फिर एक दिन अपने संकोच को त्याग कर हिकमिद ने दर्जी से उसकी इन दुर्लभ स्थिति में आने का कारण पूछा तो दर्जी बोला
मेरी इन। स्थितियोंं का कोई एक कारण नहीं है ब्लकि अनेकों है जिनके स्मरण भर से ही मेरी आत्मा तक देहल उठती है
मेरा आपसे आग्रह है इसे पुुुेछने का हठ ना करें।
दर्जी की इन बातों ने हिकमीद की जिज्ञासा को और अधिक कर दिया और वो बोला तुम्हारी बातों ने मेरे मन को और भी वयाकुल कर दिया हैं
अब तो तुम्हारी कथा सुने बिना मेरा मन शांत नहीं होगा
जब दर्जी को लगा उसका और टालना व्यर्थ है तो वो दुखी स्वर में बोलने
लगा
मेरा जीवन सदेव संकटों और निराशाओं से भरा रहा है पहले मैं इसी राज्य में रहता था
मै अभागा जन्म से ही दुर्भाग्य लेकर आया था
मुझे जन्म देते ही मेरी माँ परलोक सिधार गई और जब मै किशोर अवस्था में पहुँचा तो मेरे पिता जी का भी दिहान्त हो गया
मेरे पास गुजारा करने का कोई साधन नहीं था तो मै अपने चाचा के पास दर्जी का अभ्यास करने लगा बदले में वो मैरा पालन पोषण करता परन्तु मेरे कुशलता पूर्वक कार्ये सीखने के बाद भी वो मुझे भोजन के अतिरिक्त कुछ और ना देता इसका मुख्ये कारण ये भी था के वो काफी कंजूस था यहाँ तक की वो अपने सगे पुत्रो के साथ भी यही व्यवहार करता
जब भी मेरे चचेरे भाई अपने पिता से कोई इच्छा
व्यक्त करते तो उन्हें वो मेरा उदहारण दे कर मना कर देता जिसके कारण वो सब मुझसे बेर और द्वेवेश भाव रखते खेर यदि मेरे जीवन में कुछ सुखद था तो केवल मेरा घनिष्ट मित्र बिलाल और उसका मधुर संगीत
दर्जी के मुँह से बिलाल का नाम सुन कर वो भोचक्का सा रह गया जिसको भांप कर दर्जी ने हिक्मिद के कुछ पूछने से पहले ही बोल दिया
मै जानता हूँ इस समय तुम बिलाल के घर विराज मान हो और उसके पिता के साथ ही रेह रहे हो और ये भी निश्चित है के तुम मेरा नाम जानते होगे
इसके उत्तर में हिकमीद के मुंह से एक शब्द निकला अशोक जिस पर दर्जी बोला बिल्कुल सही कहा आपने बिलाल के साथ क्या क्या घटित हुआ ये सब तो तुम्हे पता ही होगा उसके आगे मेरे साथ किया हुआ मैं बताता हूं
जब किनान से लोट कर मैंने सबको उसको मिली यातना और भयंकर मृत्यु दण्ड के बारे में बोला तो उसको सुन पूरा गांव शौक के सागर में डूब गया
और इस भयंकर मृत्यू कांड ने मुझ पर गहरा आघात पहुँचाया जिस के परिणामस्वरूप मै किसी को भी कुछ बोले बिना वहाँ से चला गया
मेरे ऊपर टूटे अपार दुख के कारण मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो चूँकि थीं मुझे कोई सुधि ना थी जिसके कारण में निरन्तर कईं दिनों तक भूखा प्यासा बस चलता ही रहा जब में रुका तो मेरे आगे की भूमि समाप्त हो चुकी थी मैने सर उठा कर देखा तो मैंने स्वम को एक विशाल बंदरगहा पर पाया
और अगले ही क्षण में मुर्छित हो कर गिर पड़ा
