Kissa beimaani ka in Hindi Short Stories by Vijay Singh Tyagi books and stories PDF | किस्सा बेईमानी का

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किस्सा बेईमानी का

किस्सा बेईमानी का

हुआ कुछ यूं था कि एक जमाने में औरतें हाथ के चरखे से सूत कातती थीं। उनमें से कुछ तो अपना ही सूत कातकर बाजार में बेचती थीं, कुछ दुकानदारों की ही रुई लेकर सूत की कताई करती थीं और उससे अपनी मजदूरी लेती थीं। कताई करने वाली औरतों को कत्ती कहा जाता था ।
सूत कातने वाली कत्ती दिन-रात चरखे पर सूत कातती थी। चरखा चलाते-चलाते बांह भी थक जाती थीं। सारा शरीर थककर चूर-चूर हो जाता था और चरखा चलाते-चलाते पता ही नहीं चलता था कि कब आंखें मिंच गयीं और नींद में कब वहीं पीछे को लुढ़क गई। आंख खुलीं तो देखा कि पीढ़ा पर बैठे-बैठे ही पीछे दीवार से लगकर अधलेटी-सी हालत में सोई हुई थी। कितनी मेहनत का काम था यह? बीच-बीच में गिनती रहती थी कि अब कितनी पिंदिआ कत गयीं? उसके बाद अटेरना लेकर कते हुए सूत को अटेरने के लिए बैठ जाती थी , तब जाकर सूत कहीं बाजार ले जाने लायक होता था ।
बाजार जाने के लिए भी कई कोस पैदल चलना पड़ता था। चलते-चलते पैर भी दुखने लगते थे । इसी तरह रात-दिन मेहनत करने पर मिलता क्या था ? आठ आना सेर के दाम ! एक दिन कत्ती ने सोचा -
"बनिए कितनी कमाई करते हैं, अपनी दुकान पर बैठे-बैठे ! ना खेत में जाना, ना बारिश और धूप में । और ना ही मेरी तरह रात-दिन जागकर मेहनत करना। बस, थले पर बैठे-बैठे हमारी खून पसीने की कमाई को औने-पौने दामों में ही गेर लेते हैं !"
कत्ती सूत कातते-कातते यह सोच ही रही थी, तभी उसके दिमाग में एक युक्ति सूझी -
"क्यों न इस बार मैं भी कुछ चालाकी करके थोड़े ही सूत के ज्यादा पैसे कमा लूं ?"
अगले दिन कत्ती ने सूत का बंडल बनाना शुरू किया और बीच में कुछ सूत भिगोकर रख दिया। अब कत्ती मन ही मन प्रसन्न होती हुई सिर पर सूत का बंडल रखकर बाजार में बेचने के लिए चल दी।
चलते-चलते रास्ते-भर वह यही सोचती जा रही थी कि आज मैं थोड़े सूत में ही ज्यादा पैसे कमा लूंगी। यह सोचते-सोचते वह बाजार पहुंच गई और दुकान पर सूत तुलवाने लगी। बनिया ने सूत तोलने के लिए जब तराजू में बाट रखे, तो उसने बड़ी चालाकी के साथ बड़े बांट के नीचे एक छोटी बट्टी रख ली, जो कत्ती को दिखाई ना दे और सूत तोलने लगा।
बनिया ने सूत तोल कर नौकर से दुकान में अन्दर रखने के लिए कहा और कत्ती का हिसाब जोड़कर उसके पैसे दे दिए। बनिया अपने मन ही मन खुश हो रहा था, कि आज भी मेरी चालाकी खूब चली। मैंने कत्ती को बट्टी का पता नहीं चलने दिया और कम पैसों में ही अधिक सूत ले लिया।
उधर कत्ती भी मन ही मन अपनी सफलता पर खुश हो रही थी कि सूत तुल गया और बनिया को पता ही नहीं चला कि मैंने उसमें भीगा हुआ सूत भी छिपा रखा था। पैसे लेकर वह जल्दी से उठी और अपने घर की राह पकड़ी।
वापिस लौटते हुए रास्ते में कत्ती मन ही मन फूली नहीं समा रही थी कि आज तो मैंने पानी में भीगा सूत बेचकर बनिया को ही लूट लिया।
दुकान के नौकर को बट्टी रखने की बनिया की बेइमानी का पता था। जब उसने सूत को अंदर रखने के लिए उठाया तो उसके हाथ को अंदर से कुछ गीलेपन का आभास हुआ । नौकर ने अन्दर जाकर सूत के बन्डल को खोल कर देखा , तो अन्दर कुछ सूत भीगा हुआ था। वह मन ही मन खूब हंसा और कहा-
कत्ती कहे मैंने बनिया लूटा, बनिया कह मैंने कत्ती।
वो तो लाई सूत भिगोके, बनिया ने रख ली बट्टी।।