूद पड़े उस अखाड़े में जहां लड़ने और मरने वाले हम ही है और देखने वाला कोई और।देव लोगो को यही समझाता की हम क्यों लड़े आपस में जब हमारे अंदर ही इतना कुछ है संघर्ष के लिए।क्यों न अपना -अपना संघर्ष कर हम दुनिया को और बेहतर बनाए।अपनी इच्छा,क्रोध,लोभ,मोह,वासना आदि के साथ संघर्ष करे।अपने अंदर संघर्ष करे जो ओरों को भी दिखाई दे।धूप बहुत तेज थी , चाय के कप सूख कर हवा में इधर - उधर फड़फड़ा रहे थे और लोग देव के चारो तरफ अपनी आंखे फिर से गीली कर रहे थे। Download Our App