Diwana Raja in Hindi Short Stories by प्रवीण बसोतिया books and stories PDF | दीवाना राजा

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दीवाना राजा

कलयुग की शुरुआत से पहले ही महाभारत का युद्ध हुआ। ये कहने अति सहज होगा। कि नारी की लाज स्वमं भगवान को बचानी पड़ी और द्रौपती को जब सभी रास्ते बंद होते दिखे तो उन्होंने मधु सूदन को पुकारा। और वह उनकी मदद करने पहुँच गये। परंतु वह युग द्वापर युग था। जिसमें ईस्वर अपने भगत की एक पुकार को ही सुन कर आ जाने के लिए विवश था। क्योंकि उस युग में भक्ति सच्ची होती थी। लेकिन जब भगवान अपना शरीर छोड़कर अपने धाम को चले गए तो इस संसार ने अपना लिबाज बदल लिया और उस लिबाज का नाम था। "कलयुग " जिसे पाने के बाद इस संसार का प्रत्येक प्राणी झूठ और सच में फर्क करना ही भूल गया। चारों और अधर्म ही फेलने लगा। युवा वासना की और केंद्रित हो गए। और पत्नियों अपने पतियों के प्रति धोखे बाज होने लगी। पांडवों के जाने के बाद 1 हज़ार वर्ष बाद हस्तिनापुर के टुकड़े हो गए। और वह छोटे छोटे राज्यों में विभाजित हो चला। और उन राज्यों के राजा प्रजा की और ज्यादा ध्यान न देकर अपने ही आनंद में डुबे रहते। उन ही राज्यों में से पालमपुर राज्य का राजा किशोरी सिंह अपनी वासना का गुलाम था। उसकी 23 पत्नियां थी। जो भी नारी उसे अधिक सुंदर दिखती उससे वह विवाह लर लेता। और जब तक उसका दिल न भर जाता तब तक वो राज्य की बागडोर की तरफ भी नहीं देखता था। राज्य के मंत्री भी राजा से परेशान थे। किंतु वह खुद को राजा की सेवा में समर्पित लर चुके थे। राजा किशोरी वासना के अधीन तो था ही लेकिन वह अति शक्तिशाली राजा था। उससे युद्ध करने से बहुत से राजा डरते थे। कुछ राजाओं को उसने हराकर कर बंदी बना लिया था। और उनकी रानियों को दासी, और वह दासियों के साथ भी दुष्कर्म किया करता था। लेकिन कहते हैं। जब तक समय आपके अधीन है। तब तक सब उचित होगा। यदि समय आपके विपरीत हो गया तो, फिर आपका विनाश है। ऐसा ही कुछ राजा किशोरी के साथ, बहुत अधिक शक्तिशाली होने के घमंड उसे ले डूबा, घमंड एक ऐसी शक्ति है। जो आपकी आंखों पर पट्टी बांध देती है। और आपको पता ही नही रहता आपके लिए उचित क्या है और अनुचित क्या, मगध के राजकुमार उदयकुमार, युवावस्था में जैसे ही आये। तो उनके पिता भानु कुमार को उनके विवाह की चिंता सताने लगी। और उन्होंने स्वमं ही अपने पुत्र के लिए वधु ढूँढने का निश्चय किया। उन्होंने तय किया वह आसपास के सभी राज्यो में जाएंगे और उनकी राजकुमारियों को स्वमं ही पसंद करेंगे। जब यह बात राजा भानुकुमार ने अपनी पत्नी यशोधरा को बताई तो उन्होंने ने भी साथ चलने की ज़िद की, उदयकुमार की आयु 16 वर्ष थी। और वह शिक्षा के लिए गुरुकुल गया हुआ था। उसकी शिक्षा कुछ समय पश्चात खत्म होने वाली थी। और राजा भानुकुमार उसके लौटने के पश्चात विवाह करना चाहते थे। भानु कुमार की पत्नी यशोधरा अति सुंदर थी। या यूं कयह लो, यौवन की देवी। यदि कोई भी पुरुष उसे देख लेता था। तो उसकी रातों की नींद उड़ जाती थी। रंग एक दम गोरा, गुलाब के पुष्पों से भी अधिक कोमल उसका शरीर था। यदि कोई हल्का सा हाथ लगा दे तो वहीं से लाल हो जाती थी।