loco pilot in Hindi Adventure Stories by Rekha Pancholi books and stories PDF | लोको पायलेट

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लोको पायलेट

लोको पायलेट लेखिका -रेखा पंचोली

"अरे बहु ! जरा चाय तो दे जा बड़ी देर से इंतजार कर रही हूँ |"कमरे से माँ की आवाज आई |

लो अब ये भी उठ गईं...और उठते ही चाय का हुक्म जारी हो कर दिया | मेरी की कर्कश आवाज रसोई घर में गूंज रही थी |

इसकी आवाज दिन ब दिन इतनी कर्कश क्यूँ होती जा रही है | माइकल सोच रहा था उसने खिड़की से किचन में काम करती मेरी को देखा | मेरी का बडबडाना बदस्तूर जारी था | वह थोडा लंगड़ा कर भी चल रही थी | हो सकता है, उसके घुटनों का दर्द बढ़ गया हो , पर उससे इस समय कुछ भी पूछना बर्र के छाते में ऊँगली डालना साबित हो सकता था |वह सारा रोना धोना अभी ले कर बैठ जाएगी | ऐसा नहीं है कि वह उसकी तकलीफ नहीं समझता ,पर कर ही क्या सकता है ? अपने अपने हिस्से की तकलीफ सबको खुद ही सहन करनी पड़ती है | 57 बरस की हो गई है मेरी , उसे ब्लड प्रेशर ,शुगर और जोड़ों के दर्द जैसी बीमारियों ने घेर रखा है ,ऊपर से पूरे घर की जिम्मेदारी भी उसको उठानी पड़ रही है | इस सारे परिदृश्य से नजर हटा कर माइकल अपनी ड्यूटी पर जाने की तैयारी करने लगा |उसने धुला हुआ नेपकिन, यूनिफार्म और बेडशीट निकाल कर अपने बैग में रखी | कुछ भी हो ,मेरी चाहे कितना ही क्यों न बडबडाती हो पर हर काम बड़े सलीके से और समय पर करती है | उसने अपनी प्रेस की हुई यूनिफार्म को प्रसंशा की नजर से देखा | ये घर... ये नौकरी सब उसकी बदौलत ही तो चल है| वर्ना ट्रैन ड्राइवर की नौकरी क्या इतनी आसन है ?

बाहर उसका 30वर्षीय बेटा रोजर अपनी खटारा मोपेड साफ कर रहा था |उसे आज कम्पीटीशन एग्जाम देने जाना था |30 साल का रोजर क्लर्क से लेकर कलक्टर तक के सभी एग्जाम दे चुका है| रोजर सदैव से अच्छा छात्र रहा है मेहनती भी है ,मगर क्या करें बढती जनसंख्या के हिसाब से बढ़ता कम्पीटीशन और आरक्षण की जंजीर ने उसकी दौड़ को बाधा दौड़ बना दिया था | उसने एक गहरी साँस ली | रोजर गाड़ी स्टार्ट कर रहा था | मेरी दही में चीनी घोलते हुए बोली "रोजर दही-चीनी खा कर जाना ,एग्जाम अच्छा होगा |"अगर आप सुबह-सुबह इतना ना चिल्लाओ न ,तो भी मेरा एग्जाम अच्छा हो सकता है माँ |" रोजर ने झल्ला कर कहा | उसकी इस बात ने मेरी की 5 बजे से उठ कर की गई मेहनत पर पानी फिर दिया था | मेरी रुआंसी हो गई थी, उधर माँ नहाने के लिए गर्म पानी मांग रहीं थी, जैसे उन्हें भी अभी ही कहीं जाना हो |माइकल तैयार हो कर बाहर आ गया था ,मेरी उसका चार डिब्बों वाला टिफिन लिए दरवाजे पर खड़ी थी | उसने मेरी की तरफ देख कर मुस्कुराने की असफल चेष्टा की और आगे बढ़ गया |

