Ye kaisi raah - 2 in Hindi Fiction Stories by Neerja Pandey books and stories PDF | ये कैसी राह - 2

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ये कैसी राह - 2

भाग 2

एक मां के हृदय की पीड़ा कौन समझ सकता है….? उस मां की जिसका पुत्र बिना कुछ कहे….! बिना कुछ बताए….! अचानक घर से चला जाए। उस पीड़ा का सिर्फ अनुमान ही किया जा सकता है सामने के व्यक्ति के द्वारा। कोई दूसरा इसे नही समझ सकता। माई अपने आप को असहाय महसूस कर रही थी। एक बेटा कोसो दूर था तो एक बेटा घर से अचानक चला गया। पति तो बहुत पहले ही अकेला छोड़ कर स्वर्ग सिधार गए थे। वो सहारा भी ढूंढे तो कहां? कांता कभी बाहर नहीं जाती थी। उसके बच्चे भी अभी छोटे थे। फिर भी कांता जो कुछ सास के लिए, इस घर के लिए कर सकती थी, कर रही थी।

कांता ने माई से बहुत मनुहार की कि थोड़ा सा कुछ खा लें । पर माई ने कांता के बहुत कहने पर भी कुछ नही खाया।

उस रात फिर किसी से कुछ भी खाया न गया। माई बेसुध पड़ रही। कान्ता अपने छोटे छोटे तीनों बच्चों को दिन का बचा खाना खिला कर रसोई लीप पोत कर साफ कर सास के पास आकर बैठ गई।

थोड़ी थोड़ी देर बाद वो माई को दिलासा देती

"माई …! चिंता ना करो, देवर जी ठीक होंगे, भगवान पे विश्वास रखो। वो उन्हे कुछ भी नहीं होने देंगे।"

पर कोई भी बात माई के तड़पते दिल को तसल्ली नहीं दे रही थी।

जहां तक पता किया जा सकता था माई ने पता किया पर कुछ पता नहीं चल पाया। वो रोज उस रास्ते पर जाकर बैठ जाती जहां से गांव से गांव में लोग प्रवेश करते थे। पूरा दिन बैठी रहती। हर आने जाने वाले से सत्य देव के बारे में पूछती। बस यहीं तक उसका वश था। गांव के बाहर जाकर वो पता लगा नहीं सकती थीं। धीरे धीरे एक महीना पूरा होने को आया पर कुछ पता न चला। माई का धैर्य अब जवाब दे गया। अगर आना होता तो अब तक सत्तू आ रहा होता।

अब माई ने गांव के डाकिए को बुलाया और अपने बड़े बेटे राम देव को पत्र लिखवाया। उसमे सत्तू के घर से चले जाने की बात लिखवा दी। (रामू दूर दूसरे शहर में नौकरी करता था । गांव के ही दीनबंधु जो सिंचाई विभाग में बड़े अफसर था। उसके घर की गरीबी देख राम देव की नियुक्ति क्लास फोर्थ में करवा दी थी। जिससे उसकी दाल रोटी चलती रहे।)

जैसे ही पत्र मिला रामू भी घबरा गया। अचानक ये कैसी मुसीबत आन पड़ी । छुट्टी की अर्जी देकर गांव आने वाली रेल पर बैठ गया। रास्ता जैसे कितना लंबा हो गया हो कट ही नहीं रहा था। सत्तू उससे बहुत छोटा था उम्र में। वो उससे बेटे जैसा स्नेह करता था। पूरे रास्ते बार बार रामू की आंखों के सामने सत्तू का ही चेहरा घूम रहा था।

जैसे तैसे कर के रामू घर पहुंचा। वो घर पहुंचा तो माई की दशा देखकर उसका कलेजा मुंह को आ गया । जो माई अब तक कान्ता और बच्चों की देखभाल करती थी अब खुद उसे देखभाल की जरूरत है। सत्तू उनका लाडला छोटा बेटा था उसके बिना वो एक पल नहीं रह पाती थी। बड़े बेटे को देखकर उनका धैर्य जवाब दे गया। आंसुओं से गला रुध गया रामू ने माई को समझाया,

"माई ….! मैं ढूंढ कर लाऊंगा सत्तू को, तुम चिंता ना करो। जहां भी होगा ढूंढ कर तुम्हारे सामने खड़ा कर दूंगा। मेरी बातों का यकीन करो।"

