Afsar ka abhinandan - 9 in Hindi Comedy stories by Yashvant Kothari books and stories PDF | अफसर का अभिनन्दन - 9

Featured Books
  • DIARY - 6

    In the language of the heart, words sometimes spill over wit...

  • Fruit of Hard Work

    This story, Fruit of Hard Work, is written by Ali Waris Alam...

  • Split Personality - 62

    Split Personality A romantic, paranormal and psychological t...

  • Unfathomable Heart - 29

    - 29 - Next morning, Rani was free from her morning routine...

  • Gyashran

                    Gyashran                                Pank...

Categories
Share

अफसर का अभिनन्दन - 9

सम्माननीय सभापतिजी यश वन्त कोठारी

इधर श हर में साहित्य, संस्कृति-कला का तो अकाल है, मगर सभापतियो अध्यक्षों और संचालको की बाढ़ आई हुई है। जहां जहां भी सभा होगी वहां वहां पर सभापति या सभा पिता या सभा पत्नी अवष्य होगी। हर भूतपूर्व कवि कलाकार, राजनेता, सेवानिवृत्त अफसर, दूरदर्षन, आकाषवाणी, विष्वविधालयों के चाकर सब अध्यक्ष बन रहे है। जो अध्यक्ष नहीं बन पा रहे है वे संचालक बन रहे है। कुछ तो बेचारे कुछ भी बनने को तैयार है। अध्यक्ष बना दो तो ठीक नही तो संचालक, मुख्य अतिथि, विषिप्ट अतिथि बनने से भी गुरेज नहीं करते। एक स्थायी अध्यक्ष से मैं ने पूछा-आज कल क्या कर रहे हैं। क्या लिख रहे है ?

लिखने का समय ही नहीं मिल रहा है। अध्यक्षता से ही फुरसत नहीं मिलती जहां भी जाता हू मुझे अध्यक्ष बना देते है या संचालक बना देते है या फिर मुख्य अतिथि विषिप्ट अतिथि आदि का गुरूतर भार वहन करना पड़ता है।

आप अध्यक्षता के लिए मना क्यों नहीं कर देते। कैसे मना कर दूं यार। इतने दिनों की मेहनत से अध्यक्षता मिली है। वे मुझे छोड़कर किसी कार्यक्रम की अध्यक्षता करने चल दिये। उनके पास सफेद कुर्ता, नेहरू जी वाली जाकेट और महगां चष्मा है वे अध्यक्षता करने के लिए ही पैदा हुए थे। वैसे भी मीडिया में अच्छे सम्बन्धों के कारण उन्हें अध्यक्ष या संचालक या मुख्य अतिथि बनाने मात्र से ही कार्यक्रम मीडिया में सफल हो जाता है। शानदार कवरेज मिल जाता है। रपट छप जाती है।

अध्यक्षों का रुतबा अनन्त होता है वे कहीं भी अध्यक्षता कर सकते है। काका हाथरसी के अबसान पर श मशा न में आयोजित कवि सम्मेलन में भी अध्यक्ष और संचालक मौजूद थे। कुछ अध्यक्षो के पास रेडीमेड भापण होते है जो वे कहीं भी कभी भी दे सकते है। वे माखनलाल चतुर्वेदी के समारोह में जयषशं कर प्रसाद पर शा नदार भापण दे कर श्रोताओ को कृतार्थ कर देते हैं।

दूरदर्षन के एक सेवा निवृत्त अधिकारी तो हर समय अध्यक्षता के लिए समितियों, सभाओ, कार्यक्रमों का ध्यान रखते है वे सुबह अखबार पढ़कर कार्यक्रमों में पहुच जाते है। उनकी भव्य वेषभूपा देख कर उन्हें आगे बैठा दिया जाता है और वे स्वयं अध्यक्षता करने लग जाते है। अध्यक्षता के बिना खाना हजम नहीं होता। यदि एक दो सप्ताह तक अध्यक्षता नहीं मिले तो वे संचालक या मुख्य अतिथि का पद भार भी ग्रहण कर लेते हैं।