"अरे आप आ गए माइकल सर ! अच्छा हुआ सर आप जल्दी आ गए | लीजिये ड्यूटी-रजिस्टर में साईंन कीजिये | सामने कोटा-बीना पेसन्जर खड़ी है ,ले जाइये |" लोबी मे तैनात स्टेशन मास्टर शर्मा ने उसकी ओर रजिस्टर बढ़ाते हुए कहा | "मगर मुझे तो जयपुर सुपर में जाना है शर्मा जी "

"मुझे मालूम है, माइकल सर कि आपकी ड्यूटी जयपुर सुपर में है,पर कोटा-बीना के लोको पायलेट मि.जैन की अचानक तबियत ख़राब हो गई है, गुप्ता जी को बुलाया था, पर वो अभी तक नहीं पहुंचे हैं और गाड़ी का डिपार्चर टाइम हो चुका है |" "कोई बात नहीं शर्माजी मुझे तो ड्यूटी करनी है कहीं भी भेज दो |"

आज माइकल के साथ जूनियर लोको पायलेट बने सिंह था | तेज रफ़्तार से पटरियों को निगलती सी ट्रेन सरपट दौड़ रही थी | कभी पहाड़ ,कभी लम्बी सुरंग , तो कभी नदी के पुल से गुजरती ट्रेन का सफ़र इंजिन में बैठ कर कम खतरनाक नहीं लगता | नये-नये नए ड्राइवर तो घबरा जाते हैं | जब ट्रेन घुमावदार मोड़ से गुजरती है या नदी के पुल से धडधडाती गुजरती है तो इंजिन से यूँ लगता है जैसे अब गिरी.....अब गिरी |माइकल को खतरनाक से खतरनाक रास्तों का अनुभव है , अब तो रिटायर्मेंट का एक ही वर्ष बाकि रह गया है | वो ऐसे रास्तों का आनंद उठाता है, हर बार नये रोमांच से भर उठता है ...जिन्दगी की तमाम परेशानियों को भूल सा जाता है |

बने सिंह माइकल का पूर्व परिचित था | उसका विवाह तीन चार वर्ष पूर्व ही हुआ था | एक नन्ही सी बेटी भी थी | आपसी गपशप में सफ़र आराम से कट रहा था |माइकल और बने सिंह को सपने में भी गुमान नहीं था रेलवे के इतिहास का एक भीषण और अनोखा हादसा उनकी राह तक रहा है |

यह सिंगल लाइन ट्रेक था |दो स्टेशनों के बीचएक बार में एक ही ट्रेन चल सकती थी |एक गाड़ी को निकालने के लिए दूसरी को स्टेशन पर रोक लिया जाता था | स्टेशन पर दो या दो से अधिक लाइने बिछी होती थी | 1990 के दशक का ये वो जमाना था, जब संचार साधनों के नाम पर सिर्फ लैंड लाइन पर पूरा रेलवे सिस्टम निर्भर था | ना मोबाईल,ना पेजर और ना ही कोई वाकीटोकी ...गार्ड- ड्राइवर बस केवल लाल और हरी झंडी के सहारे थे |

माइकल की पैसंजर एक कस्बेनुमा 'X' स्टेशन पर रुकी थी | स्टेशन मास्टर धवन ने हरी झंडी दिखाते हुए उसे बताया कि बीना की और से एक मालगाड़ी आ रही है उसे आगे वाले स्टेशन 'Y' पर रुकवाने के लिए बोल दिया है |

