ittefaq in Hindi Horror Stories by सौरभ कटारे books and stories PDF | इत्तेफाक

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इत्तेफाक

में एक छोटे से गांव में रहने वाला एक साधारण ग्रामीण था,उस समय मेरी उम्र लगभग 16 वर्ष की थी, में अपने घर में भाईयो में सबसे बड़ा था मेरे 3 छोटे भाई थे। पिताजी खेती का काम करते थे और यही हमारा रोजगार था, जिससे पूरे परिवार का पालन होता था। उस समय मुझे आगे की पढ़ाई के लिए पास ही एक कस्बे में जाना पड़ता था,मेरा रोज सुबह जाना व शाम को घर वापस आने का काम था,क्योंकि हमारी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि हम वहा किराए का मकान ले कर रह सके, इसलिए रोज आना जाना ही मुनासिब था।वहा जाने के लिए गाव के2 किलोमीटर दूर से बस मिलती थी और वहा तक रोज पैदल आना व जाना पड़ता था,पर उस उम्र में मेरे लिए ये दूरी कुछ भी नहीं थी।वैसे में छोटी उम्र से ही भूत जैसी बातो या इनके होने में विश्वास नहीं करता था,में थोड़ा निडर किस्म का था।इसलिए बस तक पहुंचने वाली गली के बीच में सम्सान होने के बाद भी मुझे कभी इस बात की खबर तक नहीं रहती थी,लेकिन रोज की तरह जब में आज सुबह जागा और अपनी स्कूल जाने की तैयारी कर रहा था तभी खबर सुनी की बाजू के गांव सीरी का रहने वाले टूडे ने रात में फसी लगा ली और मर गया,हालाकि इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा,फिर भी में टूडे को पहले देख चुका था,वो भयंकर काला और दिखने में बड़ा ही डरावना लगता था ,उसके पिचके हुए गाल और मुंह से बाहर निकले हुए 2 लंबे दांत उस और भी डरावना बनाते थे,फिर में ये सब भूलकर अपने स्कूल के लिए रोज की तरह निकला पर ये इत्तेफाक ही था कि जैसे ही में समसान के पास से गुजर रहा था तभी उसकी लाश को लोग जलाने वहा पहुंचे मुझे उसकी डरावनी सकल फिर याद आ गई ,वो हमेशा एक सफेद लंबा कुर्ता व पायजामा पहना करता था जो उस पर बिल्कुल भी नहीं जमता था खेर में आगे अपने रास्ते चल पड़ा और रोज की तरह स्कूल पहुंचा व शाम को अपनी बस के स्टैंड पर लेकिन आज बस सायद रोज से 15 मिनिट के आयी ,कंडक्टर से पूछने पर पता चला कि बस के टायर में कुछ खराबी आ गई थी,में बस में बैठा और बस चल पड़ी।मेरा गंतव्य उस कस्बे से लगभग 8 किलोमीटर कीदूरी पर था,बस लगभग 6 किलोमीटर चली और बस में फिर से कोई गड़बड़ी हो गई,बस रुक गई अब समय लगभग 7 बजे शाम का हो चला था इतने समय में रोज अपने घर पहुंच जाता था,ये ठंडी का समय था और इन दिनों अंधेरा कुछ ज्यादा ही जल्दी हो जाता है,30 मिनिट में बस फिरसे चलने के लिए तैयार हो गई और 7 बजकर 30मिनिट पर मुझे अपने स्थान पर पहुंचा दिया,अब यह से मुझे रोज की तरह 2 किलोमीटर पैदल जाना था बीच में ना कोई मकान था और आज ना कोई दूसरी सवारी उस बस से उतरी जिसे मेरी गली से जाना हो,अंधेरा घना हो चला था पर में चल दिया,मुझे सुबह ही हुई घटना का जरा भी खयाल ना था,में चलता गया और आखिरकार उस समशान के यहां पहुंच गया ,तभी मेरी नजर सामने पड़ी थोड़ी दूर मुझे सफेद कुर्ते पयजमे में खड़ा कोई दिखा,मेरा दिल धक्क हो गया सुबह घटी हुई पूरी घटना याद आ गई,अब में समझ गया कि ये टूडे ही खड़ा है पुराने लोगों के मुंह से कई बार सुना भी था, कि जो व्यक्ति आत्महत्या करता है वो भूत बनता है में समझ गया कि ये कल मरा हुआ टूडे ही भूत बनकर खड़ा है,अब मुझे उसका काला चेहरा व उसके मुंह से बाहर निकले हुए दांत भी दिखने लगे ,फिर मैने सोचा घर तो जाना ही पड़ेगा और कोई रास्ता भी तो नहीं है इसके अलावा और खुद के मन में कहा की ये सब बहम है ऐसा कुछ नहीं होता,लेकिन फिर सामने देखा तो लगा कि टूडे मुझे ही देख रहा है और अपने दांत बाहर निकाल हस रहा है। पर घर तो जाना था सो विचार बनाया की पहले कुछ पत्थर उठा लिए जाय अपने बचाव के लिए और फिर दोनों जैबो में पत्थर भरे 2/4 हाथ में लिए और सोचा की यदि ये कुछ करेगा तो पत्थर मारते हुए दौड़ लगा देंगे।अब मैने अपने मन को ताकत दी और शरीर को धकेला जैसे जैसे पास पहुंचता गया डर बड़ता गया ,अब मेरे और टूडे के बीच की दूरी 8 कदम की ही बची थी ,मैने हनुमान जी का नाम लिया और पत्थर फैंकते हुए दौड़ लगा दी और इतनी तेज दौड़ा की कुछ ही पल में अपने गाव की लाइट का उजाला मुझे दिखने लगा तब जाकर मैने राहत की सांस ली ,पर अभी भी मैने पीछे मुड़कर नहीं देखा ,आखिरकार में घर पहुंच गया पसीने से लथपत मेरा शरीर देखकर मा ने पूछा इतनी ठंड में पसीना बेटा क्या तुम्हें बुखार है मैने कहा नहीं ठंड ज्यादा लग रही थी इसलिए दौड़ लगा दी,मैने सच्चाई किसी को नहीं बताई क्योंकि मुझे लगा ऐसे में सब मुझे डरपोक कहेंगे ।रात भर नींद नहीं आई,हालाकि कल इतवार था इसलिए मन को सुकून था, जैसे तैसे रात कटी और सुबह हुई मुझे पुराने लोगो से सुनी एक बात और याद आती कि भूत दिन के उजाले में नहीं दिखते,फिर क्या था मैने उठाई एक लाठी और चल दिया टूडे को देखने की क्या दिन में वो मुझे दिखता है या नहीं रात की घटना को सोचकर मन में डर फिर से जागा इसलिए गांव के एक दोस्त को बिना ये बताए कि कहा और क्यों जाना है साथ कर लिया।और जब उस जगह पहुंचा तो देखा कि वहा कोई टूडे नहीं है पर टूडे का सफेद कुर्ता वहीं एक कांटेदार झाड़ी पर लटका है,जिसे में रात में देखकर डर रहा था ,शायद जलाने आए लोगो ने उसके इस कुर्ते को वहीं फैक दिया होगा और हवा चलने के कारण वो उड़कर इस झाड़ी तक पहुंच गया।उस दिन के बाद से आज में40 साल का हो गया हूं मुझे कभी डर नहीं लगा और में उस घटना से समझ गया कि जो आपको भूत लग रहा है वो शायद एक इत्तेफाक के अलावा कुछ ना हो। धन्यवाद्