पूराशरीर की अगर बात कहूँ तो, बड़े बड़े नितंबों के ऊपर पतली कमर, गोल गोल सुरई जैसी गर्दन के नीचे सूंदर वक्ष जिनका उभार देखकर सर्दी में पसीना आ जाये। में भी राजा भानुकुमार अपनी पत्नी के हुस्न मुरीद थे। और यशोधरा भी एक पतिव्रता नारी थी। वह अपनी यौवन की बोछार से पुरषों को बचा कर रखती थी। और बहुत कम ही अपने कक्ष से बाहर जाती थी। यदि वह घूमने के लिए भी नगर में जाती थी। तो उस नगर से पुरुषों को हटा दिया जाता था। केवल इस्त्रियाँ ही महारानी यशोधरा की सुंदरता का दीदार कर पाती थी। यशोधरा को भी अपने यौवन से अति प्यार था। क्योंकि उसके यौवन की वजह से ही राजा भानुकुमार यशोधरा को बहुत अधिक प्यार करते थे। यशोधरा रात्रि के वक्त एक ऐसे तालाब में स्नान करती थी। जिसे गुलाब के पुष्पों भर दिया जाता था। और वह निर्वस्त्र होकर उस तालाब में घण्टो तक स्नान करती। उसका मानना था। जब तक पुष्पों की सुंगध उसके जिस्म में न समा जाए। तब तक वह तालाब से बाहर नहीं आती थी।उसके ऐसा करने का एक ही प्रमुख कारण था। और वह था। राजा भानु की द्वारा उस सुंगध को सूंघना और जिस्म के प्रत्येक भाग पर चुम्बन अंकित करना। भानुकुमार और यशोधरा के बीच गूढ़ प्रेम था। किंतु कोई भी प्रेम अधिक समय तक नहीं रहता ऐसा लोग कहते हैं। हुआ भी कुछ इस तरह ही, राजा भानुकुमार और उनकी पत्नी यशोधरा अपनी पुत्रवधु की खोज में निकल पड़े। वह अनेकों राज्य में गए। किन्तु उन्हें कोई भी कन्या नहीं लुभाई, कई महीनों के भ्रमण के बाद जब वह कन्या ढूँढने में कामयाब नहीं हो पाए। तो उन्होंने लौटने का निश्चय किया। किंतु जिस दिन वह लौटने वाले थे। उस दिन की रात्रि को उनके ही एक गुप्त चर ने उन दोनों एक अति सुंदर सुशील कन्या की जानकारी दी। गुप्तचर ने बताया कि यह से 65मील दूर एक राज्य है। जिसका नाम पालम पुर है। और वहाँ के राजा किशोरी सिंह की सबसे पहली पत्नी मायावती की पुत्री रीनासिंह है। राजा भानुकुमार ने गुप्तचर की बात सुनकर ही अपने दूत भेजकर राजा किशोरी को अपने आने की सूचना भेजी। किशोरी सिंह सूचना पाकर अति प्रसन्न हुआ। और उसने अनुमति दे दी। अगली ही रात्रि को भानुकुमार और यशोधरा पालमपुर राज्य में पहुँच गए। राजा किशोरी सिंह ने उन्हें बिना मिले ही मेहमान कक्ष में भिजवा दिया। और रात्रि के भोज के बाद यशोधरा एयर भानुकुमार बिल्कुल एकांत में थे। भानुकुमार ने यशोधरा की और प्रेम के8 नज़र घुमाई। यशोधरा भी शर्मा गई। और वह भानुकुमार के पास आकर कहने लगी। स्वामी यह तो अपना राज्य नहीं है। और आपने इतने दिन तो प्रतीक्षा की है तो फिर थोड़े दिन और कर लीजये। जैसे ही हम अपने राज्य में पुण्य लौटेंगे। फिर मैं आपको पूरी तरह सौंप दूँगी। भानुकुमार थोड़ा सा मुस्करा और कहने लगा। रानी तुम तो जानती हो। तुम्हारी मतवाली चाल और तुम्हारे नितंबों और वक्षो का उभार मेरी वासना के लिए एक चिंगारी से कम नहीं है। और फिर कोई पुरुष इतने दिन तक अपनी पत्नी से संभोग के बिना कैसे रह सकता है। रानी राजा भानुकुमार की बात सुनकर मुस्कराती हुई बोली। वाह स्वामी अपनी व्यथा तो आपने बिना लज्जा के बता दी। किन्तु मैं एक इस्त्री हूँ। मैं आपकी भाँति इन शब्दों का उपयोग नहीं कर सकती। मैं केवल इतना कह सकती हूं ।कि जिस प्रकार आप मेरे बिना व्याकुल है। उसी प्रकार मैं भी आपके प्रेम के लिए तरस गई हूँ। और हमे अपने पुत्र के लिए धैर्य रखना पड़ेगा। और आपको आपकी उतेजना पर सयंम रखना होगा। कई बार आपकी धोती आपकी धोती आपकी उतेजना का उल्लेख करती दिखाई पड़ती है।
