यहां सफलता ही कलाकार की एकमात्र पहचान है, ईसके अतिरिक्त कलाकार के जीवन का कोई मूल्य नहीं।
फ़िल्म उद्योग के इस मंत्र ने कई संवेदनशील कलाकारों की हत्या की है। सुशांत सिंह आज इसी घटिया मानसिकता के शिकार बनें।
मुझे लग ही रहा था कि बड़े कलाकारों की भीड़ में यह संवेदनशील और प्रयत्नशील सितारा ज़्यादा समय तक अपनी रौशनी नहीं बिखेर पाएगा, पर इस प्रकार की जान हानि की करुणातिका का स्वप्न में भी विचार नहीं किया था।
टीवी सिरियल देखने का संयोग रोज़ तो नहीं बनता था पर 'पवित्र रिश्ता' में जब सुशांत और अंकिता को देखा तो लगा ये अपने टाइप के लोग लगते हैं। ज़्यादा लाऊड नहीं हैं, बहुत खुश हैं अपने जीवन से और महत्वकांशी किरदार हैं। दोनों कलाकारों की सादगी स्क्रीन पर बहुत पसंद आती थी। पता नहीं कहाँ से मन में विचार उमड़ा और मैंने अपनी पत्नी को कहा , ' ये सुशांत अच्छा एक्टर है, ज़रूर फिल्मों में आएगा' , तब पत्नी बोली, आपको तो सभी अच्छे लगते हैं, सब फिल्में करने योग्य नहीं होते, मुझे नहीं लगता।
और जब कुछ साल वाद ' कइपयो छे' का पोस्टर आया तब उस पोस्टर को पत्नी जी को दिखाया और कहा, देखा कहा था ना की सुशांत आएगा फिल्मों में।
पत्नी जी इन बातों में प्रेक्टिकल हैं, तभी उन्होंने भी भविष्यवाणी कर डाली, आ तो गया है, टिकना मुश्किल है।
फिर इस मासूम चहरे को देखा आमिर खान की सुपर हिट 'पी के' फ़िल्म में। वही ताज़गी और मासूमियत दिल को भा रही थी और अब विश्वास हो गया कि यह क्यूट सा दिखने वाला कलाकार बहुत आगे जाएगा।
फिर क्या था, सुशांत का 'एम एस धोनी' फ़िल्म के लिए चयन जैसे मेरे विश्वास को और मजबूत कर रहा था। इस फ़िल्म को बड़े पर्दे पर देखने का अवसर नहीं मिला पर मोबाइल और फिर इंटरनेट टीवी पर देखा, बार बार देखने की वजह मजबूत थी, एक मेरा पसन्दीदा कलाकार सुशांत और दूसरा मेरा हम नाम और रोल मॉडल एम एस धोनी। इस फ़िल्म से धोनी और सुशांत दोनों की ही स्ट्रगल दिख रही थी। और दोनों जीतते हुए नज़र आए।
सुशांत की एक और फ़िल्म राब्ता देखी, जो कमज़ोर कहानी और दिग्दर्शन की वजह से बिल्कुल पसंद नहीं आई।
केदारनाथ फ़िल्म में भी सुशांत का किरदार उनकी मासूमियत और सहज स्वभाव को बिल्कुल मैच हो रहा था, पर सारा अली का नया चेहरा और प्रभावशाली कार्य फ़िल्म की ज़्यादातर क्रेडिट लेने में सफल रहा और उससे सुशांत को निराशा तो हुई होगी। खैर फ़िल्म ज़्यादा सफल भी नहीं रही और उसी समय संघर्ष के दिन शुरू हो गए होंगे।
आखिर में देखी 'छिछोरे', फ़िल्म के नाम की वजह से कई दर्शक अभी तक इस फ़िल्म को देखने के लिए तैयार नहीं हुए होंगे, में भी नहीं था पर आखिरकार दोस्तों ने कहा यार देख लो, बहुत अच्छी फिल्म है। इस फ़िल्म में करीब 7 बार रोना आया था, कारण था सुशांत की एक्टिंग और फ़िल्म की स्क्रिप्ट। बहुत ही उम्दा फ़िल्म थी।
पर क्या सुशांत तक यह बात पहुंची की दर्शक उन्हें पसंद करते हैं, बस थोड़ी और उम्मीदें बांध कर बैठे हैं?
सुशांत की आत्महत्या बहुत सारे सवाल छोड़ जाती है जिनका उत्तर पाना मुश्किल है।
आत्महत्या का एक बहुत बड़ा कारण है अकेलापन। एक उम्र में हमें अपने पसंदीदा साथी के साथ रहना ही हमें स्ट्रेस जैसी भयानक बीमारी से दूर रख सकता है। एक साथी आपको हमेंशा आपके श्रेष्ठ से साक्षात्कार कराता है और आपको विश्वास दिलाता है कि आप श्रेष्ठ हैं, बस काम करते रहें और संयम रखें।
सुशांत सिंह राजपूत तू नहीं जा सकता।
क्यों आखिर क्यों इस प्रकार से उतावलापन दिखाया तुमने?आखिर कौनसी यह समस्या है जो दिखती नहीं पर हमारे दिलोदिमाग पर गंभीर चोट दे रही है?