ज्ञान की सरिता
हर रोज की तरह आज भी सर्दी भरी रात गुजर गई सुबह के छ: बज चुके थे l अभी भी बाहर दरवाजे पर शीत लहर का प्रकोप था l सुबह सूरज की किरणें कब लौट कर आएगी इसका भरपूर इंतजार था l यही सोचते सोचते चारों ओर दीवारों पर ध्यान दिया l दीवारों पर टंगी हर एक तस्वीर पुरानी यादों को ताजा कर रही थी, उनमें एक तस्वीर ऐसी थी जिसमें सभी मुस्कान लिए पूरे सजे हुए ग्रुप में ऐसे बैठे थे मानो किसी शादी में दूल्हे के घर वाले हो l. यह ग्रुप सीबीएसई कार्य हेतु एकत्र हुए सदस्यों का था l उसमें एक महिला शिक्षिका जो अनायास ही इस तस्वीर का आकर्षण थी l क्योंकि वह मेरी मार्गदर्शिका व मेरे काव्यानुवाद या शब्दार्थ करवाने में सदैव सहायक रही है l यह विदुषी हमेशा हँसमुख रहने वाली, सबको स्नेह बाँटने वाली मीनाक्षी l यह बड़ा अद्भुत संयोग है कि वह हिन्दी भाषा साहित्य के अतिरिक्त अंग्रेजी भाषा साहित्य को बड़े विशुध्द शब्दार्थ करने में निपुण हैं l
उसने कई बार अंग्रेज़ी रोचक कहानियाँ सुनाई l मुझे उसकी एक कहानी याद है l जिसमें कहा है 'जब हम किसी पुस्तक के आखिरी पन्ने को अंतिम छोर पर पढ़ रहे हैं, तो हमारे सामने दो विकल्प होते हैं कि किताब बंद कर दें या फिर नई किताब खोल लीजिए l' वास्तव में मुझे ये शब्द आज भी प्रेरणा देते हैं l मैं मीनाक्षी का आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे अप्रत्यक्ष रूप से प्रेरणा दी l. फारसी में संतकवि नंदलाल द्वारा लिखित दशमेश गुरु गोविंद सिंह जी पर "गंजनामा" को दोहावली हिन्दी में बदलने सहायक रही है l दुनिया में ज्ञान के भंडार अनेक विद्वान होंगे परंतु किसी को समय पर मार्गदर्शन करने वाला ही सच्चा सहायक व प्रेरक होता है l वास्तव में ऐसे पथ मार्गदर्शी मीनाक्षी को ज्ञान की सरिता ही नहीं विद्या प्रदाता शारदे स्वरुप की अक्षय निधि कहें तो भी कम हैं l
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ऐसी साहित्य की सरिताओं को समर्पित कुछ शब्द....
ज्ञान है सरिता, नदी का निर्मल नीर l
सम रस दुग्ध दधि घृत सागर क्षीर l
इसी भाषा की सरिता है, एक देवी l
ज्ञान में पीछे उससे बड़ी बड़ी महादेवी l
काल विभाजन, परिचय, शास्त्र, रीति l
सब में निपुण वह, साहित्य की प्रीति l
न जाने, वह कितनी विद्वता की है l
रोज सूर्य स्तुति में नए छंद गाती है l
प्रकृति चिंतन उसने ही सिखाया l
उसने तुम क्यों मौन हो बताया l
मुझे प्रकृत्ति प्रेम का कवि बनाया l
न जान पाया, वह कहां से आयी?
लगता है मुझे कवि बनाने ही आयी l
तोड़ने मौन प्रकृत्ति के कलम चलाईl
मैंने प्रकृति की पीर अब अपनाई l
मिटा दूँगा वो वेदना भरी वादियाँ l
जाऊँगा जगाने नीर निर्झर नदियाँ l
सबका मौन टूटेगा, लालिमा आएगी l
प्रकृत्ति भी फिर प्रेम के गीत गायेगी l
समर्पित होगा देवी को काव्य मेराl
हे कवयित्री महा देवी मैं कवि तेरा l
द्वारा हिन्दी जुड़वाँ
हरि राम भार्गव
हिन्दी शिक्षक
शिक्षा निदेशालय दिल्ली
हेत राम भार्गव
हिन्दी शिक्षक
शिक्षा विभाग चंडीगढ़
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