प्रथम ग्रासे मूषक पातः ★ (भाग-1)
पिछले लगभग दो साल से यह एकमात्र कमरा ही मेरी दुनिया है ।
अब अगर आप किसी पिछड़े हुए गांव के निवासी हो तो आपको जरूर बेहतर काम की तलाश में किसी पास के बड़े शहर में जाना पड़ता है , बिल्कुल वैसे ही मैं भी दो साल पहले इस महलनुमा शहर के चूहेदानी नुमा कमरे में काम की तलाश में आया था।
काम तो दो साल में कई किये और छोड़ भी दिये या छूट गए लेकिन यह कमरा मेरा आशियाना बना रहा ।
हो सकता है की घर का मालिक जरूरतमंद है या मैं उसके लिए सहृदय लेकिन कुल जमा यह कि आगे भी 2-3 साल मुझे यहां से हिलने या हिलाने की कोई कवायद होती नही दिखती ।
देखने से याद आया पिछले कुछ दिनों से रोज इस रूम में मुझे कोई दिख रहा है ।
मेरे अलावा भी इस रूम में अब कोई रहने लगा है ।
मुझे उसके वजूद का अंदेशा तब लगा जब एक रात मैं खाना खाकर सोने की तैयारी कर रहा था और वह चुपके से मेरे खाने में से नीचे गिरे हुए अवशेष चुराने की कोशिश करने लगा ।
बड़ा अजीब सा लगता है जब आप दो साल से किसी जगह पर अकेले हो और अचानक से कोई आपके इलाके पर हक जताने आ जाये ।
यह आपके वर्चस्व पर आघात की तरह लगता है मुझे भी लगा इसलिए मैंने उसे ठिकाने लगाने की ठान ली ।
एक शाम काम से लौटते वक्त मुझे अपने रूममेट की याद आई । मैंने एक जहर की बोतल और एक चूहेदानी खरीद ली क्योंकि मैं कोई कसर नही छोड़ना चाहता था ।
घर पंहुचते ही मुझे लगा कि शायद मुझे वह छिपकर देख रहा है। मैंने तुरंत चूहेदानी पीठ के पीछे छिपा ली और जेब पर हाथ लगाकर जहर की बोतल होने की तस्दीक कर ली, फिर मुझे खुद पर ही हंसी आई कि वह कोई इंसान तो नही है जो मेरे दिमाग में चल रही उसके क़त्ल या कैद करने की साजिश चूहेदानी देखकर समझ जाएगा ।
लेकिन वहां दो आंखे तो थी,B जो मुझे देख रही थी और बाकायदा कमरे में फैली रोशनी का परावर्तन भी कर रही थी उसी आंखों की ओर से आवाज आई "म्याऊं"
मेरी नजरें उस निवेदन की ओर उठी ।
सहसा ही मेरे चेहरे पर शातिर मुस्कान तैर गई एकबारगी मुझे लगा कि पहले ही इस दस बाय दस के कमरे में एक हिस्सेदार बना बैठा है और अब यह दूसरा हिस्सेदार बनने का निवेदन लगा रहा है कि "मैं आऊं?" ।
मेरे पास अब तीन जबरदस्त प्लान थे । सबसे पहले मैंने पिंजरे में पनीर लगाकर उसके आवागमन की जगह पर रख दिया फिर जहरबुझे पनीर को उसके बिल के पास रख दिया ।
शेर की मौसी मेरे सारे इंतजाम देखकर जम्हाई ले रही थी मानो कह रही हो "बेटा तेरा तुरुप का इक्का तो मैं ही हूं, मैं ही टिपुंगी उसे तो"
अब मैं सावधानी से पलंग पर लेटकर देखने लगा कि मेरा कौनसा प्लान उसे उसके आखिरी अंजाम तक पहुंचाता है ।
बहुत देर हो गई मुझे नींद आने लगी इस ख्याल से की शायद इस बिल्ली मौसी ने मेरे आज के गृहप्रवेश से पहले ही उसका काम तमाम कर दिया है और मैं मुफ्त में अपनी नींद खराब रह रहा हूँ ।
बिल्ली फर्श पर सोई थी और मेरी उनींदी-सी आंखे हसीन सपने देखने को बेकरार थी ।
सुबह उत्कंठा की वजह से मेरी नींद जल्दी खुल गई । कमरे का नजारा कुछ अजीब-सा था ।
जहर बुझा पनीर गायब था। मौसीजी चूहेदानी के अंदर आराम फरमा रही थी और मूसाजी मेरे पलंग के नीचे रात के खाने से गिरे अवशेषों की तलाश कर रहे थे।
अचानक मुझे कुछ अंदेशा हुआ, मैं एक झटके से उठा और चूहेदानी के पास पहुंचकर चूहेदानी उठाकर हिलाई , बिल्ली में जीवन के कोई चिन्ह नमूदार नही हुए ।
"हे भगवान! मैंने बिल्ली को मार दिया" अनायास ही यह शब्द मेरे होंठो पर आए ।
क्रमश:
#Anil_Makariya
Jalgaon (Maharashtra)