यह सुनते ही उसकी माँ वहीं रुक गई और उसने पीछे ना देखते हुए कार के रियर व्यू मिरर में देखा उसे वहां कोई भी औरत नजर नहीं आई। यह देखते ही वह समझ गई कि जयन्त बिल्कुल सच सच कह रहा है।
"तो तुमदोनो नहीं मानोगे? तुम्हारा हाल भी उसी कलश की तरह होगा। मैं करती हूँ गाड़ी रोको नहीं तो पीछे देखो।"
उस चुड़ैल की बात सुनते ही जयन्त ताव में आ जाता है क्योकिं आज वह अकेले नहीं था, उसके साथ उसकी माँ भी थी। जयन्त गुस्से में बोलता है-
"तुझे जो करना है कर ले। मैं आज भी तेरी बात नहीं मानने वाला।"
"भुगतोगे सब के सब भुगतोगे इसका परिणाम।"यह कहते वो ऊनी कर्कश हंसी के साथ हंसती है कि ठीक अगले ही पल....
'धाड़sss.... फटाकsss...'
इस आवाज के साथ अचानक जयन्त ने तेज ब्रेक मार के कार रोक देता है। जयन्त के कार के विंड ग्लास पर खून की छीटों से लाल हो चुका था।
उस चुड़ैल अपनी दुष्ट शक्तियों के दम से रास्ते में एक जानवर को मारकर कार की बोनट पर फेंक दिया था। अचानक से गिरे उस मृत जानवर को देखकर जयन्त कार को रोककर जैसे ही बाहर निकलने को होता है उसकी माँ उसका हाथ पकड़ कर रोकते हुए कहती है-
"नहीं...बिल्कुल नहीं। खबरदार जो इस कार से बाहर निकले तो। यह इस चुड़ैल की चाल है कि हम तय वक़्त पर लल्लन ओझा से न मिल पाए। तुम्हे यह रक्षा कवच होने की वजह से प्रत्यक्ष रूप से हानि तो पहुंचा नहीं सकती लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से हानि पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। इसलिए पुत्र तुम अब सावधान हो जाओ और आगे बढ़ो।"
जयन्त साइड विंडो से बाहर झांकते हुए देखता है और अपनी माँ से कहता है-"लेकिन माँ कार के अगले पहिए के नीचे कोई काले रंग का कुत्ता दबा पड़ा है। उसके धड़ के ऊपर मेरी कार का अगला टायर चढ़ा हुआ है और उसका सिर कट कर कार के बोनट पर है।"
"मत भूलो की यह उस चुड़ैल का छलावा भी हो सकता है। यदि उसका सिर कार के बोनट पर है तो इसका मतलब वह मर चुका है और मेरे हुए पशु पर अभी दया करोगे तो हम दया के पात्र बन जाएंगे। तुम बस किसी तरह यहां से निकलने की कोशिश करो।"
यह सुनते ही जयन्त ने कार को थोड़ा पीछे किया और स्पीड के साथ आगे बढ़ता हुआ उस जानवर के जिस्म पर फच्चाकsss... की आवाज करता हुआ कार को भगा लेता है।
इस घटना के बाद वैसा कुछ नहीं होता जिस से सोनो विचलित जो जाए। थोड़ी ही देर में जयन्त की मां जयन्त को साथ लेकर बाबा के घर पहुंच जाती है।
जैसे ही अंदर पहुंचते हैं सामने लल्लन ओझा सारी तैयारी के साथ वहां इंतजार कर रहा होता है। जैसे ही लल्लन ओझा की नजर उन दोनों पर पड़ती हैं। वो सामने बने सेफद गोल घेरे में जयन्त को कलश ले कर बैठा देता है और हिदायत देते हुए कहता है-
"देखो जब तक मैं आदेश न दूँ इस घेरे से बाहर नहीं आना। मैं जैसे यही अपने मंत्र खत्म करूँगा तुम तुरंत इस कलश के ढक्कन को खोल देना और उस चुड़ैल के इसके अंदर समाते ही ढक्कन बन्द कर देना।"
इतना सुनते ही उसने हामी में अपनी खोपड़ी हिला दिया और उस सफ़ेद घेरे में उस कलश को लेकर बैठ गया। उसके बैठते ही जो मंजर उनकी आंखों के सामने था वह देखकर वे दोनों बहुत घबरा जाते हैं। उतने में ही बीच में वह चुड़ैल न जाने कहां से वहाँ आ जाती है।
उसको आया देखकर जयन्त की माँ घबरा जाती हैं और डर के मारे जमीन पर गिर पड़ती हैं। उनके इस तरह गिरते ही वह चुड़ैल भी आस पास कहीं नजर नहीं आती।
"मरोगे सब के सब। सब के सब मरोगे आज।"अचानक जयन्त की माँ अजीब सी आवाज निकालती हुई दोनों की तरफ घूरने लग जाती हैं। दोनों के कुछ समझ नहीं आता कि यह क्या हुआ?
