काश
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तुम
ब्रह्मा की अनुपम कृति हो,
लगता है,
सृष्टि के निर्माता ने,
तुम्हे,
फुर्सत में,
बड़े जतन से घड़ा है,
तभी तो,
तुम्हारा हर अंग,प्रत्यंग
बोलता है,
तुम्हारी झील सी गहरी,
आंखे
गुलाब की पंखड़ियों सदृश
पतले,रसीले,नाज़ुक होठ औऱ
हवा में लहराती रेेेशमी जुुुल्फे,
तुम्हारे रंग रुप की जितनी
तारीफ की जाए कम है,
लोग कहते है,कोई गम है,
तो शराब पीओ,भूल जाओगे
सारे गम,हो जाओगे मस्त
मैं कहता हूँ,तुम्हारा रूप
इतना मस्त ,मादक है
औऱ तुम्हारी नशीली ऑखों के
आगे शराब क्या चीज़ है,
तुम्हे देखकर दिल चाहता है
काश तू मेरी हो जा
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नारी
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पूजी जाती हो, कितनी ही
नारी
लेकिन उसके भाग्य मे, तो लिखा है,
दुख
महिमा मंडित की जाती हो कितनी ही
नारी,
लेकिन उसके जीवन मे तो,
बिखरे पड़े है कांटे,
उठा के देख लो इतिहास
पलट लो,पौराणिक ग्रन्थ
किस युग मे सुख पाया है
नारी ने
हर युग मे दुखो से
भरी रही है,झोली,
नारी की
सीता और द्रौपदी, जैसी महारानियाँ
नहीं बची, पुरुषों के उत्पीड़न से
तो.फिर औरो की क्या बात करें?
जिस नारी को पूजता है
मर्द
उसी को अपमानित,उत्पीड़ित
करता है, मर्द
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चरित्र
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दलित औरत को देखकर
स्वर्ण,उच्चवर्ग के लोग
नाक भो सिकोड़ते है,
उसे अछूत समझते है
उसे घर की दहलीज
भी नही लाँघने देते
मगर उसकी देह
भोगने को मिल जाये तो
उसका अछूत होना
मायने नही रखता
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प्यार हो गया
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रोज़ रात को,
मेरे ख्वाबों में आकर
नींद चुराकर ले जाने वाली,
इत्तफाक से,
एक दिन राह में
मिल गई,देखते ही उसे
खिल उठा मेरा मन
नज़रे उस पर टिकी,
तो टिकी ही रह गई,
मुझे देखकर उसके होठों
पर भी मुस्कराहट उभरी,
पहली बार देखते ही
उससे प्यार हो गया
उससे मैं बोला,
कुड़ी आई लव यू
सुनकर मेरी बात
वह बोली,
धत
और शरमाकर वह भाग गई
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दाग
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कितनी
मन्नते,उपवास,अनुष्ठानों
के बाद आस बंधी थी
लेकिन वह
माँ बनती उससे पहले,
पति साथ छोड़कर चला गया
जवान,विधवा के लिए
कितना मुश्किल होता है,
ज़माने की नज़रो से,
अपने को बचाना
उसने जैसे,तैसे
अपनी इज़्ज़त बचाकर
बेटे को पाला तो,
लेकिन
बेटे को जैसा बनाना चाहती थी,
वैसा नही बना पायी, गलत
सोहबत मे पड़कर,
बेटा उसे धोखा देता रहा,
और वह बेटे पर आंख मूंदकर
विश्वास करती रही,इसी
का नतीजा था,एक दिन
बेटे ने दोस्तो के साथ
एक लड़की की इज़्ज़त लूट ली
अब लोग,उसे
बलात्कारी की माँ कहकर
पुकारते है और घृणा से
मुँह सिकोड़ते है,
ऐसे बेटे की माँ बनने से तो बेहतर था
वह निपूती रहती,
कम से कम बदनामी का
दाग तो माथे पर न लगता
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काम
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खाला कल से मैं
काम करने जाऊंगी
क्या कह रही हों बीबी?
खाला उसकी बात सुनकर
चौंकते हुए बोली,
जिस खानदान की औरत ने
कभी अकेले,देहरी से बाहर
पैर न रखे हो,
उस खानदान की औरत
मज़दूरी करने जाएगी
तो लोग क्या कहेंगे?
लोगो के कहने की
फिक्र करू या
बच्चों की भूख देखूं?
बीबी बोली,
माँ हूँ,अपने बच्चों को
भूख से तड़पता नही
देख सकती,
लेकिन बीबी
जिस खानदान की
औरतो के घर से
बाहर निकलने पर,
उंगली किसी को
न दिखती हो,उस
खानदान की औरत,
लोगो के बीच
बेपर्दा होकर काम करेगी तो,
उसे शर्म नही आएगी?
चोरी,डकैती या जिस्म
बेचने मे शर्म आनी चाहिए
मेहनत करने में
शर्म कैसी?
जब शौहर नही रहा तो,
बच्चों को पालना मेरा फ़र्ज़ है,
इस फ़र्ज़ को तभी निभा सकती हूँ
जब कोई काम करू
काम करने के लिए घर की दहलीज
लांघना ज़रूरी है,
अगर मुझे अपना फर्ज निभाने के लिए
बेपर्दा होना पड़े,तो
होउंगी
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ऐसा रूप तेरा
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चंदन सा महकता,
बदन गौरी तुम्हारा,
मुखड़ा जैसे आकाश मे
चमकता चन्द्रमा,
झील सी गहरी
सुरमई आंखे तुम्हारी,
गाल है कश्मीरी सेब से
लाल तुम्हारे,
गुलाब की पंखुड़ी सदृश
नाज़ुक होठ तुम्हारे,
चलती तो लता सी बलखाती
कमर तुम्हारी,
मुस्कराती हो ,तो लगता
वन उपवन मे बहार आयी,
हंसती तो लगता मानो
बाग़ मे फूल झड़े
फैला देती हो आँचल तो
लगती हो प्रतिमा
बिखरा देती हो
अपनी जुल्फे तो
ऐसा लगता है,
मानो चांद को
काली घटाओ ने आ घेरा
गौरी ऐसा जादुई रूप है, तेरा
तू आये तो खुशी का सवेरा
तेरे जाने से सांझ की उदासी का घेरा