perfection in Hindi Moral Stories by कुसुम पारीक books and stories PDF | परफेक्शन

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परफेक्शन

"परफेक्शन"

रोहन ऑफिस चले गए थे रोली सोच रही थी कि चाय बना कर आराम से पीने की लेकिन मधुर की आ$आआ की आवाज सुनाई दी ।
चाय का विचार छोड़ आठ वर्षीय मधुर को सुबह की दिनचर्या से निवृत करवाना जरूरी था उसका काम कर उसे बेड पर तकिए के सहारे से बैठा दिया था और अब रोली दलिया बना कर ले आई जिसे धीरे-धीरे चम्मच के सहारे उसके उसे खिलाने लगी ।
पास पड़े रुमाल से उसका मुँह पोंछा और गाल पर प्यार से थपकी मारी ,जवाब में मधुर भी धीरे से मुस्कुरा उठा ,"अब तुम आराम करो ,मम्मी आती है थोड़ी देर में ," उसे तकिए के सहारे वापिस लिटाया और खुद रसोई की ओर चल पड़ी ।
अब रोली ने चाय की पतीली चढ़ा दी व बिखरी रसोई को समेटने लगी, इतने में ही चाय बन चुकी थी ।कप में डाल कर चार बिस्किट लिए व आराम कुर्सी पर आकर बालकॉनी में आकर बैठ गई ।
सड़क पर गाड़ियों की आवाजाही चालू थी लेकिन उसका मन इस शोरगुल से दूर अपने मन में उठ रहे उस कोलाहल को आज भी महसूस कर रहा था जो उसने ही दस साल पहले शुरू किया था ।

"कितनी बार कहा है तुमसे कि मुझसे यह सिंपल खाना नही खाया जाता और एक आप लोग हैं जो रोज मरीजों जैसा खाना खाते हैं ,शादी करके ही क्यों लाये जब ऐसा ही खाना खिलाना था ।
रोली आज पूरे उफान पर थी और सैंडविच को टेबल पर पटकते हुए अपने कमरे में चली गई थी ।
रोहन ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन वह अपने कमरे से बाहर नहीं निकली ।
रोज-रोज की चिक-चिक इस घर का पिछले दो महीने से हिस्सा बन चुकी थी ।
मम्मी पापा के साथ रोहन ने भी जैसे-तैसे नाश्ता किया व फिर ऑफिस के लिए निकल गया ।
ऐसा नहीं था कि घर में किसी चीज की कमी थी लेकिन रोली को हर बात में नुक़्श निकालने की आदत से वह किसी भी चीज या इंसान से संतुष्ट नहीं हो पाती थी ।उसका शिकायत करने का नज़रिया उसके दिमाग के साथ-साथ आसपास के वातावरण को भी दूषित करता था ।
घर में अजीब सा सन्नाटा पसरा रहता था जो घुटन बढ़ाने के लिए पर्याप्त था ।
रोहन ने तसल्ली से उसे कई बार समझाने की भी कोशिश की ," यह जरूरी नहीं है हम हमेशा लक्सरी लाइफ जिएं, तुम सिंपल रहकर देखो ,दिमाग में कितना सुकून रहता है?
चीजों को हल्के ढंग से लेने से दिमाग शांत रह पाता है व हम समस्याओं को बढ़ाने के बजाय कम कर सकते हैं "लेकिन रोली पर इन चीजों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता था ।

मम्मी ने एक बार रोहन को सुझाव दिया कि तुम कुछ दिन घूमा कर ले आओ इसे ।
"मम्मी पिछले महीने ही तो हम लोग हनीमून से आये हैं अब इतनी जल्दी मुझे छुट्टी भी कैसे मिलेगी ?"
"समझती हूँ बेटा तेरी परेशानी भी लेकिन हमें रोली को भी समझना होगा न!"
एक गहरी सांस लेते हुये सरला जी उठकर अपने कमरे में चली गईं ।
रोहन ने रोली को नौकरी करने का सुझाव दिया और कहा कि तुम बिजी हो जाओगी तब खुश भी रह पाओगी लेकिन रोली को वह प्रस्ताव भी मंजूर नहीं था क्योंकि नौकरी करने से उसे बहुत भाग दौड़ हो जाती और इतना काम करना उसे मंजूर नहीं था ।
शाम को वीकेंड पर रोहन उसे चाट वग़ैरह खिलाने ले जाता या दोनों मॉल में घूम आते ,यह खुशी भी शाम की धूप सी होती जो थोड़ी देर बार फिर किसी शिकायत रूपी अंधकार में बदलने वाली थी ।
एक अजीब सी असंतुष्टि व तुनकमिजाजी उसके व्यवहार में झलकती थी ।
किसी चीज को देख कर खुश होना या किसी समस्या को हल्के में लेना जैसे उसने सीखा ही न हो ।

