The Author सोनू समाधिया रसिक Follow Current Read भूतिया रेस्टोरेंट By सोनू समाधिया रसिक Hindi Horror Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books स्वयंवधू - 27 सुहासिनी चुपके से नीचे चली गई। हवा की तरह चलने का गुण विरासत... ग्रीन मेन “शंकर चाचा, ज़ल्दी से दरवाज़ा खोलिए!” बाहर से कोई इंसान के चिल... नफ़रत-ए-इश्क - 7 अग्निहोत्री हाउसविराट तूफान की तेजी से गाड़ी ड्राइव कर 30 मि... स्मृतियों का सत्य किशोर काका जल्दी-जल्दी अपनी चाय की लारी का सामान समेट रहे थे... मुनस्यारी( उत्तराखण्ड) यात्रा-२ मुनस्यारी( उत्तराखण्ड) यात्रा-२मुनस्यारी से लौटते हुये हिमाल... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Share भूतिया रेस्टोरेंट (70) 8.8k 29.3k 9 रोहित और सौरभ दोनों दोस्त जॉब की तलाश में भटक रहे थे। इसी के चलते दोनों कई एक्जाम दे चुके थे।दिसंबर के महीने में दोनों एक एक्जाम देकर बापस लौट रहे थे। शाम के 4बज चुके थे। उनका एक्जाम सेंटर उनके होमटाउन से दूर था।वो दोनों एक पुराने और गाँव से दूर एक बस स्टॉप पर उतर गए क्यों कि उनको वहाँ से दूसरी बस से जाना था।"उफ्फ! अभी तो दूसरी बस के लिए 2घण्टे का टाइम रखा है और यहां हम दोनों के अलावा कोई और भी नहीं है।" - रोहित ने अपनी हैंड वॉच देखते हुए और भौंहें सिकोङते हुए कहा।"यार यहां पर तो कोई होटल या रेस्टोरेंट भी नहीं है, भूख के वजह से जान निकली जा रही है।" - सौरभ ने हाथ मलते हुए कहा।उसकी नजरएँ चारों तरफ देखें जा रही है।उनको सामने एक छोटी सी झोपड़ी में एक दुकान दिखी खाने की इच्छा से दोनों वहां पहुंच गए।उन्होंने देखा कि उस दूकान में एक बूढ़े आदमी के अलावा कुछ भी नहीं था।" बाबा यहां आसपास कोई दूकान या होटल है जहां खाना मिल सके खाने को।""नहीं! बेटा यहां कोई दूकान या होटल नहीं है यहाँ पर तो कोई घर भी नहीं है।मेरे पास भी कुछ समोसे थे जो बिक गए, चलो मेरे घर वहा पर खाना खा लेना।वैसे भी यहां सूरज ढल जाने के बाद कोई भी व्यक्ति यहाँ आने से डरते हैं। "-बूढ़े के आवाज में गंभीरता थी।" क्या मतलब है तुम्हारा। तुम हमे डरा रहे हो, वैसे भी मुझे भूख लग रही है। "-सौरभ ने बूढ़े को घूरते हुए कहा।" रुक न यार तु, हाँ बाबा आप क्या कह रहे थे कि यहां लोग सुरज ढल जाने के बाद आने से डरते हैं क्यूँ, ऎसा क्या है? यहां। "-रोहित की बातों में जिज्ञासा थी।" बेटा उनका इस वक्त नाम लेना मुनासिब नहीं होगा। फिर भी बताता हूँ, वो इंसानों का खून चूसने वाले जीव हैं इस जंगल में। "" बाबा जाइए आप अपना काम किजिए और अपने घर वालों से अपने दिमाग़ का इलाज के लिए बोलिए। ओके! "" ये क्या बदतमीजी है यार।""तु चल मेरे साथ!" - सौरभ रोहित का हाथ पकड़ कर खिंच के ले गया।" भगवान! इन बच्चों की रक्षा करना! "-बूढ़ा हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हुए घर को निकल गया।अंधेरा होने के साथ ही कोहरे ने भी सबको अपने आगोश में ले लिया था।