बीना की और से आ रही ये मालगाड़ी मंद गति से आगे बढ़ रही थी क्यूंकि उसे ऐसे निर्देश दिए गए थे ,किन्तु ढलान की वजह से गाड़ी स्पीड पकड़ने लगी थी | सामने 'Y' स्टेशन पर रेड सिग्नल देख कर मालगाड़ी के लोको पायलेट लखन ने अपने सीनियर गंगा सिंह को कहा-" सर ब्रेक लगाइए हमें आउटर पर ही रुक ने का संकेत दिया जा रहा है | " मगर यह क्या !!! ब्रेक तो लग ही नहीं रहे थे | गंगा सिंह और लखन के हाथ पैर फूल गए | बार-बार कोशिश करने पर भी ब्रेक नहीं लगे | गंगा सिंह ने रुक-रुक कर तीन बार गाड़ी का हॉर्न बजाया | गाड़ी का गार्ड मनोज चौंक कर उठ बैठा ... ये संकेत था उसके लिए कि गाडी के इंजिन के ब्रेक फ़ैल हैं, और उसे वेक्यूम ब्रेक के द्वारा गाडी को रोकना है | उसने पूरी ताकत से वेक्यूम ब्रेक लगाये पर ....असफल !!बार-बार कोशिश की पर नाकाम रही ...दरसल वेक्यूम ब्रेक भी फ़ैल हो चुके थे | वो भय से काँप रहा था ,उसे मौत सामने नाचती दिख रही थी उसने लाल झंडी निकाली और उसे हिलाते हुए सहायता के लिए चिल्लाना शुरू किया | लाल झंडी देख कर गंगा सिंह और लखन समझ गए की वेक्यूम ब्रेक भी फ़ैल हैं |

ईन्जन से हार्न लगातार बजाया जा रहा था | दोनों ड्राइवर और गार्ड अपने दोनों हाथों में लाल झंडी लिए लगातार दहशत भरे स्वर में सहायता की गुहार लगा रहे थे | आस-पास के खेतों में काम करने वाले लोग कोतुहल से इस मंजर को देख रहे थे और खतरे को भांप रहे थे | गाड़ी की लाल लाइटें जला दी गई थीं | तीनों के प्राण हलक मैं अटके थे ...ये तीनों मौत के वाहन पर सवार ... बड़ी तेजी से मौत की और बढते जा रहे थे | उन निरीह प्राणियों के पास उस डरावने पल की प्रतीक्षा करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था , जब सबकुछ एक झटके में ...एक ही पल में बड़े ही भयानक तरीके से ख़तम हो जाने वाला था | मौत के भयानक मंजर की और बढती ये ट्रेन इस समय उस y स्टेशन से गुजर रही थी जहाँ उन्हें रुकने के संकेत दिए गए थे |

ये दृश्य देख कर y स्टेशन के स्टेशन मास्टर मतीन के होश फाख्ता हो गए | उसने तुरंत x स्टेशन के स्टेशन मास्टर धवन को फोन किया " धवन सर कोटा बीना पैसंजर को वहीँ रोक लो ... मालगाड़ी के ब्रेक फ़ैल हैं, वो सिंग्नल पर बिना रुके ये स्टेशन क्रोस कर रही है , और सुनो ssss कोटा को तुरंत सुचना दो जो-जो भी गाड़ियाँ इस समय इस रूट के ट्रेक पर हैं, उन्हें वहीँ स्टेशनों पर खड़ी करवा कर इस ब्रेक फ़ैल गाड़ी को रोकने का प्रबन्ध करें |"शीत ऋतू मे भी उसके सर से पसीना टपक रहा था |

क्याssss क्या कह रहे हो ,मतीन ! कोटा बीना पैसंजर ट्रेन अभी-अभी यहाँ से रवाना हुई है | धवन का स्वर लडखडा रहा था , एक भयानक एक्सीडेंट का दृश्य उसकी आँखों के सामने लहरा गया | खून से लथपथ लाशें ...दर्द से कराहते घायल ..और अपनों को तलाशते ,बिलखते परिजन ...| उसने हताशा भरे स्वर में कहा--" अब तो में कोटा को यह सूचना दे सकता हूँ कि एक भीषण हादसा होने वाला है ,और इस लोकेशन पर एक्सीडेंट रिलीफ ब्रेक डाउन शीघ्र भेज दे |"

रेलवे के इतिहास का ऐसा हादसा होने जा रहा था जिसे रोका नहीं जा सकता था ,हादसा होने के बाद बस रहत पहुंचाई जा सकती थी | कोटा में इमरजेंसी सायरन बज चुका था ...ये खबर आग की तरह रेलवे कोलोनी और आस पास के इलाकों में फ़ैल गई कि कोटा-बीना पैसंजर का एक्सीडेंट हो गया है |

