मौलिक 'शेर' पार्ट -2
41. इस चेहरे की नज़ाकत को यूं ना रखो हिज़ाब में.. !
ये बिजली हैं जो रुक ना सकेगी नकाब में... !!
42. हमें वेबफ़ाई की बाजीगरी नहीं आती... !
और तुम्हें बफाई की तरकीब नहीं आती.. !!
43. कसक, टीस, गम, नज़र, जान और दिल से !
तन्हाई ही बेहतर हैं इन झूठे लोगों से... !!
44. थक गये वो मेरी परवाह करते करते
जब से वो लापरवाह हुए जिंदगी में
उनके कुछ आराम सा हैं.... !
45. उनकी तो फितरत थी सब से दोस्तियाने की
हम तो वे बजह खुद को खुश नसीब समझते रहें... !
46. यकीन हैं मुझें मेरी तन्हाई पर
एक दिन वो मिरि खुशियाँ ज़रूर लाएगी.. !
47. कितना दर्द होता है
जब अपना ही कोई
पास हो कर भी
नज़र अंदाज़ कर देता है... !
48. ना जानें किस बात के शिकार हो गये... !
जितना दिल साफ रखा गुनह गार हो गये.. !!
49. इक रात ही सुकून की थी
वो भी छीन ली... !
50. तुम पढ़ते हो इसलिए लिख देता हूं.. !
वार्ना मै तो महसूस कर के जी लेता हूं.. !!
51. दोस्ती नादान से करिये सहाब
समझदार वक़्त पर साथ नहीं देते... !
52. मै उदास नहीं ख़ामोशी के साथ रहता हूं.. !
53. सुनो..... !
तुम ज़िद्दी बहुत हो
हमें भी अपनी ज़िद्द बना लो.... !
54. जिनसे कोई रिस्ता नहीं होता वो दूर रह कर भी
अपनी मौजूदगी का एहसास दिला देते है... !
55. हौसला हो मैंने मिरि खामोशियो का बना रखा है !
उनके अल्फाज़ो का क्या, वो तो हालत देख बदल लेते
है.... !!
56. सब्र की आंच पर पकने दो इसे
इश्क़ है या वहम सब नज़र आ जाएगा... !
57. तिरा वज़ूद क्यों अजनवियो सा है.. !
जिसे जान कर भी लोग अनजान कर देते है... !!
58. मुझें भूलना भूल है तेरी... !
तू याद है मुझें, ये तक़दीर है तेरी !!
59. मिरि चाहत का नज़रिया तुम पहचान लेते
हर भीड़ में तुम्हें हम पहचान लेते है... !
60. मुझें तेरी तुझे मेरी, मौजूदगी का एहसास है.. !
इतने पास रह कर भी हम क्यों उदास है.. !!
61. इन रिश्तों की बेरुखियों ने कितना मुकम्मल कर दिया
उन रिश्तों की परवाह तो पर अब चाहत नहीं... !
62. हमने तो कसम हसने की खायी थी
पर ये बेदर्द ज़माना रुलाता जो हैं... !
63. आरजू गर तेरी ना करें तो क्या करें...
तिरे सिबा इस दुनियां में कोई और भी तो नहीं.. !
64. पानी का ना रंग हैं ना जात हैं, ना कोई हद हैं.. !
ये तो हम इंसानी दिमाग का वहम हैं... !!
65. गर दिल के दर्द की दवा हाँथ होता.. !
तो ये दर्द ए दिल का ज़माना ना होता.. !!
66. मुझें गुरेज़ हैं ऐसे दोस्तों से जो दोस्ती जताने के लिए
एक और मन बहलाने के लिए चार दोस्त रखते हैं.. !
67. अपने इस दिल का नाम मैंने क़ब्र रखा हैं.. !
हर अज़ीज़ के एहसासों को दवा रखा हैं.. !!
68. दर्द देकर भी नसीहते भी देते हैं लोग... !
69. कमाल करते हैं हम से जलने वाले भी
महफिले सजा कर चर्चे हमारे करते हैं.. !
70. वो इश्क़ का ज़हर भी क्या ज़हर हैं साहेब
ज़हर भी जहर पर बेअसर हैं... !
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कन्टीन्यू टू पार्ट -3