Satya - 29 in Hindi Fiction Stories by KAMAL KANT LAL books and stories PDF | सत्या - 29

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सत्या - 29

सत्या 29

मीरा और सविता ने साथ-साथ ग्रैजुअशन किया. मुन्ने के लिए सविता ने पढ़ाई बीच में छोड़ दी थी. अपने बच्चे के साथ वह इतनी खुश थी कि और आगे पढ़ने का उसका इरादा बदल गया था. लेकिन जब शंकर ने खुद उसे पढ़ने के लिए कहा तो वह पूरे उत्साह से पढ़ाई में जुट गई और मीरा से भी अच्छे नंबर सविता के आए.

उस दिन शाम को घर लौटकर सत्या ने हाथ-मुँह धोया और कमरे में बैठकर चाय का इंतज़ार करने लगा. मीरा चाय लेकर आई. उसके होठों पर एक मुस्कान थी. सत्या ने चाय का कप थामते हुए पूछ लिया, “क्या बात है? काफी खुश दिखाई दे रहीं हैं आप?”

मीरा ने उसकी ओर एक लिफाफा बढ़ाया, “ये चिट्ठी आई है. आपने जो ऐप्लीकेशन भिजवाया था, उसका इंटरव्ह्यू कॉल लेटर है. कल ही जाना है.”

सत्या खुशी से उछल पड़ा, “अरे वाह, ये तो बड़ी खुशी की बात है. हम ले चलेंगे आपको. कल छुट्टी ले लेंगे. आप ज़रा नेट पर कंपनी के इस प्रोजेक्ट के बारे में पढ़ लीजिए.”

मीरा ने पूछा, “ये सी. एस. आर. प्रोजेक्ट क्या होता है?”

सत्या ने बताया, “इसका मतलब है कॉर्पोरेट सोशल रेस्पॉन्सिबिलिटी. कंपनी शहर की बस्तीयों में महिलाओं के विकास के लिए कोई प्रोजेक्ट चलाएगी. आपको सुपरवाईज़र के पोस्ट के लिए बुलवाया है.”

मीरा के बदन में सिहरन सी दौड़ गई, “हमको तो बहुत डर लग रहा है. मेरा सेलेक्शन कभी नहीं होगा.”

सत्या, “वहाँ हम करके बात मत कीजियेगा. मैं और आऊँगी, करूँगी करके बोलियेगा.”

मीरा ने कहा, “मुझसे ये सब नहीं होगा. मैं तो बस जाऊँगी और जो समझ में आएगा बोलकर आ जाऊँगी.”

मीरा मुस्कुरा कर कमरे से बाहर चली गई. सत्या भी धीरे से मुस्कुरा दिया.

कंपनी के सी. एस. आर. बिल्डिंग के सामने सत्या ने मीरा को स्कूटर से उतारा. हाथ में फाईल लेकर मीरा वहीं खड़ी रही, “हम तो कहते हैं..”

“हम नहीं, मैं तो कहती हूँ...” सत्या ने उसको याद दिलाई.

कुछ देर मीरा हिम्मत जुटाती रही. फिर उचककर स्कूटर की पिछली सीट पर वापस बैठ गई, “चलिए हो गई इंटरव्ह्यू. हमसे नहीं हो पाएगा.”

सत्या ने शांतिपूर्क समझाया, “आप इसी बात से डर रही हैं ना कि आपको लोग नहीं चुनेंगे. इसमें घबराने की बात नहीं है. नहीं चुनेंगे. इससे ज़्यादा क्या होगा? लेकिन आपको इंटरव्ह्यू देने का तज़ुर्बा हो जाएगा, जो अगले इंटरव्ह्यू में काम आएगा. क्यों, काम तो एक दिन करना है न? अगर नहीं करना है तो फिर चलिए घर,” कहकर सत्या ने स्कूटर में किक मारी. मीरा कूद कर उतर गई. लेकिन गई नहीं. घबराई सी वहीं खड़ी रही.

सत्या ने स्कूटर स्टैंड पर लगाई और बोला, “आईये आपको हॉल तक पहुँचा देते हैं. एकदम बिना डरे जो समझ में आए कह दीजिएगा. जो न समझ आए उससे इन्कार कर दीजिएगा. ठीक है?”

दरवाज़े से अंदर जाती हुई मीरा ने मुड़कर कातर दृष्टि से एक बार सत्या को देखा. सत्या ने इशारे से उसे ऑल दि बेस्ट कहा. मीरा अंदर चली गई.

