Jashn in Corona in Hindi Moral Stories by इंदर भोले नाथ books and stories PDF | Jashn in Corona

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Jashn in Corona

ये कहानी शुरू होती है, उत्तर प्रदेश मे स्थित जिले के एक छोटे से गांव से । मैं जिले और गांव का नाम नहीं रखना चाहता है क्योंकि ये कहानी ही नहीं बल्कि एक सच्ची घटना भी है।
ये कहानी आधारित है पांच जिगरी दोस्तों के जिंदगी पर, जो कि दिल्ली में एक प्राइवेट कंपनी में काम करते हैं । उनका नाम क्या हो सकता है आप खुद ही सोच लीजिये। क्योंकि ये कहानी सिर्फ मेरे राज्य या जिले की ही नहीं है,बल्कि ये कहानी आपके राज्य आपके जिले की भी हो सकती है, आपके आसपास की भी हो सकती हैं, या हर उस मजदूर की हो सकती है जो दूसरे राज्य में जाकर काम कर रहा है।
या इस भयावह दौर से गुजरने वाले आप ही हो सकते हैं, बस उन्हीं में से आप कोई पांच नाम रख लीजिये।

तारीख 22 मार्च बड़े ही खुश थे वो पांचो दोस्त,क्योंकि हर रोज 12 घंटे की ड्यूटी करके बहुत ही थक चुके थें और तो और उनकी कंपनी संडे को भी छुट्टी नहीं देती थी। महीनों बाद उन्हें रेस्ट करने का मौका जो मिला था बस वो इस मौके का भरपूर फायदा लेना चाहते थे । सारा दिन बड़ी ही मस्ती में गुजारें फिर शाम को मस्त पार्टी मनाई दारू और चिकन के साथ, क्योंकि गरीब और साधारण परिवार के लोग जब खुश होते हैं तो उनका जशन बस इन्हीं दो चीजों से मनता है।

रात को उन्होंने इतनी पी रखी थी कि सुबह को नींद बहुत ही लेट खुली। जगने के बाद सब ने सोचा कि आज भी नहीं जाएंगे काम पर आज हम खुद की मर्ज़ी से रेस्ट मनायेंगे ।
सारा दिन आराम करते रहें शाम को फिर उन्होंने जश्न मनाई वही दारू और चिकन के साथ। जश्न मना ही रहे थे तभी उन्ही पांचों में से किसी एक के मोबाइल पर फोन आया और पता चला कि अगली सुबह यानी 24 मार्च से 14 अप्रैल तक अपनी कंपनी के साथ साथ सारी कंपनियां बंद रहेंगी । और हां पूरा भारत भी #lockdown रहेगा, यानी पूरा भारत बंद रहेगा।
किसी वायरस की वजह से पूरा भारत बंद रहेगा जिसका नाम है #Coronavirus । ये एक ऐसी महामारी है जो एक से दूसरे को फैलती है, इसीलिए इसकी रोकथाम के लिए पूरा भारत 24 मार्च से 14 अप्रैल तक बंद रहेगा । कोई घर से बाहर नहीं निकलेगा सब अपने घर में रहेंगे,और एक दूसरे से दूरी बनाकर रहेंगे और अपनी सेफ्टी के लिए मास्क और सैनिटाइजर क्रीम का उपयोग करेंगे।
तब उनमे से किसी ने भी उस फोन काॅल पे ध्यान नहीं दिया। और क्यों नहीं दिया आपको भी पता है, जी हाँ...आपने सही सोचा, क्योंकि सारे ही नशे मे थें । उनको बस ये याद रहा के 24 से 14 तक कंपनी बंद है ।
उन्ही में से एक ने दूसरे से कहा अरे बहुत ही अच्छा हुआ यार कंपनी बंद है, घर चले जाएंगे सब । और जब तक कम्पनी बंद रहेगी तब तक घर पर ही रहेंगे आराम से छुट्टी मनाएंगे।
जब कंपनी खुलेगी तब आ जाएंगे, इतना कह कर सब हंसने लगे, और सब फिर से अपनी मस्ती में यानी जश्न मनाने में लग गयें, फोन को साइड में रख के।

