aasman mai daynasaur - 7 in Hindi Children Stories by राज बोहरे books and stories PDF | आसमान में डायनासौर - 7

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आसमान में डायनासौर - 7

आसमान में डायनासौर 7

बाल उपन्यास

राजनारायण बोहरे

गगन की रफ्तार बढ़ाकर प्रो. दयाल ने उसे दूसरे कोने की तरफ बढ़ा दिया। अचानक उनको एक जगह पानी सा दिखा तो वह उधर बढ़े।

पानी से भरे खूब बड़े तालावों में नीला पानी लहरा रहा था, पानी के किनारे वाले घने जंगल में उन्हे विचित्र आकार प्रकार के पक्षी भी देखने को मिले और दयाल सर जल्दी ही आर्कियोप्टेरिक्स पक्षी को पहचान गये। उन्होंने बताया कबूतर जैसी बनावट का वह पक्षी भी पृथ्वी पर सत्रह करोड़ साल पहले खत्म हो गया है। इसका मतलब वह ग्रह पृथ्वी से अभी सत्रह करोड़ साल पीछे चल रहा है।

वे फिर ध्यान से आर्कियोप्टेरिक्स को देखने लगे। दयाल सर ने बताया कि चार पंखो वाले इस आर्कियोप्टेरिक्स पक्षी के ऊपर वाले हाथ जैसे पंजों में अंगुलियो तक पंखे जैसे उगे हुये थे और उनके सहारे से वह थोड़ा सा उड़ भी लेता था। उसी के पास चमगादड़ जैसी बनावट का लेकिन चमगादड़ से हजारों गुना बड़े प्टेरोडेवटोल पक्षी दिखा जिस की नीचे लटकती चूहे जैसी पूंछ हमेशा घूमती रहती थी।

आगे जाने पर दयाल सर ने उन्हे समुद्र के किनारे वाले पानी में दांतदार पक्षी रम्फोरिखोइड तैरता हुआ दिखाया जो बड़े मजे से एक मछली का नाश्ता कर रहा था।

दयाल सर के संकेत पर अजय और अभय ने इन अद्भुत जानवरों की गतिविधियों और टहलने के कीमती दृश्यों को अपने कैमरे में फोटो ग्राफ और वीडियों बना कर कैद किया और वापस अंतरिक्ष की ओर उड़ गये।

उनका गगन अब फिर से रोकेट बन गया और आकाश की ऊँचाईयो को पार करते हुये ऊँचा उठा जा रहा था।

वे फिर से बहुत सारी रंगीन गेंदों के बीच तैर रहे थे।

पीला ग्रह प्रो.दयाल को पिछले दिनों सबसे ज्यादा आकर्षित कर रहा था तो उन्होनंे इस बार वही जाने का मन बनाया और वहां पहुँच कर बड़े प्रसन्न भी हुये।

उन लोगांें ने देखा कि इस ग्रह की जमीन पर भी चट्टानें ही चट्टानें भरी हुई थी जिनके बीच यहां भी विचरण करते हुये अलग तरह के डाइनासौर दिख रहे थे। इन डाईनासौरों के भय से इधर-उधर लुकते छिपते जमीन से सटकर चलने वाले मगरमच्छ जैसे ऐपिलासौरस की शक्ल सूरत भी कम भयानक नहीं थी। चपटा गोल सा मुंह बड़ा भयानक लगता था।

दयाल सर ने कहा कि ऐसे जानवरी पृथ्वी पर भी हुये हैं और यह सब पृथ्वी से आठ करोड़ साल पहले लुप्त हो गए थे।

अजय ने याद करके बताया कि हरे ग्रह के डाइनासौरों की तुलना में पीले ग्रह वाला यह टिलनोसौरस कुछ छोटा तो लग रहा था लेकिन उनसे ज्यादा हिंसक लगता था क्योंकि इसकी नज़र हमेशा आसपास के जंतुओ पर लगी रहती थी। और मौका मिलते ही यह उन्हे गड़प कर जाता था।

अनेक रंगो के सर्प और छोटे-छोटे जंतु इस आतंकवादी डाईनासौर टिरानी के भय से डर रहे थे।

इस चट्टानी हिस्से से दूर पानी के किनारे मनोरम जंगल भी था जहां रंग बिरंगेे पेड़ और झाड़ियां फूलो से लदी खड़ी थे।

देर तक उन लोगो ने दूर-दूर तक अवलोकन किया जिसके बाद एक चौड़े से मैदान में अपना यान उतारा और नीचे उतर पड़े।

खाने-पीने का सामान अपने साथ ले आये थे और घास को देखकर सचमुच बड़ी प्रसन्नता हुई थी। और उन्हे एसा प्रतीत नही हुआ था कि वे पृथ्वी से 8 करोड़ साल पीछे चलते ग्रह पर विवरण कर रहे हैं। सूरज का गोला तीसरे पहर का अभ्यास कराने जा रहा था तब वे अपने यान मे आ बैठे थे, और गगन फिर से आसमान की ओर छलांग लगाने की तैयारी करने लगा था। लेकिन एक भयानक आवाज सुनकर वे चौक गये और यह क्या ! ये किसकी आवाज है। वे दौड़कर अपने यान में बैठे और उसे चालू कर दिया।