किंतु यशोधरा इस उतेजना का केवल एक ही कारण है। और वह तुम्हारी ये चाल जो दिल मे अरमान उत्पन्न करती है। और फिर मेरा मन मेरे नियंत्रण खो देता है।
ठीक है स्वामी अब इन बातों को बंद करते है। अब हमें सो जाना चाहिए। सुबह कन्या देखकर ही संतुष्टि होगी। ठीक है रानी
लेकिन इस समय यहाँ एकांत है क्या हम अपना निर्णय बदल नहीं सकते।
स्वामी आप मुझे विवश न करे। और इस बार मैं आपकी आज्ञा को ठुकरा नहीं पाऊंगी।
ठीक है रानी हम प्रतीक्षा करेंगे।
राजा और रानी उस रात सो गए। अगली सुबह उनकी ज़िंदगी एक मोड़ लेने वाली थी जिससे दोनों अपरिचित थे। राजा किशोरी ने सुबह के नाश्ते के राजा भानुकुमार और उनकी रानी को बुलावा भेजा। रानी को डर था कि कहीं कोई पुरुष उनकी सुंदरता को देख अपनी आंखें न सेके तो इस लिए रानी ने अपने चेहरे को रेशम की चादर से ढक लिया। लेकिन रानी की खूबसूरत आँखें अभी दिख रही थी। खाने केलिए राजा ने अपनी सभी रानियों को बुलाया और अपनी पुत्री रीना को भी बुलाया, राजा भानुकुमार भी अपनी पत्नी के साथ कक्ष में पहुँच गए। राजा किशोरी ने बहुत आदर के साथ भानुकुमार को बैठाया और उनके बगल में ही रानी यशोधरा बैठ गई। वक तरफ राजा किशोरी अपनी 23 रानियों के साथ बैठा हुआ था। और दूसरी तरफ भानुकुमार और उसकी पत्नी थी। और एक तरफ रीना शर्म की चादर ओढ़े बैठी थी। रीना बेहद खूबसूरत थी। लेकिन वह महज 15 वर्ष की थी। रानी यशोधरा ने उसे देख कर कहा मुझे कन्या पसन्द है। भानुकुमार भी बोले ये कन्या हमारे पुत्र के लिए बिल्कुल अनुकूल रहेगी।
वह दोनों धीरे से बात कर रहे थे। अब तक रानी यशोधरा ने मुँह को ढका ही हुआ था। सेवक खाना लगा कर चले गए। राजा किशोरी ने कहा महाराज भानुकुमार भोजन शुरू करें। हमें बेहद पसन्नता होगी। महारानी जी आप भी भोजन ग्रहण करिए। रानी यशोधरा ने चारों और नज़र घुमाई। उसने सोचा यहाँ तो केवल राज परिवार है। बाहर का तो कोई है ही नहीं। अब मुझे अपना मुँह खोल लेना चाहिए। लेकिन रानी को कहाँ पता था। असली हैवान तो सामने ही बैठा है। राजा किशोरी ने अब तक रानी की तरफ ध्यान नहीं दिया था। लेकिन जैसे ही रानी ने मुँह से कपड़ा हटाया तो। किशोरी तो रानी की खुसबसूरती देख बौखला गया। साथ में उसकी रानियां भी। हैरान हो गयी। किशोरी की एक भी पत्नी रानी यशोधरा की खूबसूरती के आसपास भी नहीं थी। किशोरी सिंह रानी यशोधरा को अब ऊपर से नीचे तक देखने लगा। रानी के वक्षो का उभार और उसके गोरे बदन को देख किसी भूखे कुत्ते की तरह लार टपकाने लगा। रानी यशोधरा ने पहली बार किशोरी को देखा तो नज़र अंदाज़ किया। लेकिन दूसरी बार वह समझ गयी। कि राजा उसके हुस्न पर मर मिटा है।