सौरभ रोहित को खींचे ले जा रहा था। तभी उसे सामने उसे एक दूसरा बूढ़ा आदमी दिखा जो लाठी के सहारे धीरे धीरे चला जा रहा था। सौरभ रोहित का हाथ छोड़कार उसके पास पहुंच गया। "बाबा यहां कोई होटल या फिर दुकान है, जहां खाना मिल सके।" "मैं अपने गाँव ही जा रहा था, देखो वह रास्ता है न, ये रास्ता सीधे होटल तक जाता है वहां एक बार पहुच गए न बेटा तो फिर दोबारा आने का मन नहीं करोगे।" - बूढ़े ने एक रहस्यमयी मुस्कान के साथ जबाब दिया। "चल रोहित, धन्यवाद बाबा "सौरभ और रोहित उस रास्ते पर निकल पड़े, वह बूढ़ा व्यक्ति अभी तक उनको देखकर मुस्कुराए जा रहा था। " यार सुन न उस बूढ़े बाबा ने क्या कहा था कि हमे जंगल में नहीं जाना है। "-रोहित ने सौरभ को रोकते हुए कहा। "अरे! तू भी न उस बुद्ढे की बात पर यकीन कर लिया, साला सठिया गया है वो झूठ बोल दिया हमसे। तू चल मुझे भूख लगी है।" - सौरभ ने रोहित को खींचते हुए कहा। कोहरा और जंगल रात के समय में और भी ज्यादा खौफनाक दिख रहे थे। जंगली जानवरों की आवाजें दोनों के रोंगटे खड़े कर रही थी। तभी उन दोनों को सामने एक बहुत पुराना और बड़ा रेस्टोरेंट दिखा। दोनों अचंभे में आँखे फाड़कर देखते रह गए थे, क्योंकि वहा बल्ब की जगह मॉमबत्तियाँ थी। हजारों मॉमबत्तीओं की कतार सारे रेस्टोरेंट को जगमगा रही थी। "यार तु सुन मेरी बात यहाँ तुझे कुछ अजीब सा नहीं लग रहा, मुझे तो यहाँ सब गड़ बढ़ लग रहा है। ये जंगल के बीचोंबीच रेस्टोरेंट और इसकी बनावट और मॉमबत्तियाँ यहाँ केसे?" "तू साला फट्टू ही रहेगा। मुझे भूख की पढ़ी है और तुझे भूत की चल भूत होंगे भी तो कुछ खाके मरेंगे। "-सौरभ ने मजाक में कहा। दोनों रेस्टोरेंट के अंदर पहुच गए तो वहां दो टेबल पर दो जोड़ा बैठा है और 2 बेटर भी थे। सौरभ से रहा न गया। शाही पनीर का ऑर्डर कर दिया और कुछ देर वाद दोनों का मन पसंदीदा खाना उनके सामने था। रोहित अभी तक रेस्टोरेंट की दीवारों और आसपास बैठे मौन व्यक्तियों को देखे जा रहा था। "क्या हुआ? किसको देख रहा है? अबे! खाना और चल निकल ते हैं।""नहीं यार! तुझे कुछ अजीब सा नहीं लग रहा है ये रेस्टोरेंट और इसकी बनावट। यहां लोग भी कितने शांत हैं" तभी सौरभ अचानक खाते खाते रुक गया क्योंकि उसके मुँह में कुछ नुकीली चीज़ चुभ गई। "साले! ना जाने क्या क्या डाल देते हैं सब्जी में।न जाने आंखों पर पट्टी चढ़ी है सबके। "-सौरभ ने गुस्से में अपनी भौंहें चढ़ाकर मन ही मन बङबङाते हुए कहा। सौरभ के होश तो तब उढ़े जब उसने अपने हाथ में उस नुकीली चीज़ को देखा, वह और कुछ नहीं एक इंसान के हाथ की उंगली थी। वह घबराकर जैसे ही खड़ा हुआ तो उसके धक्के से मेज पर रखे सारे बर्तन तेज आवाज करते हुए गिर पड़े और टूट कर बिखर गए। आवाज को सुनकर सारे लोग खड़े होकर रोहित और सौरभ दोनों को देखने लगे। "ये क्या है? साला ये किसी इंसान की उंगली है, मुझे कुछ लफड़ा लगता है। बेटर....." - सौरभ चिल्लाया। "मैंने तो पहले ही तुझसे बोला था कि यहाँ कुछ गड़बड़ है।" - रोहित ने चारों तरफ़ निगाह दौड़ाते हुए कहा। "ये क्या बदतमीजी है, बर्तन क्यूँ तोड़े चल इनके पैसे चुका। "-रेस्टोरेंट का मालिक डांटते हुए