"कोई तो बचाओ मुझे, कोई तो मदत करो मेरी, क्यों मारना चाहते हो मुझे, छोड दो मुझे, मुझे जीना हैं, छोड दो मुझे" ये सपना देखते हुए मैं माँ केहते हुए चिल्लाकर उठी. मेरी आवाज सुनकर माँ दौडती हूई चली आ गई.
माँ ने पूछा, क्या हुआ नेहा. क्या फिर से वही सपना देखा तुने?
माँ को देखकर झट से उनके गोद में सर रखकर रोने लगी और मैंने कहा माँ वो सपना मैंने फिरसे देखा. कोई औरत दौड रही हैं. केह रही हैं उसे जीना हैं. लेकिन कुछ लोगों को उसे मार डालना चाहते हैं.माँ को भी समझ नही आ रहा था की क्यों मुझे ये सपना बार बार पडता हैं.उसने कहा, तू शांत हो जा पहले.
मेरे शांत हो जाने के बाद माँ नाश्ता लगाने चली गई. मैं तैयार होकर बाहर गई. पापा न्यूजपेपर पड रहे थे. धीरज मेरा छोटा भाई मोबाईल पर लगा हुआ था. मैं जाकर बैठ गई. तभी पापा ने कहा, हमे डॉक्टर के पास जाना हैं. नाश्ता करने के बाद चले जाते हैं. सच कहू तो ये सपना मुझे मेरे बचपण से ही आता हैं. पहले पापा और माँ को लगा की टीव्ही पर कुछ देखने से आता होगा. लेकिन वही सपना बार बार आना फिर उन्हे भी सताने लगा. इसलीये में डॉ. त्रिपाठी के यहा जाने लगी. उनसे बात करके मुझे कुछ देर के लिये बेहतर फील होता हैं. नाश्ता करने के बाद मैं और पापा डॉ. त्रिपाठी के यहा चले गये.
डॉक्टर त्रिपाठीने मुझे देखकर कहा, 'बेटा, बडे दिनो बाद आये आप'.पापा और डॉ. त्रिपाठी बहोत अच्छे दोस्त थे. उन्होने पापा से कहा, तुझे मैंने पहले भी कहा हैं हरीश की इस हर सेशन के लिये लाना होगा. लेकिन तू हैं की वो सपना आने के बाद ही इसे ले आता हैं. इसे कोई दिमागी बिमारी नही हैं.ये जो भी हैं हमे बस उस बात को खोजना हैं. ये सुनकर पापा ने कहा, ठीक हैं, अगली बार से तू जो केहेगा वैसा ही होगा.
मैं बचपण से डॉक्टर अंकल को जानती थी. उन्होने एक डायरी हात में ले ली और मुझसे पूछा, क्या देखा तुमने सपने मैं.मैंने कहा, वही जो हमेशा देखती हूं. वही औरत,वही सुनसान गलिया, वही काठी हात में लेकर दौडते हुए लोग, वही उस औरत की जीने के लिये तडप, और एक जलता हुआ मकान. कुछ अलग नही था. सब वही जो हमेशा मैंने बताया था. और कुछ सवाल पूछकर उन्होने पापासे बात की. मैं और पापा घर आये. घर में पापा ने अचानक से कहा की हम छुट्टीयों के लिये गाव जा रहे हैं. धीरज तो ये सुनकर बहोत खुश हो गया.
माँ ने पापा से कहा, बहोत सालों से गाव जाना ही हुआ नहीं. इस बार कुछ दिन रहेंगे.पापा ने कहा, त्रिपाठी ने बताया हैं की नेहा को किसी और जगह ले जाओ इससे थोडा चेंज मिलेगा उसे. तभी मुझे पता चला ये सब मेरे लिये चल रहा हैं. मुझे तो गाव जाकर बहोत दिन हो गये थे. लेकिन गाव जाना हैं ये सुनकर ना जाने क्यों दिल में वही अजीब सी घबराहट हो रही थी जो हर बार होती थी.ज्यादा ना सोचते हुए मैं पॅकिंग करने चली गइ.
अगली सुबह हम सब गाडी मैं बैठकर गाव जाने के लिये चल पडे. पापा ड्रायव्हिंग करते हुए मुझे और धीरज को गाव के किस्से सुनाने लगे. तीन घंटे का सफर अब खत्म होने को आया था. बोर्ड देखा की राजापूर 10km.मुझे खुश होना चाहिए था लेकिन मेरा दिल जोर से धडक रहा था. कुछ घबराहट हो रही थी. गाव मैं अब हमारी चाचा चाची थी.हमारी दादी कुछ साल पहले ही गुजर चुकी थी. तभी में यहा आई थी. लेकिन इसी घबराहट के वजह से मैं ज्यादा दिन तक रेह नहीं पाई थी. इस बार क्या होगा भगवान ही जाने.
हम गाव मैं पोहंच गये. चाचा गाडी की आवाज सुनकर बाहर आ गये. मैं दरवाजा खोलकर नीचे उतर गई तभी मन में घबराहट के साथ मैंने कुछ अजीब मेहसूस किया. मेरे दिल ने एक बात तो मुझे बता दी थी की कुछ तो अलग हैं इस गाव मैं. कुछ तो अलग हैं या कुछ तो गलत हैं?लेकिन कुछ तो रहस्य जरूर हैं यहा. ..