That room in Hindi Horror Stories by Anamika books and stories PDF | वो कमरा

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वो कमरा

आज इतने सालों बाद किस्मत फिर ले जा रही है, मुझे वहां।जहां कभी,वो भी थी, वह जो मेरी स्मृतियों से कभी विलग तो नहीं हुई, पर कहीं गहरे दब चुकी थी। लेकिन समय ने आज फिर उसकी स्मृतियों को गहरे गड्ढे से उबार दिया था।
किस्मत का क्या है, हो सकता है किस्मत इस जगह पर फिर से मुझे उन पुरानी स्मृतियों के धागों से नई यादें बुनने ले आई हो।पर उन सुनहरी अमिट स्मृतियों पर क्या नई स्मृतियों की परत कभी चढ़ सकती है।

तभी 8 साल के मेरे बेटे आशु ने कहा - "पापा यह कितनी सुंदर जगह है ऊंचे पहाड़,जंगल...।"

"हां बेटा, और यहां झरने भी है।"

"वाह.. पापा आप मुझे दिखाएंगे?"

"हां... क्यों नहीं?"

झरने की बात से,पुरानी स्मृति का एक और धागा खिंच गया था पराग के मन में ।
उनकी गाड़ी जैसे ही उस कस्बे के अंदर घुसी, उसके कानों से टकराया, बुद्धू.....
ये क्या? स्मृतियों की आवाजें भी होती है क्या? वह मुस्कुराया।
तभी प्रीति बोली- "पराग हम पहुंच गए।"
वह एक सरकारी आवास था।
ओह ...अच्छा है, इस बार दूसरा मिला। खैर! पिछली बार वाला तो टूट फूट चुका होगा। पराग ने मन में सोचा।

"क्या हुआ पराग आप कहीं खोए हुए हैं?"

कुछ नहीं, प्रीति मैं यहां पहले भी दो साल ड्यूटी कर चुका हूं, इस जगह को देख कर पुरानी यादें याद आ रहीं हैं, अब तो यहां के लोग मुझे भूल भी चुके होंगे। 18 सालों में कितना कुछ बदल गया है जंगल कम हो गए, घरों की संख्या बढ़ गई, इमारतें बड़ी हो गई।

प्रीति ने मन ही मन कहा "इंसान को अपने अतीत से कितना प्यार होता है,अतीत की याद और भविष्य की चिंता इन दोनों के बीच वर्तमान पिस जाता है बेचारा,यहां अतीत कोई और है जिसे मैं जानती नहीं? भविष्य आशु है और वर्तमान बेचारी मैं जिस पर पराग कभी ध्यान ही नहीं देते।"
प्रीति हमेशा यह महसूस करती थी कि पराग उसके होकर भी पूरी तरह उसके नहीं थे।

अगली सुबह पराग और आशु घूमने निकले थे, अपने पुराने सरकारी आवास के पास से गुजरते हुए पराग ने देखा, वह बिल्कुल खंडहर हो चुका था। लेकिन उसकी नजर उस खंडहर हो चुके घर के बगल वाले कमरे पर पड़ी, तो वह दंग रह गया,वह आज भी वैसा का वैसा था। लेकिन उस कमरे में तो कोई नहीं रहता। वे तो 18 साल पहले ही उसे छोड़ कर चले गए थे। उसके चेहरे पर एक दर्द उभर आया।वह, वहां से आगे बढ़ गया और ठीक उसी समय उसके पीठ पीछे उस कमरे का दरवाजा खुला और दो चमकती बड़ी-बड़ी आंखें उसे घूरने लगीं।

अब जबकि पराग उसी जगह पर था तो उस कमरे से जुड़ा उसका पुराना मोह, जब तब उसे उस ओर खींच लेता था।उस दिन शाम को आशु का हाथ पकड़कर जब वह टहल रहा था, तो उसने देखा उस कमरे का दरवाजा खुला था।

"अच्छा तो कोई रहने लगा है उस कमरे में तभी तो वह इतना साफ सुथरा दिख रहा था।"
उसी समय उसने दरवाजे पर उसे देखा, उसने दोबारा अपनी आंखें मली, ये कैसे हो सकता है? पर नहीं, वो वही थी।

"स..सोमा।"इतने सालों बाद।

वह जरा पास पहुंचा, उसने देखा सोमा की नजरें आशु को निहार रहीं थी।

जब तक पराग और आशु उस कमरे के पास पहुंचे वह दरवाजा बंद करके, अंदर जा चुकी थी।

"इतनी रुखाई किस बात कि, बात तो कर सकती थी न, अच्छा, हो सकता है उसका पति हो अंदर, उसको पसंद न हो, सोमा का अजनबियों से बात करना,अब मैं उसके लिए अजनबी ही तो हूं।"पराग मन ही मन बड़बड़ा रहा था।

