Kaha gai pariya ? in Hindi Children Stories by Kusum Agarwal books and stories PDF | कहाँ गईं परियां?

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कहाँ गईं परियां?

गति चलो, अब सो जाओ। कल सुबह स्कूल भी जाना है ना। यदि सोने में देरी हो जाएगी तो तुम्हारी नींद पूरी नहीं होगी और तुम सुबह उठने में आनाकानी करोगी। मम्मी ने गति को समझाते हुए कहा और फिर उसे बिस्तर पर लेटा कर सुलाने की कोशिश करने लगी। परन्तु गति ऐसे कब सोने वाली थी? उसने मम्मी का हाथ पकड़ लिया और बोली- मम्मा, आप भी मेरे साथ लेटो। मैं तभी सोऊंगी। मम्मी भी यह बात जानती थी। यह रोज की कहानी थी। गति को उसके साथ लेटे बिना नींद नहीं आती थी। मम्मी भी गति के पास लेट गई। वैसे भी कामकाज हो चुका था। उनको भी सोना ही था।


- मम्मी, मम्मी, कहानी सुनाओ ना। लेटते ही गति ने रोज की तरह जिद की।


- ठीक है, सुनाती हूं। कहकर मम्मी ने कहानी सुनानी शुरू की- बहुत पुरानी बात है एक अनाथ लड़की थी। उसके पास पहनने को सुंदर कपड़े नहीं थे। एक दिन वह पेड़ के नीचे बैठी-बैठी रो रही थी कि वहां एक परी आई……..


- नहीं,नहीं, मम्मी यह कहानी नहीं। मुझे परियों की कहानी नहीं सुननी है। सोनू कहता है- परियां होती ही नहीं है। सब लोग झूठ-मूठ की कहते हैं। मम्मी, सच बताओ क्या आपने कभी परी देखी है?


गति की बात सुनकर मम्मी क्या बोलती। परियां तो उसने भी नहीं देखी थीं।


वह बोली- नहीं देखीं। परंतु परियां जरूर होती होंगी नहीं तो इतनी कहानियां कैसे बनती। फिर यह मानने में नुकसान भी क्या है? कई बार परियों के बहाने से बच्चों की उदासी दूर हो जाती है, जीवन में आशा और विश्वास बढ़ते हैं। उन्हे नव-ऊर्जा भी मिलती है।


मम्मी बहुत विश्वास से कह रही थी। कहते-कहते उन्होंने गति की ओर देखा। पर गति उनकी बात सुनते-सुनते सो गई थी। कुछ ही देर में मम्मी की भी आंख लग गई।


गति और उसकी मम्मी का वार्तालाप सुनहरी परी, नीलम परी, लाल परी और नन्ही परी ने भी सुना। गति की बातें सुनकर उन्हें कुछ चिंता हुई।


सुनहरी परी ने कहा- सुना तुमने, गति क्या कह रही थी? परियां होती ही नहीं हैं। आजकल के बच्चे हम पर विश्वास नहीं करते हैं।


सुनहरी परी की बात सुनकर नीलम परी बोली- इसमें बच्चों की कोई गलती नहीं है। हम भी बहुत दिनों से धरती पर नहीं गई हैं। भला फिर वे हम पर विश्वास क्यों करने लगे। आजकल के बच्चे हर बात का सबूत चाहते हैं।


इस पर लाल परी बोली- ठीक कहती हो तुम। हमें कुछ तो करना होगा। चलो हम धरती पर चलें ताकि पृथ्वी वासियों को हमारे होने का विश्वास हो जाए।


इस पर नन्हीं परी डर गई और बोली- नहीं, नहीं, मैं धरती पर नहीं जाऊंगी। तुम्हें याद है जब हम पिछली बार धरती पर गई थी तो हमारी क्या हालत हुई थी? हम जंगल में गई थी तथा हमने जंगल के हरे-भरे वातावरण में नृत्य किया था………...


