rishto ki dor in Hindi Moral Stories by Poonam Singh books and stories PDF | रिश्तों की डोर

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रिश्तों की डोर

रिश्तों की डोर
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माधुरी पिछले कुछ दिनों से बहुत परेशान थी। मन में उमड़ते भाव, डूबती हुई साँसें मानो किनारा पाने को हिचकोले खा रही थीं।
जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित हो जाता है तो जड़ चेतन मन भी डगमगाने लगता है । वैसे उसने अब फैसला कर लिया था कि, आज शाम को नवीन से सारा स्पष्टीकरण लेकर ही रहेगी।
शाम को नवीन ऑफिस से आने के पश्चात जब सहज हुआ, माधुरी ने बिना कोई भूमिका बाँधे कहा, "नवीन मुझे तुमसे कुछ जरूरी बात करनी हैं। "
"हाँ हाँ क्यों नहीं ? बोलो ना क्या बात है?"
" नवीन ! तुम्हारे जीवन में जिस नए परिवर्तन को मैं महसूस कर रही हूँ उसके बारे में तुम स्वयं ही बता दो तो अच्छा होगा।" माधुरी ने सीधे और थोड़े ऊँचे स्वर में पूछा।
माधुरी की बातें सुन नवीन मन ही मन सकपका गया, किंतु अनजान बनते हुए सरलता से कहा , "कैसा परिवर्तन..? तुम तो मेरे जीवन की हर बात से वाकिफ रहती हो। "
माधुरी समझ गई कि नवीन बात को टालने की कोशिश कर रहा है। उसे नवीन पर मन ही मन खिझ आ रही थी। सोफे पर से उठकर वहीं चहल कदमी करने लगी। बात को अधिक ना खींचते हुए माधवी ने फिर से एक बार स्पष्ट व ऊँचे स्वर में कहा, "तुम ज्यादा अंजान बनने की कोशिश ना ही करो तो अच्छा रहेगा..। तुम्हारे मोबाइल पर उसके अनेकों अजीब मैसेजेस देख चुकी हूँ मैं।" माधुरी नवीन की तरफ तेज नजरों से देखते हुए कहने लगी, "तुम्हारी वह अंतरंग बातें क्या काफी नहीं , समझने के लिए ?"
नवीन समझ चुका था कि माधुरी सब कुछ जान चुकी है। फिर भी उसने बात को हल्का बनाते हुए कहा , "वह तो बस यूं..ही.. ही टाइम पास...!"
इतना सुनते ही माधुरी क्रोध से तिलमिला उठी.. "टाइम पास...? फिर तो मुझे भी ऐसा ही एक टाइम पास ला दो ना..।"
इतना सुनते ही नवीन आवेश में आ गया और उठकर माधुरी के पास आकर पूरे तैश में लगभग थप्पड़ उठाते हुए बोला "ये क्या कह रही हो तुम माधुरी ?"
माधुरी ने घूर कर नवीन की आँखों में प्रश्न भरी नज़रों से देखा। नवीन देर तक उसकी नजरों का सामना नहीं कर पाया और एक अपराधी की भांति नज़रें नीचे झुका ली।

"मेरा सिर्फ एक छोटा सा लफ्ज़ भर ही सुन कर तुमने मेरे ऊपर.........? .... और मुझे तो शरम भी आती है बोलने में। मुझ पर क्या बीत रही है, इसका तुम्हें थोड़ा सा भी इल्म होता, तो ऐसा ना करते। विश्वास नहीं होता कि तुम वही नवीन हो जिसके संस्कारों को देख कर बरसों पहले मैंने उसका हाथ थामा था ! " माधुरी का स्वर थोड़ा सा रूंध गया पर वो बोलती रही , "तुम्हारा प्रेम ही अगर मेरे जीवन में नहीं रहेगा तो मैं तुम्हारे ऊँचे रुतबे , पैसे का क्या महल बना कर रहूंगी नवीन ?"
फिर नवीन के करीब आ कर उसके दोनों कंधों पर अपने हाथों से दबाव देते हुए उसकी आँखों में झांकते हुए कहने लगी, "नवीन ! तुम्हारा अगर यही रवैया रहा ना, तो फिर, कर देना मेरी साँसों का सौदा भी और फिर संभालना बच्चों को। फिर तुम्हें समझ में आएगी कि किस तरह प्रेम और त्याग से मैंने इस पूरे परिवार को एक माला में पीरो कर रखा है।"
माधुरी की एक एक बात नवीन के हृदय पर हथौड़े की भांति प्रहार कर रहा था और उसे अपने किए पर पछतावा भी हो रहा था।
इतना कहकर माधुरी झटके से अपने कमरे की तरफ चली गई और जोर से दरवाजा बंद कर लिया। कुछ ही देर में कमरे से ' धमाक ' ...जोर से कुछ गिरने की आवाज आई । अनहोनी का अंदेशा समझ नवीन घबराकर कमरे की तरफ भागा..! पूरे जोर से दरवाजे को धक्का मारा जैसे कि भीतर से बंद हो किंतु दरवाजा भीतर से खुला होने की वजह से लड़खड़ाते हुए पूरे आवेग से नीचे बैठी माधुरी के ऊपर जाकर गिर पड़ा। एक पल के लिए उसे लगा जैसे उसकी दुनिया खत्म हो गई है। नजर घुमाया तो एक पुरानी पेटी के पास माधुरी औंधे मुँह नीचे गिरी पड़ी थी। माधुरी को सही सलामत देख उसके मन को बड़ा सुकून मिला। फिर उसकी तरफ प्रश्न भरी नजरों से देखा। माधुरी ने प्रेम और रूठे हुए भाव भरी नजरों से नवीन की तरफ देखते हुए कहा..,"हमारी शादी की एल्बम देखने के लिए ऊपर से पेटी उतार रही थी तो , संभल नहीं पाई और गिर पड़ी।"
नवीन ने मन ही मन सोचा 'नहीं माधुरी यह तो मेरी गलती है , जो संभल नहीं पाया।' माधुरी ने अपने आप को सँभालते हुए प्रेम भरे लहजे में कहा..
"चिंता मत करो नवीन ! इतनी जल्दी मैं तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ने वाली। एक जन्म तो क्या जन्म जन्मांतर तक नहीं।"

ऐसे सुंदर मनहर बोल सुन नवीन के हृदय में माधुरी के लिए प्रेम उमड़ पड़ा । माधुरी का हाथ पकड़ते हुए कहा.,"मुझे माफ कर दो माधुरी ! " और उसको अपने हृदय से लगा लिया । माधुरी भी उसकी आगोश में सिमटती चली गई । दोनों की दुनिया फिर से खिलखिला उठी...! माधुरी की समझदारी ने रिश्तों की डोर को और मजबूत कर दिया..।

पूनम सिंह

स्वरचित