चमगादड़ एक ऐसा जीव है,जो रात के अंधेरे में उड़ता है,और जब सब जानवर सो रहे होते हैं, वो चुपके से उनके किसी नाजुक जगह को अपनी लार से शून्य कर देता है फिर वहाँ हल्का सा जख्म कर देता है और आहिस्ते आहिस्ते वहाँ से रक्त चूसता रहता है। इसीलिए उसे रक्तपिसाच भी कहते हैं। इस बात को कहने का उद्देश्य यह है कि हमारे जीवन में भी तनाव और दबाव का यही चमगादड़ रोज हमारे अंगों को शिथिल कर हमारी ऊर्जा चूस रहा है।
अब सवाल उठता है कि क्या जीवन का उत्साह,आनंद और उमंग का रस चूसने वाले इन चमगादड़ों से मुक्ति पायी जा सकती है ?
तो उत्तर है ,हाँ, पायी जा सकती है । कैसे ?
सबसे पहले अपने जीवन को होशपूर्वक देखिए,,, हम ज्यादातर वक्त एक मशीन की तरह चल रहे होते हैं,,,काम का दबाव और एक ही तरह के काममें जुड़े रहने से जीवन ऐसा हो रहा है ।
हम लोगो के लिए सच कुछ ऐसा है कि यहाँ अपनी अपनी फिकरों में जो भी है वो उलझा है जिंदगी हकीकत में क्या है कौन समझा है ,,,,
इस स्थिति से बाहर आया जा सकता है ध्यान और आध्यात्म का सहारा लेकर इससे बहुत कुछ दुविधा खत्म होती है । आप देखेंगे कि असंतोष और बेसब्री का जो भूत सवार है, वो उतरने लगता है ,,,
फिर कुछ और बातों का ख्याल कर लें तो बहुत कुछ नियंत्रण में आ सकता है ,, जैसे :-
1,,,,,, सजग रहकर - अर्थात अपने शरीर के प्रति फिक्रमंद रहें, स्वस्थ रहने के जो भी उपाय हैं ,उन्हें अपनाए,, अपने भीतर क्या चल रहा है उसकी जानकारी रखे ,मतलब इस बात की जाँच होती रहे,, चिकित्सकीय सहायता लेते रहे ,किसी तकलीफ या संकेत की अनदेखी न् करें ।
2,,,,,, नजर अंदाज करना सीखें - आज लेनदेन हमारे संबंधों का आधार बन गया है । इस पर हमारा व्यवहार टिका है , हमारे भीतर एक बाजार बन गया है नफा नुकसान का । और ये जब तक हमारे अनुसार होता रहता है, हमे कोई परेशानी नहीं, किन्तु जहाँ किसी से चूक हुई, हम उसके प्रति बहुत सख्त हो जाते हैं ,हमारा हिसाब किताब सर चढ़कर बोलने लगता है ,फिर तो उसके लिए जो कुछ भी बुरा हो सकता है ,हम करने से पीछे नहीं हटते।
क्रोध,असंतोष,प्रतिशोध, तनाव और अशांति में पड़कर हम रातों में उस चमगादड़ को खुद अपने जख्म दिखाते हैं और वो मजे से हमारी ऊर्जा चूसता रहता है।
हमें ये बात समझ में नहीं आती और आती भी है तो हम सुधरना नही चाहते हैं, कि इस दुनिया में चोट सह लेने में कोई बुराई नहीं है, बुरा है चोट करना, चोट करने के लिए खुद में क्रोध और प्रतिशोध का भाव लाना पड़ता है । क्रोध और प्रतिशोध जीवन के लिए कभी लाभदायक नहीं है। इसलिए इन पर नजर रखें कि ये आप को निगल तो नही रहे,,
