कुछ कविताएँ
( Pratibha Chauhan)
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अधूरी कविताओं को
अधूरी लालसाएं समझना…
जब सांस घुटती है बारुद के धुँएं में
आवाजें कलेजा चीर देती हैं
अपने खौफनाक रूप से
सुनती है सेंध में चुपचाप सिसकियां
तब मेरी कविता अधूरी रह जाती है….
बच्चा रोता है सिकती हुई रोटियों से उंगली जल जाने से
मरहम नहीं लगाता मालिक के डर से
कोड़ों से छलनी हुए वस्त्रों की गंध
और फफोलों पर दहकता ब्रह्मांड
आधे कुएँ से उलटे आकाश सा
खाली पेट
गहराई में डूब कर
नहीं उबर पाता तब मेरी कविता अधूरी रह जाती है…
निर्दयी हो चुके मनुष्य ने तोड़ दिया
चांद का मिटल
ढक दी सूरज की गुनगुनी सुनहरी धूप
फैला दिया एक निर्दयी अंतहीन कोहरा
उजाड़ दिया हरी-भरी बेलों का अस्तित्व
कुछ इसी तरह
जब गुजर जाती हैं बातें अपनी हद से
तब मेरी कविता अधूरी रह जाती है…
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जैसे रिसता है लावा
जलता है पर्वत
उठता है धुआँ
वैसे ही तपता है दिन
जलती है आग
उबलता है लहू
बुझती है आग
ये जीवन की तीन फांक के अलग अलग पक्ष हैं
सूक्ष्म से भी सूक्ष्म
कतरा से भी कतरा
से शुरू होकर समुद्र बन जाने की
ललक लिए जीवन
तपाया जाता है
गर्म होता है
बह जाता है प्रकृति में
जम जाता है अस्तित्व सा
धरती की पीठ पर कड़ी परत के रूप में...
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बातों में जीवन
बातों में जीवन है
जीवन में बातें हैं
कुछ बड़ी बेतकल्लुफी से
बर्बाद करते हैं बातें
कुछ इनका प्रयोग करते हैं
आंधियों के रूप में
कुछ गवा देते हैं बात और जीवन दोनों
कुछ बर्बाद करते हैं बातें
स्वयं से रहा सदा एक प्रश्न
हमने नहीं प्रयोग किया
कभी उन बातों का
जिनसे रोका जा सकता था
पृथ्वी पर बहता पानी
तेजाब की बारिशें
गर्म झुलसाने वाली कठिन हवाएं
गलत पांवों का चलन
नंगे पांवों की जलन
क्योंकि जीवन में बातें हैं बातों में जीवन है।
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उसे मेरी जरूरत थी
मुझे उसकी,
उसको मेरी पनाह की जरूरत थी
मुझे उसके साथ की ,
इस तरह हम साथ चलते गये
वक्त को हमारी जरूरत थी
हमें वक्त की
इस तरह हमने साथ रहकर
वक्त को हरा दिया।
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मेरी नीले रंग की प्रार्थनाओं ने रंगे
तुम्हारे ख्वाबों के आसमानी रंग
तुम्हारी सुबह का सफ़ेद रंग बुना
मेरी प्रतीक्षा की घड़ियों ने .....
आखिर !! कब नहीं थी ये दुनिया इतनी रंगीन
तुम्हारा नाम आते ही रंग जाते थे
दिल की धड़कनों के
गहरे रंग
फिर बन जाती थी मेरी आँखों
की एक लंबी प्रतीक्षा ...
तुम्हारे नाम के सिर्फ अहसासों से अब भी रंग जाती है
मेरी दुनिया
और सज जाते हैं
मेरे मन की दुनिया के सतरंगी सितारे
महज एक दिन का रंग नही
मेरी जिंदगी रंगी रही है हमेशा तुम्हारी यादों के रंगों से….
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जिद की उड़ानें
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पंखों सा बिखर कर तैयार करना है
जिद की उड़ानें
ठहरने के लिए
करेंगे तैयार आकाशगंगाओं के हेलीपैड
तुम्हारी प्रार्थनाओं की पहुंच हमारे कानों तक है
सबसे दुर्गम है
बस प्रेम का पहुंचना
यथार्थ से चिपकी पगडंडियों के निशान
बन जाएंगे हमारे पूर्ववृत्त
त्वचा पर मृत
कुछ लेप सा है
शायद यह हमारी बुझी हुई परंपराओं की
मृत्यु शैय्या है
दीपक की लौ सा हमेशा जलने वाला
तुम्हारा साहस
फिर तैयार कर देगा
नए उड़नखटोले
और फिर बनेंगे नए बसंती चित्र
इन दूरियाो तक फैली आकाशगंगाओं में ...
प्रतिभा चौहान