AATMVISHVAS in Hindi Classic Stories by जगदीप सिंह मान दीप books and stories PDF | आत्मविश्वास

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आत्मविश्वास

"आत्मविश्वास"
लाइट नहीं है वाली घटना, मेरे जीवन में एक नया सवेरा लेकर आई। आज मैं मेरे अजीज मित्र सुरेश को प्राध्यापक हिंदी पद पर नौकरी ज्वाइन करवाने के लिए उसके साथ जा रहा था। मेरा  मित्र नौकरी लग गया यह देखकर मैं बहुत खुश हो रहा था। मेरे मित्र ने हिंदी प्राध्यापक पद पर ज्वाइन किया। मैं स्कूल में स्टाफ वालों के पास बैठा रहा, बातों बातों में समय बीत गया, पहले दिन की छुट्टी हो गई। हम घर की तरफ वापस आ रहे थे। वापस आते समय हम नौकरी की बातें कर रहे थे। नौकरी में संघर्ष का अहसास कराने के लिए सुरेश, मेरे लिए एक ही काफी था।"संघर्ष ही जीवन है"और "जीवन ही संघर्ष है"वाली कहावत का चरितार्थ मेरे साथ घूम रहा था। जिससे मुझे एक नई ऊर्जा मिल रही थी। उसी समय नवोदय विद्यालय समिति ने अध्यापकों की भर्ती के लिए फार्म निकाले थे। मैंने फार्म भरने के लिए पचेरी बड़ी में फोटो खिंचवाने की सोची। हम फोटो स्टूडियो की दुकान पर पहुँचे। वहाँ समाचार मिला लाइट नहीं है। गर्मी का मौसम था। थोड़ी देर बैठने के बाद हम बेचैनी महसूस करने लगे। मैंने अपना पर्स निकाला जिसमें एक पासपोर्ट साइज की फोटो थी। मैंने मेरे मित्र से कहा एक फोटो है यार, सुरेश ने कहा चलो अब चलते हैं पता नहीं लाइट कब आएगी। एक फोटो ही तो चाहिए फार्म भरने के लिए। इस फोटो से फार्म भर देना मैं कहता हूँ यही फोटो नौकरी लेकर आएगी। हम वहाँ से अपनी मोटरसाइकिल पर सवार होकर चल दिए। रास्ते में सुरेश ने कहा अरे यार जगदीप,दीप फोटो स्टूडियो वाले ने कहा था लाइट नहीं है, तुम लाइट पर शायरी सुनाओ। शायरी पढ़ना और सुनाना उस समय मेरे लिए फुटबॉल के खेल के साथ एक अच्छा शौक था। मैंने मजाक में कहा लाइट की जगह रोशनी पर सुना दूँ। यह भी तो लाइट का पर्यायवाची शब्द है। उन्होंने कहा चलेगा। मैंने शायरी शुरू की-
टूटने लगे हौंसले तो ये बात याद रखना, बिना मेहनत के हासिल तख्तो ताज नहीं होते,
अंधेरे में खोज लेना मंजिल अपनी, जुगनू कभी रोशनी के मोहताज नहीं होते।।
सुरेश ने कहा- वाह! क्या शायरी सुनाई है, दिल खुश कर दिया। मुझे भी जीवन की मुसीबतों से लड़ने का साहस मिल गया। सुरेश ने कहा अरे भाई तू दूसरों को रास्ता दिखाने के लिए शायरी करता है,तेरी खुद की नौकरी का रास्ता क्यों नहीं खोजता। हम बात करते -करते घर पहुँच गए। सुरेश अपनी नौकरी पर जाने लगा। मैंने उसी एक फोटो से नौकरी के लिए फार्म भर दिया। थोड़ा-थोड़ा पढ़ने लगा। मेरे सुरेश के अलावा रजनीकांत शर्मा और सुनील शर्मा भी अच्छे मित्र थे। सभी मित्र जब आपस में बात करते तो कहते हैं अरे यार जगदीप नौकरी के लिए कठिन मेहनत करनी पड़ेगी। अपने आप पर विश्वास जताना होगा। मेरे तीनों मित्र सरकारी अध्यापक थे।