लल्लन ओझा ने जब जयन्त की माँ की तरफ देखा तो उसकी मां की आंखे चढ़ी हुई हैं, जीभ ठुड्ढी तक लटकी हुई थी औऱ वह बहुत तेज तेज सांसे ले रहीं थी।
लल्लन ओझा ने यह हुलिया देखा तो उन्हें यह समझते देर न लगी कि अब उसके अंदर वह भयानक चुडैल समा चुकी है।
वह चुड़ैल अट्ठाहस करती हुई जयन्त की ओर बढ़ रही थी। यह सब देखकर लल्लन ओझा उसे पकड़ लेते हैं और आगे जाने से रोकते हैं। अचानक उस चुड़ैल के हाथ बढ़ने लगते हैं और वह उस घेरे के अंदर बिना गए ही जयन्त के हाथ मे रखे हुए कलश को पकड़ लेती है और दूसरे हाथ से लल्लन ओझा को पकड़ते हुए हवा में 4 फुट ऊपर धकेल देती है। लल्लन ओझा उस कमरे में पड़ी कोने में लकड़ी के टेबल पर गिर पड़ते हैं।
वह दुबारा हिम्मत जुटाकर अपने शरीर को घसीटते हुए बोलता है-"जयन्त बेटे! वह चुड़ैल इस घेरे के अंदर नहीं जा सकती थी, उसे इस बात का की जानकारी थी इसलिए उसने अब तुम्हारे माँ के शरीर मे पनाह ली है और वह कलश को तुमसे हथिया कर फिर से नष्ट करना चाहती है। यह कलश जिसके हाथ मे होता है उसे ही वह मन्त्र बोलना पड़ता है। इसलिए जल्दी से उस मंत्र का उच्चारण करो ताकि वह इस कलश में कैद हो सके।"
यह सुनते ही जयन्त लगभग रुआंसी आवाज में बोला-"लेकिन ओझा जी वह मंत्र बहुत लंबा है और मैं बिना पढ़े नहीं बोल सकता। वह पर्ची मेरे शर्ट के जेब मे पड़ी है। मुझे इस से मुक्त करवाओ तभी मैं पढ़ पाऊंगा।"
लल्लन ओझा खुद को बहुत ही बेबस समझ रहे थे। उन्हें उस कलश के अंत के साथ सभी का अंतिम समय नजर आ रहा था।उन्होंने इस अनहोनी के बारे में सोचा ही नहीं था कि वह चालक चुड़ैल कुछ ऐसा कर बैठेगी।
अचानक उस चुड़ैल ने जयन्त के हाथों से वह कलश ले लिया और और बोली-"हा हा हा बड़े आये थे मुझे मुक्ति दिलाने वाले। आओ अब तुम सबको इस मिट्टी के कलश की तरह मुक्त करूंगी।"
यह कहते ही उस चुड़ैल ने उस कलश को हवा में फिर से उछाल दिया। यह दृश्य देखते ही दोनों के आंखों में अनायास ही आंसू छलक उठे। तभी लल्लन ओझा ने अपनी जिस्म की सारी ऊर्जा एकत्रित की और उछलते हुए कलश को ज़मीन पर गिरने से पहले ही लपक लिया।
उस कलश को जयन्त की तरफ उछालते हुए बोले-"बस! दुष्ट अब बहुत हुआ तेरा छलावा। अब तुझे कोई नहीं बचा सकता।"
यह कहते के साथ वहीं पास में पड़ी झाड़ू पर कुछ अक्षत और काले तिल को फेंकते हुए यह मंत्र बुदबुदाते हैं-
“ह्वैं हूं प्रेत प्रेतेश्वर आगच्छ आगच्छ प्रत्यक्ष दर्शय दर्शय फट |ओम् हां हीं हूं हौं ह: सकल भूत-प्रेत, चुड़ैल-डायन दमनाय स्वाहा |”