- हां, हां, याद आ गया। सुनहरी परी बोली- नृत्य करते समय तुमने तुम्हारे पंख उतार दिए थे।


- हां, नन्ही परी उदास होकर बोली। फिर जब मैं वापस आने लगी तो मेरे पंख गायब थे। पता नहीं किसने उठा लिए थे। मैं बहुत देर तक उन पंखों को ढूंढती रही थी तथा ना मिलने पर दुखी होकर रोने भी लगी थी।


- हां पता है। फिर तुम्हारी रोने की आवाज सुनकर पेड़ पर बैठे एक पक्षी ने तुम्हारे पंख गिरा दिए थे। शायद वह उनको गलती से उठा ले गया था। बिल्कुल हल्के-फुल्के थे पक्षियों के पंखों की तरह। शायद इसीलिए।


तब लाल परी बोली- पंख तो मिल गए थे परंतु उस दिन हमें परीलोक लौटने में बहुत देरी हो गई थी। याद है ना उस दिन हमको रानी परी से कितनी डांट पड़ी थी और उन्होंने कहा था यदि भविष्य में ऐसा हुआ तो तुम्हें परी लोक से निकाल दिया जाएगा इसलिए अब मैं पृथ्वी पर नहीं जाऊंगी।


मैं भी- नन्ही परी ने कहा।


- पर ऐसी तो बच्चे हमें भूल जाएंगे। हमें पृथ्वी पर तो जाना ही होगा। सुनहरी परी ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा।


- पर हम कैसे जा सकते हैं? हमारा रंग रूप भी अलग है। लोग हमें बड़ी अजीब निगाहों से देखते हैं। मुझे अच्छा नहीं लगता। नीलम परी ने कहा।


तब सुनहरी परी ने कहा- एक उपाय है। हम सब वेष बदलकर जा सकती हैं। ऐसे में कोई हमें जल्दी से पहचानेगा भी नहीं और हमारा मकसद भी पूरा हो जाएगा।


- हां यही ठीक रहेगा। सभी परियां इस योजना से सहमत हो गई कि वे धरती पर जाएंगी परंतु अलग रूप धारण करके तथा अपना काम करते ही तुरंत वापिस भी आ जाएंगी। बिना एक पल भी रुके।


सुबह हो गई थी। गति सो कर उठ गई। नहा धोकर तैयार होने के बाद जब वह नाश्ते पर बैठी तो सोचने लगी- कितना अच्छा हो यदि आज नाश्ते में मुझे मीठे-मीठे गुलाब जामुन मिले। काश कि सचमुच परियां होती तो मैं उन्हें कहती- ओ परी! मेरे लिए मीठे-मीठे गुलाब जामुन ले आओ। परंतु शिट्! परियां तो होती ही नहीं।


इतनी ही देर में गति ने देखा कि उसकी मम्मी उसके लिए नाश्ता ला रही हैं। नाश्ते में गुलाब जामुन थे। गति चौंकी। पर मैंने तो सिर्फ परी को कहने की सोची थी। लगता है मम्मी भी परी है और मेरे मन की बात जानकर मेरी इच्छा पूरी करना चाहती है- गति ने मन ही मन सोचा फिर खुद ही हंस पड़ी- मैं भी क्या-क्या सोच रही हूं और स्कूल के लिए निकल पड़ी।


ई.वी.एस का पीरियड था। गति को ई.वी.एस का पीरियड बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था क्योंकि उसे कुछ याद ही नहीं होता था। आज उसका टेस्ट था और उसे कुछ भी अच्छी तरह याद नहीं था।


जल्दी ही मैम ने उन्हें टेस्ट देकर बैठा दिया। गति ने प्रश्न पड़े। हालांकि उसने बहुत बार यही प्रश्न-उत्तर याद किए थे फिर भी घबराहट के कारण उसे अभी कुछ याद नहीं आ रहा था। वह मन ही मन बोली- ओ परी! मेरी सहायता करो फिर खुद ही बोली- मैं भी क्या कर रही हूं? जब परियां होती ही नहीं तो फिर मेरी सहायता कैसे करेंगी?