24 मार्च की सुबह उन्हीं पांचों में से किसी एक का फोन बजा हालांकि उन पांचों का फोन रात में कई बारी बजा था । लेकिन किसी ने या ये कहें कि किसी में हिम्मत नहीं थी या होश नहीं था कि वो कॉल रिसीव करके बात करतें, क्योंकि सारे के सारे नशे मे धुत थें।

उन सब के घर वालों ने फिर सुबह मे फोन किया, जैसे ही उन लोगों ने फोन रिसीव किया घरवालों ने बताया कि 24 मार्च से 14 अप्रैल तक पूरा भारत बंद है, यानी कि जितने यातायात के साधन हैं ट्रेन, बसें सारे यातायात सब कुछ बंद है। पूरा भारत लॉक डाउन रहेगा।
एक रोग आया है चाइना से जिसका नाम है #Coronavirus । यह एक से दूसरे को फैलता है इसी रोग से रोकथाम के लिए भारत सरकार ने यह #Lockdown लगाया है, ताकि लोग एक दूसरे के संपर्क में ना रहें और यह रोग कम से कम लोगों तक फैले, ज्यादा लोगों में ना फैले।
फिर घरवालों ने उनको बताया कि तुम लोग भी सावधानी से रहना, बाहर मत निकलना और एक दूसरे से #distance बना कर रखना और हां मुँह में मास्क पहनना और अपना हाथ साबुन से या सैनिटाइजर क्रीम से धोते रहना।

फोन रखने के बाद सब एक दूसरे को देखते रहे पहले उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या कहें एक दूसरे से। फिर थोड़ी देर बाद उनमें से किसी एक ने कहा कि चलो यार अच्छा ही हुआ 24 मार्च से 14 अप्रैल तक भारत बंद है । हम भी इतने दिन रेस्ट करेंगे 21 दिनों तक हम आराम करेंगे । जो छुट्टी हम घर पर मनाने की सोच रहे थे वो यहीं मनायेंगे।
आराम से खाएंगे पियेंगे और कमरे में पड़े रहेंगे, यही तसल्ली वो पांचों एक दूसरे को दे कर #lockdown वाले दिन गुजारने लगें।

पहला दिन गुजरा, दूसरा गुजरा,तीसरा भी गुजर गया चौथा भी गुजरा । पांचवे दिन सब बोरियत सा महसूस करने लगें,अब उन्हें ये रेस्ट खलने लगी थी,अब उन्हें ये आराम बुरा लगने लगा था ।

जो कभी सोच रहे थे कि आराम से हम 21 दिन गुजारेंगे कमरे में बैठकर, सो कर, आराम से मस्ती में गुजारेंगे। अब उन्हें ये आराम हराम लगने लगा था और वो इसके सिवा कर भी क्या सकते थे।

