Tisari baar aana in Hindi Adventure Stories by Satish Sardana Kumar books and stories PDF | तीसरी बार आना

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तीसरी बार आना


इस साल में तीसरी बार आना हुआ नानी के घर।नानी का घर पलवल में था,पहली बार जब आया तो नानी गुजर चुकी थी।नानी के गुजरते ही उसे फोन आया था लेकिन वह अंतिम संस्कार के वक़्त तक आ नहीं सका था।क्या वजह थी यह याद नहीं।लेकिन कोई जरूरी काम था या उसकी तबीयत खराब थी,कुछ था जरूर।वह अंतिम संस्कार के दूसरे दिन आया।सथर पर महिलाएं बैठी इधर उधर की दुनिया जहान की बातें कर रही थी।छोटे छोटे बच्चे इधर उधर दौड़ रहे थे या अपनी माँ की गोद में सो रहे थे।पुरुष लोग ताश पीट रहे थे।एक हलवाई बहुत बड़े पतीले में चाय उबाल रहा था।कहीं कोई शोक का चिन्ह नहीं था।माँ न जाने कहाँ थी।उसे खीझ और गुस्सा दोनों आ रहे थे।वह दफ़्तर के सौ जरूरी काम छोड़कर चला आया था।यहाँ उसकी कोई पूछ प्रतीत ही नहीं थी।वह जान पहचान का कोई चेहरा ढूंढने लगा।उसे अपनी कजिन, बड़े मामा की लड़की रंजू दिखाई दी।रंजू की पिछले ही साल शादी हुई थी,वह अभी भी पहले जैसी मासूम दिखती थी।बातें ऐसे करती थी जैसे घी पिघला पिघला कर रोटियों पर चुपड़ रही हो।उसने उसे देख लिया था,पास आती हुई बोली,"वीर!आप आ गए।कब आये?"उसकी आवाज में खाली नदी की रेत सी झलक रही थी।
"मैं तो कल से यहीं हूँ।नानी के अंतिम संस्कार में शामिल हुआ था।"उसने कहा तो उसके मुँह पर शरारत फैल गई ।
"आप झूठ न भकाओ!मैंने बुआ जी से सुबह से दस बार पूछ लिया है।वीरा कब आएगा।कब आएगा।"
वह मुस्कराती हुई बोली।उसकी मुस्कान खोखली और ऊपरी थी।क्या वह अपनी ससुराल में खुश नहीं थी।
"मैं तो अभी आया।"वह स्वीकार करते हुए बोला,"आना तो पहले चाहता था लेकिन नौकरी ऐसी है कि एकदम निकलते नहीं बन पड़ता।इसलिए हर बार मेन इवेंट हो चुकने पर आता हूँ।फिर माँ से लेकर सब रिश्तेदारों की बातें सुनता हूँ कि मैं बड़ा बिजी हो गया हूँ।रिश्ते की कद्र नहीं रही तुम्हारे मन में वगैरह!"उसे सिगरेट की तलब लग रही थी।रास्ते में एक बार भी नहीं पी थी।लेकिन यहाँ क्या हो सकता था।,"और तुम बताओ।तुम तो दादी की लाडली पोती थी।तुम तो बिल्कुल शोकग्रस्त नहीं लग रही हो।"उसने फिर से मजाक किया।
"हम तो शोक मना मना कर थके पड़े हैं।अब आप आ गए हो,आप शोक मनाओ।आप भी अपनी नानी के कम लाडले नहीं थे।आप कड्ढो कोई वैन शैन!"