अगली शाम पराग आशु और प्रीति तीनों जब उस और टहलने निकले तो पराग ने देखा उस कमरे का दरवाजा बंद था, दरवाजे पर ताला लटक रहा था।
"अच्छा कहीं गई होगी, अपने पति के साथ।" पराग फिर बुदबुदाया।

उस रास्ते से गुजरते हुए एक-दो बार और पराग ने सोमा को अकेले ही दरवाजे पर खड़ा पाया, वह सोच रहा था,वो बात क्यों नहीं करती मुझसे, हो सकता है उसने जो मेरे साथ किया ये सोच कर उसे शर्म आती हो।
लेकिन ऐसा लगता है, जैसे अकेले ही रहती है। क्या हुआ? पति ने छोड़ दिया क्या, या खुद ही छोड़ आई, बड़ी नकचढी़ तो थी,अपने मन की रानी जो, उसके मन को भा गया, सो भा गया, जो नहीं भाया फिर उसे ब्रह्मा भी समझाएं तो वह नहीं मानती थी। पर बच्चे, बच्चे तो होंगे उसके या वो भी नहीं है। फिर इतना लंबा जीवन अकेले कैसे काटेगी।

क्या करने आया हूं? क्या हो रहा है... ड्यूटी पर तो ध्यान ही नहीं लग रहा, सारा मन सोमा में ही अटका पड़ा है,कहीं प्रीति कुछ गलत ना समझ ले, वो क्या सोचेगी?एक बार सोमा से बात हो जाए तो मेरे भटकते मन को शांति मिले।
*******
18 साल पहले इसी जगह जब पराग की पहली पोस्टिंग हुई थी, यहां के पंचायत विभाग में अधिकारी के पद पर। सोमा उसके सरकारी घर के बगल वाले कमरे में रहती थी, एक कमरा और उसमें तीन लोग शोभा और उसके मां-बाबा। पहली ही नजर में पराग उसके भोलेपन और सुंदरता की ओर आकर्षित हो गया था। अपनी सहेली ईरा के साथ कई बार हंसती खिलखिलाती और तिरछी नजरों से पराग को देखती सोमा, उसके सामने से गुजर चुकी थी।
एक दिन उसकी मां आई थी,पराग के पास।
"बाबू, अगर आप चाहो तो सोमा को अपने यहां काम पर रख लो खाना, झाड़ू-बर्तन कर देगी आपका।"
पराग का मन तो नहीं था लेकिन सोमा इसी बहाने उसके सामने रहेगी ऐसा सोचकर उसने हां कर दी।
"ठीक है, उसे कल से भेज दीजिएगा।"
सोमा अगले दिन से ही उसके यहां आने लगी, घर के बगल में ही उसका कमरा था, जब-तब वह यहां से वहां फुदकती रहती, यहां तक रात को भी पराग को खाना खिलाकर ही अपने घर जाती थी।
जब पहली बार पराग ने कहा था, "शोभा, कितना अच्छा खाना बनाती हो तुम।"
कैसे तो खुश हुई थी वह।
और जब पराग ने बड़ी हिम्मत करके कहा था, "क्या हमेशा के लिए हमारी खाना बनाने वाली बनोगी?"

वह तुनक कर बोली थी "तो क्या बस खाना ही बनवाओगे तुम हमसे हमेशा, हुकुम चलायेंगे हम तुम पर।"
पराग बेचारा देखता रह गया था, उसने ऐसे जवाब की अपेक्षा नहीं की थी। फिर जब सोमा को समझ आया कि उसने क्या कह दिया तो सीधे अपने कमरे में भागी थी वह, सिर पर पैर रखकर।
उस दिन यह बात तो साफ हो गई थी,कि सोमा भी पराग को चाहती थी।
एक दिन उस पहाड़ी के पास वाले झरने तक घूमते हुए चले गए थे, दोनों। पराग ने पूछा था।

"तुम्हारा नाम सोमा किसने रखा?"

"अरे! वो मैं सोमवार को पैदा हुई थी ना, तो मेरा नाम सोमा हो गया।"

"अच्छा तब तो मैं बुधवार को पैदा हुआ था।"
"तो तुम्हारा नाम बुद्धू होना था।" जोर से खिलखिला पड़ी थी वह।
पराग उसे हंसते देखकर खुश हो गया था। एक झरना सोमा के सफेद मोतियों जैसे दांतों में भी उतर आया था, हंसी का झरना।
"तुम मुझे कभी धोखा तो नहीं दोगे ना तुम इतने बड़े साहब, मैं एक गरीब लड़की।"

"लो इस झरने की कसम खाता हूं, तुम्हें छोड़कर कभी नहीं जाऊंगा।"