रानी यशोधरा ने कहा आप राजा से कह दे हमें उनकी कन्या लुभा गई है। और हम कन्या के लिए उपहार भेजना चाहते है। और कुछ महीने बाद आकर वह रिश्ते को आकर पक्का कर सकते है। राजा भानुकुमार ने बिल्कुल ऐसा ही कहा। और किशोरी मान गया। खाने के बाद राजा भानुकुमार ने जाने की आज्ञा मांगी। पहले तो किशोरी ने रुकने का आग्रह किया। किन्तु जब वह विफल हो गया। तो उसके दिमाग में बेचैनी छा गई। और वह कुछ कर न पाया और राजा भानुकुमार और उनकी पत्नी अपने राज्य की और निकल पड़े।
किन्तु किशोरी के मन मे अभी तक रानी यशोधरा और उसका गुलाब की पंखुड़ियों जैसा जिस्म घूम रहा था। वह भी उसकी चाल से हिलते हुए नितंबों का कायल हो चुका था। उसे कुछ सूझ नहीं रहा था। और वह शेतान जबकुछ कर पाया तो उसने सैनिकों को आदेश दिया। राजा भानुकुमार को मारकर उसकी पत्नी यशोधरा को यहाँ ले आओ। और सैनिकों ने रास्ते में ही भानुकुमार का वध कर दिया और उसकी पत्नी को बंदी बना कर राजा के सामने पेश किया। रानी यशोधरा पति की मौत के बाद शोक में डूब गई। उसकी सुंदर आँखों से अश्क जैसे रुक गए। उसके होंठ जैसे सील चुके थे। राजा किशोरी ने रानी यशोधरा से कहा। वैसे हम भानुकुमार जैसे भले राजा को मारना तो नहीं चाहते थे। लेकिन अगर हम ऐसा न करते तो शायद तुम हमे कभी न मिल पाती। और वह यह बोलकर चला गया। रानी यशोधरा के लिए कमरा सजाया गया। राजा इस फिराक मे था। कि रात को रानी के साथ भरपूर आनंद लेना है। लेकिन उसे नही मालूम था। पति के जाने बाद वह पत्थर बन गयी है। रात हुई। दासिया रानी यशोधरा को सजा कर जा चुकी थी। फिर किशोरी किसी भूखे कुत्ते की भांति लार टपकाते हुए। रानी के पास आया रानी शांत ही थी। वह उसके जिस्म को ताड़ने लगा। आगे पीछे नज़रे जब उसने घुमा ली । फिर उसने रानी की कोमल गालों को को चूमा अब तक रानी बिल्कुल शांत थी। फिर उसने उसके कोमल से होंठो पर अपने मुँह से लार टपकाने लगा। रानी पत्थर बनी खड़ी रही । राजा की दरिन्दगी बहुत बढ़ चुकी थी। लेकिन एक विधवा के साथ वह दुष्कर्म करने को तैयार था। उसने रानी की गर्दन से अपने हाथों को फिराते हुए। रानी के स्तनों पर ले आया। रानी ज़िंदा लाश की तरह खड़ी थी। वह उसके गोरे जिस्म का दीवाना था। हो गया। राजा ने स्तनों पर हाथ रख कर रानी की सुंगध लेने लगा। जैसे खाने से पहले कोई खाने को सूंघता है। फिर अचानक से उसने रानी को कसकर गले लगा लिया। उसकी गर्दन को चूमने लगा। उसके हाथ रानी की जांघो पर घूम रहे ठगे। जांघो से घूमते हुए। उसकी हाथ रानी के तरबुज के समान कोमल नितंबों पर पड़े। और वह दोनों हाथो से उन्हें नोचने लगा।दोनों हाथों से नितंबों पर थप्पड़ मारने लगा। रानी को किसी अप्सरा की भांति सजा रखा था। फिर उसने रानी को झटके घुमा लिया और पीछे से कसकर दबोच लिया। लेकिन रानी किसी ज़िंदा लाश की तरह खड़ी रही। फिर उसने स्तनो के साथ भी वोही काम किया जो उसने कोमल नितंबों के साथ किया था। साथ ही वह रानी की गोरी कमर पर अपनी जीभ घुमा रहा था। अब उसने रानी के वस्त्रों को उतारना शुरू किया। अंत में रानी पूरी तरह निर्वस्त्र हो चुकी थी। उसका शरीर किसी प्रकाश की भांति चमक रहा था। राजा ने उसे पलंग पर धकेला और अपनो धोती को खोल कर खुद भी निर्वस्त्र हो गया। फिर उसने रानी के साथ 1 घण्टे सम्भोग किया किन्तु रानी की तरफ से एक आह तक नही हुई। वह संभोग के बाद वहां से चला गया। रानी पलंग पर उसी हालत में पढ़ी रही। 