Parvarish me kami in Hindi Moral Stories by Saroj Verma books and stories PDF | परवरिश में कमी

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परवरिश में कमी

परवरिश में कमी...!!

भाईसाहब! थोड़ी जगह मिल जाएगी क्या? बैठने के लिए,राधेश्याम जी ने सीट पर बैठे सहयात्री से पूछा।।
हां.. हां..क्यो नही भाईसाहब, बहुत जगह हैं अभी,एक जन तो आराम से बैठ ही सकता है,उन सज्जन ने जरा खिसकते हुए कहा।।
और राधेश्याम जी,उन सज्जन की दी हुई सीट पर बैठ गए।।
जी, मैं सूर्यकिरण तिवारी,उन सज्जन ने अपना परिचय दिया।।
जी, मैं राधेश्याम गुप्ता, राधेश्याम जी ने भी अपना परिचय देते हुए कहा।।
जी, बहुत अच्छा!! कहां तक जा रहे हैं आप, सूर्यकिरण तिवारी जी ने राधेश्याम जी से पूछा।।
बस, झांसी तक जा रहा हूं, ग्वालियर आया था दोस्त के पास ,राधेश्याम जी ने उत्तर दिया।।
बहुत अच्छी बात है, सूर्यकिरण तिवारी जी बोले।।
दोस्त की माता जी बहुत दिनों से बीमार है, मुझे बहुत याद कर रहीं थीं, इसलिए उन्हें देखने गया था, कॉलेज के समय मैं उनके घर जाता था,वो खाना बहुत ही अच्छा बनाती थीं, कुछ भी अच्छा बनातीं तो फ़ौरन मुझे खाने पर घर बुलातीं थीं, पहले मैं भी ग्वालियर में ही रहता था, लेकिन काम-धंधा झांसी में अच्छा चल गया तो वहीं बस गया परिवार के साथ, राधेश्याम गुप्ता बोले।।
दोस्त से मिल कर आए और चेहरे पर चिंता के भाव,सब कुशल मंगल तो है ना,माता जी स्वस्थ तो हैं ना!!, सूर्यकिरण तिवारी बोले।।
हां.. हां..सब कुशल मंगल है, मुझे तो बस दोस्त के विचारों ने हैरान कर दिया, राधेश्याम गुप्ता बोले।।
वो कैसे, ऐसा क्या हुआ, सूर्यकिरण जी ने पूछा।।
हुआ यूं, रविवार वाले दिन सुबह का नाश्ता मेरा दोस्त और भाभी जी मिल कर बनाते हैं, दोपहर का भोजन और बर्तन बेटी की जिम्मेदारी है और शाम की चाय नाश्ता,रात का खाना और बर्तन बेटे की ड्यूटी है, मुझे ये देखकर आश्चर्य लगा और मैंने पूछ भी लिया कि सुबह तू भाभी का हाथ बंटा रहा था,घर गृहस्थी का काम बेटी तक तो ठीक है लेकिन बेटे को गृहस्थी के काम सौंपना,ये कहां तक जायज़ है, राधेश्याम जी बोले।।
फिर आपके मित्र ने क्या उत्तर दिया, सूर्यकिरण तिवारी जी ने पूछा।।
राधेश्याम गुप्ता जी बोले, वहीं तो मैं उसका जवाब सुनकर एकदम हतप्रभ रह गया, मैंने ये कभी सोचा ही नहीं___
वो बोला,देख यार सारी गृहिणियां हफ्ते के सातों दिन काम करतीं हैं, फिर वो चाहे नौकरी करतीं हो या साधारण गृहिणी हो इसलिए सिर्फ एक दिन उसका काम हल्का करने के लिए हम सब उसका हाथ बंटाते हैं,हफ्ते के सारे दिन तो वो कोल्हू के बैल की तरह लगी रहती हैं,हम सबकी एक एक चीज का ख्याल रखती है,अगर एक दिन हम सब मिलकर बेचारी का बोझ हल्का कर दे तो क्या बुरा है और फिर हम लोग बेटियों को तो काम सिखाते ही हैं अगर बेटा भी घर के कामकाज सीख लेता है तो क्या बुराई है,कल को बहु आएगी और वो नौकरी वाली हुई तो दोनों मिलकर काम कर लेंगे,कम से कम झगड़े होंगे,आपस में सामंजस्य बढ़ेगा,कल को बहु भी नहीं कहेंगी कि तुम्हारी परवरिश में कमी रह गई, परिवार में दोनों संतुष्ट हो तो परिवार की तरक्की होती है और फिर घर की लक्ष्मी खुश तो शांति ही शांति।।
और फिर हम बच्चों को जैसी परवरिश देंगे, बच्चे भी वैसे ही बनेंगे, बच्चों को मिलजुलकर रहना सीखाएंगे तो वो वैसे ही सीखेंगे, दोनों बच्चे दादी की सेवा में भी पूरा पूरा योगदान देते हैं।।
राधेश्याम जी की बात सुनकर सूर्य किरण जी बोले, मैं भी आपके मित्र की बातों से पूर्णतः सहमत हूं, आखिर वो भी हमारे घर की सदस्य हैं कोई गुलाम नहीं।।
और इस तरह राधेश्याम गुप्ता जी की बातों का सिलसिला सूर्य किरण जी के साथ जारी रहता है।।

समाप्त___
सरोज वर्मा__