Aamchi Mumbai - 22 in Hindi Travel stories by Santosh Srivastav books and stories PDF | आमची मुम्बई - 22

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आमची मुम्बई - 22

आमची मुम्बई

संतोष श्रीवास्तव

(22)

मुम्बई के आकर्षण का केन्द्र डब्बावाला

मुम्बई में एक और विशिष्ट आकर्षण का केन्द्र है ठीक धोबी घाट की तरह ही डिब्बावाला एसोसिएशन | जब मेरा मुम्बई में पदार्पण हुआ और आर टी वी सी में मेरा कॉपी राईटिंग का काम शुरू हुआ तो मैं रोज़ ही देखती..... सफेद कपड़ों में डिब्बावाला एक जैसे टिफ़िन सबको पकड़ा कर चला जाता | उन एक जैसे टिफिन कैरियर में लाल अक्षरों में नम्बर अंकित होते | वही लाल नंबर पहचान थे उन टिफिन कैरियर के मालिकों के | जिन्हें लँच के समय खोलकर सब अपने-अपने घरों के खाने का आनंद लेते थे |

अभी पिछले दिनों लँच बॉक्स फिल्म देखी जो इन्हीं डिब्बावालों के इर्द गिर्द घूमती है | इस बेहतरीन फिल्म ने जहाँ एक ओर मुझे डिब्बावालों को अच्छी तरह से समझने, जानने को मजबूर किया वहीं दूसरी ओर यह सच्चाई भी सामने आई कि मुम्बई जिस तेज़ी से विकास की मंज़िलें तय कर रहा है..... इस तेज़ रफ़्तार के लिए सूचना प्रौद्योगिकी को ज़रूरी मानने वाले इस युग में मुम्बई के डिब्बावाला एसोसिएशन अपने अस्तित्वके लिए ख़तरा मानते हैं |

सुबह नौ बजे से लोकल के लगेज कम्पार्टमेंट में एल्यूमीनियम के डिब्बे तरतीब से रखे मिलेंगे लम्बे चौड़े हाथ ठेलों में | इन ठेलों के पहिए हैं वे पाँच हज़ार कर्मचारी जो इन डिब्बों में रखे दोपहर के भोजन (लंच) को मुम्बई के विभिन्न कार्यालयों में तेरह लाख लोगों तक पहुँचाते हैं | चाहे चटख़ धूप हो, तेज़ हवाएँ हों, मूसलाधार बारिश हो इनके काम में कभी रूकावट नहीं आती | सुबह सबेरे ये घरों से टिफिन इकट्ठा कर इन एल्यूमीनियम के डिब्बों में रखकर लोकल ट्रेन के द्वारा इस भोजन के असल हक़दार तक इसे पहुँचा देते हैं | ऊपर से एक सरीखे दिखने वाले डिब्बे लेकिन मज़ाल है कि कोई टिफिन किसी और को पहुँच जाये? मुम्बई में कार्यरत यह डिब्बावाला एसोसिएशन जो पूरे देश में एकमात्र एसोसिएशन है | वर्ष १८९० में तीस व्यक्तियों से शुरू हुए इस एसोसिएशन की सफलता का राज़ है पाँच हज़ार कर्मचारियों की निष्ठा, परिश्रम तथा ईमानदारी | सफेद पायज़ामा, सफेद कमीज़ और सफ़ेद टोपी इनकी यूनिफॉर्म है | इनमें से ८५ प्रतिशत अनपढ़ हैं और १५ प्रतिशत केवल आठवीं पास हैं |

विश्व के कई देशों में डिब्बावाला एसोसिएशन पर खोज चल रही है इनके प्रबन्धन कार्य पर और इस बात पर कि क्या कारण है कि विश्व स्तरीय अवार्ड जीतने वाले डिब्बावाले मुम्बई से बाहर अपनी सेवाओं को चालू नहीं कर पा रहे हैं | डिब्बावाला कर्मचारियों के कदम १२० साल के इतिहास में पहली बार तब रुके जब ये गाँधीवादीअन्ना हज़ारे के आंदोलन में शामिल हुए और हड़ताल पर बैठ गये | उस दिन मुम्बई भूखी रही |

१८ जनवरी २००८ में ये डिब्बावाले एशिया की सबसे बड़ी स्टैंडर्ड चार्टर्ड मुम्बई मेराथन में शामिल हुए | उन्हें सम्मान देने के लिए इसका ब्रांड एम्बेसडर बनाया गया और होर्डिंग्स लगाए गये | अब यह आयोजन प्रतिवर्ष होता है | दुबई में ५ जून को आयोजित गल्फ़ कोऑपरेशन काउंसिल के सम्मेलन में मुम्बई के डिब्बावाला एसोसिएशन की सफ़लता के मंत्र को समझने की कोशिश की गई | नूतन मुम्बई टिफिन बॉक्स सप्लायर्स ट्रस्ट के प्रवक्ता अरविंद तालेकर ने मुम्बई डिब्बा वाला एसोसिएशन का प्रतिनिधित्व किया |

डिब्बावाला एसोसिएशन का काम है प्रतिदिन सुबह ७ से ८ के बीच रजिस्टर्ड व्यक्ति के घर जाकर लँच बॉक्स लेना और उसे उसके कार्यालय में दस से ग्यारह के बीच पहुँचा देना | कार्यालय बंद होने से पहले ख़ाली लंचबॉक्स इकट्ठे कर लेना..... डिब्बावाला की लोकप्रियता इतनी कि उन्हें लंदन के शाही घराने में विवाह में शामिल होने की बाकायदा दावत भी दी गई |

जनवरी २०१६ से डिब्बावाला एसोसिएशन ने रोटी बैंक की स्थापना की है जिस काम को चार सौ डिब्बावाले अंजाम दे रहे हैं | इन्होने इसकी वेबसाइट भी बनाई है | उद्देश्य पूछने पर डिब्बावाला प्रबन्धक ने बताया- आजकल शादी ब्याह तथा अन्य उत्सवों की पार्टियों में बहुत सारा खानाबच जाता है | हम उस खाने को इकट्ठा कर ग़रीब, ज़रूरतमंदों की भूख मिटाते हैं | हमारेकर्मचारी साढ़े तीन बजे दोपहर को फ्री हो जाते हैं उसके बाद हम ये काम करते हैं | हमें हैल्पलाइन नं. भी मिल गया है जिस पर फोन कर बचा हुआ खाना ले जाने की खबर आप दे सकते हैं | इसके अलावा जो भी खाना दान करना चाहे हमेंफोन कर देता है | जो खाना जलसा ख़त्म हो जाने के बाद डस्टबिन को भेंट कर दिया जाता है उसे जब हम किसी की भूख मिटाने के लिए देते हैं तो बड़ा स्वर्गिक आनंद मिलता है साहब | ”

डिब्बावालों की इस पहल को मैं सलाम करती हूँ |

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