सत्या बाहर स्कूटर की सीट पर काफी देर तक बैठा-बैठा बोर हो गया था. अंत में हाथ में फाईल लिए मीरा मुस्कुराती हुई बाहर आई. सत्या अपनी स्कूटर की सीट से उतर कर खड़ा हो गया और गौर से मीरा का चेहरा पढ़ने की कोशिश करने लगा. पास आकर मीरा ने बस इतना कहा, “चलिए, हो गया.”

सत्या ने उत्सुकता के साथ पूछा, “कैसा रहा?”

“ठीक ही था. जो पूछा, बोल दिए. देखें क्या होता है.”

सत्या ने विश्वास जताया, “देखियेगा, आपका सेलेक्शन ज़रूर होगा.”

सत्या ने स्कूटर स्टार्ट की. मीरा उचककर पीछे बैठ गई. स्कूटर आगे बढ़ी. मीरा ने धीरे से अपना हाथ सत्या के कंधे पर रख दिया. सत्या ने कनखियों से कंधे पर रखे मीरा के हाथ को देखा और मुस्कुरा दिया.

ऑफिस से लौटने पर सत्या ने देखा दोनों बच्चे और मीरा घर के सामने उसका बेसब्री से इन्तज़ार कर रहे थे. मीरा पूरी तरह घबराई हुई दिख रही थी. लेकिन खुशी और रोहन काफी उत्साहित दिख रहे थे. पास पहुँचने पर मीरा ने कहा, “ये चिट्ठी आई है. रिगरेट लेटर ही होगा.”

खुशी उत्साह से बोली, “नहीं, अपॉइंटमेंट लेटर होगा. देखना मेरी बात सच होगी.”

सत्या ने सवाल किया, “अरे, अभी तक किसीने खोलकर देखा भी नहीं है?”

“मेरी तो हिम्मत नहीं हो रही है. आप ही खोलकर देखिए,” मीरा के स्वर में घबराहट थी.

सत्या ने लिफाफा खोला. उसके मुँह से निकला, “अरे-अरे-अरे.”

मीरा का दिल बैठ गया. खुशी ने चिंतित होकर पूछा, “रिग्रेट लेटर है?”

“नहीं, हमको आज चार-पाँच सौ रुपया खर्च करने को बोला गया है,” बोलकर सत्या मुस्कुराया, “आपका अपॉइंटमेंट लेटर है. देखिये हम कहते थे न कि एक दिन ढंग का काम आपको मिलेगा और आप फख्र से सर ऊँचा करके जी सकेंगी. हम आज बहुत खुश हैं. आज तो पार्टी होनी चाहिए.”

“वॉव ममा, यू डिड इट. वी आर सो प्राऊड ऑफ यू. आज तो मीट-पुलाव बनना चाहिए,” खुशी ने कहा.

रोहन चहका, “और साथ में हॉट गुलाब जामुन और आईसक्रीम भी.”

मीरा की साँस में साँस आई, “सत्या बाबू, आपके ही कारण हमारी ज़िंदगी में खुशहाली आई है. आप एक फरिश्ता बनकर हमलोगों की ज़िंदगी में आए हैं.”

“ये सब छोड़िये. हम अभी सामान लेकर आते हैं. ज़ोरदार पार्टी होगी आज. लाइये झोला दीजिए.”

मीरा घर के अंदर चली गई. खुशी और रोहन योजनाएँ बनाने में लग गए. खुशी ने कहा, “माँ की पहली सैलरी से सबसे पहले मेरे लिए स्कूटी आएगी.”

रोहन ने विरोध किया, “नहीं, हर बार तुम्हारी बात नहीं चलेगी. सबसे पहले हम लोगों को भाड़े का नया घर खोजना होगा. एक छोटे से कमरे में हम तीन लोगों को अब और नहीं रहना.”

खुशी ने कहा, “घर क्यों बदलेंगे? तुमको अगर हमारे साथ दिक्कत हो रही है तो तुम चाचा के कमरे में एक चौकी डाल लो.”

रोहन ने गुस्से से कहा, “हमको चाचा के कमरे में नहीं सोना है.”

हाथ में झोला पकड़े पीछे खड़ी मीरा ने सहम कर सत्या के चेहरे की ओर देखा. फिर नाराज़गी के साथ बोली, “क्यों, चाचा के कमरे में सोने में क्या दिक्कत है?”

सत्या ने बात को संभाला, “अरे-अरे ये किस बात में आपलोग उलझ गये? आओ रोहन, चलकर सामान ले आते हैं.”

रोहन और सत्या स्कूटर से चले गए. मीरा चिंतित उनको जाते हुए देखती रही.