बने सिंह के घर वाले सबसे ज्यादा तनाव में थे | मि . जैन और गुप्ता के घर वाले राहत की साँस ले रहे थे और माइकल के घर पर तो पता ही नहीं था कि वो इस ट्रेन का लोको पायलेट था |

कोटा से एक्सीडेंट के पहले ही डाक्टरों,नर्सों ,पुलिस वालों व स्वं सेवकों से भरी ये रिलीफ ट्रेन बीना की और रवाना हो गई थी | दोनों स्टेशन मास्टरों की त्वरित सूचना से दोनों जगह के बाशिन्दों में ये खबर तेजी से फ़ैल गई थी ,वहां के नवयुवक मोटरसाइकिलों से इन दोनों गाड़ियों का पीछा कर रहे थे|

माइकल की पेसन्जर इस समय घने जंगल से गुजर रही थी | लंच का समय हो गया था ,माइकल ने अपना चार डिब्बों वाला टिफिन खोला ...छोटे सा यह केबन अचार और मसालेदार सब्जियों की महक से गमक उठा | "लो बने सिंह खाओ ... " "अरे नहीं सर में बीना जा कर अपना लंच लूँगा |" "लो न बने सिंह मेरी हमेशा टिफिन में ज्यादा खाना ही रखती है | " खाने के साथ माइकल अपनी सूक्ष्म और अनुभवी नजरों से ट्रेक का मुआयना भी करता जा रहा था | अचानक उसके हाथ का निवाला हाथ में ही रह गया | "देखो ss बने सिंह सामने इसी लाइन पर मालगाड़ी चली आ रही है |"बने सिंह ने देखा सामने मालगाड़ी तेजी से दौड़ती उनकी ओर चली आ रही थी,जिसकी लाल लाइटें जली हुई थीं और गार्ड और ड्राइवर लाल झंडी दिखा रहे थे, मानो साक्षात् मौत उनकी ओर सुरसा की तरह मुंह खोले भागी आ रही हो |

माइकल ने ट्रेन के ब्रेक लगा दिए और छ: छोटे हार्न लगाये जिसका अर्थ था, ट्रेन खतरे में है, पर यात्री इसका मतलब समझ ही नहीं सके ....उन्हें इसकी कोई जानकारी ही नहीं थी | उसने बने सिंह से कहा कि " हमें दौड़ कर बताना होगा की ट्रेन खतरे में है और सब ट्रेन से उतर जाएँ |हम दौड़ कर कमसे कम पांच डिब्बों तक ये मेसेज पहुंचा सकते हैं ,बाकी पीछे वाले डिब्बे खतरे से बाहर हैं |" माइकल बिना समय गवाएं इंजिन से नीचे कूदा और उलटी दिशा में दौड़ते हुए चिल्लाने लगा "सभी यात्री गण ट्रेन से उतर जायें ..ट्रेन का भीषण एक्सीडेंट होने वाला है |"

लंच समय होने से कुछ लोग इस समय खाना खा रहे थे, तो कुछ ताश खेल रहे थे | किसी ने उस पर खास ध्यान नहीं दिया | कुछ लोग उसे देख कर हंस रहे थे ...उनके लिए ये समझना मुश्किल था कि आख़िर कोई पहले से कैसे कह सकता है कि एक्सीडेंट होने वाला है | वह बेतहाशा चीखता हुआ पुन : इंजन की ओर लौटा ,किसी ने उसे पागल ..किसी ने सिरफिरा तो किसीने ने शराबी समझा | अफ़सोस की लोग इतने सजग हैं ही नहीं कि उसकी आसमानी शर्ट और नेवी ब्लू पेंट देख कर ही समझ लें कि वो इस ट्रेन का लोको पायलेट है | बने सिंह किंकर्तव्यविमूढ़ सा खड़ा था , उसने माइकल का हाथ पकड़ कर खींचते हुए कहा - "चलो सर ! यहाँ से भाग चलते हैं | " उसके सामने उसकी पत्नी और बेटी का चेहरा घूम रहा था | " नहीं !मैं अपने ट्रेन और यात्रियों को इस तरह मौत के मुंह में छोड़ कर नहीं जा सकता |" "आप उन्हें बचा भी तो नहीं सकते सर ...कम से कम अपने आप को तो बचा सकतें हैं | अगर मरने से बच भी गए तो पुलिस , रेलवे और जिनके परिजन इस हादसे में मर जायेगें वो आम पब्लिक आप को जीने नहीं देगी ..चलिए नादानी मत करिये |उसने माइकल का हाथ को फिर से खींचा|" "तुम जाओ बने सिंह, मुझे नहीं जाना |" उसने दृढ़ता से कहा और इंजिन मैं चढ़ गया |

