Crime of Newton in Hindi Crime Stories by Ajay Amitabh Suman books and stories PDF | न्युटन का अपराध

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न्युटन का अपराध

अर्जुन अपने 5 भाइयों के साथ मुजफ्फपुर में रहता था। उसके पिता सरकारी मुलाजिम थे । गुजर बसर लायक बामुश्किल कमा पाते थे । अक्सर खाने पीने के लिए अन्य भाइयों के साथ उसको छीना झपटी करनी पड़ती थी। मन लायक भरपुर खाना यदा कदा हीं नसीब होता था।


गर्मी की छुट्टियों में उसके मम्मी पापा गाँव गए थे। वो ट्यूशन के चक्कर में शहर हीं रुक गया था। रोज सुबह उठता, चिउड़ा के साथ हॉर्लिक्स मिला कर खाता, ट्यूशन वाले मकान के पास एक होटल में बैठकर चावल और आलू की भुंजिया दबा कर खाता और फिर शाम को घर लौट आता। खाने में कोई रोक टोक नहीं थी। जिस होटल में जितना चाहो, खाओ, जो चाहो खाओ।पहले मम्मी पापा होटल का खाना खाने नहीं देते थे। और अब समोसे, जलेबी, रसगुल्ले, पकौड़े सब दबा कर चट किये जा रहे थे। दरअसल पढ़ने से ज्यादा आनंद उसे खाने में आ रहा था।


वो मैट्रिक का विद्यार्थी था। शहर के एक छोटे से स्कूल में पढ़ रहा था। एक दिन उसने देखा, उसका मित्र मुकेश न्यूटन को गाली बक रहा था।पूछने पर मुकेश ने बताया, न्यूटन दुनिया का सबसे बड़ा क्रिमिनल है।भाई अगर ईश्वर ने सेब उसकी गोद में गिराया तो खा लेता। अब ये गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत देने की क्या जरूरत थी? भाई ने फिजिक्स में एक चैप्टर बढा दिया। कितने बच्चे हर साल मेन्टल टार्चर से गुजरते हैं इस गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत के कारण। भाई लड़कियाँ प्यार करने की चीज होती है।अब कोई उनकी चमड़ी उधेर कर सेल बायोलॉजी पढ़ने लगे दोष किसका? ये सेब भी तो खाने के लिए हीं होता है , सोचने के लिए थोड़े हीं न होता है खाने में कोई रोक टोक नहीं थी। जिस होटल में जितना चाहो, खाओ, जो चाहो खाओ।पहले मम्मी पापा होटल का खाना खाने नहीं देते थे। और अब समोसे, जलेबी, रसगुल्ले, पकौड़े सब दबा कर चट किये जा रहे थे।


ये बॉटनी का मेंडल भी इसी किस्म का क्रिमिनल है। भगवान ने मटर के दाने बनाये हैं खाने के लिए, और भाई साहब 20 साल तक एक्सपेरिमेंट करते रहे मटर के साथ । पादरी थे , क्या बढ़िया भजन कीर्तन करते । क्या बढ़िया से मटर का दाना भुनकर खाते।पर नहीं इन्हें तो हमारे उपर जेनेटिक्स का चैप्टर लादना था। कितने बेचारे इस फिजिक्स और बोटनी के चक्कर में गल जाते हैं ।


मुकेश की बातों का जवाब तो वो दे नहीं पाया, अलबत्ता सेव और मटर के दानों की बात उसे खुब पसंद आई। घर जल्दी जल्दी आकर फ्रिज से दो सेब निकाले और खा गया। फिर मटर की बारी थी । आज कोई रोकने वाला नहीं था। फिर सिंकारा आधा ग्लास पी गया। वो जान रहा था कि सिंकारा टॉनिक है।फिर भी उसका टेस्ट अच्छा लगता था।लिहाजा आधी गिलास खाली कर दी।


फिर सो गया। पेशाब लगी। गुस्सा आते हुए वो भगवान को गाली देने लगा। ये आदमी को बार बार पेशाब क्यों लगती है, मुँह क्यों धोना पड़ता है? हर रोज नहाना क्यों पड़ता है?भगवान ने ये सिस्टम बनाया ही क्यों?क्या फायदा इससे? खैर इससे किसको फायदा हुआ और क्या फायदा हुआ, ये सोचकर उसको कुछ मिला नहीं। बड़बड़ाते हुए उसे पेशाब करने जाना हीं पड़ा।


अगले दिन बारिश हो रही थी।उसकी इक्छा हुई आज छुट्टी कर ली जाए। पर घर में अकेले बैठकर करता क्या? साइकिल लेकर चल बड़ा ट्यूशन पढ़ने। बीच बीच मे बिजली भी कड़क रही थी। जाने से पहले चिउड़ा और हॉर्लिक्स भर-पेट फांक लिया। ट्यूशन पढ़ते वक्त अचानक लगा भीतर कुछ हलचल सी हो रही है। सेब, मटर, चिउड़ा, हॉर्लिक्स ने असर दिखाने शुरू कर दिए थे।