इतनी देर में उसकी मैम उसके पास आई। उन्हे पता था कि गति पढ़ाई तो करती है परंतु उसमें आत्मविश्वास की कमी है अतः जब लिखने बैठती है तो घबराहट के मारे पूरा लिख नहीं पाती है। उन्होंने गति को बड़े प्यार से कहा- गति, घबराओ मत। तुम लिखना शुरू करो। देखना धीरे-धीरे तुम्हें याद आता जाएगा और तुम लिखती जाओगी। ऐसा ही हुआ। गजब हुआ। गति ने लिखना शुरू किया तो उसे याद आता गया।


यह सचमुच मुझे याद आ रहा है कि परी ने मेरी सहायता की है- वह सोच में पड़ गई फिर उसने मैम की ओर देखा। कहीं मेरी मैम परी तो नहीं है। फिर अपनी सोच पर खुद ही हंसने लगी और मुस्कुराते हुए अपना टेस्ट पूरा कर लिया। टेस्ट सचमुच बहुत अच्छा हुआ था। आज जब वह घर आई तो बहुत खुश थी।


शाम हो गई थी। - मम्मी मेरी खेलने की इच्छा हो रही है पर मैं किसके साथ खेलूं। काश कि परी आ जाए और मैं उसके साथ खूब खेलूं- उसने फिर कल्पना की।


- परंतु परियां तो होती ही नहीं है। भला वे कैसे आएंगी।


वह अभी यह सोच ही रही थी पड़ोस में रहने वाली उसकी हम उम्र की लड़की नैना आई।


- गति क्या तुम मेरे साथ खेलोगी? मैं भी घर अकेली बोर हो रही हूं। आओ हम दोनो मिलकर खेलते हैं। नैना ने गति से कहा।


- अरे वाह! नैना अपने आप आ गई? मैंने तो इसी बुलाया ही नहीं। तो क्या परी ने इसे भेजा है?


गति की कुछ समझ में नहीं आ रहा था पर वह बहुत देर तक नैना के साथ खेली। उसे बहुत मजा आ रहा था।


रात के 8:00 बज गए थे। पापा के घर आने का समय हो गया था। गति बेसब्री से अपने पापा के आने का इंतजार कर रही थी। वह अपने पापा को अपने दिन भर के अनुभवों के बारे में बताना चाहती थी कि कैसे उसे सुबह-सुबह मनपसंद नाश्ता मिला, फिर अपनी टेस्ट के बारे में बताना चाहती थी तथा फिर नैना की बारे में भी। आज वह बहुत खुश थी। दरवाजे की घंटी बजी। गति ने झटपट दरवाजा खोला। दरवाजे पर पापा थे।


पापा ने बड़े प्यार से उसे गोदी में उठा लिया और बोले- मेरे प्यारी नन्हीं परी! पर फिर खुद ही बोले- नहीं, नहीं परियां तो होती ही नहीं। है ना गति?


इस पर गति बोली- पापा मुझे लगता है परियां होती हैं। कुछ तो इसी धरती पर ही रहती है तथा अलग-अलग रूप में हमारी सहायता भी करती है। आपको पता है आज में तीन परियों से मिली मम्मी परी, टीचर परी और नैना परी। इन तीनों ने ही मेरी तरह-तरह से सहायता की।


- और चौथी तुम हो- मेरी नन्ही परी। हो ना? पापा ने हंसते-हंसते कहा। तुम्हें मुस्कुराता हुआ देखते ही मेरी सारी थकान दूर हो जाती है।


परीलोक में बैठी चारों परियां अपनी जादुई शीशे में सब देख रही थीं। वे बोलीं- देखा हमारी योजना कामयाब हो गई। अब से हम हम धरती पर भी रहेंगी परंतु अलग रूपों में तथा सभी की सहायता करेंगी तभी तो पृथ्वीवासी हम पर विश्वास करेंगे।