छेड़ा गया फ़लसफ़ा-ए-मुहब्बत।
पलने लगी अजीब सी हसरत।
रात भर जगा याद में किसी की
दिखाई ना दी पर कोई सूरत।
बदला बदला सब कुछ दिखता हैं
बदल गई है आदमी की मुरौवत।
बसर करने दिन ओर रात मेरी
सहारा ज़िन्दगी का तुम नहीं हो फकत।
दिल की वो हो सुंदरता, सौंधापन
आंखों के अश्को की हो तुम इज्जत।
इस नादान मासूम दिल को
बख्स देना तू, हो गई है तेरी आदत।
शाम की सुनहरी गलियों में
चलते चलते हो गया में किसी की चाहत।
आंखों के मंज़र आंसूओ से थे गीले
चलने वाला फिसल जाएं तो क्या हैरत।
पास मिरी जब से तू आया
दुनिया रखने लगी मुझसे मुखालिफत।___Rajdeep Kota
आज तिरे दर पे आके सदैव दूर हो गए।
जज़्बात कई मिरी ज़िन्दगी के घर हो गए।
मैं सब का भार ढोती, जमीं रह गया
तुम आबाद खुल्ले आसमान हो गए।___Rajdeep Kota
कुछ जताना चाहते है, पर जताएं कैसे।
हमें मुहब्बत है तुमसे, हम बताएं कैसे।
दर्द-ए-दिल बयान कर देती है शकल,
छुपाना लाख चाहें हम मगर छुपाएं कैसे।
तारों की कतार में लगाना चाहतें है कुछ
दिए, मौला तू ही बता हम लगाएं कैसे।
गर वो किसी मोड़ पे मिल भी गया, तो
मसला ये होगा इज़हार-ए-इश्क करें कैसे।
प्रयासरत रेहतें है कई रोज़ से हम बादल
की घटाओं मैं ख़ुद को खोया हुआ पाएं कैसे।
राह पर चलता हुआ कई बार दिखा तू
अब अल्फ़ाज़ कौन सा चुने तुझे बुलाएं कैसे।___Rajdeep Kota
तलब उसकी
ऐतबार उसीका
एक तड़प सीने पे छुपाने की उसे
वैभव सम्मोहन से उसके तर होने कि इच्छाएं।
हिमालय के वो हर
बर्फाच्छादित शिखरों की
नर्म सौम्य सौंधी जायकेदार हवा,
घाटियों में पलते वक्ष के पत्तों में
गर्तो में से निकलते कलकल गुनगुनाते झरनों में
वस्तु में हर उसकी
गुंथी हुई हैं चेतन वंत है प्रदिप्त हैं
भारत की आदिम चेतना
जान कुर्बान करने की उसकी गोद में हाय... ये कैसी तमन्नाएं
अंतर से छू लिया उसे
स्वर्ग पाने की-सी कोई कामना ना रहीं
हैं मनुष्य मिलेंगे तुझे हर रास्तें राज़ का हर
संभव कारण, छिपा हुआ है सब कुछ वहीं
अज्ञान असमझ द्वेष के-सो के परिणाम स्वरूप जागृति रहना, तू दूर ना हो जाएं कहीं।
प्रकाश वंत हैं वहां
जिंदा रखें है जो हमें वे प्रकृति
पली है पल रहीं हैं बहरहाल
ओर पलेगी वहां भारत मा की संस्कृति
हृदय में आवास दें उसे
हृदय से आवाज़ दें उसे
वादी तू जीवन का हैं सार
अस्तित्व से तीरे दमक उठता है संसार
दमी पड़ी हैं, चलायमान हैं भीतर
निकलने बाहर श्रम करती हैै
तुझको छूने, बाहों मैं कसने, तुझे अश्कों से गीला करने
सीने में बसाने की-सी महत्वाकांक्षाएं।___Rajdeep Kota
रखी थीं उम्मीदें ज़िन्दगी से
बेज़ार-सा ना बनाएं मुझको
ना दिखाए अपनी करामत
लाचार-सा ना बनाएं मुझको।__Rajdeep Kota
दूरियां बढ़ाते हैं दरमियान हमारी ओर
वस्ल तक ऐसे कर के पोहच जाएंगे।
