१.
प्रिय विद्यालय:
जब उदास होता हूँ
या यादों की सैर करता हूँ
तो नैनीताल के कोहरे में खो जाता हूँ।
स्नो व्ये, नैना शिखर, टिफिन टोप से
खिसने लगता हूँ, ताल की तरफ,
आकाश को छू तो नहीं पाता
पर कोशिश में उछलता हूँ।
दोस्तों के साथ की गयी यात्राएं
लपेट लेता हूँ ,
अपने को कभी स्वीकारता ,
कभी अस्वीकारता,
मैं खड़ा हो जाता हूँ विद्यालय की चौखट पर।
जो कहना हो कह देता हूँ,
विद्यालय से प्यार करता हूँ,
प्यार का पैमाना मेरा अपना है,
तल्ली ताल से नापूँ या मल्ली ताल से,
सुबह बन जाऊँ या शाम बन जाऊँ।
पर मन करता है,
कभी - कभी नैनीताल के आर पार हो जाऊँ,
कोई रूठे,कोई छुए और ताल के किनारे बैठ जाऊँ।
हर बार पत्र लिखता हूँ,
प्रिय महाविद्यालय,
कैसे हो?
क्या ज्ञान से ज्ञान तक जाते हो,
क्या लड़के -लड़कियां पढ़ते हैं?
कैसी हैं चुनावों की ठसक,
कहाँ कहाँ हैं विश्वविद्यालय के विद्यार्थी,
कितना ज्ञान बाँट चुके हो!
तेरी स्थापना से मेरी स्थापना तक
एक स्थायी उम्र का अन्तर है।
छेड़ दूँ
पुराने से पुराने किस्से-कहानियां,
बिल्कुल वैसे ही
जैसे धरती बोलती है मौसम दर मौसम।
वसंत का होना महकता है,
वर्षा का बदलना मन को छूता है,
जाड़ों तक आते-आते होंठ सूखने लगते हैं,
बर्फ की फाँहों में अटक जाता है मन,
प्यार का संगीत कोई सुनता है कोई नहीं।
प्रिय महाविद्यालय जो दिन याद आते हैं,
खूब याद आते हैं,
गीत कभी पूरे नहीं होते हैं
पक्षियों की उड़ान, रूकती नहीं,
खोजी आँखें बंद नहीं होतीं,
मिठास भरे फल स्वयं झुक जाते हैं,
महत्ता सही कदमों की कम नहीं होती।
प्रिय महाविद्यालय जो दिन याद आते हैं,
खूब याद आते हैं।
२.
ओ शब्द तू मेरे पास था
वर्षों तक हिलता-डुलता
मैंने कब तुझे पहिचाना
पता नहीं।
भारी उथल पुथल के बाद
जब मैं शान्त हुआ,
एक जंगल में जा, लेट गया
संज्ञा हीन सा
जंगली जानवरों ने मुझे उलटा- पलटा,
पर मुझे मरा समझ छोड़ दिया।
लेकिन मैं मरा नहीं था
तू मेरे अन्दर था
खलबली मचा रहा था,
बाहर आने के लिए तड़पता
मेरी आत्मा तक पहुंच रहा था।
३.
आत्मा पर लिखा रह जाता है
जो माँ लिखती है वह भी
जो पिता लिखता है वह भी,
जो लड़की लिखती है वह भी
जो लड़का लिखता है वह भी
जो पहाड़ लिखता है वह भी
जो नदी लिखती है वह भी....।
४.
ओ प्यार, मेरे साथ उठ
मेरे साथ बैठ,
कुछ हिमालय की बात कर
बर्फ सी आवाज में बुला
हवा की तरह उड़कर आ
कानों के अगल बगल सुरसुरा,
चुपचाप चल
उस चढ़ाई पर जो चढ़ी नहीं गयी।
उस जगह पर फूल चढ़ा
जहाँ साथ साथ थे,
अपनी बातें सुन
अनेक मुँहों से अनेक प्रकार ,
जो हुआ वह भी
जो नहीं हुआ वह भी।
जब तेरे पंखों पर मेरे प्राण उड़े थे
कितना सुनहरा हो गया था आसमान,
जो करवटें बदली थीं
वे जानदार थीं,
जो बातें शरमायी थीं
वे सच्ची थीं।
५.
