Agle Janm Mohe Bitiya Hi Dijo in Hindi Short Stories by S Sinha books and stories PDF | अगले जन्म मोहे बिटिया ही दीजो

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अगले जन्म मोहे बिटिया ही दीजो

कहानी - अगले जन्म मोहे बिटिया ही दीजो

रजत बाबू इस मोहल्ले में रिटायरमेंट के बाद किराये के मकान में रहने आये थे . उन दिनों रिटायरमेंट के बाद रजत बाबू को पेंशन बहुत कम ही मिला करता था .किसी तरह एक तंग गली में कम किराये में भी तीन कमरों का घर मिल गया था . बिजली थी पर पानी सिर्फ सुबह एक घंटे ही आता .बाकी समय के लिए मकान मालिक ने एक हैंड पम्प लगा रखा था जिसके चलते पानी की किल्लत तो न थी पर हाथ को अच्छा खासा कसरत करना होता था .

रजत बाबू सचिवालय में हेड क्लर्क के पद से रिटायर हुए थे . जब तक नौकरी में थे सरकारी क्वार्टर में रहे . उनको चार बच्चे थे .पहला लड़का तो शादी के काफी साल बाद हुआ था . उसके बाद तो उनके तीन और बच्चे हुए दूसरी और तीसरी लड़कियाँ और चौथा लड़का . जब तक नौकरी में थे वेतन से ठीक ठाक चल रहा था .उनके रिटायरमेंट से कोई एक वर्ष पहले बड़े बेटे प्रेम ने इंजीनियरिंग पास किया था .कुछ मास पहले जल बोर्ड में जुनियर इंजीनियर पद पर नियुक्त हुआ था . बाकी तीनो बच्चे अभी पढ़ाई कर रहे थे .बड़ी बेटी रीना एम .ए .कर रही थी , छोटी बेटी टीना बी .ए . और सबसे छोटा बेटा प्रीतम हायर सेकेंडरी में था . रजत बाबू ने बड़े बेटे प्रेम की शादी रिटायरमेंट के दो माह पूर्व ही अपने सरकारी निवास से इसलिए की थी क्योंकि वह घर भी बड़ा था और बिजली , पानी और सड़क की सुविधा थी .

अब रजत बाबू अपने पूरे परिवार के साथ तंग गली वाले किराए के मकान में रहने लगे थे .चूँकि बड़ा बेटा प्रेम की भी नौकरी थी , घर अच्छे से चल रहा था .एक कमरे में प्रेम अपनी पत्नी श्यामा के साथ रहता था बाकी के दो कमरे में वह स्वयं , उनकी पत्नी और तीनों बच्चे रहते थे . स्वाभाविक था कि घर में प्रेम और उसकी पत्नी श्यामा का दबदबा बना रहता क्योंकि प्रेम की कमाई का ज्यादा हिस्सा परिवार पर खर्च होता था .

यह बात श्यामा को कतई पसंद नहीं थी . रात में जब सब सोने जाते श्यामा प्रेम से अक्सर लड़ा करती और कहती " सुनोजी , इस तरह कब तक चलेगा , मैं ज्यादा दिन बर्दाश्त नहीं कर सकती .मेरे पिताजी ने इंजीनियर से क्या इसी दिन के लिए शादी की थी , ऊपर से दहेज़ भी तो दिया था . हैंड पम्प से पानी भरते भरते हाथों में गाठें पड़ गयीं हैं . अब कोई अच्छा सा फ्लैट ले लो .हमारे भी तो बाल बच्चे होंगें ."

प्रेम उसे समझाते हुए बोलता " अच्छा , ले लेंगे .अभी धीरे बोलो ."

श्यामा की आवाज और भी तेज हो जाती " धीरे क्यों बोलूं ? इसमें डरने वाली क्या बात है ?"

ये बातें रजत बाबू और उनकी पत्नी दोनों सुना करते . इधर बड़ी बेटी रीना एम .ए . कर एक प्राइवेट कॉलेज में लेक्चरर बन गयी थी . अभी तो उसे वेतन कुछ ख़ास नहीं मिलता था , पर निकट भविष्य में उस कॉलेज को यूनिवर्सिटी से मान्यता मिलने की पूरी संभावना थी . इसीलिए रीना अपना पी.एच .डी .भी साथ साथ कर रही थी .