कई बार ऐसा हुआ कि मुझे मेरी मेहनत का फल नहीं मिला । सामने वाले की नीयत में खोट आ गयी। उसकी नजरे बदल गयी ,मुझे लगा कि इसको मजा चखाना चाहिए , पर ज्योही मैं ऐसा सोचता क्रोध और अशांति से भर जाता और वर्तमान से दूर होकर चिंता और तनाव में रहने लगा तब, मैंने खुद को वहीँ रोका और समझाया कि सारी दुनिया मेरे जिम्मे नहीं है,,,और न् ही सारे लोग । इसे कोई और है जो चलाता है,जो हुआ अच्छे के लिए हुआ,, यहाँ ठगा जाना बुरा नहीं है ,,ठगना बुरा है। मुझे लगा कि जिसने भी मेरे साथ या किसी और के साथ ऐसा किया है किसी दिन वो खुद ग्लानि से डूब मरेगा और जिसकी नियत ऐसी हो उसकी कामयाबी भी कभी निश्चित नही है, वो कभी भी बुरी तरह गिरेगा । ऐसे लोगों के हस्र से कहानियां भरी पड़ी है और खुद भी कईयों को बरबाद होते देखा है ।
3,,,,,अलग होना सीखें- जहाँ के काम से और जहाँ के वातावरण से दिमाग में बोझ बना रहे,निंदक,निगेटिव विचार वाले, ईर्ष्यालु,क्रोधी,लालची साथियों के साथ दिनभर रहते हैं तो उनसे किनारा करिये,अब आप कहेंगे कि क्या करें रोजी रोटी का सवाल है,उसके साथ रहना मज़बूरी है ,,, आदि आदि,,ऐसा बिल्कुल नही है। दरअसल ज्यादा और ज्यादा का लालच आपको आड़े तिरछे लोगो से जुड़े रहने को विवश करता है। क्या हो जाएगा यदि कुछ ज्यादा नही मिलेगा ,,,,? पर दूसरो की बराबरी या दूसरों से ज्यादा बटोर लेने की फ़िक्र में हम अपना अनमोल स्वास्थ्य गवां देते हैं ।
आप सक्रियता और मजबूरी की लाख दुहाई दें पर अंततः तनाव और दबाव में आप रहते है ,जिसका तत्काल तो आभास नहीं होता पर धीरे धीरे आप गंभीर बीमारियों की गिरफ्त में आ रहे होतें है , लगातार साथ संगत का ऐसा विषपान आपकी जीवनदायनी स्नायुशक्ति को शिथिल कर देता है ,उनके आंतरिक भाग में रुकावटें पैदा करता है और रक्तचाप का ऊँचा निचा या ज्यादा होना आपके लिए खतरा बन जाता है।
ऐसे हालात में जाने से बचने के लिए बहुत से रास्तों से अलग होना सीखें,,बहुत सी राहें है, जिनको चुना जा सकता है तो उसे चुनिए,,, किसी और से अपनी तुलना क्यों ?
4/ खान पान---अपने भोजन पर गौर करिए,, संयम ही आपके लिए सबसे ज्यादा काम का है ,, बाहर की दौड़ धूप में आप जो चाहे खाने लगते हैं । तनाव और दबाव में चाहे जैसे जल्दी जल्दी पेट मे जो नमक तेल का मिला जुला चटपटा मिला ठूस लिया और फिर काम में लग गये पान ,गुटका,बीड़ी,सिगरेट तो आपके लिए है ही और यही सब आपके लिवर,फेफड़े,आमाशय, किडनी पर बहुत ज्यादा असर डालते है। परिणाम तकलीफों से शुरू होकर किसी असाध्य रोग की परिणीति में ले जाता है ।खाने में संयम रखें इसके पहले की डॉक्टर समझाए खुद को जागरूक रखें । आपका संयम ही आपको खाट पकड़ने से बचाएगा ।
और अंत में,,,,ये दुनिया दौड़ती रहेगी हमारे साथ भी हमारे बाद भी ।
इसके भुलावे में मत पड़ना,, होश सम्हाले रखना,,,दुनिया की नजरों से खुद को देखो ,,,वो सवाल करती है,,,
तुम हो तो क्या,,,,
तुम नही हो तो क्या,,,,यहाँ किसी के बिना किसी का काम नही रुकता । तो फिर
क्यों मुश्किल में जान फंसाये रहना,,,