यह मंत्र उच्चरण करने के बाद लल्लन ओझा उसे झाड़ू से मरते हैं। उस झाड़ू के पड़ते ही वह दर्द से कराह उठती है मानो जैसे उसे कोई चाबुक से मार रहा हो। जयन्त के यह समझ मे तो नहीं आ रहा था कि यह झाड़ू का कमाल है या चाबुक का लेकिन जिसका भी असर था अब वह लगभग खुश से दिख रहा था।
"बोल तू कौन हैं? कहाँ से आई है क्यों तंग कर रही है इस मासूम को? बता इसने क्या बिगाड़ा है तेरा?"यह कहते ही लल्लन ओझा उस पर झाड़ू से टूट पड़ते हैं। लेकिन वह चुड़ैल सिवाय चीखने के कुछ भी नहीं कह रही थी। अचानक उसने मुंह खोला और बोली-
"नहीं...छोडूंगी किसी को नहीं छोडूंगी। सबको मार डालूंगी।"यह कहकर वो जोर जोर से हंसने लगी। अब बड़ी विचित्र स्थिति बन चुकी थी। कभी वह झाड़ू के प्रहार से होने वाले दर्द से बिलखती तो कभी वह अट्टहास कर के यूँ हंसती जैसे उस पर इन सबका कुछ असर नहीं होने वाला।
बात न बनता देख अगले ही पल लल्लन ओझा खड़े होते हैं और कोने में पड़ी एक कांच की शीशी ले कर आते हैं। जस कांच में लहसुन का पानी था जिसे गंगालजल के साथ मिश्रण कर के बनाया गया था।
उन्होंने उस बोतल का ढक्कन खोला और बूँद बूँद उसकी खोपड़ी पर टपकाने लगे। जैसे ही पहला बूँद उज़के जिस्म पर पड़ा वह आजसे तड़पने लगी मानो जैसे 440 वोल्ट की बिजली प्रवाहित कर दी गई हो। वह तड़पते तपडते बोली-
"ठहरो... ठहरो मैं सब बताती हूँ। लेकिन....!"
"लेकिन क्या बोल....जल्दी बोल वरना कर दूं तुझे भस्म?"
"लेकिन मवई एक इच्छा पूरी करो।"
"कैसी इच्छा? बोल जल्दी बोल। अब तू क्या चाहती है?"
"मुझे एक कटोरा खून चाहिए। लाल और गाढ़ा खून...! फिर मैं सब बता दूंगी जो भी तुम चाहते हो।"
किस्मत से लल्लन ओझा के घर के बाजू में ही दुकान थी जहां से लोग मुर्गे और बकरे का मांस ले कर जाते थे। आसानी से वहां से एक कटोरे खून का इंतज़ाम हो गया।
अगले ही पल लल्लन ओझा ने वह कहीं से भरी लबालब कटोरे को उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा-
"ले जल्दी अपनी प्यास बुझा और बता तू कौन है?"
खून से भरे क्योर को देखकर उनकी आंखें चौंधिया गईं और उसने झट से उसके हाथों से छीनते हुए चप...चप...चप...की अजीब सी आवाज करते हुए गट...गट... कर के पी जाती है। पीने के बाद वह कटोरे को घुमा कर लल्लन ओझा की तरफ फेंक देती है।
लल्लन ओझा अगर समय रहते नहीं झुकता तो उसकी खोपड़ी पर ज़रूर टकरा जाती। वह वहीं से झुके झुके उस चुड़ैल को देखने लगा जाता है।
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क्रमश..........
इस कहानी का अगला भाग बहुत ही जल्द।
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