बोला। " कौन सा पैसा बे! तू मुझे जानता नहीं है कि कौन हूँ मैं, तू मुझे खाने के नाम पर इंसान ही खिला देगा हाँ। ले ये पकड़ पैसा सुबह का इंतज़ार कर तुझे मर्डर केस में अंदर करवाता हूँ। "-सौरभ ने रेस्टोरेंट मालिक की आँखो में आँखें डालकर धमकी भारी आवाज में कहा। "यहां ऎसा ही होता है रोजाना, पुलिस कुछ भी नहीं कर सकती है मेरा क्यूँ कि यहां मेरी ही चलती है। तुझे तो मैं अभी सबक सिखाता हूँ। "-रेस्टोरेंट मालिक ने अपना गुस्सा दिखाते हुए कहा। " सॉरी, सर हम से ग़लती हो गई, हमें जाने दीजिए प्लीज।" - रोहित ने माफ़ी मांगते हुए कहा। " रुक! इसकी तो मैं... "" बेटर....! "-रेस्टोरेंट मालिक सौरभ की बात को काटते हुए बोला। " जी, सर..। "" इस बदतमीज लड़के को पकड़ कर कमरे में बंद कर दो, आज इससे हम सारे बर्तन साफ करवाएंगे।। "बेटर सौरभ को पकड़ कर एक कमरे में बंद कर देते हैं जो एक किचन होती है। " और तु इनसे निपट तुम दोनों ने शोर करके इन सबको गुस्सा दिला दिया है।" रेस्टोरेंट मालिक ने कहा। " मतलब?? "रोहित कुछ समझ पाता तब तक रेस्टोरेंट का मालिक वहां से चला जाता है और फिर... रोहित को शांत माहौल में किसी बहसी दरिंदे की आवाजें आती हुई प्रतीत हुई। रोहित ने जैसे ही पीछे मुड़कर देखा तो दंग रह गया। जो लोग कुछ देर पहले शांति से खाना खा रहे थे वो एक आदमखोर पिशाचों में तब्दील हो गए थे ये उनकी आँखो से रिसते रक्त, लंबे दाँत और बदली हुई चेहरे की आकृति से साफ़ जाहिर हो रहा था। वो कुछ कर पाते तब तक रोहित भाग कर एक कमरे में खुद को बंद कर लेता है और सब पिशाच उसके कमरे में घुसने की कोशिश करने लगे इसके सब पिशाच उसके दरवाजे को तोड़ने लगे। रोहित बाहर निकलने के लिए कोई रास्ता ढूँढने लगा। इधर सब बातों से बेखबर सौरभ गुस्से से पागल हुए जा रहा था। तभी.. सौरभ को एक बड़े वर्तन के ऊपर रखे स्टील के ढक्कन के हिलने की आवाज सुनाई दी। "कौन है वहां?" - सौरभ ने आहिस्ता आहिस्ता अपने कदम आवाज की ओर बढ़ाते हुए कहा। मगर कोई प्रत्युत्तर नहीं मिला। उसने देखा कि गैस पर बहुत बड़ा पतिला रखा है उसमे कुछ उबल रहा है और उसके ऊपर रखा एक स्टील का ढक्कन हिल रहा है। जैसे ही उसने ढक्कन हटाया तो उसमें से एक उबलते हुए इंसान का हाथ निकलता हुआ दिखा इस दृश्य को देख कर सौरभ की रूह कांप उठी। उस पतीले में एक जिंदा इंसान उबल रहा था। सौरभ की एक दहशत भरी चीख निकल गई। वह उबलता हुआ आनन फानन में उठ बैठा और सौरभ से सहायता की आवाज लगा कर मर जाता है उसके मरते ही वह इंसान पतीले सहित गैस के ऊपर से एक भारी आवाज़ के साथ गिर पड़ा। इसका शोर सुनकर कुछ पिशाच उसके दरवाजे को खोलने की कोशिश करने लगे। सौरभ ने क़ी हॉल से बाहर देखा तो कांप उठा क्यों कि उसे सबकी असलियत मालूम हो चुकी थी। अब वो बाहर निकलने के लिए दूसरा रास्ता ढूढने लगा। तभी उसे दीवार पर बनी एक खिड़की पर नजर पड़ी वह उस पर चढ़ गया और उसे खोलने की कोशिश करने लगा और उसे इस काम में सफलता भी हासिल की पिशाच जब तक उस कमरे का गेट तोड़ते तब तक सौरभ बाहर निकल चुका था।। उधर