लगातार दूसरी बार नमन आठवीं में फेल हो गया। उसके पापा ने उसकी डंडे से पिटाई की । माँ ने भी लाड नहीं दिखाया । "पापा बात नहीं समझते, आख़िर मैं पढ़ ही नहीं सकता तो पढ़ाई छुड़वा क्यों नहीं देते । एक साल घूम-फिर लूँ, फिर पापा की कपड़ो की दुकान संभाल लूँगा, बस इतनी सी बात तो है, पापा फालतू में ही स्कूल और ट्यूशन पर इतने पैसे लगा रहे हैं।" बिस्तर पर लेटते हुए नमन ने मन ही मन सोचा। वही साथ वाले कमरे से माँ की आवाज़ें आ रही थीं जिसे नमन दीवार पर कान लगाकर बड़ी ध्यान से सुन रहा था । "सुनो जी ! मैं तो कहती हूँ कि नमन को दुकान पर रख लो, वैसे भी आगे -जाकर उसने यही तो करना है । क्यों बेकार में पैसे खराब करे ?लगातार दूसरे साल भी नमन फेल हो गया है ।"
"अरे ! अभी 13 साल का तो है, आठवीं भी पास नहीं कर पा रहा है । दुकान पर बैठा लिया और किसी ने बाल-मज़दूरी का केस डाल दिया। फ़िर पूरी बिरादरी को पता चल जायेंगा कि महेंद्र का बेटा पढ़ नहीं सका इसलिए दुकान पर बैठा लिया। मैंने सोचा था कि मैं तो तंगी और अपने पिताजी की बीमारी के कारण पढ़ नहीं पाया कम से कम यह तो पढ़ ले, मैं अपना अधूरा सपना अपने बच्चे के ज़रिये पूरा करना चाहता हूँ तो क्या गलत कर रहा हूँ? मेरे कारोबार को अपनी शिक्षा से और आगे ले जाता, अब क्या बस मेरी तरह कपड़े का दुकानदार बनकर रह जायेंगा क्या?" कहते-कहते पापा की आवाज़ भर आई। और माँ पापा को दिलासा देते हुए बोली, हम अपने बच्चों पर अपने सपने नहीं थोप सकते जी कल को गुस्से में आकर कुछ कर बैठा तो फिर क्या होगा ?" मैं अपने थोप रहा अगर कल को वो दुकान पर नहीं बैठेंगा तो क्या मैं उसके कोई ज़बरदस्ती करूँगा अरे ! नमन की माँ यह उम्र पढ़ाई की होती है दुकान पर सौ तरह के लोग आते है किसी गलत संगत में पड़ गया तो तुम वैसे भी अपना बेटा गवा दूंगी, थोड़ा काबिल तो बनने दो ताकि दुनियादारी समझ सकें । इससे आगे नमन से सुना न जा सका
अगले दिन नमन का दाखिला सरकरी स्कूल में करवा दिया गया। नमन के पापा शायद हार नहीं मानना चाहते थें ।पर नमन को अभी किताबें देखकर यही बात याद आती कि "मैं जब पढ़ नहीं सकता तो मुझे क्यों पढ़ाया जा रहा है।" एक दिन स्कूल से लौटते वक़्त नमन को गगन दिखाई दिया जो उसका होनहार पड़ोसी था । "क्यों गगन तू तो नौवीं में पहुंच गया और इस बार भी आठवीं में प्रथम आया है। एक बात तो बता यार ! तू ठीक से चल नहीं सकता, लिख नहीं सकता, तू शारीरिक रूप से अपंग हैं । फिर कैसे पढ़ लेता है?" "क्योंकि मैं मन से विकलांग नहीं हूँ न इसलिये पढ़ लेता हूँ । मेरी इच्छाशक्ति और मेरे माँ -पापा के सपने मुझे हिम्मत नहीं हारने देते । दोस्त अगर हम एक बार ठान ले न, तो हम क्या नहीं कर सकते , यह तो फिर भी पढ़ाई है। नमन को गगन की बात समझ में आ गई कि वह मन से विकलांग हो चुका हैं।
अगले साल नमन अच्छे अंको से पास हो गया और धीरे -धीरे आगे चलकर उसने प्रथम स्थान भी प्राप्त कर लिया । उसके माता पिता ख़ुशी से फूले नहीं समां रहे थें। अब उसने ठान लिया था कि वह अपने पिता के कपड़े की दुकान को एक बड़े कारोबार में बदलकर एक नई ऊंचाइयों तक ले जाएगा , क्योंकि अब मन की विकलांगता खत्म हो चुकी थीं ।