BIBI PCHASA in Hindi Women Focused by Ajay Amitabh Suman books and stories PDF | बीबी पचासा

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बीबी पचासा

इस किताब में मैं पत्नी पे इस हास्य कविता को प्रस्तुत कर रहा हूँ

गृहस्वामिनी के चरण पकड़ ,
कवि मनु डरहूँ पुकारी ,


धड़क ह्रदय प्रणाम करहूँ ,
स्वीकारो ये हमारी ।


बुद्धिहीन मनु कर डाली ,
भरहूँ कलेश विकार ,


भाई बंधू को दूर करत ,
ऐसों तेरों आचार ।

बीबी को सलाम बंधू ,
बीबी है महान।


जय कटाक्ष मोह द्वेष गागर ,
क्लेश कलह के भीषण सागर।


क्रोध रूप कि अग्नि नामा ,
सास ससुर का हौं कारनामा।


महाबीर विक्रम के संगी ,
पैसा लूटत धनत के तंगी।


लाख टके की बात है भाई,
सुन ले काका,सुन ले ताई।


बाप बड़ा ना बड़ी है माई,
सबसे होती बड़ी लुगाई।


बीबी को सलाम बंधू ,
बीबी है महान।


लम्बे बाल घनेरों केशा ,
उड़त धन बचहूँ अवशेषा।

हाथ बेलन कंगन अति सोहे ,
कानो के कुंडल धन दोहे ।

जो बीबी के चरण दबाए ,
भुत पिशाच निकट ना आवे।


रहत निरंतर पत्नी तीरे,
घटत पीड़ हरहिं सब धीरे।


जो नित उठकर शीश झुकावै,
तब जाकर घर में सुख पावै।


रंक,राजा हो धनी या भिखारी,
महिला हीं नर पर है भारी,


जेवर के जो ये हैं दुकान ,
गृहलक्ष्मी के बसते प्राण।


ज्यों धनलक्ष्मी धन बिलवावे,
ह्रदय शुष्क को ठंडक आवे।


तेज चूड़ी औ तेज जो कंगन ,
खरीदत कवि मन करहूँ क्रंदन।


जो तुम अपनी गदा चलावै ,
आस पडोसी के मन भावे।


बीबी को सलाम बंधू ,
बीबी है महान।

भाई बहिन लड़ने को आतुर ,
सासु से सीख सिख हो चातुर।

लड़ने की तू बात ना कीन्हों ,
साला आवै शरण तू दीन्हों।

कोप बचत रहे मुख हर्षाई ,
बीबी कुल करहूँ डरत बड़ाई ,

सुन नर बात गाँठ तू धरहूँ ,
सास ससुर की सेवा करहूँ।


निज आवे घर साला साली ,
तब बीबी के मुख हो लाली।


साले साली की महिमा ऐसी,
मरू में हरे सरोवर जैसी ।


घर पे होते जो मेहमान ,
नित मिलते मेवा पकवान ।


मुख से जब वो वाण चलाये,
और कोई न सूझे उपाय ।


दे दो सूट और दो साड़ी ,
तब टलती वो आफत भारी।


बीबी चरित्र गुणन को रसिया ,
धोवत सदी पड़हूँ अब खटिया।


बीबी को सलाम बंधू ,
बीबी है महान।


हसंत खेलत घर में वो आये ,
अल्लाह उदल पाठ पढ़ावे।


चूल्हा बर्तन जोर बजावै ,
ठोक ठोक खटराग सुनावै ।


जबहीं बीबी मुंह फुलावत ,
तबहीं घर में विपदा आवत।


जाके चूड़ी कँगन लावों ,
राहू केतु को दूर भगावो।


नहीं भूल से अबला कहना,
सबला की विपदा से डरना।

कहत कवि बात ये सुन लो ,
बीबी की सेवा मन गुन लो।


भौजाई से बात ना कीन्हों ,
परनारी पर नजर ना दीन्हों।

जो तारण चाहो जग सिंधु ,
जय बोलो बीबी की बंधु ।

मंद रूप से हाथ जब धरहूँ ,
समझो धन पे आफत पड़हूँ ।

इधर कांट जब उधर हो खाई ,
बीबी संग रहो शीश नवाई ।

बीबी को सलाम बंधू ,
बीबी है महान।

पुआ मेवा वो रोज बनवावै ,
भीम रूप धरी बिल बढ़वावै।

कपड़ा रोज खरिदहूँ अतिक्रेता ,
ह्रदय पुष्प हर्षाहूँ विक्रेता ,


सर पे भारी आफत आवै ,
जब वो बेलन हाथ चलावै ।


इसीलिए जब वो ना राजी ,
दे दो पुरे बैंक की चाबी ।


आस पड़ोसन आदि नित भावे ,
फेरी वालों से धन उड़ वावे।


तुम उपकार धोबी भी गावै ,
शैम्पू वैम्पू नित दिन घर आवै ।


समझो बात गाँठ तू यारों ,
बीबी ना हो मर जावै सारों।


इस कविता को जो नित गाए,
सकल मनोरथ सिद्ध हो जाए।


मृदु मुख कटु शासक का गुलाम ,
कवि जोरू का करता गुण गान।


सो इनकी जो नित जय करता ,
इस जीवन के सब दुःख हरता।


बीबी को सलाम बंधू ,
बीबी है महान।


धन कटय , संकट करण ,
मंगल पर अति रूप ,
धिरहूँ धिरहूँ पगार उठवहूँ ,
रंक बनहूँ अति भूप।


अजय अमिताभ सुमन:
सर्वाधिकार सुरक्षित