उस दिन मैं अकेले रो रहा था
मौत अकेले हँस रही थी,
जब मेरे देश की जनता
पूरी की पूरी भीड़ में बदल गयी थी।
प्रजातंत्र के आसपास
भाषण ही भाषण थे,
गालियों के शोर में
जनता की पीड़ा दब रही थी।
मैंने गंगा के तट को देखा,
हिमालय के शिखरों तक उठा
फिर एक संकल्प लेकर शहीद हो गया।
६.
जब अच्छे दिन थे
लम्बी यात्राएं करते थे
प्यार से हाथ चूमते थे
बातों को लम्बा बना
कहा करते थे,
आकाश के नक्षत्रों में
गिरता तारा देखते थे,
जंगल के रहस्यों को
गुपचुप बाँटा करते थे,
समाचारों में सपने जोड़
दूसरों को बताते थे,
खेलों का आनन्द
खेल-सुन कर लेते थे।
जब अच्छे दिन थे
लड़ाई-झगड़ों की उम्र छोटी होती थी,
देश की समस्याओं पर बहस होती थी
एक नहीं कई-कई समाधान आते थे,
दुनिया के नक्शे पर स्वयं को खोजते थे,
अपने को अंकों में गिन लेते थे।
जब दिन अच्छे थे
अक्सर हमारी भेंट होती थी,
सांस्कृतिक कार्यक्रम करते थे
अनजान मन पर बैठा करते थे
जब उड़ना होता था
तो कई दिन बदल देते थे,
जब मुस्कराना होता था
तो बड़ी हँसी को दबा देते थे।
७.
बातें पुरानी हैं
बहुत पुरानी भी नहीं हैं,
इसी जीवन की हैं।
प्यार की गाँठें खुलती नहीं हैं
जितना खोलो
उतनी फैलने लगती हैं
जितना एहसास का जल दो
उतने बड़े हो जाते हैं।
खोलने जाओ
तो गाँठ कसने लगती है,
छोड़ दो
तो बँधने लगती है।
८.
अनंत इस बह्मांड में
समाचार तो अनंत हैं,
इस धरा से लौट कर
किसे पता कहाँ हैं?
इसी वीर भूमि को
सहस्र प्रणाम कर चुके,
इसी को देवतुल्य
बना कर लड़ लिये।
राह का प्रकाश भी
नहीं दिखा, नहीं जँचा,
बहुत यहाँ भूख है
लौटने तक मिटती नहीं।
प्रणाम उस आत्मा को
जो कंटकों में जगी रही,
इस लूटपाट के मध्य में
आदमी उदास है।
९.
ओ मेरी सरकार
ये भी बंद कर दे, व भी बंद कर दे
रोजगार भी बंद कर दे,
केवल भाषण दे दे,
गपसप चला दे।
जहाँ भी जाऊँ
एक घूँट चाय पिऊँ,
और लम्बी हाँक कर
तन कर सो जाऊँ।
जनता रोये तो रोये
चुनाव में पिटे तो पिटे,
ओ मेरी सरकार
ये भी बंद कर दे, व भी बंद कर दे,
अठन्नी -चवन्नी इधर भी खिसका दे।
१०.
आवो रे आवो, आवो रे आवो
मेरे मन में गा के जाओ,
एक वीणा,एक बांसुरी, एक भारत
गा के जाओ,
एक गंगा, एक हिमाला, एक शिव
सुना के जाओ,
एक झंडा,एक शक्ति, एक स्वाभिमान
उठा कर जाओ।
एक दिन, एक वर्ष, एक युग
बिता कर जाओ,
एक प्यार, एक विश्वास, एक जीवन
जी कर जाओ,
आवो रे आवो, आवो रे आवो
मेरे भारत को पुकार के जाओ।
११.
