Outing in Hindi Short Stories by SURENDRA ARORA books and stories PDF | आउटिंग

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आउटिंग

आउटिंग

" बहुत दिन हो गए. चलो कहीं बाहर चलते हैं. वही खाना भी खा लेंगें."

" पगला गए हो क्या ? इतनी सर्दी में बाहर देर रात में लौटेंगें ! बिना सोचे - समझने जो मर्जी फरमाइश करने लगते हो. मुनिया को ठंड लग गयी तो सारी आउटिंग की भेंट न जाने कितने दिन चढ़ जायेंगे. अभी कल ही तीसरे महीने में लगी है. डाक्टर - दवा तो करोगे ही, जो पैसे लगेंगे सो अलग. "

" यार ! तुम भी कमाल करती हो ! मुनिया न हुई जेल हो गयी. "

" हाँ तुम तो जैसे पहले दिन से इतने ही बड़े पैदा हुए थे. तुम्हारे लिए तो किसी ने ये जेल कभी भुगती ही नहीं है. "

" समझा करो न. जब से मुनिया का चककर चला है, कहीं भी नहीं निकल पाए. घर से आफिस, आफिस से घर. जैसे यही जिंदगी की पहली और आखिरी सच्चाई हो. "

" साब जी ! गृहस्थी बसाई है तो इस सच को मानना ही पड़ेगा. मुनिया जब कुछ सम्भल जाएगी, मनमर्जी से घूमने - फिरने के बारे में तभी सोचना."

रोहित, कल्पना की बात सुनकर अनमना हो गया. कल्पना को पता था कि रोहित को आउटिंग पर जाना बहुत अच्छा लगता है. शादी के बाद का एक साल इसी तरह की मौज - मस्ती में न जाने कब बीत गया था,उन दोनों को पता ही नहीं चला था. जब से मुनिया के अस्तित्व को आकार मिला था, दोनों के वैवाहिक जीवन में एक बंधी - बंधाई दिनचर्या के साथ ठराव सा आ गया था. कल्पना को इससे कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ा था क्योंकि वह अपने मातृत्व - सुख का आनंद अपनी पूरी छमता से ले रही थीं. उसके लिए मुनिया के जन्म के पहले से लेकर माँ के रूप में अब तक मुनिया का सही - सही पालन - पोषण को उसने अपना एक कर्तव्य ही नहीं, जीवन का उदेश्य भी बना लिया था. आज जब रोहित ने बाहर चलकर खाना खाने की बात की तो उसे अनायास ही उन दोनों के वे दिन याद आ गए. वह जानती थीं कि रोहित ने कुछ भी गलत नहीं कहा है पर मुनिया उसकी सबसे कोमल और जरूरी प्राथमिकता है. फिर भी उसका मन रोहित की मनः स्थिति को भी वह नजरअंदाज नहीं कर पाया..वह उसे उसकी अन्मयस्क स्थिति से निकालने की मंशा से बोली, " देखो हमारी प्यारी मुनिया सर्दी के इस मौसम को देर रात तक घर से बाहर की सर्दी सहन नहीं कर पाएगी. ऐसा करो आज तो तुम अपने किसी दोस्त के साथ चले जाओ, हम माँ - बेटी फिर किसी दिन में आपके साथ चलेंगें और खूब मजा करेंगें."

" किसी भी दोस्त के साथ, मतलब ? "

" हाँ ! जो भी तुम्हारे मिजाज का हो."

" मेरे मिजाज का कोई भी चलेगा ? "

" हाँ ! उसी के साथ तो जाओगे, जिसका साथ पसंद करोगे." कल्पना ने शब्दों में प्यार उड़ेलकर कहा.

" अगर वो कोई लड़की हुई तो ? " बोलते हुए रोहित मुस्कुरा भी रहा था.

कल्पना कुछ देर तक उसे मासूमियत के साथ देखती रही. मुनिया पास ही सो रही थीं. उसका मासूम चेहरा चारों ओर से लिपटे गहरे रंग के लिहाफ के बीच में से चाँद की तरह चमक रहा था. उसने आगे बढ़कर मुनिया के चमकते माथे को चूमा और फिर रोहित की ओर देखकर आत्मीयता से बोली, " जिस रोहित ने मुझे हमारी मुनिया के रूप में इतना गर्वित करने वाली अनमोल निधि दी है, क्या उसके लिए मैं इतना भी नहीं कर सकती कि उसे उसकी मर्जी से गुजारने लायक कुछ पल दे दूँ. तुम जाओ, जब लौटोगे तो हम माँ - बेटी मिलकर तुम्हारे साथ कॉफी पिएंगें. "

रोहित को उम्मीद नहीं थीं कि कल्पना उसकी साधारण सी इच्छा को इतनी संजीदगी से लेगी. वह अवाक सी स्थिति में कल्पना को देखता रहा. कल्पना अब भी मुस्कुरा रही थीं. फिर वह सोती हुई मुनिया की ओर झुका. उसके माथे को चूमाँ और फिर कल्पना की ओर मुड़कर बोला, " कल्पी ! जिंदगी हम दोनों को इस मुन्नो के रूप में साथ देखना चाहती है. इसीलिए तो ये यहां हमारे बेड पर निश्चिन लेटी है. मुझे कभी भी किसी के साथ किसी आउटिंग की अनुमति देकर मेरे प्यार में इतनी पागल मत बनना कि मैं तुम दोनों के रूप में मिली अपनी जिंदगी ही खो दूँ.आओ हम यही दूसरे कमरे में आउटिंग मना लेंगे. मुन्नो उठेगी तब कॉफी भी पी लेंगें. "

सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा

डी - 184, श्याम पार्क एक्सटेंशन, साहिबाबाद - ग़ज़िआबाद,

पिन : 201005 ( ऊ.प्र. ) मो: 9911127277