वैसे अध्यक्षो की दुनिया बहुत विस्तृत होती है। लोकसभा अध्यक्ष, राज्य सभा अध्यक्ष विधानसभा अध्यक्ष, अकादमी अध्यक्ष, नगर पालिका, नगर निगम के अध्यक्ष जाति संस्थाओं के अध्यक्ष और भी सैंकड़ो अध्यक्ष हमारे आपके आस-पास हर समय उपलब्ध है। जब जैसे अध्यक्ष या संचालक चाहिये, काम में लीजिये। अक्सर अध्यक्ष कार्यक्रमों की शा न होते है। उनको कार्यक्रमों के अन्त तक बैठना पड़ता है। भापण देना पड़ता है। गम्भीर मुद्राओ में पोज देने पड़ते है। कभी ठेाडी पर हाथ रखना, कभी माथे पर सलवट डालना, कभी मुस्कराना पड़ता है। अध्यक्ष चुपचाप-गुमसुम छत को ताकते रहते है। शु द्ध अध्यक्ष किसी की नहीं सुनता कई नये अध्यक्ष तो बेचारे पुराने अनुभवी अध्यक्षों से टेनिगं लेते देखे गये है। कई संचालक जब नये नये अध्यक्ष बनते है तो काफी दिनों तक अभ्यास करते देखे गये है। कवि सम्मेलनो में तो पता ही नही चलता की कब अध्यक्ष संचालक हो जाता है और कब संचालक अध्यक्ष।

कई बार संचालक की बात से अध्यक्ष अपनी असहमति व्यक्त कर देते है। ऐसी स्थिति में अध्यक्ष और संचालकों के बीच गाली-गलौच, जूतमपैजार भी हो जाती है। माईक और कुर्सियां तोड दी जाती है। महिलाओं के वस्त्र हरण का कार्यक्रम सम्पन किया जाता है और कार्यक्रम काल कवलित हो जाता है। कई बार टेनट हाउस से ही अध्यक्ष भी बुक कर लिये जाते है। मेरे एक मित्र ने टेंट हाउसो से सम्पर्क बना रखा है, अक्सर वे अध्यक्ष बन जाते है।

कई बार अध्यक्षीय आसनो पर महिलाओं को आसीन कर दिया जाता है। वे शा न्ति से अध्यक्षता कर सकती है मगर संचालक उन्हें ऐसा नहीं करने देते। अध्यक्ष विपय का विद्वान हो यह कतई जरूरी नहीं है मगर आयोजको से अच्छे सम्बन्ध होना बहुत जरूरी है। कुछ स्थायी अध्यक्ष अस्थायी और नये अध्यक्षों को आगे बढने से रोकने के लिए आयोजको-संयोजको को गुमराह करने के भी प्रयास करते हैं।

वास्तव में कार्यक्रम करना एक बिमारी है और बिमारी के लिए अध्यक्ष डाक्टर, वैध, हकीम, कम्पाउण्डर का काम करता है।

श हर में अध्यक्ष रोज बढ़ रहे है। हर व्यक्ति अध्यक्ष बनना चाहता है, मगर श्रोताओं का अभाव है। अध्यक्षता करना आसान काम नहीं है। नानी याद आ जाती है। नये नये अध्यक्ष तो कई बार जान बचा कर भाग जाते है। राजनीतिक पार्टियो के अध्यक्ष तो बेचारे नाको चने चबाते रहते है।

कुछ अध्यक्ष सफाचट होते है। कुछ फ्रेंच दाढी से रोब जमाते है। कुछ षेरवानी, बन्दगले का जोधपुरी कोट पहनते है। कुछ कलफदार कुत्र्ता-पायजामा पहनते है, कुछ महिला अध्यक्ष तो अध्यक्षता से पहले ब्यूटी पार्लर जाना पसन्द करती है ताकि सौन्दर्य पर जिज्ञासा बनी रहे। संचालक भी अपने आपको अध्यक्ष से कम नहीं समझता। जांच आयोग के अध्यक्ष का तो कहना ही क्या, समिति का कार्य काल बढाते जाओ। बस।

इधर मुझे भी अध्यक्षता के बुलावे आने लग गये है। सोचता हू अध्यक्ष बन जाउ, इस लिखने-लिखाने में क्या रखा है। भाईयों मैं निषुल्क अध्यक्षता करने के लिये हाजिर हू, बस टीवी वालों को बुला लेना।

0 0 0

यश वन्त कोठारी 86, लक्ष्मी नगर, ब्रह्मपुरी बाहर, जयपुर-302002 फोनः-09414461207