janwari 2019 ki kavitaaye in Hindi Poems by महेश रौतेला books and stories PDF | जनवरी २०१९ की कविताएं

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जनवरी २०१९ की कविताएं

जनवरी २०१९ की कविताएं
१.

मैं भटका-भटका रहता था
तुम मौन-मौन से रहते थे,
धूप ,धूप सी होती थी
मन अपना ही प्रतियोगी था।

तुम आकाश से बन जाते थे
आकाश से क्या कहना था?
धरती के फूलों से
मुझे रिश्ता अपना रखना था।

सब भू -भागों में
मेरा भू-भाग अद्भुत था,
जहाँ मैं भटका-भटका रहता था
तुम मौन-मौन से रहते थे।

२.
ये रंग-रूप भी तेरा है
ये साधु भेष भी तेरा है,
जब वैराग्य अन्दर आ जाये
ये तपस्वी भी तू ही है।

फूल-फूल पर तू ही है
मन की गति भी तू ही है,
जब करुणा-दया आ जाये
वह ज्ञान रूप भी तू ही है।

नियति रूप भी तेरा है
जीत- हार भी तू ही है,
जब सुख-दुख एकाकार रहें
वह सृष्टा भी तू ही है।

३.
जब तक अंग्रेजी का साथ है
करने को कोई काम नहीं है,
वह जब था, तब था
जब भारत सोने की चिड़िया कहलाता था।

यह भारत भूमि है
जो अपने -अपने अर्थ लिए है,
अब तो अंग्रेजी का साथ है तो
करने को कोई काज नहीं है।

जो मैंने लिखा वह भी सच है,
जो तूने कहा वह भी सच है,
इन सचों के बीच,
कोई किसान-जवान पिसता है,
कोई जनता को ठगता है,
जब तक अंग्रेजी का साथ है
करने को कोई काज नहीं है।

४.

अपने सपनों के लिए
एकबार तो उठना है,
अपने गीतों के लिए
एकबार तो चलना है।

संग-संग कोई बात करे
जीवन में कोई साथ रहे,
सुबह-शाम के आने तक
सपना अपना रखना है।

हमें अपनी बातों को
जिन्दा तो रखना है,
अपनी पहचान के लिए
सपनों से पुनः-पुनः घिरना है।

५.
ओ रे, मेरे देश बोल दे
 हिम शिखरों को यहाँ खोल दे,
गंगा तट पर पाठ पढ़ा दे
देश की भाषा सीखला दे।

ओ,रे, मेरे देश सोच ले
युग-युग का धैर्य ढ़ूंढ ले,
घर के अन्दर हमें बुला ले
अपने स्वत्व का पता बता दे।

ओ,रे, मेरे देश गूंजा दे
चारों दिशाओं में  लिखा भेज दे,
छाप विश्व पर पुनः छोड़ दे
लय भाषा के फिर सुना दे।
६.
स्नेह:
अभी-अभी तो देखा था
प्यार को बढ़ता- चढ़ता पाया था,
उसे कदमों के बल आता देखा
हाथों के साथ हिलता देखा।

कोई कहानी कहते देखा
समय-समय पर उड़ते देखा,
आगे-पीछे मुड़ते देखा
बात-बात पर रोते देखा।

हर आँसू पर नाम उसी का
हर हँसी पर उत्साह उसी का,
समय-समय पर आवाज दिया था
प्यार में निर्मल भविष्य लिखा था।
७.
वर्षों से उजाला हमें 
धोता रहा, धोता रहा,धोता रहा
और हम मैल को रगड़ते रहे।
वर्षों से सत्य हमें 
पुकारता रहा
और हम झूठ की तरफ मुड़ते गये।
वर्षों हमने ईमानदारी का पाठ पढ़ा
और हम ईमानदार नहीं रह पाये।
"सत्यमेव जयते" लिखते-लिखते
हम सम्पूर्णता को काटते रहे।
८.
भगवान मेरे देश को शुद्ध कर दो
भिक्षुक को रोटी दे दो,
नदी-नालों को साफ करा दो,
जंगल में पेड़ उगा दो,
जानवरों में प्रीति जगा दो।
मनुष्य को आँखें दे दो
बुद्धि का अनुपात सुना दो।
भगवान मेरे देश की महिमा पढ़ दो,
संसद में मनुष्य भेज दो,
राहों को सरल बना दो।
९.