पिशाच रोहित का कमरे के गेट को तोड़ कर अंदर घुस गए और रोहित पर हमला कर दिया। रोहित बेचारा क्या कर सकता था वो एक इंसान इतने सारे पिशाचों का सामना अकेला कैसे करता। वह खुद को बचाते हुए एक कोने में खड़ा हो गया तभी एक पिशाच ने उसकी गर्दन में काटना चाहा तो रोहित ने अपने हाथों से उसके सर पकड़ लिया और खुद को बचाने की कोशिश कर ने लगा। तभी उसके हाथ में पहने हुए चांदी की अंगूठी उस पिशाच के सर से छू गई जिससे उस पिशाच के सर में आग लग गई और वह पिशाच चीख के साथ वही ढेर हो गया। जिससे सभी पिशाच डर कर रोहित पर हमला करने मे झिझकने लगे। इस बात का फायदा उठाकर रोहित वहां से भाग निकला पिशाच भी अपने शिकार को छोड़ना नहीं चाहते थे वो भी रोहित के आसपास मंडराने लगे और हमले की ताक में थे। रोहित सबको डराता हुआ मैन गेट से बाहर निकला और गेट को बंद कर दिया जिससे सारे पिशाच उसी के अन्दर रह गए। अब रोहित और सौरभ दोनों सुनसान और कोहरे से ढंके जंगल के रास्तों पर दौड़ रहे थे। रोहित ने अपनी माँ को धन्यवाद दिया क्योंकि जो अंगूठी उसके पास थी ये उसकी माँ की ही थी। मगर ये क्या उसके हाथ मे वो अंगूठी गायब थी जो कही गिर गई थी। उधर पिशाचों ने मैन गेट को तोड़ दिया उन्होने देखा रोहित की अंगूठी वही पड़ी है जो कि दरवाजा बंद करते समय वही गिर गई थी सभी पिशाच उन दोनों की खोज में निकल पड़े। सौरभ दौड़ते दौड़ते थक चुका था वह तेज साँसे लेते हुए एक पेड़ के सहारे खड़े होकर चारों तरफ़ निगाह दौड़ाते हुए रास्ते को खोजने लगा। तभी... उसके कंधे पर किसी ने हाथ रखा तो वह डर से चीख पढ़ा उसने मुड़कर देखा तो पीछे एक सुंदर लड़की थी। "श्श्श्श्श्श्शश्...... ।" - उस लड़की ने सौरभ के मुँह को बंद करते हुए शांत रहने का इशारा किया। "क्क्कौन हो तुम और इस वक्त यहां क्या कर रही हो? - सौरभ ने शक़ में पूछा। " मैं भी तुम्हारी तरह जंगल में भटक चुकी हूँ इन पिशाचों ने मेरी फैमिली को मार दिया है सिर्फ मैं ही किसी भी तरह से उनसे बच पाई हूँ। "-उस लड़की की बातों में भोलापन था। " चलो मेरे साथ मैं तुमको जंगल पार करवाता हूँ, वैसे मैं भी रास्ता नहीं जानता, तुम भी मेरी हेल्प कर सकती हो ओके। "" ओके, आओ। "उधर रोहित भागता हुआ जा रहा था। रोहित को अपने टीचर की कही हुई बात याद आई कि पिशाच लहसुन, चांदी और नुकीली लकड़ी से मरते हैं रोहित ने उसी टाइम एक पीपल की लकड़ी ली और उसे चाकू से नुकीला करके अपने पास रख ली,। आगे जाकर उसे फिर वही बूढ़ा आदमी मिला जिसने उन्हे इस जगह के बारे में बताया था। "क्या हुआ बेटा कुछ परेसान से नजर आ रहे हो, कोई सहायता करूँ क्या मैं तुम्हारी।" "साले! बुड्ढे तूने ही हमें मुसीबत में डाला है, ये दीख रहा है क्या है ये?" - रोहित ने उसको नुकीली लकड़ी दिखाते हुए कहा। "ये एक लकड़ी है इसे क्यूँ दिखा रहे हो मुझे।" "ज्यादा चतुर मत बन मुझे पता है कि तू भी एक पिशाच है और ये रही तेरी मौत, ले मर तू अब... ।" - इतना कहकर रोहित ने उस बूढ़े के पेट में नुकीली लकड़ी को घुसा दिया जिससे वह बूढ़ा पिशाच के रूप