3 दिन तक ऐसे ही चलता रहा। रानी के जिंदा लाश समान शरीर के साथ राजा किशोरी ऐसे ही सम्भोग करता रहा। लेकिन अब वह ऊब गया था। उसने रानी से बोला तुम कब तक अपने पति का शोक मनाओगी अब मैं ही तुम्हरा पति हूँ। रानी किशोरी हँसने लगी। 3 दिन बाद भूखे पियासे शरीर के साथ राजा ने सम्भोग किया। और रानी फिर भी मुस्करा दी। तुम मुस्करा क्यों रही हो। तुम नहीं समझ सकते। क्योंकि तुम मुझे वैसे खुश नही कर पाते हो जैसे मेरे पति करते थे। और तुम्हें अभी संभोग का असली आनंद नही पता है। तुम्हें तो केवल जोर जबरदस्त करना आता है। तुम अभी संभोग के असल आनन्द से वंचित हो। ये ही सोचकर मुझे हंसी आ गयी। राजा किशोरी बोखला कर बोला क्या इससे अधिक भी आनंद आ सकता है। रानी ने कहा जरूर लेकिन वह आंनद मैं तुम्हें केवल दो शर्त पर दूँगी। राजा बोला वो क्या है। रानी ने बोला तुम्हें अपनी पुत्री का विवाह मेरे पुत्र के साथ करना होगा। राजा बोला मुझे1 मंजूर है। तुम्हारी दूसरी शर्त बोलो क्या है। रानी बोली मेरी दूसरी शर्त तुम पता नही पूरी कर पाओगे या नही। क्योंकि उसके लिए महान योद्धा का दिल होना अनिवार्य है। राजा इतराता हुआ बोला। मेरे समान योद्धा यहाँ कोई नही है। तुम शर्त बोलो। रानी बोली शर्त मैं बोल देती हूँ लेकिन अगर तुम मना करते हो। तो खुद को भरी प्रजा के सामने नपुंसक कहना होगा। राजा तैयार हो गया। रानी यशोधरा ने कहा तुम्हें मेरे साथ 2 वर्ष तक जंगल में रहना होगा। और मैं तुम्हें वैसा ही प्रेम करूँगी जैसा मैं अपने पति से करती थी। लेकिन जंगल में तुम्हें एक जंगली प्राणी की तरह ही एक झोपड़ी में रहना होगा। यदि तुम ऐसा करने मे सफल हुए तो मैं खुशी से तुमसे विवाह कर लुंगी। राजा ने बिना सोचे समझें ही हाँ कह दी। और रानी अपने पुत्र का विवाह करवाने के बाद राजा किशोरी के साथ जंगल में चली गयी। जंगल जाने से पहले रानी ने स्वंम के लिए सजने स्वरने का सारा सामान ले लिया । किन्तु राजा के सारे आभूषणों को उतरवा दिया। राजा ने खुशी के साथ सारे आभूषणों को उतार दिया। वह वासना मैं अंधा हो चुका था। वह 35 दिनों के पैदल सफर के बाद समुंदर किनारे जा पहुँचे और एक टापू पर अपनी झोपड़ी बनायी। झोपड़ी मैं पहले दिन ही राजा ने अपनी वासना में डुबकी लगा कर सीधा रानी पर झपटा मारा रानी ने राजा का विरोध करते हुए कहा। राजन तुम पहले स्नान कर लो। तुम्हारे शरीर से बेहद बुरी दुर्गंध आ रही है। मैं नहीं चाहती कि मेरा सुंगधित जिस्म भी दुषित हो जाये। राजन ने कहा ठीक है मैं अभी स्नान करके आता हूँ। जब तक राजा वापिस आया। रानी ने भी अपना सिंगार पूरा कर लिया था। राजा ने जब रानी की तरफ नज़र उठायी ।