समाचार है
बहुत सूने होते जा रहे हैं पहाड़,
बहुत दुर्गम बन गये हैं पहाड़,
बहुत ऊँचे हो गये हैं पहाड़।
समाचार है
बड़े हो चुके हैं पहाड़,
कदमों से दूर जा चुके हैं पहाड़,
पलायन की हवा बन चुके हैं पहाड़।
उन्हें निकलते सूरज से मिलना है,
आकाश को दिन-रात छूना है,
हम रहें या न रहें
पहाड़ों को तो रहना है।
१२.
मेरा प्यार बहुत ऊँचाई पर है
उसे मन से छू कर लौटता हूँ,
लिखकर पढ़ता हूँ
चलकर मिलता हूँ,
कहने की बातें कह देता हूँ
सुनने की बातें सुन लेता हूँ,
उछलता हूँ
बार-बार पीछे देखता हूँ,
समय जो सौन्दर्य लाया
उसमें निचोड़ देता हूँ।
१४.
समाचार है-
बहुत सूने होते जा रहे हैं पहाड़,
बहुत दुर्गम बन गये हैं पहाड़,
बहुत ऊँचे हो गये हैं पहाड़,
आदमी की पहुँच से बाहर हो गये हैं पहाड़।
समाचार है-
बड़े हो चुके हैं पहाड़,
कदमों से दूर जा चुके हैं पहाड़,
पलायन की हवा बन चुके हैं पहाड़।
खबर है-
उन्हें निकलते सूरज से मिलना है,
आकाश को दिन-रात छूना है,
बादलों से गुपचुप प्यार जताना है,
हम रहें या न रहें
पहाड़ों को तो रहना है।
१५.
इसी कुम्भ के लिए
प्राणों में प्यार है,
यह भी जगत का
कल्याणकारी मार्ग है।
यहीं पर छलक कर
कुम्भ से अमृत बहा,
यहीं करोड़ों आस्थाएं
चमकती- दमकती।
गलतियां धुल सकें,मन में भाव भरा हुआ,
डुबकियां बहुत लगीं, असीम विश्वास जगा हुआ,
स्नान से शुद्ध हो
फिर गालियां क्यों बकीं?
ये पूर्वजों का उपहास है
क्यों राजनीति अस्वच्छ है?
घड़ी-घड़ी आस्था का
प्रमाण यह कुम्भ है।
१६.
अपनी सुबह को स्वयं देखना है,
चाहे हम हिमालय में हों,
चाहे गंगा में नहा लें,
चाहे तपस्या में लीन हों,
चाहे अमेरिका में हों
या यूरोप, एशिया, अफ्रीका में रहें।
चाहे भारत में "सत्यमेव जयते" कह रहे हों,
या "सर्वे भवन्तु सुखिन:" सोच रहे हों,
या "नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि" बोल रहे हों,
लेकिन हमें अपनी सुबह में स्वयं जागना है।
१७.
रूक गये लोग तो
रूक गयी जिन्दगी,
सो गया प्यार तो
सो गयी जिन्दगी।
१८.
हमने ऐसा क्या कह डाला
देश-देश में गूँज गया,
हमने ऐसा क्या कर डाला
देश-विदेश ने लिख डाला।
देश हमारा सोच रहा है
देशप्रेम पर प्रश्न लगे हैं,
दौड़ रहे हैं शहर हमारे
राह हमारी टूटी है।
कितने युगों की कथा सुनाते
तीर्थ हमारे जाग रहे हैं,
वीणा में स्वर बंद पड़े हैं
माँ सरस्वती को पूज रहे हैं।
हिमगिरि कितना स्वच्छ दिख रहा
ध्वज फहरता कुछ मांग रहा है,
चाह रहे हैं, हम नींद से जागें
सारा आकाश यह देख रहा है।
१९.
उसके पास कठिन काम हैं
हिमालय बनना है
गंगा बहानी है
मनुष्य रचना है
पास में जानवर भी बैठाना है।
वनस्पतियां उगानी हैं
हवा को इधर से उधर करना है
आकाश को नापना है
धरती की गुणवत्ता बता
मनुष्य को समझना है।
प्यार के लिए मंच सजाना है
इधर-उधर पत्थर उछाल कर
हलचल बनाये रखना है।
स्वभाव हमारा और उसका मिले या न मिले
यात्रा पूरी करनी है
विसंगतियों पर टिप्पणी कर
क्रान्तियों को जीवित रखना है।
हमारे पूर्वज अभी मरे नहीं हैं
सुगबुगाहट के साथ
यादों में जगमगाते,टिमटिमाते
अचल-अटल बने हुए हैं।
२०.