"लो बुआ आ गई।"रंजू ने कहा तो उसने मुड़कर देखा,सामने मां थी।उसने मां को पैरी पैना किया।मां ने सौ सौ असीसें देते हुए उसका माथा चूमा तो उसकी सिगरेट की तलब मिट गई।
"वेख ले!वेख ले!!राजे,मेरी माँ मर गई।"यह कहकर वह खड़ी खड़ी बिलखती हुई रोने लगी।वह शांत खड़ा मां को रोते हुए देखता रहा।मां उसकी उम्मीद से पहले ही चुप हो गई।माहौल ऐसा हो गया मानो अभी धूप थी,फिर बदली आयी,आकर बरस गयी।फिर से धूप निकल गई।कुछ न बदला, बस थोड़ा गीला गीला हो गया।
"मामा से मिला है।"माँ ने दुपट्टे से आँसू पोंछते हुए पूछा।उसने देखा दुपट्टे का रंग सफेद था।उसे जाने क्यों याद हो आया कि मां की मां गुजरे तो चिट्टा बोछन उसका भाई यानी मामा देता है।कैसी निर्मम रस्म है।उसने सोचा।
वह मां के साथ मामा को मिलने चल दिया।मामा एक कोने में भूरी शाल लपेटे दीवार के सहारे बैठे थे।पार्किंसन की बीमारी ने उन्हें बरसों पहले अशक्त और विवश बना दिया था।
मां ने मामा के सामने जाकर जोर से बोला,"राजू आया है भाई साहब!नानी दा अफसोस करण!!"
मामा ने क्या समझा क्या नहीं।उनकी गर्दन अपने आप ही हिल रही थी।
मां ने इशारा किया,"मामे दे गल लग।"
वह थोड़ा सा झुका और मामा के गले लगा।मामा ने उसे मजबूती से पकड़ लिया और जोर जोर से रोने लगे।"मैं नहीं बचना चिम्मन!मेरी माँ गई!"
"ले!यह तो चिम्मन को याद करके रोता है।चिम्मन को मरे तो बरसों हो गए।बचपन का यार था इसका। चिम्मन की मां नहीं थी।इसलिए वह उसकी माँ को ही माँ कहता था।दोनों एक चूल्हे पर पले थे।चिम्मन के मरने के बाद ही मां सुन्न हो गई थी।अब यह बीमार लाचार मां के मरने पर चिम्मन को याद करके रोता है।"कोई औरत खुसपुसाते स्वर में किसी से कह रही थी। उनका रोना इतना उच्च स्वर में और इतना साफ था मानो ईश्वर उनके कंठ में बैठा रो रहा हो।उसका रोएं खड़े हो गए।उसका हृदय विदीर्ण हो गया।
वह भी जार जार रोने लगा।रोते रोते उसकी रीट निकल आई।उसे खांसी आ गई।खाँसते खाँसते वह बेदम हो गया।सब लोग उसे चुप कराने में लगे रहे।कोई कह रहा था कि कमला बंदा है।नानी की अगली जगह खराब करेगा।बुढ़िया सब कुछ देखभाल कर गयी है।दोहते पोतों से भरा पूरा परिवार छोड़कर गयी है।उसका जीवन सफर पूरा हुआ उसके लिए क्या रोना!
अगले दिन वह सुबह ही लौट आया था,यह वादा करके कि नानी की तेरहवीं पर जरूर आएगा।लेकिन कुछ काम ऐसा निकला कि वह चाहते हुए भी आ न सका।
तीन महीने बाद सुबह सुबह उसे फोन आया कि मामा गुजर गए हैं।आज ही संस्कार होगा लेकिन उस दिन तो मीटिंग थी।कहने को वह कह सकता था।साहब झींकते हुए छुट्टी तो दे देता।लेकिन दो सौ किलोमीटर का सफर कर भागते हुए पहुंचने का कोई फायदा होना नहीं था।चौथे पर चला जायेगा,यह सोचकर वह मीटिंग में चला गया।
चौथे पर पहुंचने में भी वह काफी लेट हो गया था।दो बज गए थे,नानी के घर पहुंचा तो लंगर खिलाया जा रहा था।दरियाँ उठा दी गई थी और टाट पट्टी बिछा दी गई थी जिस पर लोग पंक्ति में लंगर छक रहे थे।वह आगे बढ़ा तो किसी ने उसे हाथ पकड़ कर बैठा लिया,"लंगर छको!गरम गरम दाल और तंदूरी फुल्का।पेठे की सब्ज़ी और अचार भी है।
विवरण इस तरह दिया गया कि उसकी भूख जाग गई।वह वहीं टाट पट्टी पर पालथी मारकर बैठ गया।दाल वाकई गरम थी,स्वाद तो थी ही।लंगर में भुनी हुई दाल को जिस तरह से घोटना मारकर बनाते हैं वैसा स्वाद घर में नहीं बन पाता।पे