तो वह देखता ही रह गया। रानी एक अप्सरा की तरह मुस्कराती हुई। खड़ी थी। राजा ने कहा अति उत्तम सुंदरी तुमने तो अचंभित कर दिया। इसमें अचंबित होने की कोई बात नहीं है राजन यदि आपने अपनी बात पूरी की है। तो मुझे भी अपनी बात निभानी थी। मैंने अपने स्वामी की तरह आपसे प्रेम करने का जो वचन किया था। वह सत्य था। फिर राजा ने आगे की और कदम बढ़ाकर रानी को चूमते हुए। निर्वस्त्र कर दिया। राजा तो केवल एक धोती में ही था। जो कब की खुल चुकी थी। रानी ने राजा की हवस की आग अपने जिस्म को झोंक दिया। और वह आह की आवाज से राजा को उतेजित करती रही। जब लोहा गर्म होकर बिल्कुल खून जैसा लाल हो गया। टब राजन ने संभोग क्रिया को अंजाम दिया। उस रात राजा ने यह क्रिया दो बार की। किन्तु रानी अभी भी संतुष्ट नहीं थी। और वह नाराज होती हुई बोली। आप मुझे संतुष्ट नहीं कर पा रहे है। आपके योद्धा होने का क्या फायदा क्या आपको असली पुरषार्थ प्राप्त नहीं है। मेरे स्वामी मुझे रात्रि के मध्य तक प्रेम करते थे। रानी की इस बात से राजा का स्वाभिमान गिर पड़ा और वह फिर से बिना सोचे बोला। ठीक है रानी हम भी तुम्हें आधी रात्रि तक प्रेम करेंगे। रानी मुस्कराती हुई बोली। एक बार फिर से सोच ले राजन इस क्रिया में आपके वीर्य की अति क्षति होगी। जो आपके लिए अच्छा नहीं होगा। राजन ये बात भूल चुका था। कि वह अब महल में नहीं है। और वीर्य नाश की पूर्ति करने लिए उसके पास पोषक तत्व मौजूद नहीं है। उसका अहंकार संभोग के लिए बढ़ता ही जा रहा था। फिर उस रात्रि राजा ने 7 बार रानी के साथ सम्भोग किया। उसके बाद राजा पूरा थक चुका था। और फिर वह गहरी नींद में चला गया। अगली सुबह उसके शरीर में बेहद पीड़ा हो रही थी। राजा ने रानी यशोधरा से कहा कि जंगल से कुछ औषधि ले आओ। कही ये पीड़ा और अधिक न बढ़ जाये। रानी जंगल में गयी। और वापसी में वह औषधि के साथ कुछ फल ले आई। राजा जब औषधि कहा कर स्वास्थ हो गया तो। वह रानी की तारीफ किये बिना नही रह पाया। वह बोला। मेरी सारी आयु में भी मुझे संभोग में इतना आनंद कभी नहीं आया। रानी मुस्कराती हुई बोली। आज तो पहला ही दिन था। राजन अभी तो ऐसे ऐसे आसन है। कि आप धरती पर स्वर्ग अनुभव करेंगे। ठीक है सुंदरी अब मैं शिकार के लिए जा रहा हूँ। रानी ने राजा को रोकते हुए बोला। रुक जाओ । राजन मैं मांसाहारी पुरुष से कभी सम्बन्ध नहीं बनाती यदि आप मास का सेवन करेंगे। तो फिर आप मेरे साथ कभी सम्भोग नही कर पाएंगे। राजा रानी यशोधरा की बात सुनकर दुःखी हो गया। और बोला। रानी इस ज7जंगल में अनाज नहीं उगा सकते। और शिकार ही एक मात्र विकल्प है। नहीं राजन शिकार के अलावा फल भी है। किंतु फल हमेशा नहीं खा सकते। मैं तो हमेशा खा सकती हूँ। और आपको भी फल खाना पड़ेगा। यदि आप मेरे साथ इस पुन्य संभोग करोगे। अन्यथा भूल जाओ संभोग और यदि आप मेरे साथ जोर जबरदस्त संभोग करते हैं तो मैं आत्महत्या कर लुंगी। राजा रानी के बातों से बेहद परेशान हो गया। क्योंकि राजा का शरीर बहुत ही विशाल और ताकत वर था। और जिसके लिए खाना भी अधिक लगता था।और ऐसे में केवल फल से गुजारा कर पाना बहुत मुश्किल था। लेकिन राजा तो वासना की पट्टी बांध कर अंधा हो चुका था। रानी के सुडौल जिस्म पर उसकी नज़रे गड़ी रहती थी। वह दिन और रात का भी फर्क नहीं करता था। और रानी के साथ सम्भोग करता रहता। रानी ने राजा को 65 नए सम्भोग आसन का ज्ञान दिया। 1 महीना गुजर गया था। और अब तक ऐसा कोई दिन या रात नही गई थी। जब राजा ने रानी का रसपान न किया हो। रानी के नितंब उभरते जा रहे थे। दूसरी ओर राजा कमजोर होते जा रहा था। क्योंकि राजा को फल पसन्द नहीं थे। और वह भरपेट नहीं खाता था। रानी को ये बात का पता था। कि फल ही उनके शरीर की हो रही हानि को पूरी करेंगे। 