Pata Ek Khoye Hue Khajane Ka in Hindi Adventure Stories by harshad solanki books and stories PDF | पता, एक खोये हुए खज़ाने का - 8

Featured Books
  • انکہی محبت

    ️ نورِ حیاتحصہ اول: الماس… خاموش محبت کا آئینہکالج کی پہلی ص...

  • شور

    شاعری کا سفر شاعری کے سفر میں شاعر چاند ستاروں سے آگے نکل گی...

  • Murda Khat

    صبح کے پانچ بج رہے تھے۔ سفید دیوار پر لگی گھڑی کی سوئیاں تھک...

  • پاپا کی سیٹی

    پاپا کی سیٹییہ کہانی میں نے اُس لمحے شروع کی تھی،جب ایک ورکش...

  • Khak O Khwab

    خاک و خواب"(خواب جو خاک میں ملے، اور خاک سے جنم لینے والی نئ...

Categories
Share

पता, एक खोये हुए खज़ाने का - 8

"अच्छा! वो क्या!?" जेसिका ने खुश होते हुए बड़ी बेताबी से पूछा.
इसके उत्तर में राजू कहने लगा.
"जब नानू ने उस तस्वीर, चाबी और नक्शे को देखा, तभी वह इसके नकली होने के बारें में समझ गया था. और तुरन ही उसने मदद करने से इंकार भी कर दिया. वह सही भी तो था! क्यूंकि कोई भी ऐसी नकली चीजें बनाकर ला सकता था. और मेरे प्रदादाजी ने भी इस बारें में कुछ न कुछ विचार तो अवश्य ही किया होगा न! इसलिए इस मामले में असली चीजों के बिना काम नहीं निकल सकता था. पर पापा असल सब चीजें घर पर ही छोड़ गए थे. ये उनकी पहली गलती थी."
"दूसरी बात यह की नानू के घर से भी एक तस्वीर चोरी हुई थी. उस चोरी के इल्जाम में नानू ने उनके पापा और उनके दोस्तों पर ही पहला शक किया. और जब मेथ्यु के द्वारा बोट से चाबी, तस्वीर और नक्शे चुराए जाने की बात सुनी तो वह बड़ी सोच में पड़ गया. और कुछ सोचकर वहां से वापस लौट गया. इन सब बातों से एक बात तै होती है कि नानू के पास वाली तस्वीर की भी इस मामले में बड़ी भूमिका अवश्य होनी चाहिए. इसलिए उस तस्वीर के बिना इस पहेली को सुलझाया नहीं जा सकता. जो नानू की मदद के बिना नहीं मिल सकती."
"तीसरी बात यह की जैसे लखन अंकल ने बताया, सर्प की आकृति की बताई दिशा में वे गए और ऐसे टापू पर पहुँच गए, जहां बहुत सर्प थे. यानी वह सर्प की आकृति सिर्फ भुलावा देने के लिए थी. और वह आकृति का गलत अर्थघटन हुआ था."
"चौथी बात यह की वे सब आकृतियों की किनारियाँ चमकीले रंगों से बनी हुई थी. और लखन अंकल के मुताबिक वह चमक जुगनू की रोशनी का संकेत करती थी. पर जुगनू की रौशनी तो सिर्फ रात को ही दिखाई देती है! मतलब रात के वक्त ही उस पहेली को सुलझाया जा सकता था. पर पापा और उनके दोस्तों ने तो बैठे बैठे ही इसे सुल्जाने की कोशिश की थी. ऐसे तो पहेली कैसे सुलज सकती थी?"
"देखो, यह चार वजहों से पापा को विफलता मिली है."
इतना कहते हुए राजू चुप हुआ.
"यह तो बढ़िया बात हुई! और फिर तुमने सी कप्तान की तालीम भी तो ली है, जो तुम्हारे लिए बेनिफीट का काम करेगी." जेसिका बोली.
"हाँ, यह भी है!" राजू ने कहा. और आगे दोहराया.
"पर सच्चाई तो यह है कि मैंने उस नक्शे, चाबी और तस्वीर को कभी नहीं देखा. और वे सब चीजें अभी कहाँ है वह भी मैं नहीं जानता." राजू ने दुविधा में पड़ते हुए अपना अज्ञान प्रगट किया.