में आकर मर गया। सौरभ ने चलते चलते सामने जो नजारा देखा तो डर गया वह लड़की उसे घुमाकर उसी भूतिया रेस्टोरेंट के पास ले आई। " तू मुझे कहा ले आई चीटर। "" यही तो तेरी मंजिल है, यही पर रहना है तुझे हमेशा।" सौरभ ने जैसे ही पीछे मुड़कर देखा तो वह लड़की अपने पिशाच के रूप में थी वह कुछ कर पाता तब तक वह लड़की उसके गले में काट चुकी थी। सौरभ दर्द से बेहोश हो कर जमीन पर गिर पड़ा कुछ देर बाद उसके गले से निकलने वाला खून बंद हो गया और उसके कान और दांत लंबे हो गए। रोहित भागता हुआ सड़क पर पहुंच चुका था वह काफी थक चुका था उसे अब सौरभ की चिंता सता रही थी कि वो न जाने कहाँ और किस हालत में होगा। "रोहित..... ।" - पीछे से सौरभ की आवाज रोहित के कानों में पढ़ी। रोहित खुसी से दौड़ता हुआ जैसे ही उसके पास पहुंचा तो रुक गया, "तेरे गले पर ये निशान कैसा??" "व्व्व्व्वो... चोट लग गई थी।" "दूर रहना मुझसे, मुझे पता है कि तुम अब सौरभ नहीं एक पिशाच हो।" "भाई प्लीज मुझे अकेला छोड़ कर मत जाओ तुम भी यही रुक जाओ मेरे साथ हम दोनों यही रहेंगे साथ साथ।" "सॉरी मेरे भाई, तुझे मैं अकेला छोड़ कर नहीं जाऊंगा और न ही तुझे पिशाच बनकर भटक ने दूँगा। मैं तुझे आजाद कर रहा हूं भगवान करे तुझे जन्नत नसीब करे, मुझे माफ कर देना मेरे भाई। "-इतना कहकर रोहित ने सौरभ के लकड़ी से हमला कर दिया जिससे पिशाच के रूप में सौरभ जलकर वही ढेर हो गया। रोहित फूट फूट के रो पढ़ा। तभी उसे एक बस आती हुई दिखी वह दौड़ता हुआ बीच सड़क पर खड़ा होकर बस को रोकने का इशारा करने लगा। दरअसल उस क्षेत्र में कोई भी वाहन वहां नहीं रुकता था जो भी वाहन रात को वहा से गुजरता था वो अपने वाहन के गेट पर टोटका किए रहता था जिससे पिशाच उसके वाहन मे न घुस पाये। क्योंकि रात के वक्त उस क्षेत्र में पिशाच बसों पर हमला करके सबको मारकार पिशाच बना देते थे। रोहित को भी पिशाच समझकर बस ड्राइवर ने बस नहीं रोकी और रोहित में कट मारते हुए। बस निकाल दी। बस कंडक्टर ने देखा कि रोहित सड़क पर गिर पड़ा है तब उसके समझ में आई कि अगर वह पिशाच होता तो बस की टक्कर से गायब हो जाता। बस ड्राइवर ने बस रोककर रोहित के पास पहुंच गया और देखा कि उसके सर से खून निकल रहा है। सबने रोहित को उठाया और बस में लेकर हॉस्पिटल में एडमिट कराया। रोहित २,३दिन में पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गया था उसे अपने दोस्त सौरभ के खोने का दुख था। अब वह इस घटना को एक बुरे सपने की तरह भुलाने की कोशिश करता है मगर अभी भी कई पिशाच उसके सपनों में आकर उसे उसी 'भूतिया रेस्टोरेंट' में बुलातें हैं। नोट :-ये कहानी पूर्ण रूप से कल्पनिक है, अगर यह किसी घटना या कहानी से मेल खाती है तो यह केवल संयोग मात्र होगा। टिप्पणी और रेटिंग के बारे में.... रेटिंग के बारे में जानकारी होने पर ही कहानी को रैट करें अन्यथा केवल आपका स्नेह ही हमारे लिए पर्याप्त है। कई बार रेटिंग के बारे में जानकारी न होने की वजह से लेखक हतोत्साहित हो जाता है। ? ? सोनू समाधिया रसिक Download Our App