निराश हुई माई के दिल में रामू की बातों से सत्तू के वापसी की आस बंध गई। बड़े बेटे की बातों से माई की निराश आंखो में फिर से उम्मीद की ज्योति जल उठी।

दूसरे ही दिन से राम देव ने पूरे प्रयास से सत्तू को ढूंढना शुरू कर दिया। गांव में तो माई सबसे पूछ ही चुकी थी। इस कारण यहां तो कुछ पता चलता नही। इस कारण उसने गांव से बाहर जा कर ढूढने की सोची। इस के लिए सत्य देव के एक फोटो की आवश्यकता थी।

सबसे पहले कांता से भाई सत्तू की कोई फोटो ढूंढने को कहा। कांता ने कई पुराने संदूको और पोटलियो को खंगाल डाली । तब कहीं जाकर एक मुड़ी चूड़ी फोटो सत्तू की मिली। वही फोटो ले कर रामू भाई सत्तू की तलाश में पास के शहर में गया। सत्तू की फोटो को दिखा दिखा कर हर आने जाने वाले राहगीर से उसके बारे में पूछता।

सब से पूछता किसी लड़के को तीन साधुओं के साथ देखा है। जवाब ’ना’ में होता।

काफी देर भटकने के बाद थक कर चूर हो गया। कुछ देर एक कोने में बैठ कर सुस्ता लिया। फिर सत्तू की तलाश में चल पड़ा। इसी तरह जो मिल जाता खा कर जहां जगह मिलती आराम कर ऐसे ही चार दिनों तक ढूंढता रहा। पर कुछ पता नहीं चला। आखिर में थक कर रामू ने वापस वापस घर लौटने का फैसला किया। यही सोच कर एक दुकान पर सुस्ताने बैठ गया। जब कुछ देर बैठा रहा तो अचानक ही उसके मन में आया की शायद इस दुकान वाले को पता हो पूछ कर देखूं। तब राम देव ने दुकान वाले से पूछा,

"भैया तुमने एक लड़के और तीन साधुओं को देखा है..?"

फिर हुलिया बताने और फोटो दिखाने पर थोड़ा सोचते हुए दुकानदार बोला,

"हां ! आए तो थे कुछ देर बैठे थे फिर उस किशोर को चाय पिलाई, नाश्ता करवाया। पर उसके बाद कहा गए मैं नहीं जानता।"

राम देव को अब यहां रुकना बेकार लगा। अब तक काफी समय बीत गया था उन्हे यहां से गुजरे। अब वो काफी दूर निकल गए होंगे सत्तू को लेकर। कोई आशा ना देख निराश हो कर रामू घर आ गया।

रामू की माई जो उसकी प्रतीक्षा में बैठी थी व्याकुलता से पूछा,

"क्या हुआ बेटा…? मिला मेरा सत्तू…? कुछ पता चला….?"

सिर झुकाए झुकाए ही अपनी आंखों को पोंछ कर रामू एक अपराधी की भांति बोला,

"माई …! सत्तू को साधुओं के साथ शहर में एक चाय नाश्ते की दुकान पर देखा गया था। पर उसके बाद कहां गए कुछ पता नहीं चल सका…। माई…! मैने बहुत कोशिश पर...इसके आगे कुछ पता नही चल पाया। पर माई तू चिंता मत मैं उस दुकान वाले से बोल कर आया हूं, आगे जब कभी वो उसकी दुकान पर आएं तो तो पता करेगा की वो कहां रहते है। मैं कुछ दिनों के अंतर पर जा जा कर पता लगाता रहूंगा। पर माई तू फिकर ना कर मैं पता लगा कर रहूंगा एक दिन जरूर तू देखना।" इसी तरह एक दूसरे को ढांढस बंधाते समय बीतने लगा पर कुछ पता न चल सका।

माई हर वक्त उन साधुओं को कोसती रहती

"क्या बिगाड़ा था मैने उन साधुओं का जो इस उम्र में मुझे अपने बेटे से अलग कर दिया..? उनका घर द्वार नही तो क्या वो सबका घर उजाड़ देंगे..?" इस तरह के सवाल वो हर घर आने वाले से और खुद से करतीं।

क्या सत्तू फिर उस दुकान पर कभी आया? क्या माई ने सत्तू के आने की उम्मीद छोड़ दी? क्या किया उन साधुओं ने सत्य देव को अपने साथ ले जाकर? अगले भाग में पढ़े ।