The Author Ritu Chauhan Follow Current Read एक एहम हस्ती, मैं By Ritu Chauhan Hindi Drama Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books Split Personality - 83 Split Personality A romantic, paranormal and psychological t... What Does Science Say About Whey Protein and Longevity? Discover the powerful link between whey protein and longevit... Positive and Negative Aspects of using Mobile phone's Using mobile phones can have both positive and negative effe... Disturbed - 26 Disturbed (An investigative, romantic and psychological thri... The Second Innings: Time Bowled Him, But He Hit It Back Arjun Shrivastava had it all. At 30, he was the golden boy o... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Share एक एहम हस्ती, मैं (1) 2.1k 9k बस शौक है लिखने का बचपन से ही, बहुत सरे पन्नो पे दिल की बातें लिखी हैं जिनमे से कई तो किसी को मालूम भी नहीं. हम सब ऐसा करते हैं. कुछ न कुछ तो ऐसा होता ही है जो किसी से नहीं कह पते. चाहे कैसे भी हों हम. कुछ न कुछ तो है जो खुद तक ही रह जाता है. हमारा दिमाग हमेश हमारे साथ एक लड़ाई लड़ता ही रहता है. इसको दोस्त बनाना बहुत मुश्किल है. इन सब चीज़ो में जो सबसे एहम शख्सियत है वो है “मैं ”. इसने हमेशा खुदको एहमियत दी . कभी कभी स्वार्थी सा है ये मैं तो कभी मजबूर सा. कभी शातिर सा है तो कभी मासूम सा.कभी दिल से सोचता है ये मैं तो कभी दिमाग से और कभी कभ तो सबसे परे है ये जो न दिल की सुने न मैं की माने. एक अलग ही वजूद है अंतरात्मा का जो ना दिल से सोचती है ना ही दिमाग से बस आ जाता है कही से जो सही सा लगता है और शायद वो चीज़ सही भी होती है. शायद इसी को मैं बोलते हैं.कई बार ऐसी परिस्तितिया आ जाती हे की ना चाहते हुए भी हमें वो करना पढ़ जाता है जो हम नहीं करना चाहते. दिल की सुन्ना चाहते हैं की साथ दे दें दुरसो का, कुछ मदद कर दें लेकिन ये मैं रोक देता हैं. ये एहसास दिला के की क्या मैं वाकई सक्षम हु इस परिस्थिति को सँभालने में. कई बार ये ज़रूरी नहीं की वो परिस्थिति को सँभालने में हम ही पहल करें. कई बार शांत रहना ही हल होता है. ये तो तय है की हम हर समय हर अनुभव से कुछ सिख ही रहे होते हैं .हम जानते हैं की ये मैं बहुत स्वार्थी शब्द है. लेकिन क्या ये ज़रूरी है की इस मैं को हम केवल स्वार्थ के लिए ही इस्तेमाल करें?क्यों नहीं हम इस मैं को हम का हिस्सा बनाने के लिए तैयार करें. ये मैं अगर एक अच्छा प्रभाव दे सकता है तो क्यों न इसे सुधारे?क्यों इसका स्वार्थी होना इतना गलत है? क्यों हम दुसरो की आढ़ में इसकी इच्छाएं मारते है फिर दुसरो को ही गलत ठहराते हैं ?मेरा कुछ इस तरह का सोचना है जिससे शायद कई लोग सहमत न भी हों. वो ये की इस दुनिया में मैं और मेरी आत्मा के सिवा शायद ही किसी दूसरी हस्ती को मैं किसी चीज़ के लिए ज़िम्मेदार ठहरा सकती हूँ. हमारे रिश्ते निभाना एक ज़रूरत तो होती है लेकिन इस मैं पे ध्यान देना क्या आपको नहीं लगता की ज़्यादा ज़रूरत है?ये तो आपको बखूबी मालूम होगा की दुसरो के विचार, उनकी करनी और कथनी को हम अपने हाथ में नहीं ले सकते क्यूंकि आखिर वो भी अपने ही स्थान पे मैं ही हैं उसका अपना वजूद है तो बेहतर है की हम अपनी कथनी करनी और विचार को काबू करने में विश्वास रखें.चीज़ो की गहराइयो में जाने से हल तो मिलते हैं साथ ही हम नयी चीज़ो की खोज कर पाते हैं. तो क्या गलत हैं अगर मैं खुद की गहरायी मापु तो ?यदि मैं अपने इस मैं पे काम करू और सब अपने ही मैं पर ध्यान दें तो क्या ये हम नहीं बन जाएगा?इस विषय मई सलाह लेना कोई गलत बात नई हैं क्यूंकि जितने दिमाग उतना ज्ञान. आखिर में हम पर निर्भर करता हे की हमारा मन किस ओर जाना चाहता हैं . Download Our App