"वो गाना नहीं सुना तुमने बुद्धू... झरने तो बहते हैं.. कसम लें पहाड़ों की,जो कायम..... तुम इन पहाड़ों की कसम लो, जो हमेशा अचल, अटल रहते हैं।इन झरनों की कसम का क्या? यह तो बहते रहते हैं।"
"अच्छा बाबा इन पहाड़ों की कसम, मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगा।"
और उस दिन ट्रांसफर के बाद पराग जा रहा था।
"सोमा तुम इंतजार करना मैं कुछ दिनों में ही तुम्हें लेने आऊंगा।"
"मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी और मैं कभी झूठ नहीं बोलती। मैं सिर्फ तुम्हारी ही रहूंगी।"

वादे के मुताबिक आया तो था एक महीने बाद पराग अपने मां पापा को मना कर। लेकिन जब यहां पहुंचा तो इस कमरे में ताला लटक रहा था।सोमा का परिवार कहीं नहीं था। ईरा ने बताया सोमा की शादी हो गई।उसके मां-बाप इस कस्बे को छोड़कर दूसरी जगह चले गए।
कुछ टूट कर बिखर गया था,पराग के अंदर। वह बड़बड़ाया था - "हां पहाड़ों की कसम या झरने की कसम, कसम तो मैंने ली थी,वह तो आजाद थी न कुछ भी करने के लिए।
***********
"प्रीति, आशु नहीं दिख रहा, कहां गया।"
"अरे! बाहर ही तो खेल रहा था।"
" मैं देख कर आता हूं।"
जब पराग बाहर निकला तो देखा, आशु घर से कुछ दूर उसी कमरे वाले रास्ते पर था और उसी ओर जा रहा था। जब तक पराग वहां पहुंचा,आशु कमरे के अंदर जा चुका था। कुछ देर पराग बाहर ही खड़ा रहा,"घमंडी कहीं की जब तक वह मुझे नहीं बुलाएगी मैं खुद उस कमरे में नहीं जाऊंगा।"
जब आशु बाहर आया, तो पराग ने आशु से पूछा
"बेटा, आंटी कुछ बोल रही थीं!"
" नहीं, बस उन्होंने मुझे बहुत प्यार किया।"
"वहां और कौन-कौन था?"
"कोई नहीं, वह अकेली रहतीं हैं ना।"

"अच्छा मेरा शक सही था, अकेली ही है वो"
अब पराग उसकी हालत जानकर और बेचैन हो गया था।

अगले दिन पराग को ऑफिस से आते समय, ईरा दिखाई दी। शायद ससुराल से आई थी वह।पराग दौड़कर उसके पास गया।
"ईरा तुम कब आई, देखो मेरी पोस्टिंग फिर यहां हो गई।"
ईरा उसे फटी आंखों से देख रही थी।
"ऐसे क्या देख रही हो तुम? और सोमा भी तो यहीं है, पर मुझसे बात नहीं करती। अकेली उसी कमरे में रहती है, तुम जानती हो उसके साथ क्या हुआ?
ईरा की आंखें अब और फट गई थी, बिना कोई जवाब दिए वह वहां से भाग गई।
पराग अपनी परेशानियों में उलझा हुआ घर की ओर जा ही रहा था कि रास्ते में उसी कमरे के पास एक आदमी उससे टकरा गया।
वह बहुत डरा हुआ था।पराग को देखते ही कहने लगा,
"अरे साहब उस कमरे में कोई चुड़ैल रहती है, मैं आज उस वीरान और पुराने कमरे के समीप चला गया था, तो देखा एक लड़की, बिखरे बाल लाल आंखें, लंबे-लंबे नाखून थे उसके,वो उस कमरे में चक्कर लगा रही थी,उसके पांव जमीन पर नहीं थे, वह हवा में लहरा कर चल रही थी।मुझे देखते ही ऐसे चीखी जैसे खा ही जाएगी, मैं किसी तरह जान बचाकर भागा हूं।"
पराग को कुछ समझ नहीं आ रहा था, वह आदमी बड़बड़ाता हुआ आगे चला गया।
पराग अब अपने घर को जाने वाले रास्ते से वापस मुड़ चुका था, वह अब ईरा के घर जा रहा था।
**********
पराग शाम को घर के बाहर स्तब्ध सा बैठा हुआ था। उसके जेहन में रह रहकर पुराने दिन कौंध रहे थे।
प्रीति बोली "पराग आशु नहीं आया अभी तक, जरा बाहर देख लो।
पराग उठा, वह जानता था आशु कहां मिलेगा। वह उसी कमरे की ओर बढ़ गया। पराग अब उस कमरे के दरवाजे पर था, आशु का सिर सोमा की गोद में था, वह उसका सिर सहला रही थी। पराग अंदर घुस गया। सोमा झट खड़ी हो गई।
"आशु तुम घर जाओ बेटा, मम्मा बुला रही है।" पराग ने कहा।
सोमा दीवार से चिपक कर खड़ी हो गई थी,वह बोली
"बिल्कुल तुम पर गया है, आशु"

"तुमने ऐसा क्यों किया सोमा।"

"क्या किया? तुम्हारा ही इंतजार ही तो कर रही थी" फिर वह शरारत से बोली "तुम्हारे बालों में अब सफेदी आ गई है।"

"तुम तो बिल्कुल वैसी ही हो।"

"मैं तो वहीं रुक गई ना बुद्धू... एक इंच, पल भर भी तो आगे नहीं बढ़ी।"

"तुमने ऐसा क्यों किया?"

