gumnam - 4 in Hindi Detective stories by Urmi Chauhan books and stories PDF | गुमनाम - 4

Featured Books
  • रिव्हॉल्व्हर - प्रकरण 13

    प्रकरण १३ न्यायाधीश सक्षमा बहुव्रीही यानी नावाप्रमाणेच एक सक...

  • सप्तरंगी गंध

    सप्तरंगी गंधभाग १: माधवाची जीवनयात्राचंद्रपूरच्या डोंगरदऱ्या...

  • चकवा - (अंतिम भाग )

    चकवा  अंतिम भाग 6तासभर दम खावून ते उतरणावरून पुढे निघाले. गा...

  • चकवा - भाग 5

    चकवा भाग 5 ती सात एकर जमिन दोन एकर गुरवाकडे,दोन एकर देवस्थान...

  • दंगा - भाग 4

    ३                       मुलांच्या आत्महत्या......  मुलांचा ब...

Categories
Share

गुमनाम - 4

सुरेश फोन उठता है। फोन मोहन का होता है।
मोहन: कैसे हो..? ठीक होंगे..। अपने रवि से नही मिलना चाहते..?
सुरेश: कहा है मेरा रवि ...उसे कुछ किया तो नही। क्या चाहते हो तुम..?
मोहन: तुमारी बर्बादी..रवि को बचाना चाहते हो तो शहर के बाहर के पुराना मकान है वहा चले आ ओ..ओर है पुलिस को खबर की तो अंजाम अच्छा नही होगा।
सुरेश कुछ कहे उसे पहले मोहन ने फोन रख दिया।
मोहन को बदला लेने की धुन सवार थी। वो रवि को मोहन के सामने मरना चाहता था। उसे तड़पता देखना चाहता था।

इधर पुलिस ने अपना जांच जारी रखी थी। पुलिस ने सुरेश के घर के आसपास जासूसी के लिए जासूस रखे थे। उसका घर का फोन भी ट्रैक हो रहा था। पुलिस को भी अब सारी खबर हो गई थी। अब पुलिस भी सचेत हो कर कार्य कर रही थी।
रात हो चुकी थी। सुरेश अब मोहन की बताई जगह पर जाने के लिए तैयार हो गया था। सुनैना ने भी साथ चलने की जिद्द की। सुरेश ने बहोत समजाया पर वो नही मानी और साथ चलते को तैयार हो गई। दोनो गाड़ी ने निकल चुके थे। इस तरफ किसी जासूस ने पुलिस को सुरेश के जाने की खबर दे दी। पुलिस सादे कपड़ों में सुरेश का पीछा करने लगीं। सुरेश ओर सुनैना दोनो बौहत चिता में थे। उसे पता ही नही चला कि क्या हो रहा है। रास्ता बहोत लम्बा था। सुरेश बहोत तेज गाड़ी चला रहा था। रास्ते मे आ रही गाडी का तो ध्यान ही नही था। कई बार दुर्घटना होने से बची।
पुलिस भी उनदोनो का पीछा कर रही थी। अचानक सुरेश की गाड़ी रुक गई लगता है वो जगह आ गई है। वो जगह बहोत सुमसान थी। आसपास कोई कुत्ता भी नही देख रहा था। पुलिस ने भी उनसे थोड़ी दूर पर गाड़ी रोक दी। और देखने लगी। सुरेश ओर सुनैना दोनो डरते डरते उस घर की ओर जा रहे थे। वह पर बस वही एक टूटा हुआ मकान था। दोनो दरवाजे के पास गये। दरवाजा खुला ही था। उसे लग रहा था जैसे उन दोनों के लिए ही खुला रखा है। उन दोनों के घर मे आ जाने के बाद कोई आया और दरवाजा बंद कर दिया। सुरेश ओर सुनैना दर गए और पूछने लगे कौन है वहा ओर रवि कहा है। में तुम्हारे पैसे लेके आ गया हूं। वहाँ के आदमी हस्त हुआ आता है। साथ मे किसी बचे के रोने की आवाज भी आती है। सुनैना आवाज सुन कर चोक जाती है। वो आवाज का पीछा करते हुए उस रूम में पोहच जाती है जहाँ रवि को रखा है। वो उसे गले लगा कर उसे बहोत प्यार करती है। वहै सुरेश उस आदमी को कहता है, ये लो तुमारे पैसे रवि को छोड़ दो।

वहाँ आदमी मोहन ही था। वो अंधरे कमरे में से हँसता हुआ बाहर आया और कहने लगा: कैसे हो मेरे प्रिय मित्र..? पहचान मुजे में मोहन । बहोत अच्छा लगा तुम्हें देख कर।

सुरेश: मोहन तुम तो बहोत अच्छे थे। और हम दोस्त भी थे। तो फिर इस कदर रवि क्यों गायब किया।

मोहन: दोस्त ..!कैसा दोस्त। तुमने तो दोस्त को मरने की दिए छोड़ दिया । तुमारी वज़ह से मेरी माँ भी मर गई।
मोहन के सुनकर चोक गया और दुखी हुआ..।

मोहन ने आगे कहा: अगर उस दिन तूने मेरा नाम पुलिस के सामने ना लिया होता यो में बच जाता। उस पैसे से में अपनी माँ की दवाई ले सकता था। अपना जीवन सुधार सकता था। मेरे जाने के बाद मेरी माँ भी मर गई। सिर्फ तुमारी वज़ह से।

सुरेश ने कहा: लेकिन मोहन तूमने मुजे क्यों इस बारे में बात नही की.?मुजे पैसे मांगे होते तो में दे देता। में कुछ मदद कर सकता था।

मोहन: में किसी से भीख नही लेना चाहता था। मेने काम खोजने की भी कोशिस की पर कोई काम नही मिला। मेरे पास कोई रास्ता ना बचने पर मैने ऐसा किया।
यहाँ कहकर वो रवि को उसके पास लेके बंदूक उसके माथे पर रख देता है। सुरेश ओर सुनैना डर के मारे चीख पड़ते है। पुलिस के सुन कर चोक जाती है। और घर मे जाने की कोशिस करते है।
मोहन: तुमने मेरे सब कुछ छीन लिया है। अब में तुमारा सब कुछ छीन लुगा।

मोहन गोली चलने जाता है वहाँ पुलिस आ जाती है और उसके हाथ पर गोलि चलाकर उसके हाथ से बंदूक गिरा देती है। मोहन ओर उसके साथी को पुलिस गिरफ्तार कर लेती है। और रवि ओर उसके माता पिता को बचा लेती है।
पुलिस उसे सारा सच्चा पता कर लेती है। मोहन सिर्फ़ बिनासोचे समझे अपने गलत कामो को न देखकर बस सुरेश बदल लेना चाहता था। इस प्रकार उसे वापिस उस जेल में जाना पड़ा। जहा से वो कुछ समय पहले ही आज़ाद हुआ था
सुरेश ओर उसका परिवार घर पोहच गया और खुसी से अपनी ज़िंदगी जीने लगा।



हमारे ज़िन्दगी में अक्सर ऐसे किस्से सुनते है जहाँ सचाई का साथ दो तो किछ अपने ही दुश्मन बन जाते है।
लेकिन बुराई कितनी भी शक्तिशाली हो पर सचाई के सामने नही टिक करती।
भूरा काम भूरा ही होता है चाहे किसी भी परिस्थिति में किया जाए।
.........................★................................


ये कहानी यहाँ पूर्ण होती है। उम्मीद करती हूं आपको पसंद आई होगी।