24 घन्टे की भीतर 5 बार बनाते बनाते राजा कमजोर महसूस करने लगा। राजा की रुचि कम न हो जाये। इस लिए रानी उसे उकसाती रहती थी। कभी राजा के गुप्तांग पर जाकर बैठ जाती थी तो कभी राजा के गुप्तांग खेलने लग जाती। राजा उसे कहता कि अब हम संभोग कम किया करंगे। लेकिन रानी कहा मानने वाली थी वह अब 24 घण्टे में 4 बार संभोग किये बिना राजा को नहीं छोड़ती थी। 6 महीने बीत गए। राजा का सख्त शरीर अब सख्त नही रह था। राजा ने रानी को संभोग कम करने लिए कहा। क्योंकि वह अपने शरीर की हो रही हानि को समझने लगा था। रानी ने कहा राजन यदि आप शरीर की दुबलता के कारण ऐसा कयह रहे हैं तो मुझे वापस ले चलिए। और प्रजा के समुख जाकर कहिये। की आप नपुंसक हो चुके है। राजा ने कहा हम हमेशा संभोग करते रहते हैं। हमें कुछ और भी करना चाहिए। किंतु रानी ने इतराते हुए कहा। राजन हम यहाँ केवल इसी के लिए आएंगे। और मैं तो इसे अपना कर्तव्य समझती हूँ। यदि आपके गुप्तांग अब इस कार्य के लायक नहींरहा तो हम वापिस जा सकते हैं। राजा ने कहा कि मैं सोचकर बताता हूँ। रानी को लगा अब राजन घर जाने लिए तैयार न हो जाये। तो उसने राजन को फिर लुभाना शुरू किया। वह एक सफेद साड़ी लपेट कर आई। और जिसमें रानी के नितंब और उसके वक्ष साफ दिखाई दे रहे थे। एयर वह राजा के सामने नृत्य करने लगी। और राजा उसके नृत्य को देख उतेजित हो गया। जब नृत्य कर रही थी। उस समय उसके बड़े बड़े वक्षो और नितंबों का हिलाव राजा मन बदल चुका था। जब रानी नृत्य करने रही थी। उसी समय वर्षा भी होने लग गयी पानी से रानी का तन बदन भीग का ओर चमक हो उठा था। राजा ये देखकर पागल दीवाना हो गया। और वह नीरवस्त्र होकर रानी के पीछे चिपक गया। रानी राजा के गुप्तांग पर अपने नितंबों रगड़ कर नृत्य करने लगी।
राजा ने गुप्तांग के तनाव के कारण अपना आपा खो दिया और वह रानी की साड़ी उतारने लगा। धीरे धीरे उसने रानी को भी नग्न अवस्था में कर दिया। अब वह दोनों नग्न थे। और उन दोनों ने बारिश में ही संभोग क्रिया को अंज़ाम दिया। 1 घण्टे वह बारिश में संभोग में झुटे रहे। और उसके बाद जब उनका शरीर कंपन होने लगा। टब कही वह अंदर गए अंदर जाते ही दोनों ने एक कंबल ओढ़ लिया। जब उनके शरीर से पानी सूख गया। राजा किशोरी बोला। रानी तुम्हारी हर बार एक नई अदा मुझे उतेजित कर देती है। राजन अब मैंने आपसे वचन जो किया है। वह दोनों नग्न ही कम्बल में लेटे हुए थे। रानी ने फिर से राजा के गुप्तांग को अपने नितंबो से रगड़ना शुरू किया। और वह फिर तन गया।राजा ने लेटे हुए ही संभोग करना शुरू किया। और वह दोंनो करते हुए सो गए। ऐसे ही रानी नए नए तरीकों से राजा को उत्तजित करती रही और राजा संभोग करता गया। 