हमारे प्यार की हलचल में
हर मौसम शामिल थे
जो ठंड से गर्मी तक रहते थे,
पहाड़ों की ऊँचाई थी
जो थकाती नहीं थी बल्कि चुनौतियां देती थी,
झील का अता-पता था
जो तल्ली से मल्ली ले जाता था,
चिट्ठियों की  आवाजाही थी
जो शब्दों को जिन्दा कर
कितने हाथों में कितनी बार नपे-तुले।
१०.
हम भ्रष्ट हैं
इसलिए ईमानदारी की ओर देखते हैं,
असत्य हैं
इसलिए सत्य की ओर जाते हैं
"सत्यमेव जयते" का मंत्र देते हैं।
अपवित्र हैं
इसलिए पवित्रता की खोज में रहते हैं,
हम अज्ञान से भरे हैं
अतः ज्ञान को तलाशते हैं।
११.
मेरा देश बदल रहा है,
आरक्षण, आरक्षण, आरक्षण, 
पहला आरक्षण,दूसरा आरक्षण,
तीसरा आरक्षण,चौथा आरक्षण,
नेता आरक्षण पर मतदान चाहने लगे हैं,
जब चाहे, संविधान बदल दे रहे हैं,
अंग्रेजी से देश को लीप -पोत रहे हैं,
ऐसे ही देश को बदल रहे हैं।
१२.
जब जीवन को खोला तो
कितने किस्से, कितनी बातें
कितने सुख ,कितने दुख
कितनी रातें ,कितने दिन
पढ़- लिख कर बड़े हो गये थे।

कितने आकाश, कितने अंदाज,
कितने लड़के,कितनी लड़कियां
कितने आदमी, कितनी महिलाएं, 
कितनी नदियां, कितने सागर
चल-फिर कर बड़े हो गये थे।

जब जीवन को खोला तो
कितनी सुबहें, कितनी शामें,
कितने त्योहार, कितने मेले
कितना प्यार, कितना आवास,
आते-जाते बदल गये थे।
१३.

देश तो महान है
जड़ यहाँ गरीब है,
देश के पहाड़ में
देवत्व का वास है।

नदी भी विद्वान है
तीर्थ में सत्य है,
मनुष्य के मोक्ष का
देश ही आधार है।

देश तो प्यार है
जन्म का उधार है,
जो खो गया उसको
ढ़ूंढने का प्रयास है।
१४.
जीने वाले लोगों का लगता है मेला,
उठने वाले लोगों की होती है सुबह
तीर्थ जाने वाले लोगों में रहती है आस्था,
न भूलने वाले लोगों का रहता है रिश्ता।

चलने वालों की आती है पदचाप,
बोलने वालों का होता है मधुर स्वर
बहने वालों में आती है ध्वनि,
टक्कर लेने वालों में होती है गर्जन।

कथा कहने वालों में रहता है जीवन,
 कहने वालों में होती है जगमग ज्योति,
अनुभव करने वालों में रहता है दृष्टा,
मन में आने वाले को कहते हैं दाता।
१५.
ओ समय तू रोज आना,
मेरा नहीं तो किसी और का हो जाना।
१६.
कितना जीना, कितना मरना
बहती हो तो बह जाओ,
मेरी आस्था मत मारो
गंगा बहती हो तो बह जाओ।

जीते जी आया हूँ
मरने पर फिर आऊँगा,
गंगा रहती हो तो रह जाओ
तीर्थों को शुद्ध कर जाओ।
१७.
जिधर देखता हूँ
उधर शहर ही शहर है,
खड़ा हो जाऊँ
तो दूरियां दिख रही हैं।

जिधर देखता हूँ
उधर सत्य ही सत्य है,
कड़ी पहरेदारी में
बड़े नुकसान हो रहे हैं।

जिधर देखता हूँ
उधर तूफान उमड़ रहा है,
कोई मनुष्य को बता रहा है
कोई बहरा, सुना जा रहा है।

जिधर देखता हूँ
उधर प्यार ही प्यार है,
समय के छिलके
जिधर देखो, बटोरे जा रहे हैं।
१८.
दीवाली मेरे लिए रूकी हुई है
मन्दिर मेरे लिए खड़ा वहीं है,
होली के रंगों में मैं रंगा हुआ हूँ
भारत की कथाओं में पतझड़ नहीं है।
१९.
ऐसा न हो कि तू इसे भय में गुजार दे
ऐसा न हो तू जीवन दुख में गुजार दे
ऐसा न हो तू यहाँ समय अकेला गुजार दे
ऐसा न हो तू सारा वक्त बेसुध ही  गुजार दे।