जब मुझे होश आया तो मैने स्वम को किसी अज्ञात स्थान पर पाया इससे पहले मै कुछ समझ पाता मै कमज़ोरी के कारण पुर्न मुर्छित हो गया लगभग दो से तीन दिनों तक ऐसे ही हुआ उसके पश्चात जब मुझे पूर्ण शक्ति प्राप्त हुई तो मैं उठ बैठा और चारों ओर देखने लगा
मैने खुद को एक सुन्दर कारीगरी से बने समुंद्री जहाज़ के उत्तम कक्ष में पाया जिसे देखने से मेरा चित खिल उठा अभी में उस कक्ष की सुंदरता से आनंदित हो रहा था के मेरी नज़र एक अतयंत रूपमती लावण्यम सुंदर स्त्री पर पड़ी मुझे जागा हुआ देख कर वो प्रसन्नता मय होकर खिल उठी और मैं उसके रूप पर मुग्ध हो कर ठगा सा रह गया वो मैरे पास आ कर बड़े ही विनम्र भाव के साथ बोली
आपको स्वस्थ देख कर मुझे बड़ी संतुष्टी हुई है। अभी आप सोचते होंगे के मैं कोंन हूं और आप कहाँ है असल मे ईस समय हम एक समुंद्री जहाँज पर है ये जहाज मेरे स्वामी का है हम लोग व्यापारी शैली से है वर्ष के 6 माह हम देश विदेशों कि यात्रा कर व्यापार मे निवेश करते है अंतिम बंदरगाह पर आते समय आप बहुत गम्भीर अवस्था में मुर्छीत मीले थे पिछले 3 दिनों से आपका निरन्तर उपचारण करने पर भगवान की दया से आप आज होश मे आ गये
उसकी सरल बातों ने और मधुर स्वर ने मेरा मन पुर्ण रूप से अपने बस मे कर लिया परंतु अगले ही क्षण मुझे ये सुन कर गेहरा आघात पहुंचा के वो एक विवाहित स्त्री है
और किसी भी विवाहित स्त्री के साथ सम्बन्ध बनाना तो क्या उसके बारे में सोचना भी महा पाप होता हैं इस कारण मैं थोड़ा उदास हो गया मुझे उदास देख वो मुझसे इसका कारण पुछ ही रही थी
तभी किसी व्यक्ति ने दरवाजा खटका कर अन्दर आने की आज्ञा माँगी वो एक सेवक था
अन्दर आ कर वो बोला मालकिन आपको मालिक ने याद किया है साथ में अपने अथिति को आज रात के भोजन के लिये निमन्त्रण देने के लिये कहा है इतना सुन कर उस स्त्री ने सेवक को जानें कीं अनुमति दी अथवा वो सुन्दरी बड़े ही चंचलता के साथ मेरे पास आ कर सेवक की निमन्त्रण वाली बात दोहरा कर चली गई
ये प्रेम रोग भी बड़ा दुष्ट होता हैं ये जानते हुये भी वो एक विवाहित स्त्री है
लाख प्रयत्न के पश्चात भी मैं उसे अपने मन से नीकाल नही पा रहा था थोड़ी देर बाद एक अन्य सेवीका ने आकर मुझे पहनने के लिये सुन्दर वस्त्र दिये और बोला ये मालकिन ने उपहार स्वरूप भिजवायें है
मैंने बिना विलम्ब के स्नान पश्चात वो वस्त्र धारण किये
संध्याकाल का समय था वो स्त्री सुन्दर वस्त्र भुषण के साथ सुसज्जित होकर मैरे पास आई इस समय वो इतनी अधिक सुन्दर लग रही थी कि देवलोक की अप्सरा भी उसके समक्ष कुछ ना दिखाई दे
मैंने उसकी सुन्दरता की भरपूर प्रशंसा की और प्रतिउतर मैं उसने मेरे सद्व्यवहार के लिये आभार व्यक्त किया
अब हम दोनों वहाँ से निकल कर एक अन्य कक्ष में पहुँचे वहाँ पर विभिन्न प्रकार के व्यञ्जन थे और भुना हुआ स्वादिष्ट मांस भी था साथ में मूल्यवान मदिरा भी थी
किन्तु वहाँ एक व्यक्ति को देख मुझे बड़ा अचम्भा हुआ जीसे वो स्त्री अपना पति बता रही थी