दिन भर एक अजीब जी कशमकश में रहती और जिस चीज को वह चाहती वह बहुत ही परफेक्ट हो जिसमें रत्ती भर भी नुक़्स हो उसे उस चीज से नफरत थी ।
किसी गरीब इंसान की गरीबी हो या कोई औरत की कम सुंदरता ,वह भी उसे उनकी कमी लगती ,समाज की हर चीज को परफेक्ट रूप में देखने का उसका दीवानापन कई बार व्यवहार की हदें पार कर जाता ।
साल भर से परिवार में किच-किच अधिक बढ़ चुकी थी ।
मम्मी पापा के सामने रोज शर्मिंदा होने के बजाय रोहन ने एक अलग तरीका निकाला और अपना ट्रांसफर बंगलोर करवा लिया ।
वहाँ आकर रोली खुश थी कि अब वह अपनी मर्जी के जीवन जी पाएगी ।
खाना बनाने में उसी रुचि नहीं थी या तो बाहर खाकर आ जाती या फिर आर्डर कर मंगवा लेती ।
रोहन इस तरह के खाने का आदी नहीं था वह घर आकर खिचड़ी दलिया जैसा कुछ सिंपल बना कर खा लेता ।
धीरे धीरे वक़्त निकलता गया और एक दिन रोली को पता चला कि वह माँ बनने वाली है , रोहन ने उसे एक्स्ट्रा केअर देनी शुरू की, परन्तु वह उसके खान पान व विचारधारा में तनिक भी परिवर्तन नही ला पाया बल्कि इस समय तबियत थोड़ी खराब रहने से वह और भी चिड़चिड़ी हो गई थी ।
रोहन सुबह-सुबह भजन या मधुर संगीत से वातावरण में शांति लाने की कोशिश करता तब वह झल्ला उठती और कहती ,"क्या यह बूढ़ों की तरह भजन लगा देते हो सुबह सुबह ?"
सकपकाया सा रोहन किसी तरह मुस्कुराकर ऑफिस के लिए निकल जाता ।
डॉक्टर के नियमित चेकअप में यह साबित हो चुका था कि बच्चा शारीरिक रूप से कमजोर है और पौष्टिक खाने की जरूरत बतलाने के साथ ही डॉक्टर ने हिदायत दी थी कि जितना हो सके नकारात्मक विचारों से दूर रहकर खुश रहने की कोशिश की जाए जिससे बच्चा शारीरिक व मानसिक रूप से मजबूत हो ।
रोहन जितना करना चाहता उसका परिणाम सिफ़र ।
अब उसने भी ज्यादा कहना छोड़ दिया था ।
बच्चा समय पर पैदा हुआ लेकिन बहुत जटिलता के साथ ,उसे कुछ दिन इंटेंसिव केअर यूनिट में रखा गया और फिर थोड़ी स्थिति सुधरने पर घर भेज दिया गया ।डिलीवरी पर माँ किसी तरह एक महीना निकाल कर चली गईं थीं । रोहन को पहला अंदेशा तब हुआ जब उसने महसूस किया कि तीन महीने बाद भी उसकी गर्दन लुढ़क जाती है और समय बीतते-बीतते साथ आठ महीने तक वह बिना सहारे के बैठ पाने में भी असमर्थ रहा ।
डॉक्टर ने तीन महीने बाद ही चेता दिया था ,"शायद बच्चा
सेरेब्रल पाल्सी नामक रोग से पीड़ित हो सकता है और जब उसने आठ महीने तक बैठना व सिर संभालना नहीं सीखा तब यह कन्फर्म हो चुका था कि उसका दिमाग का वह भाग लकवा ग्रस्त है जिससे हाथ पांव को निर्देश मिलते है औऱ दो तीन साल तक आते-आते इसकी गंभीरता का पता चल चुका था ।
दिमाग का वह हिस्सा भी पीड़ित था जिससे बोलना सुनमे की क्रियाएं भी प्रभवित होती हैं ।
रोहन औऱ रोली के दुःख का पारावार न था लेकिन पता नहीं माँ की ममता थी या दुःखों का आगमन ,रोली में वह बदलाव आने शुरू हो गए थे जिसकी कल्पना भी रोहन ने नहीं की थी ।
अब उसे न दिन का होश रहता और न रात का ।
हर समय मधुर के आगे पीछे लगी रहती ।खुद भी खाने में वही खाती जिससे मधुर को अच्छा आहार मिल सके ।
घर में मेहनत बढ़ गई थी लेकिन दायित्व पूरा करने की जो लगन उसे लगी थी उसे पूरा करने में जी जान से जुटी हुई थी ।
आज आठ साल हो गए ,मधुर का इलाज भी चल रहा है लेकिन सुधार न के बराबर दिखाई देता है । फिर भी उसकी मुस्कुराहट व मासूमियत को देखते हुए दोनों निहाल हुए रहते हैं ।
अचानक मधुर की अष्पष्ट ध्वनि दुबारा आई ,वह वहां पहुंची ,मधुर उससे कहना चाह रहा था ,"माँ,तुम मेरे पास बैठो ।"

मधुर को छाती से लगाये उसकी आत्मा तृप्त हो रही थी और आज वह इस अपूर्णता में भी पूर्णता महसूस कर रही थी ।
वह समझ चुकी थी परफेक्ट कुछ नहीं होता,समायोजन ही वास्तविकता है ।
कुसुम पारीक

मौलिक,स्वरचित