श्यामा को अब एक और मौका मिला , अब वह प्रेम से बोला करती " अब तो रीना भी कमा रही है , उसका वेतन और बाबूजी का पेंशन मिला कर घर का खर्च चल जायेगा .अब हमें जल्दी ही एक अच्छी जगह फ्लैट ले लेना चाहिए ."

इस बार प्रेम ने भी हामी भर दी . पर कुछ ही दिनों बाद रजत बाबू की पत्नी का देहांत हो गया तो प्रेम ने फिलहाल घर बदलने की बात टाल दी . इसी बीच छोटी बेटी टीना ने बी .ए . पूरा कर लिया . उसने अपने भाई प्रेम से कहा " भैया , मैं दूसरे शहर में जा कर बी. एड . करना चाहती हूँ . आपसे कुछ आर्थिक सहायता की आशा करती हूँ . "

श्यामा ने ही जबाब दिया " प्रेम कुछ मदद नहीं कर सकता है , अपनी दीदी और पापा से बात करो . हम तो जल्द ही एक फ्लैट में शिफ्ट कर रहें हैं जिसका किराया भी देना होगा ."

खैर बड़ी बहन रीना ने उसके बी .एड .कराने की जिम्मेदारी ख़ुशी ख़ुशी उठा ली .टीना पढ़ने चली गयी और प्रेम भी अपने फ्लैट में चला गया .माँ के गुजर जाने के बाद पिता रजत बाबू और छोटा भाई प्रीतम की देखभाल रीना की जिम्मेदारी थी .वैसे उसकी खुद की उम्र शादी की बहुत पहले ही हो चुकी थी . पर एक घर के खर्चे और दूसरा अतिसाधारण रूप रंग शादी के बीच रोड़ा था . सौभाग्यवश उसने अपना पी .एच .डी . पूरा कर लिया और उसके कॉलेज को भी मान्यता मिल गयी थी . अब उसे रेगुलर पे स्केल भी जल्द मिलना तय था . रजत बाबू दिल से चाहते थे कि रीना के हाथ जल्दी पीले कर दें .पर उसकी बढ़ती उम्र और ज्यादा पढ़े लिखे होने के कारण रीना के उपयुक्त वर खोजने में वे विफल रहे थे . साथ ही छोटी बेटी टीना भी विवाह योग्य हो चुकी थी . छोटा बेटा प्रीतम अभी सेटल्ड नहीं था . बड़ा बेटा प्रेम अलग होने के बाद पहले तो हर रविवार आता था , फिर कभी दो तीन हफ्ते में एक बार आता .बाद में उसी ने पिता के घर फोन लगवा दिया तब फोन पर ही हाल चाल पूछ लिया करता . बहू तो जाने के बाद झाँकने भी नहीं आई .इन सब कारणों से रजत बाबू चिंचित रहने लगे थे ,सो आजकल उनका ब्लड प्रेशर भी ज्यादा रहता .

छोटी बेटी टीना ने बी . एड . पूरा कर वहीँ प्राइवेट स्कूल में टीचर की नौकरी कर ली और उसी स्कूल के एक टीचर से लव मैरिज भी कर लिया . वह अपने पति के साथ रजत बाबू से आशीर्वाद लेने भी आई और कुछ दिन पिता के साथ रह कर वापस चली गयी .रजत बाबू को जहाँ एक ओर टीना की शादी की ख़ुशी थी वहीँ दूसरी ओर बड़ी बेटी के ब्याह न होने का दुःख भी था .अचानक उनका ब्लड प्प्रेशर काफी बढ़ गया और उन्हें लकवा मार दिया . उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा . दो हफ्ते में कुछ सुधार हुआ तो उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिली .बड़ा बेटा प्रेम बीच बीच में अस्पताल आकर उन्हें देख जाता था और कुछ फल व दवाईयां दे जाता पर बहू झाँकने भी नहीं आई . रजत बाबू अब बोल नहीं पाते और कन्धों को सहारा मिलने पर किसी तरह कर चल लेते थे .उनके खाने पीने , मल मूत्र आदि की व्यवस्था बिस्तर पर ही थी और सारा कुछ अकेले रीना किया करती .उनके बिस्तर पर एक घंटी , एक स्लेट और खड़िया रख दिया गया था जिससे जरुरत पड़ने पर किसी को बुला कर अपनी बात लिख कर बता सकें .