हमारे मिलन के शाक्षी रूप सब स्थानक
बिछड़ेंगे हम, फ़िर कितने सुने हो जाएंगे___Rajdeep Kota
आज इस बस्ती में इतना उजाला क्यों हैं
कोई शख़्स मुद्दतों बाद आने वाला है क्या।__Rajdeep Kota
सोचा,लहज़ा बदल के बात करू,कोई बात बन जाएं।
मेरी भी महफ़िल-ए-मुहब्बत कोई जगह बन जाएं।___Rajdeep Kota
इतने बैचेन बेबस बदहवास क्यों है।
ग़म की गहराइयां हमें रास क्यों हैं।
रुखसत तो कई लोग हुए ज़िन्दगी से
आज जब वो हुई तो उदास क्यों हैं।
तअल्लुक़ मुद्दत से नहीं, मिरे घर से
बिस्तर में से आती उनकी बास क्यों हैं।
पता हैं उसका आना अब हैं ना-मुमकिन
ज़मीर को आने की एक आस क्यों हैं।
होंठ सूखे चेहरा फ़िका सासें कुछ थमी
धड़कनें मंद,अश्क आंखों से निराश क्यों हैं।___Rajdeep Kota
सावन की बरसातों में बादल की घटाओं मैं।
दिखाई देता है तू जहीर हर फिजाओं मैं।
ख़ुदा से रहीं है सदैव मेरी यही कामना
मिलाएं तुझको मुझसे हर समाओं मैं।
पातें है तुझे अक्सर खयालों में ख़्वाबों मैं
ख्वाहिशों में दिल से कि हर दुआओं मै।
चलतां रेः तू बिना ऊबे बिना क्षुब्ध होएं
एक दिन मिलेंगे ज़रूर हम अज्ञात राहों मैं।
माना मजबूरी दोनों की थी फ़िराक़ का सबब
पर तू ही बता, संतुष्टी क्या थी ऐसी विसालों में।
आराम एतीबार जन्नत जुनून अलग जोश
सबों नहीं थें क्या तेरी बाहों में मेरी बाहों में।___Rajdeep Kota
रहो भीतर थोड़ी जगह बची हैं।
अधिक मैं उदासीनता खड़ी हैं।
माहौल हरतरफ हैं निराशाओं का
आशाएं आखिर कहां छिपी हैं।___Rajdeep Kota
थकान दिन की बोसा दे के मिटाए देती थीं।
कोन थी वो जो मुझको प्यार से सदाएं देती थीं।
लबों पे सज़ा के रखें थें कुछ गुलाब मैंने
मृदु हस्त से वो पंखुड़ियां चूना करती थीं।
भटका था कभी, फ़िर मुद्दतों लापता रहा
जुल्फें उसकी क्या खौफ़नाक जंगल थीं।
चांद को छत से राज़ कोई बया कर दिया
मैं उसके लिए वो मेरे लिए जिया करती थीं।
इख्लास को बातिल न ठहराओ दुनियावालों
मैं कभी उसका वो कभी मेरी हुआ करती थीं।
आज वो बोहोत दूर हैं, जहां की क्रूरता डरा-मुझको जो अपनी बाहों में पनाह देती थीं।___Rajdeep Kota
मतालबा सुन लिया ख़ुदाने मंज़िल मिल गई।
मेरी मौजूदगी की सबब तेरी याद मिल गई।
दिल वो खंडहर था जिसमें कहकहें लगाते थें अंधेरे,अजिब बात है जो आज चांदनी खिल गई।___Rajdeep Kota
यहां, लेकर सहारा चलना पड़ता है क्या।
फूलों की तरह कभी झड़ना पड़ता हैं क्या।
रखता हूं मैं जैसी मोहोब्बत्त तुझसे
वैसी ही तू भी मुझसे रखता है क्या।
नज़रे छिपाए फिरती हो आजकल
तुम्हें मुझसे मुहब्बत हो गई है क्या।___Rajdeep Kota
आंखों की सारी नमी उतर आएगी।
जब वो मुझे छोड़ के चली जाएगी।
सोचूं तो कंपित हो उठता हूं
याद उसकी मुझे कितना सताएगी।