ऐसा न हो कि तू बिना प्यार के निकल ले
ऐसा न हो तू बिना काम के चल दे,
ऐसा न हो तू बिना पहिचान खो जाय,
ऐसा न हो तू बिना साथ के चल दे।
२०.
मन्दिर में अकेला दिया जल रहा है
नदी में अकेले पानी बह रहा है,
वृक्ष पर अकेली हरियाली दिख रही है
पृथ्वी पर अकेला मनुष्य चल रहा है।

 आकाश में अकेला उजाला दिख रहा है
घर के अन्दर अकेला सन्नाटा आ गया है,
आँखों में अकेला समय रूक गया है
फिर उम्र में अकेला साल जुड़ गया है।

अकेली बातों का घर बन गया है
अकेले ईश्वर की दुआएं दिख रही हैं,
मन में अकेले कोई बैठा हुआ है,
वर्षों से अकेला समय चल रहा है।
२१.
लोकतंत्र भी साथ है
भूख भी आजाद है,
 देश के मस्तक पर
प्रकाश ही प्रकाश है।

 राह पूरी स्वतंत्र है 
ज्ञान भी पर्याप्त है,
तीर्थ और त्याग भी
देश का स्वभाव है।

प्रजातंत्र को आश है
स्व भाषा, स्व राज है,
हृदय के लय का
देश से जुड़ाव है।
२२.
किसी कही बात पर
सारा जहां उदास है,
धुंध सी लगी हुई है
सारे संसार में विलाप है।

सम्पूर्ण शान्ति की आश में
मधुर विचार व्यापत है,
पढ़ो संसार की किताब को
बहुत भूलों में सुधार हैं।

जहाँ तक चल दिये हैं
लहू है, लालसा है,
हर ग्रन्थि को पकड़ने का
नया-नया प्रयास है।

जन्म पर एक नया
खेल हम खेलते हैं,
साथ की लालसा में
एक एकान्त देखते हैं।
२३.
जागो, जागो,जागो
देश के लिए जागो,
शिक्षा के लिए जागो,
जंगलों के लिए जागो
जनसंख्या के लिए जागो,
नदियों के लिए जागो।

देश की भाषा के लिए जागो,
ये जो हमें गूंगा बना रहे हैं
उनके विरुद्घ जागो,
जो झूठे प्रजातंत्र में नाचते हैं
उस नाच के विरुद्ध जागो।

जो विदेशी भाषा में
राज काज चलाते हैं,
भारत को भारत नहीं कह पाते
उनके विरुद्ध जागो।
घर में जागो,
जागो अपनी आत्मा में जागो।
२४.
सत्ता न मेरी होगी
न तेरी होगी
अन्त में उस ईश्वर की होगी।
२५.
भागो नहीं, भागो नहीं
देश की भाषा से, अस्मिता से
अपने पुरातन देश से।
ऊँची आवाज दो,
भागो नहीं गंगा से
लम्बे-ऊँचे हिमालय से।
डरो नहीं अपने कदमों से
अपनी लिखावट से
अपने अपरिचित ज्ञान से।
उड़ो, उड़ो और उड़ो
अपने प्यार के लिए उड़ो,
अनंत आकाश में उड़ो।
२६.
सुखभरा समय भी 
इसी भूमि में चढ़ा है,
दुखभरा समय भी 
इसी भूमि में गढ़ा है।

देख लो, नदी किस वेग से बह रही है,
देख लो, पहाड़ सब किस नाम से डटे हुए हैं,
नाम मेरे देश का बदला बदला लग रहा है,
भाषाएं मेरे देश की संविधान पर रो रही हैं,
कत्ल कैसे हो, सरकार सब बता रही है।

गर्व अभी भी चुनौती है, देश यह सुना रहा है,
तीर्थ पर जब आ गये, ईश्वर से क्या मांगना,
शुद्ध जो प्राण हैं, वही तो गुणगान हैं,
ऐसा मेरा देश है, अद्भुत इसके प्राण हैं।
२७.
ये जो प्यार है
यही तो प्रभात है,
यही जलती अग्नि है
यही तो उत्थान है।

यही राह का साथ है
जगमगाता आकाश है,
ये जो प्यार है
यही जीवित उत्साह है।

ये जो प्यार है
यही तो प्रकाश है,
क्षण दो क्षण जो मिले
वही पारावार है।
***महेश रौतेला