2 वर्ष होने में अब पूरा एक महीना ही बाकी था। और राजा अब इतना कमजोर हो चुका था। कि अब उसके गुप्तांग तनाव बहुत कम हो गया था। और वह रानी से एक बार ही संभोग कर पाता था। उसकी हड्डियां दिखाई देने लगी थी। और पूरे शरीर पर झुर्रिया आ गई थी। तो दूसरी तरफ रानी ओर अधिक सुंदर हो गई थी। उसके अब और अधिक हिलने लग गए थे। राजा के शरीर संभोग के त्याग करने लगा लेकिन राजा त्याग नही करता था। उसके दो ही कारण थे। रानी को दिया वचन और रानी का खूबसूरत जिस्म और अब वह दिन भी आ गया। जब पूरे 2 वर्ष होने में केवल एक दिन ही बचा था। राजा खुश था। वह बहुत अधिक दुबला पतला हो चुका था। आखिरी दिन रानी ने राजा के साथ संभोग करने लिए। एक नई तरकीब बनाई। राजा सोच रहा था। महल जाते ही कुछ दिन में मेरा शरीर पहले जैसा ही हो जाएगा। रानी ने आज कुछ भी नहीं पहना था। वह केवल आभूषण ही पहन कर राजन के सामने नृत्य करने लगी कभी वह उसके ऊपर लेट जाती तो कभी उसके होंठो को चूमती। लेकिन अभी तक राजा का गुप्तांग उतेजित नही हुआ। रानी ने राजा की धोती में हाथ डाला तो वह हैरान हो गई। राजन क्या हुआ। जरा सा भी उतेजित नहीं हुए। रानी ने राजा को अब सच में नपुंसक बना दिया था। राजा ये बात जान चुका था। जब राजा का गुप्तांग में कोई भी हलचल न हुई तो। रानी बहुत जोर जोर हँसने लगी। और बोली राजन तुम अब सच में नपुंसक हो गए हो। लेकिन तुम जीत गए। और शर्त के मुताबिक मैं आपसे शादी करूँगी। वह दोंनो पालमपुर लौट आये। राजा अति दुबला पतला और दुःखी दिख रहा था। रानी अब बिना मुँह ढके ही नगर से गुजरी। उसके गोते खाते नितंबों को देख पुरुषों के पसीने छूट गए। राजा को देखकर उसकी 22 रानियों ने पहचानने से मना कर दिया। किन्तु सबसे पहली रानी मायावती को अपनी पति की हालत देख रोना आ गया। और वह बहुत रोई। रानी यशोधरा बहुत खुश भी थी। बहुत दुःखी भी। कुछ दिन बाद रानी यशोधरा ने राजा से विवाह कर लिया। राजा अपनी सुहागरात वाले दिन रानी से पूछने लगा। अब मैं सम्भोग के लायक नही रहा फिर भी तुमने मुझसे विवाह किया। तुम जैसी प्रेम करने वाली इस्त्री मुझे कभी नही मिल सकती थी। यदि मैं महाराज भानुकुमार का वध न करवाता। रानी हँसने लगी। तुम इसे प्रेम समझ रहे हो लगता तुम पागल हो गए। मूर्ख ये प्रेम नही प्रतिशोध था। मेरा अब तुम स्वमं किसी को बता नहीं पाओगे। की तुम नपुंसक हो चुके हो। तुमने मेरे पति को मारकर मेरी आत्मा को भी मर दिया था। और मैं तुम्हें मार भी सकती थी। किंतु मुझे तुन्हें नही तुम्हारी वासना को जड़ से मारना था। इसीलिए मैंने ये योजना बनाई थी। राजा के होश उड़ गए। जब उसने ये सब सुना। तो तुमने मुझसे अब शादी क्यों कि है?
ताकि तुम्हारे सुख चैन सब खत्म कर सकूँ। तुम क्या करने वाली हो। वोही राजन जो तुम्हारी बाकी की 22 पत्नियां करती हैं। गैरपुरुष के साथ संभोग। इन दो सालों में उन्होनें दूसरे पुरषों को अपना साथी बन लिया। और मैं हर रोज तुम्हारे सामने एक नए पुरुष के साथ संभोग करूँगी। और ये तुम्हारी सजा है। तुम्हारे मजे की सजा। राजा कुछ दिन देखता रहा। लेकिन जब वह सहन नही कर पाया तो उसने स्वमं को सांप से कटवा लिया। रानी यशोधरा का प्रतिशोध पूरा हो गया। और अब वह आत्मा हत्या करने के लिए एक झरने के किनारे गयी। और पराथना करते हुए बोली। स्वामी मैंने सच्चे ह्रदय से केवल आपको ही अपना पति माना था। मेरी आत्मा आज भी आपकी ही है। केवल ये शरीर ही दूषित है। और इसीलिए मैं गंगा में खुद कर इस शरीर को पवित्र करते हुऐ नष्ट कर दूँगी। और आपके पास आ जाओंगी। रानी ने छलांग लगा दी। और हमेशा के लिए चली गयी।