गुमशुदा की तलाश
(17)
जब उमाकांत फ्लैट में पहुँचा तो उस लड़की ने उसे बैठाते हुए कहा।
"तुम कल सिम दिलाने की बात कर रहे थे।"
"जी मैडम....दिला सकता हूँ। पर पैसे ज़्यादा लगेंगे।"
"पैसों की फिक्र मत करो। बस बताओ दिलाओगे कैसे और कहाँ से ?"
उमाकांत कुछ ठहर कर बोला।
"मैडम मेरे पास जो सिम है वह मैंने जुगाड़ से मंहगे दाम पर लिया था। अब मैं गांव वापस जा रहा हूँ। इसलिए सोंच रहा था कि इसे बेच कर पैसे कमा लूँ।"
"ये सिम तुम्हारे नाम पर नहीं है।"
"हाँ....मेरा एक दोस्त बिना कागज के सिम दिलाता है। उससे लिया था। पता नहीं यह सिम किसके नाम है।"
वह लड़की कुछ देर सोंचती रही। फिर उसे बैठने को कह कर दूसरे कमरे में चली गई। शायद किसी से फोन पर सलाह ले रही थी। करीब पाँच मिनट के बाद आकर बोली।
"कितने में दोगे ?"
उमाकांत भी अब तक दाम तय कर चुका था। उसने जो कीमत चुकाई थी उसमें ऊपर से पाँच सौ रुपए जोड़ कर बता दिए। उसे लगा था कि अगर कम करने को कहेगी तो सौ रुपए कम कर देगा। पर लड़की उस कीमत के लिए तैयार हो गई।
सब इंस्पेक्टर नीता बड़े ध्यान से सारी कहानी सुन रही थी।
"एक तो तुमने गलत तरीके से सिम कार्ड खरीदा। फिर गलत तरीके से किसी और को बेच दिया। तुम्हें ये भी नहीं लगा कि इसका गलत प्रयोग हो सकता है।"
"माफ करिए मैडम....मैं लालच में आ गया। मुझे लगा कि सिम वैसे भी मेरे नाम पर नहीं है। अगर कुछ हुआ तो बात उस पर आएगी जिसके नाम पर सिम होगा।"
सब इंस्पेक्टर नीता ने गुस्से से उसे घूरा।
"तुम्हें लगा था कि तुम तक कौन पहुँच सकता है। पर पुलिस के काम का अपना तरीका है। आइंदा कुछ गलत करने से पहले सौ बार सोंचना।"
"मैडम मैं बुरा आदमी नहीं हूँ। पर क्या करता हालात ही ऐसे थे कि...."
सब इंस्पेक्टर नीता ने एक बार फिर उसकी बात काटते हुए कहा।
"बुरे हालात का मतलब गलत करने की आज़ादी नहीं है। तुमने रौशनी इलेक्ट्रिकल में भी चोरी की थी। वो तो उन्होंने रिपोर्ट नहीं की। वरना चोरी के लिए हवालात में होते।"
उमाकांत चुपचाप नज़रें झुकाए बैठा था। सब इंस्पेक्टर नीता की नज़र सहमी हुई बच्चियों पर पड़ी तो वह कुछ नर्म होकर बोली।
"अब जो हुआ सो हो गया। पर आगे से खयाल रखना।"
"जी मैडम मैं अपनी बच्चियों की कसम खाता हूँ कि कुछ गलत नहीं करूँगा।"
"अच्छा बताओ कि उस लड़की का नाम क्या था ? जो उससे मिलने आया था वह देखने में कैसा था ?"
"मैडम लड़की का नाम तो मुझे नहीं पता। रही बात उस आदमी की जो उससे मिलने आया था तो उसे मैंने ठीक से नहीं देखा था।"
"कुछ तो होगा जो तुम उस आदमी या लड़की के बारे में बता सकते हो।"
उमाकांत ने अपने दिमाग पर ज़ोर डालते हुए याद करने का प्रयास किया।
"मैं उस आदमी के बारे में कुछ नहीं बता सकता। क्योंकी वह कुछ ही समय के लिए आया था। वह दूसरे कमरे में लड़की के साथ बात कर रहा था। सिम कार्ड वाली बात उसने चलते समय की थी। पर मैं दूसरी तरफ मुंह करके काम कर रहा था।"
"उस लड़की के बारे में कुछ बताओ।"
"मैडम वह लंबे कद की थी। बाल कंधे से कुछ नीचे तक थे।"
सब इंस्पेक्टर नीता को याद आया कि इंस्पेक्टर सुखबीर ने सीसीटीवी फुटेज में देखी गई जिस लड़की का ज़िक्र किया था। उससे इस लड़की का हुलिया मेल खाता है।
"इसके अलावा कुछ और हो तो बताओ ?"
"हाँ एक चीज़ और थी। उसकी गर्दन पर बाईं तरफ कान के नीचे एक गोदना था।"
"मतलब टैटू...."
"हाँ वही...."
"क्या बना था ?"