"ओह! तो तुम उसके बारें में कुछ नहीं जानते!?" जेसिका ने आश्चर्य प्रगट किया.
"तब तो तुम्हें सब से पहले वे सारी चीजें धुंध निकालनी होंगी. उसके बाद ही बात कुछ आगे बढ़ सकती है." जेसिका ने आगे बताया.
"हाँ, पर वे सारी चीजें आखिरकार घर में ही कहीं होनी चाहिए." राजू बोला.
दोनों की बात समाप्त होती है.
फिर राजू उन सब चीजों के बारें में सोचने लगा. थोड़ी देर बाद वह खड़ा हुआ. और घर में पुराना सामान जहां पड़ा रहता था, उस तहखाने में पहुंचा.
वहां काफी सारा पुराने जमाने का सामान पड़ा हुआ था. इन सामान में ज्यादातर उनके दादाजी का समुद्र और नौका में काम आने वाला सामान ही था. उस सामान में कुछ पुरानी संदूकें भी थी. इन सब सामान और संदूकों को वह पहले भी कई बार घर की सफाई के दौरान देख चूका था, पर उसने कभी किसी नक्शे, तस्वीर, चाबी इत्यादि को नहीं देखा था. वह फिर से एक के बाद एक हर संदूकों को देखने लगा. पर उस संदूकों में ऐसा कुछ नहीं था, जो वह धुंध रहा था.
तभी उसका ध्यान एक संदूक पर गया. उस संदूक पर हरदम एक ताला लगा रहता था,. उसने कई बार अपने पापा को उस संदूक खोलने के लिए कहा था, पर चाबी नहीं है, यह कहकर उसके पापा हरदम बात को ताल दिया करते थे. इसलिए उस संदूक में क्या है, वह कभी देख नहीं पाया था.
उसने संदूक को देखा. उस पर पीतल का पुराने जमाने का एक मजबूत ताला लगा हुआ था. पर अब वह धूल मिट्टी लग जाने से काला पड़ चूका था, मगर आज भी साबुत था.
उसने एक अन्य संदूक खोला. और उसमे से पुरानी चाबियों का एक जुड़ा निकाला. वह एक के बाद एक चाबी लगाता जा रहा था. काफी मेहनत के बाद आखिरकार एक चाबी से वह ताला खोलने में सफल हो गया. संदूक में बहुत सा पुराना सामान भरा हुआ था. जिन पर काफी दस्त जमा हो गई थी. वह एक के बाद एक सब सामान को निकालकर देखने लगा. धीरे धीरे उनके लबों पर मुस्कुराहट फैलने लगी. वह जिस चीज को धुंध रहा था, वे सब उसमे से एक एक करते निकलती गई. उनके परदादा के लिखे हुए वें पत्र, वह नक्शा, तस्वीर, चाबी इत्यादि सारी चीजें उसमे सलामत थी. सारी आवश्यक चीजों को उसने अपने पास रखा. और बाकी सामान को वापस संदूक में बंध कर दिया.
रात को उसने सारा सामान का पता मिल जाने के बारें में बहुत उत्साह से जेसिका को अवगत कराया. वह भी बहुत खुश हुई. फिर तो आगे क्या किया जाना चाहिए इस पर दोनों के बीच बहुत विचारों का आदान प्रदान हुआ.
"जेसिका : "तुमने इस आपरेशन में तुम्हारा साथ दे सके ऐसे लोगों के बारें में क्या सोचा है?"
राजू: "अभी तक तो इस बारें में कुछ नहीं सोचा, पर मेरे कई दोस्त इसमें जुड़ना पसंद करेंगे."
जेसिका: क्या तुम्हारी किसी से बात हुई?"
राजू: "नहीं अभी तो इसका पूरा मुसद्दा ही कहाँ तैयार हुआ है!"
जेसिका को भी इस आपरेशन का हिस्सा बनने की तीव्र इच्छा थी. आखिर उसने राजू को पूछ ही लिया कि "क्या वह इस अभियान में शामिल हो सकती है?" और राजू ने भी बहुत खुशी से उसे वेलकम किया. आगे बताया कि वह उसके आपरेशन में जुड़ने वाली पहली सदस्य हुई है. और अभी मुझे आगे कई साथिओं की आवश्यकता रहेगी.