वो मजबूर थे और उनके साथ-साथ पूरा भारत ही मजबूर था इस #lockdown का पालन करने के लिए ।
क्योंकि अगर जीना है अपने लिए और अपनों के लिए तो ये सेफ्टी अपनानी पड़ेगी । जैसे तैसे वो #Lockdown के पहले चरण के नजदीक पहुंच गयें।
13 अप्रैल बहुत खुश थे वो लोग उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था वो भी इस वजह से क्योंकि कल यानी 14 अप्रैल को #Lockdown हट जाएगा और हम फिर से कंपनी में जाकर काम करेंगे और बाहर घूम सकते हैं ।
अजीब है न ये इंसानी फितरत कहां वो 22 मार्च को रेस्ट की खुशी मना रहे थे, जशन मना रहे थें क्योंकि उन्हें महीनों से रेस्ट नहीं मिला था कंपनियों में काम कर करके इसलिए वो 22 मार्च को रेस्ट की खुशी मना रहे थे । और कहां आज यानी 13 अप्रैल को रेस्ट खत्म होने की खुशी मना रहे हैं । क्योंकि उन्हें अब आराम नहीं चाहिये था क्योंकि अब वो आराम से पक चुके थे, बोर हो चुके थे ।
ये आराम अब उन्हें बुरा लगने लगा था खलने लगा था।
उस दस बाई दस के कमरे में वो भी पांच लोग 21 दिन कैसे गुजारे होंगे आप सोच सकते हो। ना कुछ करना सारा दिन कमरे में बंद रहना बस एक दूसरे की शक्ल देखते रहना और अगर जी भर जाए एक दूसरे की शक्ल देख कर, एक दूसरे से बातें करके तो फिर अपने मोबाइल में लग जाना ।
आखिर कब तक ?
चलो दो-चार दिन हो तब तो ठीक है लेकिन बीस या इक्कीस दिन तो बहुत होता है एक दस बाई दस के कमरे में पांच लोगों का दिन गुजारना ।


बहुत ही खुश थें वो लोग 13 अप्रैल को, उस दिन भी वो लोग जशन मना रहे थे हालांकि उस जशन में दारू और चिकन नहीं था।
लेकिन उनकी यह खुशी तब फिकी पड़ गई जब उन्हें रात को पता चला न्यूज़ में कि यह #Lockdown 14 अप्रिल के बजाय 3 मई को हटेगा फिर वो हताश हो गयें ।
पांचों के पांचो टूट गयें अंदर से क्योंकि उन्हें पता था उन्होंने ये 21 दिन कैसे गुजारे हैं किस स्थिति में गुजारे हैं, उस 10 बाई 10 के कमरे में ।
इसका अंदाजा मैं तो नहीं लगा सकता हां वो लोग जरूर लगा सकते हैं जिन्होंने इस #lockdown की स्थिति में ऐसे मंजर देखें हैं।
जो पैसे थें उनके पास वो पहले चरण मे ही खतम हो चुके थें, थोड़े बहुत उन लोगों ने बचा रख था।
रही बात राशन की तो हमारी सरकार तो न्यूज़ चैनलों पर कह देती है कि राशन फ्री मे मिलेगा लेकिन ये माधर जात कोटेदार देते कहाँ हैं।
अगर किसी ने कंप्लेन भी किया तो कहाँ सुनी जाती है गरीबों की शिकायतें । सब तो अधिकारी माधर जात चोर ही बैठे हैं ।
और तो और रूम मालिकों का भी उनके सर पर चढ़ा हुआ रहना, और ये कहना कि मुझे महीने का किराया चाहिये वर्ना मैं तुम्हे कमरे से निकाल दूंगा।
इस भयावह स्थिति में उनके ऊपर क्या गुजरी होगी और वो उसे कैसे सहे होंगे इसका हम अंदाजा भी नहीं लगा सकतें।
ये तो बस उन्हें ही पता है जो ऐसे मंजर देखे हैं करीब से।

समय से रूम वाले का किराया न देने पर बिजली काट देना, जिसकी वजह से मोटर न चलना, पानी न मिलना।
इस गर्मी में उस 10 बाइ 10 के कमरे में बिना पंखे का रहना, बिना पानी के वो कैसे गुजारा करते होंगे हम इसका अंदाजा भी नहीं लगा सकतें।

वो पांचों अब अंदर से टूट चुके थें। दूसरा चरण भी उसी 10 बाई 10 के कमरे में गुजरने लगा ।
अब तो उनकी भूख भी मिट चुकी थी, क्या फर्क पड़ता है सरकार राशन फ्री में दे या पैसे से दे। सारा दिन लेटे लेटे और सोए रहने से कहां भूख लगती है ।
और साथ में ये भी एक डर कि ये महामारी कहीं उन्हें ना हो जाये और कहीं वो घर पहुंचने से पहले ही मर ना जायें ।
कितनी भयावह स्थिति थी इसका अंदाजा बस वही लगा सकते थें।