इस बीच एक सुखद घटना हुई .रीना के कॉलेज में ही उससे सीनियर विजय बाबू रीडर थे .किसी कारणवश उनकी भी शादी नहीं हुई थी .उन्होंने रीना से शादी की इच्छा जताई तो रीना ने कहा कि वह बाबूजी को नहीं छोड़ सकती .विजय ने भी उसे भरोसा दिलाया कि उसे ऐसा नहीं करना होगा , बल्कि उसके साथ ही रह कर कुछ मदद करने की कोशिश करेंगे .

रीना और विजय की शादी हो गयी .रजत बाबू की आँखों से ख़ुशी के आँसूं निकल रहे थे . उधर छोटा बेटा प्रीतम बी .ए .पास कर घर बैठा था .रजत बाबू के एक मित्र का लड़का सुदूर गुजरात प्रांत में किसी कारखाने में बड़े पद पर था . उसने प्रीतम को वहाँ नौकरी दिलाने की सशर्त पेशकश की .प्रीतम को उसकी मैट्रिक फेल तुतला कर बोलने वाली बहन से शादी करनी होगी . इसमें किसी को कोई आपत्ति न थी . उन दोनों की शादी हो गयी. प्रीतम शादी के बाद एक सप्ताह तक घर पर रहा फिर पत्नी उषा को छोड़ कर नौकरी पर चला गया .जाते वक़्त उसने उषा को कहा कि बाबूजी की देखभाल में रीना दीदी की सहायता करे .रजत बाबू भी अब खुश थे कि उनके चारों बच्चे सेटल्ड हो गए थे .

अभी दो हफ्ते भी न बीते थे कि उषा ने फोन पर अपने पति प्रीतम से कहा " मुझे यहाँ से ले चलो , मैं यहाँ नहीं रह सकती .अगर तुम नहीं ले जा सकते तो मैं मायके चली जाऊँगी .मैंने आजतक अपने सगे छोटे भाई बहनों की भी साफ़ सफाई नहीं की है .यहाँ तुम्हारे बूढ़े रोगी बाबूजी का यह सब मैं नहीं करने वाली ."

हालांकि रीना ने बाबूजी के लिए चौबीस घंटे का नौकर रखा हुआ था फिर भी कभी कभी खुद अपने भी देखना पड़ता था . बहरहाल उषा अपने मैके चली गयी .रीना को उससे कुछ फर्क नहीं पड़ता था . वह अपने हाथों रात को सोने से पहले बाबूजी को मालिश करती जिससे उसके मन को शांति मिलती .रजत बाबू उसके सर पर हाथ फेर कर उसको आशीर्वाद देते और अश्रुपूर्ण आँखों से उसे देखते रहते मानो कहना चाहते हों कि वो बस एक बोझ बन चुके हैं .

कोई दो माह बाद रजत बाबू की तबीयत बिगड़ने लगी . उन्हें सर्दी खाँसी ने कस कर जकड़ रखा था . एक रात जब रीना उनका मालिश कर उठने लगी उन्होंने रीना का हाथ पकड़ लिया और वे फूट फूट कर रोने लगे .खैर रीना उन्हें शांत करा कर सोने चली गयी .सुबह उठ कर रोज की तरह पहले बाबूजी के पास आयी तो देखा कि उनका शरीर बिलकुल ठंडा पड़ा था और उन्हें इस दुनिया से मुक्ति मिल चुकी थी .

रजत बाबू के स्लेट पर कुछ लिखा था .रीना ने स्लेट उठाया तो देखा उस पर बाबूजी ने लिख रखा था - " बेटा मिले भाग्य से पर बेटी मिले सौभाग्य से . अगले जन्म मोहे बिटिया ही दीजो ".

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शकुंतला सिन्हा

यह पूर्णतः काल्पनिक कहानी है और इसके किसी पात्र का भूत या वर्तमान से कोई सम्बन्ध नहीं है