पर राजू को जेसिका को अंकल आंटी से अनुमति मिलने में संदेह था, इसलिए उसने पूछा.
राजू: "मगर जेसिका, क्या अंकल आंटी तुम्हें अनुमति देंगे?"
जेसिका: "देखो मैं (Biological anthropology) में PHD कर रही हूँ. और फिलहाल केरेबियन सागर के द्वीपों पर आदिवासियों की बस्ती में मेरा रिसर्च चल रहा है. इसलिए मुझे तुमसे जुड़ने में कोई ज्यादा दिक्कत नहीं आएगी. और मैं तुम्हारा काम भी आसान कर सकती हूँ. क्यूंकि मैं अपने रिसर्च की वजह से जितनी आसानी से कहीं भी पहुँच सकती हूँ, उतनी आसानी से तुम सायद न पहुँच पाओ."
जेसिका का कहना अहम था. उनकी बात ने राजू को सोच में दाल दिया. जेसिका की बात को बिलकुल नकारा नहीं जा सकता था. अब बहुत से इलाकों में जाने के लिए उस क्षेत्र की सरकार से पूर्व अनुमति लेनी पड़ती है. ऐसे में वे किस बहाने से ऐसे क्षेत्रों में प्रवेश कर सकते है?
"हाँ, तुम्हारी बात तो बिलकुल सही है." राजू ने कहा.
दोनों की बात ख़त्म हुई.
फिर राजू बाकी की तैयारियों में लग गया. वह अब इस आपरेशन का नेतृत्व कर रहा था. उसने अपनी टीम के सदस्यों की तलाश शुरू कर दी. इस संदर्भ में अपने कुछ ख़ास ख़ास दोस्तों से बात भी की. कुछ भरोसेमंद लोगों को भी वेतन पर रखने की सोची.
गोवा में रहनेवाले अपने दोस्त के पिताजी, जिनका टूरिस्टों को किराए पर याट देने का व्यवसाय था, उनसे बात कर एक याट की भी व्यवस्था कर ली. अपने पिताजी की तरह हर ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए सब आवश्यक सामान की भी पूर्ति कर ली, जो आपरेशन के दौरान काम आ सकती थी. याट पर कुछ आपातकालीन नौका की भी व्यवस्था रखी. और अगर कहीं रानी पशुओं से पाला पड़ जाए तो उसे डरा कर भगाने के लिए पटाखे एवं अश्रु गोले की भी सुविधा रखी. घुटनों तक के बूट एवं हेलमेट भी बसा लिए. राजू ने एक और बुद्धिमानी का काम यह किया कि उसने कुछ टेंट फौजी के कपड़ों के रंग वाले बना लिए, जिससे कि जंगल में इसे लगाया जाए तो आसानी से किसी की नजर में न पड़े. और जंगल में आग जलाने की जरूरत पड़ी और वह अनियंत्रित हो कर फैलने लगे तो उसे बुझाने के लिए कार्बन डायऑक्साइड के गोले भी ले लिए. बहुत सोच समझकर वह बेहद बारीकियों से तैयारी कर रहा था.
इस दौरान राजू के सामने सबसे बड़ी दिक्कत अपनी मम्मी और रिश्तेदारों को राजी करने में आई. पर मेघनाथजी की अंतिम इच्छा की बात कहकर उसने सब को रजामंद कर लिया. मेघनाथजी की आखरी इच्छा के नाम पर सब के मुंह सिल जाते थे.
इस आपरेशन में समुद्री लुटेरों एवं अन्य दुश्मनों से भेंट होने की संभावना भी पुरी थी. उसके लिए बंदूकों, गोलियों और अन्य हथियारों की आवश्यकता रहती थी, पर वह अब आसानी से प्राप्त नहीं हो सकता था. इस बारें में उसने अपने दोस्तों से भी बात की, पर कोई हल न मिला.
क्रमशः
अब राजू जरूरी हथियार कैसे प्राप्त करेगा? क्या वह हथियार आसानी से प्राप्त कर लेगा? उनके सामने क्या क्या दिक्कतें आएगी? जानने के लिए पढ़ते रहे...
अगले हप्ते में कहानी जारी रहेगी...