"वो तो समझ नहीं आया था। पर काले रंग से कोई डिज़ाइन बनी थी।"
सब इंस्पेक्टर नीता अपने मन में उन सारी बातों का एक सिलसिले वार खाका बना रही थी।
"तुमने कहा था कि जिस लड़की ने तुम्हें फोन कर काम दिलाया था वह उसकी सहेली थी। उसी बिल्डिंग में रहती थी।"
"हाँ मैडम....दो मंजिल नीचे रहती थी।"
सब इंस्पेक्टर नीता अपनी कुर्सी से उठी।
"तो चलो अब पुलिस की मदद करो। हमें उस बिल्डिंग में ले चलो। हम उस लड़की से मिल कर सब पता कर लेंगे।"
साथ चलने की बात पर उमाकांत आनाकानी करने लगा। सब इंस्पेक्टर नीता ने धमकाते हुए कहा।
"देखो उमाकांत....तुमने जो हरकतें की हैं...मैं चाहूँ तो तुम्हें जबरन ले जा सकती हूँ। पर तुम्हारी बच्चियों के सामने करना नहीं चाहती हूँ। इसलिए शराफत से चलो। हमारा काम हो जाने पर तुम्हें वापस भेज देंगे।"
उमाकांत चलने को तैयार हो गया। सुशीला ने डरते हुए कहा।
"मैडम जी इन्हें कुछ खा लेने देतीं।"
"हम इन्हें भूखा नहीं रखेंगे। काम होते ही वापस आ जाएंगे।"
सब इंस्पेक्टर नीता उमाकांत को लेकर वापस लौट गई।
जिस टैटू वाली लड़की को उमाकांत ने सिम कार्ड बेचा था वह फ्लैट छोड़ कर जा चुकी थी। दो फ्लोर नीचे रहने वाली उसकी सहेली भी अब वहाँ नहीं रहती थी। किसी को भी उन दोनों के बारे में कुछ पता नहीं था। सिर्फ दोनों फ्लैट्स के मालिकों का पता चल पाया था। सब इंस्पेक्टर नीता ने सारे डीटेल लिख लिए।
पुलिस स्टेशन लौट कर सब इंस्पेक्टर नीता ने एक स्कैच आर्टिस्ट को बुलवाया। उमाकांत की मदद से उस टैटू वाली लड़की का स्कैच बनवाया।
अब उस अंजानी लड़की की शक्ल का अंदाज़ा लगाया जा सकता था।
सब इंस्पेक्टर नीता ने अब तक जो भी घटा था वह इंस्पेक्टर सुखबीर को बता दिया। उस लड़की के स्कैच को ध्यान से देखते हुए इंस्पेक्टर सुखबीर ने कहा।
"इस स्कैच की कापियां करवा कर अपने खबरियों में बांट दो। उनसे कहो कि जल्द से जल्द इसका पता करें।"
"यस सर...."
"उन फ्लैट्स के मालिकों का भी पता करो।"
"ओके...."
"हमें जल्दी इस लड़की को ढूंढ़ना होगा नीता। सरवर खान और सब इंस्पेक्टर राशिद ईगल क्लब से कहीं गायब हो गए हैं।"
यह खबर सुन कर सब इंस्पेक्टर नीता परेशान हो गई।
"सर ईगल क्लब का मालिक तो वो रॉकी है। हम उसे गिरफ्तार कर पूँछताछ क्यों नहीं करते हैं ?"
इंस्पेक्टर सुखबीर सब इंस्पेक्टर नीता के गुस्से और फिक्र को समझ रहे थे। समझाते हुए बोले।
"नीता तुम पुलिसवाली होकर ऐसी बात कर रही हो। रॉकी को गिरफ्तार करने के लिए हमारे पास कुछ तो होना चाहिए। सरवर खान एक प्राइवेट डिटेक्टिव हैं। सब इंस्पेक्टर राशिद ऑफीशियल ड्यूटी पर नहीं था। हमारे पास कोई सबूत नहीं है कि दोनों ईगल क्लब में गए थे।"
"पर सर क्लब में कुछ ना कुछ ऐसा ज़रूर मिलता जिसके आधार पर हम रॉकी को गिरफ्तार कर सकते थे।"
"तुम्हें क्या लगता है नीता कि मैंने कोई कोशिश नहीं की। मैं कल रात खुद ईगल क्लब में गया था। मैंने पूरा क्लब बड़ी बारीकी से देखा। वहाँ मुझे ऐसा कुछ नहीं मिला जिसकी बिना पर मैं राकी को हिरासत में ले सकता।"
"सॉरी सर...वो मैं..."
"इट्स ओके....मैं तुम्हारे जज़्बे को समझता हूँ। वैसे मैंने रॉकी पर निगरानी रखना शुरू कर दिया है। पर वो बहुत शातिर है। आसानी से हाथ नहीं आएगा। इसलिए इस स्कैच वाली लड़की का मिलना बेहद ज़रूरी है।"
सब इंस्पेक्टर नीता को सरवर खान और अपने साथी पुलिसवाले के गायब हो जाने का बहुत बुरा लग रहा था। वह भी जल्दी ही उन दोनों को वापस देखना चाहती थी।
"सर मैं अपनी पूरी कोशिश करूँगी कि इस लड़की का पता चल सके।"
सब इंस्पेक्टर नीता अपने काम पर लग गई।