बने सिंह जंगल की ओर भागने लगा उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वो माइकल को बहादुर और कर्तव्यनिष्ठ समझे या फिर निरा मूर्ख |

भड़ाsssम भट्ट ..भट्ट की भीषण आवाज से पूरा जंगल दहल गया ,....धरती मानों हिल सी गई आस-पास के गावों में भी यह भीषण आवाज सुनी गई | यात्रियों की चीख पुकार ,क्रंदन और रुदन वातावरण को भयप्रद बनाने लगे |

रिलीफ ब्रेक डाउन ट्रेन ..बचाव दल , स्वं सेवियों और पुलिस दल सहित वहां पहुँच गई थी |अपने अपने साधनों से भी वहां कई स्वं सेवक, मिडिया कर्मी व पत्रकार पहुंचे | माल गाड़ी के इंजिन सहित तीन डिब्बे पैसेंजर ट्रेन के इंजिन और तीन बोगियों पर चढ़ गए थे | मालगाड़ी के दोनों लोको पायलेट नहीं बच पाए... वो दोनों हादसे के ठीक पहले इंजिन से कूद पड़े थे | पैसंजर ट्रेन से एक लोको पायलेट का हाथ बाहर झूल रहा था | गैस कटर से इंजिन के हिस्सों को काटे जाने पर माइकल की क्षत -विक्षत लाश मिली | बने सिंह का कहीं कोई अता-पता नहीं था | अपनी ड्यूटी को , ट्रेन को और यात्रियों को हादसे के समय छोड़ कर भागने के जुर्म में उसके लिए गिरफ्तारी का वारंट जारी हो चुका था | नियम के मुताबिक उसे रेलवे से निलंबित कर दिया गया था |

गमगीन माहौल में माइकल का शव उसके घर पहुंचा | एक ही सवाल सबके जेहन में था कि जब खतरा पहले से भांप कर माइकल ने ट्रेन ही रोक दी थी तो फिर वो इंजिन से उतरा क्यूँ नहीं |एक अजब पहेली थी सबके लिए | ठीक है वो ड्यूटी से भाग नहीं सकता था पर ट्रैन से नीचे उतर कर अपनी जान तो बचा सकता था | इसके लिए तो उस पर कोई केस नहीं बनता की कि वो बच क्यों गया ? सब अपने अपने कयास लगा रहे थे कि आख़िर उसने मौत को क्यूँ चुना?? अख़बारों और मिडिया के लिए भी ये सवाल कौतुहल से भरा था |यहाँ तक की अख़बारों कि सुर्ख़ियों में भी यही सवाल हेड लाइन बन कर छाया था | घर में मातम पसरा था | मेरी पत्थर की मूरत सी बनी बैठी थी ,उसकी आँखों में तो जैसे कोई सवाल ही नहीं था |मानो इस सवाल का इस पहेली का उत्तर उसे पता था |

उसका बेटा डेविड रो-रो कर यही सवाल किये जा रहा था आपने ऐसा क्यूँ किया पापा ? कहीं आपकी मौत का कारण मैं तो नहीं ??आप ऐसा सोच भी कैसे सकते हैं ?मैं क्या वो नौकरी कर पाउँगा जो मेरे पापा के बदले मिले ? इतनी बड़ी कीमत ?

रेखा पंचोली

पारिजात ,334 शास्त्रीनगर

दादा बारी,कोटा ,पिन 324009