My friend in far away country in Hindi Classic Stories by Manjeet Singh Gauhar books and stories PDF | दूर देश में मेरा दोस्त

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दूर देश में मेरा दोस्त

एक बात तो है भाइयों अपना देश अपना होता है।
इस विषय में मैं आपको एक कहानी सुनाता हूँ-:
मेरा एक बहुत प्यारा दोस्त था। जिसका नाम शिवम् था। लेकिन मैं प्यार से उसे शिव्बू कह कर पुकारता था। 
मेरा मित्र शिव्बू सचमुच शिव का रूप था। वो सचमुच बहुत महान था। वैसे तो मेरा कोई भाई नही था। लेकिन जब से शिव्बू मेरी ज़िन्दगी में आया, मुझे कभी ये लगा ही नही कि मेरा कोई भाई नही है। 
मैं और शिव्बू सगे भाइयों की तरह रहते थे। या फिर यूं कहूं कि सगे भाइयों से भी ज़्यादा प्यार से रहते थे। यदि मेरा सगा भाई होता भी, तो शायद मैं उसे भी इतना प्यार नही करता। जितना अपने दोस्त शिव्बू से करता था।
हम दोनों की स्कूलिंग ख़त्म हुई। और फिर उसके बाद हमारा एड़मिशन घर वालो ने अलग-अलग कॉलिज़ज में करा दिया।
मेरा जो कॉलिज़ था वो तो हमारे गॉंव के पास ही था। लेकिन शिव्बू का कॉलिज़ गाँव से काफ़ी दूर शहर में स्थित था।
शिव्बू अब कॉलिज़ की पढ़ाई के कारण वहीं उसी शहर में रहने लगा। जहाँ उसका कॉलिज़ था।
मेरा मित्र शिव्बू लगभग उसी शहर का हो गया। वो साल में सिर्फ़ दो-चार दिन के लिए आता था। वो भी तब, जब उसके कॉलिज़ की छुट्टियाँ होती थीं।
अब चूंकि शिव्बू को शहर गये काफ़ी समय हो गया था। तो इसलिए मुझे भी उसके बिना रहने की आदत पड चुकी थी।
अब शिव्बू जब भी शहर से गॉंव आता था, तो ज़्यादा से ज़्यादा समय मेरे साथ ही बिताता था। लेकिन अब मुझे शिव्बू का स्वाभाव कुछ बदला-बदला सा लगता था।
'आप सोच रहे होंगे कि ऐसा क्यों '..?
मैं बताता हूँ कि क्यों, वो दरअसल ऐसा था कि जब शिव्बू गॉंव में रहता था तो उसे गाँव और गॉंव की हर चीज़ पसंद थी।
जैसे कि:- गॉंव की ख़ूबसूरती, गाँव का पानी, गॉंव का पहनाव, गॉंव की बोल-चाल... और भी गॉंव की बहुत कुछ चीज़ें उसे बेहद पसंद थीं। लेकिन अब इनमें से कोई भी चीज़ उसे बिलकुल पसंद नही थीं।
शहर से आकर वो मुझसे अक़सर कहता रहता था कि ' यार, अब इस गॉंव में कुछ नही रहा। तू भी अपने घर वालो से कह दे कि वो तुझे भी शहर भेज दें। गॉंव में रहना सचमुच बहुत बड़ी वेबकूफ़ी है। यहाँ ना कुछ अच्छा-सा खाने को मिलता है, और ना ही कुछ अच्छा पहनने को।'
मुझे मेरे कानो पर विश्वास ही नही हो रहा था कि ये जो कुछ भी मैं अपने गॉंव के बारे में सुन रहा हूँ। वो मेरा सबसे प्रिय मित्र शिव्बू उन शब्दों को बोल रहा है।
सब कुछ जैसा चल रहा था, चल ही रहा था कि अचानक एक चौकाने वाली ख़बर मेरे कानो ने कहीं से सुन ली। कि ' मेरे दोस्त ने पहले तो गॉंव ही छोड़ा था, लेकिन अब तो उसने शहर भी छोड़ दिया। बल्कि शहर तो क्या उसने तो अपना देश ही छोड़ दिया। '
मैने शिव्बू के घर वालो से शिव्बू के विदेश जाने का कारण जानने की कोशिश की। तो पता चला कि शहर के जिस कॉलिज़ में वो पढ़ता था, वहाँ कुछ बिग़डे हुए बच्चों के साथ उसका बैठना-उठना शुरू हो गया था। और उसके घर वालो ने उसे बिग़ड ना जाने के डर शहर और देश से दूर विदेश पढ़ने के लिए भेज दिया।
मैं ये बात बहुत अच्छे से समझ गया कि ' जब भी मेरा दोस्त शिवम् विदेश से वापस अपने देश लौटेगा। तो उसका नज़रिया अपने देश और यहाँ के गॉंव, शहरों के बारे में कैसा होगा।
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मंजीत सिंह गौहर