तारीखें पता नहीं कितनी दूर उनसे
वक्त के बहाव में बहती चली जाएगी।
फ़कत में ही नहीं सोचूंगा उसे
उसे भी याद मिरी बोहोत आयेगी।
बारिश कभी कभी धूप तो कभी तेज़ हवाएं
ऋतुएं हर अपना करामती फन दिखाएगी
कब से इंतज़ार मैं बैठे है उसके
क्या तरस खाकर मिलने नहीं आयेगी।
बड़ी महफूज़ अनुपम जगह है वहां
उनकी गोद में सुला मिरे बाल नहीं संवारेगी।___Rajdeep Kota
तू नज़दीक से मिरे गुज़रा करें तो अच्छा है।
खाली खाली-सा मुझको भरा करें तो अच्छा है।__Rajdeep Kota
सांसों की बारात निकल पड़ती हैं।
सामने से मिरे जब तू गुजरती है।
चांदनी भी इंतज़ार मैं किसीके
छत पे मिरे साथ रात भर टहलती हैं।
इश्क़ में फासलों का आना दूर नहीं
तिरी ख़ामोशी कोई निशा बयां करती हैं।
तुम्हारे यहां होती होगी गुफ्तगू जुबां से
हमारे यहां तो नज़रें बातें करती हैं।
नजर करूं पीछे आज तो तनहा गुजारी
समूची शबें मायूस बेहद लगती हैै।___Rajdeep Kota
धुंधली-सी एक याद तेरी
मुद्दतें जुदाई की बताई देती हैं।
मुंसिफ बनकर अरसों से बंध
निर्जन कारागार में से मुझे रिहाई देती हैं।
बहरहाल बहती हवाएं फिजाएं भी हृदय में
तस्वीर तिरी कोई बनाई देती हैै।
बोसे-कि सी अदनी ख्वाइश रखूं जब भी सामने,
मेहबूबा मेरी लज्जाई देती हैं।
यूं तो आभास ही होगा मगर कमरे में
तिरे कंगन झांझर की आवाज़ें आज भी सुनाई देती हैं।___Rajdeep Kota
मुस्कान सारी चेहरे कि चली गई
छोड़कर मुझे मेंरी जान चली गई।
भार किस बात का लिए फिरते थें
खुशियों की बारिश बादल मैं चली गई।
मिलने मैं सबों को जो बात थी
एक दिनों, पता नहीं वो बात कहां चली गई।
आया सिरे कुछ अपनों का सपनों का बोझ
प्रसन्नता सारी रंजीदगी में चली गई।
दिले जहां में पतझड़ हैं पत्ते बिखरे है चारो और
बारिश भी थी कभी जो कब की चली गई।__Rajdeep Kota
ये हक़ीक़त मेरी दुनियावालों सुनो
जिया कैसे जाता है सनम के बिना
बड़ा हुआ तो क्या हुआ महल भी
सुना लगता है चमन के बिना
देख लूं ना तुझे जीभर के जब तक
चैन आता नहीं इस दिल को तब तक
गुमसुम बैठी खामोशी मेरी
चिल्लाए देती हैं प्रियतम के बिना
घड़ी-ब-घड़ी जो फुरसत की मिलें
सोचतें है तुझे जाने-जहां
निशा तेरे ढूंढते फिरते है
छिपे हुए है आखिर कहां
कुछ हम अधूरे कुछ स्वर बेसुरे है
ज़िन्दगी के प्रिया के बिना
प्रतीक्षा में ही
क्या ज़िन्दगी बसर होगी
उम्मीद तो यही है
की सिघ्र ही सहर होगी
विस्मरण का रोग लगा है सनम के बिना
रमणीय कुछ नहीं लगता सनम के बिना
सौंदर्य ही मारा गया
जीवन का, सनम के बिना
जीना क्या क्लिष्ट नहीं है
प्रियतम के बिना
सत्ता मेरी अकारण है
प्रियतम के बिना।__Rajdeep Kota
मिरे ख़्वाबों मैं तेरा आना कई रोज़ से बंध हैं,
सायद तू किसी ओर को परेशान करता होगा।___Rajdeep Kota