Chudhail wala mod - 12 in Hindi Horror Stories by VIKAS BHANTI books and stories PDF | चुड़ैल वाला मोड़ - 12

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चुड़ैल वाला मोड़ - 12

रेनू इन्स्पिरेशन थी संकेत के लिए । मुश्किल से मुश्किल परिस्थितियों में भी आसान से आसान रास्ता निकालना रेनू ने ही तो सिखाया था संकेत को ।

स्कूल की वो दोस्ती कब प्यार में बदली दोनों को पता नहीं चला । ढेर से दोस्तों का ग्रुप था संकेत का जिसमे संकेत, सुशान्त, गौतम, शिवानि, मंजू, शब्बीर, कृतिका, पूनम और रेनू शामिल थे । दोस्ती इतनी गहरी थी कि संकेत के माँ पापा को स्कूल के बाद बारी बारी से हर दोस्त के घर फोन लगाना पड़ता था ।

और इन सब दोस्तियों में संकेत और रेनू का
रिश्ता इतना स्पॉनटेनियस था कि कभी दोनों को प्यार का इज़हार करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी । बस धीरे धीरे दोनों एक दूसरे के होते चले गए ।

संकेत की हर चीज़ का ख्याल रेनू ही रखा करती थी । कॉलेज ख़त्म होने के बाद संकेत को बंगलोर की एक आई टी कंपनी के अकाउंट डिपार्टमेंट में जॉब भी मिली पर वो रेनू को छोड़कर नहीं जाना चाहता था ।

नीयत सही हो तो किस्मत भी साथ देती है, संकेत को कुछ ही साल में अपने ही शहर में सरकारी नौकरी भी मिल गई और दोनों अपने घर के सपने बसाने लगे । ऑफिस के ठीक बाद कॉफ़ी शॉप में फ्यूचर प्लानिंग दोनों का रोज़ का शेड्यूल था ।

"मैं सोच रहा हूँ आज माँ पापा से मिलवा दूँ । अब टाइम आ गया है कि हम शादी कर ले ।" संकेत ने रेनू की बर्थ डे वाले दिन सबसे बड़ा गिफ्ट दिया था उसे ।

रेनू भी बहुत खुश थी । शाम होते ही साड़ी में सजी रेनू संकेत के साथ घर के दरवाजे पर थी । घबराती हुई रेनू संकेत के ठीक पीछे खड़ी थी । संकेत ने डोर बेल बजाई । दरवाज़ा माँ ने खोला । कुछ पल के लिए तो संकेत की जुबान सील हो गई ।

रेनू को तो बचपन से जानते ही थे संकेत के माँ पापा और साड़ी में देखते ही सारा माजरा समझ गए । शक तो दोनों को बहुत साल से था और उनको रेनू पसंद भी थी पर थोड़ी धौंस तो बनती थी ।

पापा ज़ोर से बिगड़े पर थोड़ी देर में मुस्कुरा भी दिए । माँ भी धीरे धीरे मुस्का रहीं थीं । सब मान गए थे, परिवारों की मुलाक़ात, देख दिखाई, रोका रस्म, सगाई सब कुछ ही वक़्त मे हो गया और शादी की तारीख भी तय हो गई ।

सब बहुत अच्छा चल रहा था । शादी को सिर्फ एक महीना बाकी था । पर वक़्त बदल गया । आज रेनू के नंबर से कॉल तो आया पर फ़ोन पर उसकी मम्मी थीं । खबर अच्छी नहीं थी । रेनू ने खुद्कुशी कर ली थी । संकेत उसी नेकर और बनियान में कार की चाभी लिए रेनू के घर की तरफ भागा ।

गहरा सन्नाटा छाया हुआ था उस शादी वाले घर में और रेनू सजी तो दुल्हन के लिबास में थी पर उसकी डोली नहीं अर्थी उठने वाली थी । रस्मों रिवाज़ निबट जाने के बाद रेनू की माँ ने एक बंद लिफाफा संकेत के सुपुर्द कर दिया । ऊँची साख होने के कारण केस को वहीँ रफा दफा कर दिया गया ।

घर आकर संकेत ने जेब से लिफाफा निकाला, ऊपर बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था,"ओनली फॉर संकेत, नो अदर शुड ओपन"
संकेत ने आंसुओं से भीगी आँखों से लिफाफा खोला तो एक गमगीन चिट्ठी को सामने पाया ।

लिखा था ,"प्यारे तो नहीं कहूंगी क्योंकि मेरे मन में तो अब प्यार बचा नहीं है और शायद तुम्हारे भी । बस तुम रिवायत ही निभाते आ रहे हो ऐसा मुझे लगता है । ऊपर वाले से सिर्फ एक चीज़ मांगी थी और वो तुम्हारा प्यार पर शायद वो भी उसे मंज़ूर था नहीं ।

माना कि मैं उतनी खूबसूरत नहीं पर धोखा देने के लिए शायद कारणों की ज़रूरत नहीं पड़ती । सच जानते हुए मैं तुम्हारी हो नहीं सकती और किसी और का होना कभी सोचा ही नहीं ।

अच्छा यही होगा कि मैं सबकी ज़िन्दगी से दूर चली जाऊं क्योंकि परेशानी का सबब मैं ही हूँ ।

-रेनू"

चिट्ठी खामोश थी और संकेत सदमे में कि किस बेवफाई की वजह से रेनू ने मौत को गले लगा लिया । रेनू के जाने के बाद संकेत ने भी चाहा कि अपनी ज़िन्दगी ख़त्म कर ले पर माँ और पापा की ज़िम्मेदारी के आगे हर वक़्त बेबस रहा । सदमा ऐसा लगा कि हर शख्स, हर दोस्त से दूरी बना ली संकेत ने पर एक इंसान ऐसा भी था जो हर कंडीशन में उसके साथ रहा, वो था सुशान्त ।

वक़्त बीत कर आज यहाँ खड़ा था । "कहीं इन घटनाओं के पीछे रेनू की आत्मा तो नहीं ।" संकेत ने एक पल के लिए सोचा । घड़ी पर नज़र गई तो रात का 3 बजा था तभी लिविंग हॉल से किसी के रोने की धीमी सी आवाज़ आई, संकेत भागा पर वहां कोई नहीं था सिवाय एक सन्नाटे के ।

PTO