एक दिन शाम को लाइट चली गई। मैं छत पर बैठा- बैठा कुछ सोच ही रहा था कि अचानक मेरे कानों में मेरे मित्र के शब्द गूँजने लगे, यही फोटो नौकरी लेकर आएगी। मुझे आत्मविश्वास होने लगा कि मैं भी इनकी तरह सरकारी अध्यापक लग सकता हूँ। मैं मन को दिलासा देने के लिए मन ही मन एक शायरी गुनगुनाने लगा-
ख्वाहिशों से नहीं गिरते हैं फूल झोली में, कर्म की शाख को हिलाना होगा,
कुछ नहीं होगा कोसने से अंधेरे को, अपने हिस्से का दीप खुद ही जलाना होगा।
अब मैंने संकल्प ले लिया कि मैं मेरे सपनों की जड़ों को नियमित अध्ययन से सींचूँगा। मैं मेहनत रूपी गाड़ी में बैठ कर, अध्ययन रूपी सवार बनकर सवारी करने लगा। अब मेहनत के सहारे मेरे सपनों को एक नई उड़ान मिल रही थी।
इसी संघर्ष के दौरान मेरी पत्नी 'किरण' बीमार हो गई थी। लेकिन मैंने धैर्य नहीं खोया। वह खुद मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती थी। धीरे -धीरे वह स्वस्थ हो गई। नाम के अनुरूप मेरे लिए आशा की किरण बनकर उभरी।
मेहनत का प्रसाद पाने के लिए मैं मेहनत के इस महायज्ञ में अपने श्रम की समिधा, धैर्य की धूप, अध्ययन की आहुति देने लगा। परीक्षा की घड़ी आई मैं पेपर देने जयपुर गया। पेपर अच्छा हुआ। पेपर देकर मैं पूर्णतः आश्वस्त था कि मैं परीक्षा में जरूर सफल हो जाऊँगा, ऐसा मुझे विश्वास होने लगा था, साक्षात्कार कैसा होगा राम जाने। आशा के अनुरूप ही परिणाम आया मैं परीक्षा में सफल हो गया। अब इस परिंदे को आत्मविश्वास रूपी हथियार मिल गया था, जिसके सहारे साक्षात्कार रूपी चट्टान से लड़ने की तैयारी में जुट गया। मेरा साक्षात्कार दिल्ली में हुआ। मेरा साक्षात्कार काफी अच्छा रहा। मैंने पूछे गए प्रश्नों का सटीक जवाब दिया।  मुझे अटल विश्वास हो रहा था कि मैं पास हो जाऊँगा। मैं साक्षात्कार बोर्ड को धन्यवाद देकर साक्षात्कार कक्ष से बाहर आ गया, जहाँ मेरा अजीज मित्र रजनीकांत शर्मा मेरा इंतजार कर रहा था। मेरा खिलता हुआ चेहरा देखकर अनायास ही कह उठा आपका चयन तय लग रहा है और मुझे गले लगा लिया। हमने  लीची खरीदी और वहीं खड़े होकर खाने लगे। तत्पश्चात हम बस में बैठ कर गाँव की तरफ रवाना हो गए। समय बीता जा रहा था एक दिन 'रोजगार समाचार' में मैंने अपना परिणाम देखा, सफल अभ्यर्थियों में मेरा नाम और रोल नंबर छपा था। आज मेरा यकीन हकीकत में बदल चुका था। यह मेरा आत्मविश्वास था।
अब मुझे मेरी पुरानी शायरी का उत्तर मिल चुका था। कर्म की शाख हिल चुकी थी। अपने हिस्से का दीप जल चुका था। अब अंधेरे को कोसने की जरूरत नहीं थी। अंधेरा मिट चुका था। रोशनी दस्तक दे चुकी थी। लाइट नहीं थी पर रोशनी जग में फैल रही थी। मैं अपने नाम के अनुरूप आत्मविश्वास के सहारे जगदीप हो गया था। यही फोटो नौकरी लाएगी वाले शब्द मेरा मनोबल बढ़ा रहे थे। मैं अपने गाँव का पहला नवोदय शिक्षक बनकर अपने आप को गौरवान्वित महसूस कर रहा था।
जगदीप सिंह मान ©