किसी तरह जैसे तैसे कर के उसने समय काटा। उसे जोर से पखाना लगा था। जैसे हीं ट्यूशन से बाहर निकला, अपनी साइकिल लेकर जोर से घर भागा। पर हाय से दुर्भागय। रास्ते में सड़क जाम, बीच बीच में बूंदों की बारिश और उपर से जोर का पखाना।आज उसे भगवान पर जोर से गुस्सा आया। पता नही तूने ये पखाना करने का सिस्टम ही क्यों बनाया। इससे तुझे क्या मिला? अगर आदमी को बनाना हीं था तो केवल खाने का सिस्टम बनाता । आखिर इस पखाने से किसका भला हुआ है ? पर जवाब देने वाला कोई न मिला।


जाम बढ़ता ही गया और पैखाने का प्रेशर भी। वो आसमान की तरफ करके भगवान से प्रार्थना करने लगा। पर जाम खत्म होने का नाम हीं नहीं ले रहा था। वो प्रार्थना कर रहा था , हे ईश्वर इस तरह मुझे नरक की सजा मत दो। वो सोच रहा था शायद नरक इसी को कहते हैं। उसने भगवान से बड़ी आर्त भाव से विनती की। है ईश्वर, या तो ये जाम खोल दो, या तो ये धरती फाड़ दो और मुझे सीता मैया की तरह इस धरती में समा लो। उसके सामने का मंदिर भी शौचालय की तरह हीं दिखाई पड़ रहा था।


पैखाने की तीव्रता ने उसकी प्रार्थना को नई ऊंचाई प्रदान की। ईश्वर तक उसकी पुकार पहुंच गई। बारिश तेज हो गई। जाम ख़त्म हो गई। वो रॉकेट की तरह घर की तरफ भागने लगा। पर उसकी अभी अंतिम परीक्षा बाकी थी। बिल्कुल घर के पास आकर उसकी साइकिल गढ़े में गिर गई। खैर किसी तरह संभलकर वो उठा फिर शौचालय में जाकर जमकर पेट साफ किया। अजीब आनंद की अनुभूति हो रही थी आज।ईश्वर ने एक हीं दिन उसे स्वर्ग और नरक दोनों के दर्शन करा दिए थे।


अगले दिन सुबह उठने पर उसने देखा , उसकी हाथों में सूजन आ गई है। शायद गढ़े में गिरने के बाद उसे चोट लग गई थी। मम्मी , पापा भी गाँव से आ गए थे। डॉक्टर के पास जाने पर ज्ञात हुआ, हड्डी मे मामूली फ्रैक्चर है। हाथ पे प्लास्टर चढ़ गया। डॉक्टर ने 2 महीने तक प्लास्टर रखने को कहा था। पर एक महीने के भीतर हीं खुजली शुरू हो गई।कभी पेन, अभी पेंसिल डालकर वो पलास्टर खुजाता, पर खुजली थी कि सुरसा का मुँह बन गई थी। जितना खुजाता,वो बढ़ती हीं जाती। उसे रहा न गया और चाकू उठाकर प्लास्टर काट डाला।


उसके हाथ काले पड़ गए थे। नई चमड़ी आने लगी थी। खुजली तो मिट गई पर पापा की डांट पड़ी। उसे फिर डॉक्टर के पास ले जाया गया। सोच रहा था कि वो क्या बहाने देगा।


सोचा कि बोल दूंगा, नहाते वक्त प्लास्टर भींग गया था। पर वो एक महीने से प्लास्टर के चक्कर मे नहा नहीं रहा था। ये उसके शरीर से निकलती हुई बदबू बता रही थी।पर बहाने तो बताने ही थे।कहते है आवश्यकता हीं अविष्कार की जननी है। उसकी दिमागी ट्यूब लाइट जल गई।डॉक्टर को उसने बताया, उसके भतीजे ने उसके प्लास्टर पर पैखाना कर दिया था। सुनकर डॉक्टर साहब हँस पड़े।


खैर प्लास्टर फिर चढ़ गया। एक महीना फिर बीत गया।फिर वो ही बर्दास्त के बाहर की खुजली। फिर वो ही कुढ़न। उसे मुकेश की वो बातें केमिस्ट्री के चेन रिएक्शन की तरह याद आने लगी।


क्या हीं बढ़िया होता, अगर न्यूटन ने सेब खा लिया होता। न फिर गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत होता, न फिजिक्स में एक चैप्टर बढ़ता, ना मुकेश उस दिन सेब और टमाटर के बारे में कहता, न वो उस दिन सेब और टमाटर खाता, न उसका पेट झड़ता, न वो साइकिल तेज चलाता, न वो गढ़े में गिरता, न चोट लगती, न हाथ की हड्डी टूटती, न प्लास्टर चढ़ता, न खुजली होती, न प्लास्टर काटता, न फिर प्लास्टर चढ़ता और न फिर ये खुजली होती। उसकी नजरों मे न्यूटन हीं दुनिया का महानतम अपराधी था।


अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित