Sachi ka basta in Hindi Travel stories by Yayawargi (Divangi Joshi) books and stories PDF | सची का बस्ता

Featured Books
  • નંદિની...એક પ્રેમકથા - ભાગ 2

        બધી સહેલીઓ ગામની સફર કરે છે, બપોરનું ટાણું થતાં નંદિની ઘ...

  • શ્રાપિત પ્રેમ - 30

    રાધા તે લોકોથી સવાલ જવાબ કરવા લાગી હતી અને એ સમયે તેણે મદન મ...

  • Old School Girl - 14

    "કેમ ભાઈ? અમારી દોસ્તીમાં કોઈ ખામી દેખાઈ કે શું?"  સ્કુલે જવ...

  • જીવન પથ - ભાગ 17

    જીવન પથ-રાકેશ ઠક્કરભાગ-૧૭        એક પુરુષનો પ્રશ્ન છે કે લગ્...

  • અપહરણ - 12

    12. બદમાશોની પકડથી છૂટ્યા ગુફાના પ્રવેશદ્વાર પાસે થાંભલો બની...

Categories
Share

सची का बस्ता

सचि का बस्ता

मैं वेसे तो एक आम सा बस्ता हूँ पर खास तब बना जब मैं सचि का बस्ता बना…

हा मैं ही हूँ सचि का बस्ता मैं ही सबसे जादा जानता हूँ उसे, शायद पोपटलाल को इतना दुलारा न होगा उसका छाता जितना सचि को हूँ मैं!

ग्यारवी मे थी सचि जब सचि के पापा दुकानदार से मुझे खरीद के लाये! बाकी बस्तो जेसा ही था मे तीन ज़िप वाला गहरे कथ्थई रंग का स्कूल का बस्ता ! लेकिन सचि के लिए उसका हमसफर बन सा बन गया ॥

कितनी भोंदू सी थी तब मेरी सचि , तेल डालके छोटि सी दो चोटिया बना के चस्मे पहने के बहती नाक पोछ्ते-पोछते स्कूल जाया करती! हमेशा देरी करती मेरी सचि ओर मे सचि का बस्ता !

कोलेजियन बन गए अब हम दोनों ! जादुई बस्ता कहते थे उसके दोस्त मुझे कभी भी किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो मुझमे से सचि फटाक कर के निकाल देती चाहे वो काजल हो पेन हो या फिर मोज़े ! पता है मेरे लीये दिन का सुहाना लम्हा कोनसा होता जब सचि बस मे सफर करती
क्यूँ?

क्यूंकी तब वोह मुझे अपनी पीठ से उतार के अपनी गोद मे बैठा देती तब मे उसके सबसे करीब होता उसकी आगोश मे होता , उसके कंधो पे बेठके दुनिया देखि थी मैंने , घूमक्कड़ है मेरी सचि ओर मैं उसका बस्ता!

यह जवानी है दीवानी का इलाहि गाना ओर उसके यह अंतरा मानो हमारे लिए ही बने हो “मेरा फलसफा कंधे पे मेरा बस्ता, जाना था जहा ले चला मुझे रास्ता…”

वृन्दावन की गलिया, जयपुर के महल ,हरिद्वार का गंगाघाट तो मनाली की वादिया हा ओर इस साल केदारकंठा जानेवाले है हम !


नमो नमो जी शंकरा भोलेनाथ शंकरा... कितना अच्छा गाना है

चंचल सी सचि मे अब ठेहराव आ गया है अल्हड़ सचि जिम्मेदार हो गयी है

देहारादून से संकरी वहा से दिखते बर्फ मे सने हुए पहाड़ , जुड़ा का तालाब लंबी चढ़ाई ओर ठिठुरती मेरी सचि! तेरी नाक फिरसे बहने लगी देख आगे वाली ज़िप मे रुमाल है! यहा इन बरफ मे टेंट बांध के सोएँगे हम ? सुबह देख तो कितनी सुहानी है ?

कितना सुकून है यहा केदार कंठा बस यही रूक जाने का मन है शहर के प्रदूसन मे तारे दिखते ही नहीं ओर यहा एसा लग रहा जेसे किसी ने तारो की चादर बिछाई है अरे यही पे सोना है क्या ! हा चलो, बनालों मुजे तकिया!
गुड निनी

उड़ते उड़ते फिर एक लम्हा मेने पकड़ लीआ रे…
हमारी यारी को कितने साल हो गए नहीं जॉब करने लगी है सचि, अभी अब मुझमे किताबे नहीं टिफिन का डब्बा सफर करता है...

उसकी पीठ पे चलता मे अब उसके कदमो की बोली समजता था । देरी होने पे भागते , घर आने पे टहल ते कभी मायूस से तो कभी बेबाक – बेफिक्र बेजीजक से...
पर उस दिन उसके कदमो की बोली समज नहीं पाया था मे थोड़े सहेमेसे थोड़े गभराते रूक के चलते, चल चल के रूकते , कभी लगता मानो डॉड पड़ेंगे तो कभी लगता बर्फ की तरह जम ही जाएंगे !

ये कोनसी जगह है अछि-ख़ासी तो है उसमे इतना घबराने वाली क्या बात थी , वो लड़का, वो लड़का कोन है उसके आते ही सचि ने मुझे गोद से क्यू उतार दिया !? इतना चिल्ला के क्यू बात कर रहा है ! सचि कोन है यह आदमी मौजे बिलकुल पसंद नहीं आया ओर जिस तरह यह तुजसे बात कर रहा है मुझे गुस्सा आ रहा है सचि ! बोल इसे यहा से चला जाए हम दोनों ने मिल के उसस बस वाले घटिया आदमी को केसे सबक सिखाया था याद है चल इसे भी सीखा दे ! तुम चुप-चाप क्यू बेठी हो , उठ मेरी शेरनी दहाड़ इस्स भेड़िये के सामने !

चलो अच्छा हुआ चला ही गया वो , क्या हो गया सचि इतनी बदहवास सी क्यू हो ?कोन था वो ! बस अरे बस मैं साथ हूँ तेरे ! रो लो मुझे, मुझे टाकिया समज मुजपे हमना सर रख के अपना मूह छुपाके रो लो ! तुम्हारे नाम की तरह तुम सचि हो लेकिन सारे लोग सचे नहीं होते ! तुम्हारी मासूमियत को समज ना , तुम्हें प्यार करना तुम्हारा हो जाना , हर किसी के बस की बात नहीं चलो अब घर चलते है चलो उठो !

तुम्हारे साथ बारिश मे भीगना बेहद पसंद था मुझे लेकिन आज तुम्हारे आसू मे भीग के सुबुकने लगा हूँ मे
सचि...............................................

मे आधा फटा हूँआ किसी कोने मे फेका हुआ पड़ा हूँ, डोक्टेर्स बाते कर रहे है “ अच्छा हुआ सचि का बस्ता उसके सर के नीचे आ गया वरना सचि को बचा पाना मुशकिल होता “ सचि मेरे सामने अस्पताल के बिस्तर पर बेहोस पड़ी है एक कार ने टक्कर मार दी थी हमे ! सब आ रहे है एक ही कहानी बार – बार दोहरा रहे है, अच्छा हुआ सचि का बस्ता....

6 महीनो मे चलने लगी है सचि लेकिन मायूस , गुमसुन , बदहवास सी
मैं किसी बंध अलमारी पड़ा हूँ !

सचि कहा ले जा रही हो मुझे मे अब तुम्हारे किसी काम का नहीं मे नहीं , नहीं बन सकता मे तुम्हारा साथी , साथ छोड़ देनेवालों मे से नहीं हो तुम पर ! अरे यह तो वही चचा है न जिनके पास से तुम्हारे पापा ने मुझे खरीदा था !

सचि यह देखो 10 दिनो मे तो चचा ने मुजे रफ़फू करके बिलकुल नया बना दिये ये देखो नई ज़िप ओर ये देखो नया रेगजीन ओर कोई देखे तो पता भी ना चले मे यहा से फट गया था , अरे बस गुदगुदी हो रही है

मे सचि का बस्ता नया बन गया हूँ कोई आएगा सचि जो एसे ही तुम्हारा दिल रफू कर तुम्हें नया बना देगा!
तब तक तुम मेरी सचि ओर मैं
सचि का बस्ता!

यायावरगी (दिवांगी जोषी की बाते)