luck - 2 in Hindi Philosophy by Akshay jain books and stories PDF | किस्मत - 2

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किस्मत - 2

किस्मत भी बड़ी अजीब चीज होती है। जिसकी चमक जाए उसे खजूर के पेड़ पर चढ़ा देती है। और जिसकी ना चमके उस कीचड़ में ला देती है। उसमें फंसा देती है। अर्थात् जिसकी किस्मत अच्छी होती है वह सफलता रूपी खजूर पर ही होता है। उसे कभी नाखुश नहीं होना पड़ता। लेकिन जिसकी किस्मत खराब होती है उसका जीवन बर्बाद सा हो जाता है। वह अपने जीवन में उलझ सा जाता है। फंस जाता है, वह ये विचार नहीं कर पाता कि वह की करे , क्या ना करे।
ऐसी ही कुछ हालत अब पिंटू की होने वाली थी। जब उसे कॉल आया तो उसने जैसे ही कॉल पर बात की वैसे ही उसकी हालत ऐसे हो गई जैसे किसी ने उसके शरीर से आत्मा को ही निकाल दिया हो। वह महीनों से पानी ना मिले वृक्ष के समान हो गया था। क्योंकि उस कॉल पर उसके किसी पड़ोसी व्यक्ति ने बताया कि उसके पिता उससे मिलने शहर आ रहे थे। उन्हें तुमसे मिलने की बहुत इच्छा हो रही थी। वे बहुत उदास उदास भी रहते थे तुम्हारे बिना। इसलिए को तुमसे मिलने आ रहे थे। लेकिन बीच में ही उनका एक्सीडेंट हो गया और उनकी स्पॉट डेथ हो गई है। यही थी पिंटू की हालत खराब होने की वजह। अब उसे ऐसा लग रहा था जैसे अब पूरे संसार में वह एक तरफ और पूरा संसार एक तरफ हो। क्योंकि उसके पिता ही तो थे जो उसके साथ थे। उसके अपने थे उन्हीं के लिए तो वह हॉस्टल गया था। उन्हीं के लिए तो वह पढ़ाई में इतनी मेहनत कर रहा था। अब वह किसके लिए पढ़ेगा, किसके लिए जीयेगा।
कम शब्दों में कहें तो अब उसे सिर्फ "जग सूना सूना" लग रहा था। फिर कुछ समय बाद उसके दो दोस्त आए और उसे सम्हाला। और उस घर जाने को कहा।
हालांकि वह दोस्त सिर्फ दिखावे के थे। लेकिन पिंटू उन्हें भी नहीं पहचान पाया और वह उन पर आंख बंद करके भरोसा करता था। वो कहते है ना कि जब किस्मत साथ ना दे तब इंसान कहीं भी फंस जाता है।
अब पिंटू अपने घर जाकर वहां पर अपने पिता का दाह संस्कार करता है। परंतु इसके बाद कई दिनों तक अपने पिता को नहीं भूल पाता। वह उनकी याद में रोता रहता। तथा अब वह हॉस्टल भी वापिस नहीं गया। अब वह अपने ही घर पर रहता था। और पिता की जो थोड़ी बहुत जमीन थी उसी पर खेती करके अपना गुजारा करता था। वह उस जमीन को अपने पिता कि आखिरी निशानी मानता था। अब उसका जीवन उस फटे नोट की तरह हो गया था जो ना तो चलता है और न ही फेंकने का मन होता है।
अब जैसे तैसे वह थोड़ा जीवन में दखल हुआ कि तभी अचानक कुछ वर्षों पश्चात उसके वो दो दोस्त इससे मिलने आए। अब ये तो निश्चित है की वह किसी न किसी स्वार्थ से आए थे क्योंकि वह सच्चे दोस्त तो थे नहीं। वे दोनों अपना पूरा पैसा सट्टेबाजी में हारकर आए थे। अत: उन्हें अपना तो इंतजाम करना ही था। तब उन्होंने पिंटू के पास जाने का उपाय सोचा। यहां आकर उन्होंने पिंटू को सांत्वना दी। जिससे पिंटू और भी उन पर भरोसा करने लगा। फिर उन्होंने पिंटू से कहा कि तुम क्या ऐसी जिंदगी जी रहे हो। कोई बिजनेस क्यों नहीं करते? तब पिंटू ने कहा कि मेरे पास बिजनेस के लिए पैसा कहां है। न ही कोई डिग्री है कि में कोई नौकरी करलूं। तब उसके दोस्तों ने कहा कि जमीन तो है तुम्हारे पास। तुम इसे बेचकर बिजनेस क्यों नहीं चलाते। हम तुम्हारी मदद करेगें। आखिर हम तुम्हारे दोस्त हैं। तभी पिंटू कहता है कि ये मेरे पिता की आखिरी निशानी है मैं इसे नहीं बेच सकता। तो उसके दोस्त कहते हैं कि तुम्हे इसे पूरे से थोड़े ही बेचना है इसे तो बस गिरवी रखना है जब पैसे हो जायेगे तो इसे वापिस ले लेंगे। इस तरह उन्होंने पिंटू को बड़े बड़े सपने दिखाकर राजी कर ही लिया। और उसकी जमीन को बेच दिया।और पिंटू ने वो पैसे अपने दोस्तों को से दिए ताकि वो उसका बिजनेस चालू करा सकें। लेकिन फिर क्या? वो तो आए ही थे पैसे के उद्देश्य से। उन्हें वो मिल गए और चले गए वो देश छोड़कर। अब पिंटू को ख्याल आया की इतने दिन हो गए अभी तक उन्होंने कोई खबर नहीं दी। तब उसने उनके पास जाने की सोची लेकिन फिर उसे पता चला कि वो तो कबके देश छोड़कर भाग गए।
लेकिन इस बार वह इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर पाया। वह पूरी तरह से बर्बाद ही चुका था। या कहें की किस्मत ने उसे पूरी तरह से बर्बाद कर दिया था। अब ना तो उसके पास जिंदगी चलाने के लिए पैसे थे। और ना ही भरोसा। अब उसका इस संसार से भरोसा उठ गया था। और उसने भी वही किया जो इस दुनिया से परेशान व्यक्ति करता है। अर्थात् उसने भी आत्महत्या कर ली। क्योंकि वह इस किस्मत के खेल को नहीं समझ सका और इसमें फंस गया।
अत: मै यही कहना चाहता हूं कि हमें किस्मत के साथ साथ कुछ करने पर भी भरोसा होना चाहिए। क्योंकि मात्र किस्मत के भरोसे जिंदगी निकालने वालों की हालत पिंटू की तरह होती है। जोकि किस्मत के खेल को नहीं झेल पाते। और आत्महत्या जैसे कदम उठाते हैं। अत: हमें किस्मत के साथ साथ अपने पुरुषार्थ पर भी भरोसा होना चाहिए।