दिन गुजरता रहा वो सब बस भगवान से यही दुआ करते थें,
हे भगवान बस किसी तरह हमें हमारे घर पहुंचा दो कोई ऐसा जुगाड़ करा दो ताकि हम अपने घर पहुंच जायें। हर रात हर दिन बस यही दुआ करतें।
आखिरकार भगवान भी उब चुके थें उनकी दुआ सुनते सुनते और उन्होंने उनकी दुआ कुबूल कर ली ।
दूसरा चरण भी खत्म लेकिन #lockdown 3 की बजाय 17 मई को पहुंच गया।
4 मई की शाम को उन्हें पता चला, किसी ने उन्हें बताया कि 6 मई को यहां से एक ट्रक जा रहा है । अपने जिले में अगर तुम भी जाना चाहते हो तो एक आदमी का ढाई हजार लगेगा पैसों का इंतजाम कर लो।
फिर क्या था उन लोगों को डूबते को तिनके का सहारा मिला । जैसे तैसे कर के उन्होंने पैसे का जुगाड़ किया और 6 मई को ट्रक मे बैठ कर 8 मई को अपने घर पहुंच गयें। हालांकि उन्हें परेशानी और दिक्कत का सामना उस ट्रक में भी करना पड़ा क्योंकि वो इंसानों की तरह नहीं अनाज की बोरियों की तरह उस ट्रक में भरे गए थें।
उस ट्रक में सिर्फ वही पांच नहीं बल्कि उनके जैसे और भी 65 लोग थे यानि टोटल 70 लोग उस ट्रक में भरे हुए थें ।

घर पहुंचने के बाद उन्हें क्वॉरेंटाइन नहीं किया गया क्योंकि उस गांव में क्वॉरेंटाइन सेंटर की कोई व्यवस्था नहीं थी ।
एक सरकारी स्कूल था भी तो वो खंडहर हो चुका था।
ना उसमें लाइट की सुविधा थी और ना ही साफ सुथरा था उसमें जंगल लगे हुए थें ।
अब वहां कौन जाता क्वॉरेंटाइन होने #corona से तो बाद में मरता पहले सांप या बिच्छू के काटने से ही उसकी मृत्यु हो जाती।
गांव वालों ने भी नहीं मना किया उन्हें गांव में आने से क्योंकि उनको भी पता था कि हमारे यहां क्वॉरेंटाइन सेंटर तो है नहीं, इतनी सुविधा तो है नहीं फिर हम उन्हें क्यों रोकें।
और घर वालों ने अपनी सेफ्टी को देखते हुए उन्हें द्वार पर या जिनका डेरा था जो घर से दूर होता है वहीं उन्हें रहने को कह दिया।
बस चार-पांच दिन के आराम ने ही उन्हें वो सब भूलने पर मजबूर कर दिया जो वो डेढ़ महीने से उस 10 बाई 10 के कमरे में दर्द झेले हुए थें।

छठवें दिन फिर शाम को उन पांचों ने और उन्हीं के पड़ोस में रहने वाले चार-पांच और लड़कों ने मिलकर जशन किया ।
ये जशन उस 10 बाई 10 के नर्क से अपने घर वापस आने की खुशी में थी ।
और इस जशन में वो दोनों चीजें थी जिसे सामान्यतः साधारण परिवार खुशी में यूज करता है......दारू और चिकन ।

खुशी मे उन्होंने ने इतनी पीली और खाली की सुबह उन मे से चार पांच की तबियत बुरी तरह खराब हो गई जिसकी वजह से उन्हें पास के ही सरकारी हॉस्पिटल मे जाना पड़ा।

और फिर वही हुआ जो वो और उनके परिवार और साथ ही गाँव के लोग भी जो नहीं चाहते थें ।
वो पांचो के पाचों और उनके साथ मे जिन्होंने ने जशन मनाई थी सारे के सारे #corona Positive निकलें ।