अभी-अभी जीवन बड़ा था,
देखते-देखते मौत बड़ी हो गयी।
२१.
ओ हिमालय थोड़ा शान्ति उठा दे
ओ गंगा थोड़ा शान्ति बहा दे,
ओ सिन्धु थोड़ा सभ्यता बिछा दे
ओ भारत थोड़ा संस्कृति बता दे।
जब तक तेरा साथ रहे इस धरा पर
मेरी आवाज उठे छलक,छलक कर,
जब तक तेरा नाम रहे इस धरा पर,
धुन निकले, कण कण से मधुर, मधुर।
२२.
प्यार हवा सा आता है
जो सांसों सा अन्दर-बाहर होता है,
या पहाड़ सा दिखता है
जब देखो आकाश को छूता है,
या तीर्थ सा लगता है
जहाँ कभी-कभी पहुंचा जाता है।
२३.
मैं जागने के लिए सोया था
मेरी बातों में दम था,
इसलिए लम्बी नींद सोया था।
भारत जब मन में जागा था
कई रात नहीं सोया था,
देशद्रोहियों की लम्बी पंक्तियों से
लड़कर शहीद हो जाता था।
देशभक्ति का पैमाना क्या है-
जो अंग्रेजी लिखकर
सबकी रोटी खाता है,
या जो अलगाववादियों को
सुरक्षा कवच पहनाता है,
या जो पूरब -पश्चिम,उत्तर -दक्षिण में ठहर
देश बना दे, राह दिखा दे?
२४.
हमारे बाद सपने जिन्दा मिलेंगे
लम्बी बात करते हुए
प्यार की दास्तान पुरानी नहीं
नयी बनी रहेगी
जब कोई दोहरायेगा इसे।
कहता जायेगा
एक था शहीद
जिसने अथाह प्यार किया देश से,
परिवार से, पड़ोस से
दोस्त से, दोस्ती से।
कोई शहीद होता है प्यार के लिए
कोई जिन्दा रहता है
प्यार को कहने के लिए।
हो सकता है कोई न कह पाय
कोई सिसकता बोल दे,
कोई आँसुओं में ले आय
कोई गुरु गम्भीर हो
आकाश से उसे टटोल लाय।
अपने प्यार के लिये न आये हों आँसू
या आते-आते रूक गये हों,
लेकिन शहीद के लिए
झरते हैं आँसू महक लिये हुए।
२५.
रूक गयी सांस तो क्या हुआ
संदेश अमर छोड़कर जा रहे हैं,
देश के लिए शहीद हम हुए
तुम्हें सपने देश के दे जा रहे हैं।
२६.
युद्ध का सुर तो बहुत है
पर प्यार की गणना हुई नहीं है,
फूल बहुत खिले हुए महकते हैं
कांटों सी चुभन देखो शेष है।
सिरों को काटने का सिलसिला चल पड़ा है
पर प्यार की उधारी बहुत है,
धरा विपुल कर्मों से भरी हुई है
तुम पत्थरों को नींव में गाड़ दो।
युद्ध समय का अन्तिम भार है
देश के सुर में महाप्राण है,
काट दें कंटकों की जड़ हम
देश का नाम तो अमर है।
२७.
भारत के लिए हम चल पड़े हैं
मिट्टी को स्वर्ग बनाने आ गये हैं,
आतंक का भय दिखाना छोड़ दो
हम ऊँची उड़ान भर, आग बरसाने आ गये हैं।
हम हिमालय से पूछने आ गये हैं
हम शहीदों को देखने पहुंच गये हैं,
मातृभूमि के रण बांकुरे हम हो गये हैं,
भारत का सिंहनाद सुनाने आ गये हैं।
शौर्य का वलिदान देखने आ गये हैं
रक्त का हिसाब लेने रूक गये हैं,
राह पर राह बनाने आ गये हैं
भारत का मस्तक उठाने आ गये हैं।
**महेश रौतेला