"तुमसे दूर होकर नहीं रह सकती थी ना,इसलिए जीवन ही खत्म कर लिया। मां बाबा ने कहा तू मर जा सोमा, पर बिरादरी से बाहर तेरा ब्याह नहीं हो सकता, समाज में हमारा हुक्का पानी बंद हो जाएगा।"

"वे जबरदस्ती मेरी शादी कर रहे थे, ब्याह के चार दिन पहले मां-बाबा किसी काम से शहर गये थे,उस दिन ही मैंने इसी कमरे में अपना जीवन खत्म कर लिया।
पराग रो रहा था।
"तुम तो ऐसे रो रहे हो जैसे आज ही मरी हूं,मैं।" वो हंसने लगी।
"तुम्हारी मजाक करने की आदत गई नहीं।"
सोमा फिर कहने लगी-
"तब से कई लोगों ने इस कमरे में आने की कोशिश की पर मैंने ऐसा होने नहीं दिया लोगों ने इस कमरे को भूतिया नाम दे दिया।मेरा शरीर भी इतने सालों से इसी कमरे में पड़ा रहा, मैंने किसी को अपने शरीर को हाथ लगाने नहीं दिया।शुरुआत में तो इस कमरे की ओर कोई आता भी नहीं था। तुम जिस घर में रहते थे, वह घर भी बंद कर दिया गया। इधर देखने से भी डरते थे लोग।कई लोग तो मेरे खौफ के कारण इस कस्बे को छोड़कर भाग गए। मैं इस कमरे में किसी और को बर्दाश्त नहीं कर सकती थी, केवल तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी मैं यहां। सालों से बंद पड़ा रहा यह कमरा।"

"मैं, तुम्हें लेने आया था, मगर ईरा ने मुझसे झूठ कहा कि तुम्हारी शादी हो गई और मैं लौट गया।"

"कोई बात नहीं आज तो आ ही गए, ईरा ने सोचा होगा मेरी मौत तुम सह नहीं पाओगे, इसलिए तुमसे झूठ कहा होगा।"

"हां आज ईरा ने ही मुझे सारी सच्चाई बताई।"

"विवाह का संस्कार तुम्हारे साथ नहीं हो सका, पर अंतिम संस्कार तुम्हारे हाथों ही चाहती थी मैं, पर अब वह इच्छा भी ना रही।"
" क्यों?"
"मैं चाहती हूं कि अब आशु के हाथों मेरा अंतिम संस्कार हो, यदि तुम ऐसा करवा सको तो करवा दो, हां प्रीति से इजाजत जरूर ले लेना।"ऐसा कह कर सोमा ने एक विशेष स्थान की ओर इशारा कर दिया। वहां सोमा की अस्थियां पड़ी हुई थीं।
पराग ने हां में सिर हिला दिया।
"अब कहो तो अलविदा ले लूं।अपना, आशु और प्रीति का ध्यान रखना।
कुछ देर बाद आशु, प्रीति को लेकर वहां आया। प्रीति ने देखा पराग दीवार को अपने हाथों से सहला रहा था। प्रीति ने उसके कंधे पर हाथ रखा तो, वह फफक कर रो पड़ा। उसने प्रीति को सारी बात बताई और पूछा- "क्या आशु, सोमा का अंतिम संस्कार कर सकता है।"
प्रीति बोली- "एक बात कहूं!"
"बोलो"
" सोमा दीदी, आपसे भी अच्छी थीं।" पराग ने प्रीति को गले से लगा लिया। आज प्रीति को लगा, जैसे उसने पराग को पूरा पा लिया।
********
सोमा का अंतिम संस्कार हो गया था। कस्बे के लोग बहुत खुश थे कि वह भूतिया कमरा अब ठीक हो गया था। उनके मन से उस कमरे का खौफ निकल चुका था। वहीं पराग को, वह आबाद कमरा अब भूतिया और वीरान लगता था।
हां उन पुरानी स्मृतियों के धागों ने नई स्मृतियां बुन ली थीं, जो पहले से कहीं अधिक सुनहरी और हसीन थी।

समाप्त।।