Shaamil in Hindi Poems by Ajay Amitabh Suman books and stories PDF | शामिल

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1.शामिल तो हो तुम मेरे दश्त-ए-तसव्वुर ,
फ़क़त कमी यही कि नसीब में नहीं हो।


दश्त-ए-तसव्वुर:ख्वाब[Desert of imagination]


2.मैंने कब चाहा फरिश्ता हो जाओ,
ये भी कम है क्या इंसान हीं हो पाना।


3.धूप में , छाँव में,
नहीं थकते कदम गाँव में।


4.ज्यों ज्यों मैं बढ़ता हूँ घटती जाती है,
यूँ हीं मेरी उम्र गुजरती चली जाती है।


5.मैं मुस्लिम तुम हिन्दू दिन रात जगते सोते,
रह गए हो बस तुम अखबार होते होते।


6.जमाने की पेशकश, ईमान डोलता है,
शब्द हैैं खामोश आज वक्त बोलता है।


7.हवाओं पे लिखी लकीरों के जैसी,
अपनी भी सच मे निशानी कुछ वैसी।


8.माँ की दुआओं का असर आया है,
आज चाँद जमीं पे उतर आया है।


9.मुर्दों के शहर में बड़ी सरगर्मी है आज,
उठ खड़ा है कोई लेेेकर इंक़लाब की आग।


10.आग में जल खाक बन जाने के बाद,
बहुत याद आतें हैं लोग राख बन जाने के बाद।


11.दिल में जख्म उसके यूँ हीं नहीं फला होगा,
जरूर उसको उसके उसूलों ने छला होगा।


12.पता नहीं किस लोक का, अजीब वो बशिंदा है,
हकीकत से घायल और ख्वाबों पे जिन्दा है।


13.सबूत,गवाह,अख़बार खा गई,
दीमक सारे मक्कार खा गई।


14.शहर में जीने के जाने ना राज,
या तो वो पागल है या तो है बाज।



15.खुद की ख्वाहिशों को राख करके,
रखता हूँ दामन को पाक करके।


16.आये हो लेने तुम किसका पता,
ढुढूं मैं खुद को और मैं लापता।


17.कौन कहता है "अमिताभ"रिश्ता नहीं निभाया था,
तुमने जितना तड़पाया था, मैंने उतना सताया था।


18.इंसान की ये फितरत, है अच्छी खराब भी,
दिल भी है दर्द भी है, दाँत भी दिमाग भी ।


19.ये वकील का पेशा है या, पत्थरों की दास्तां,
क़ि जीत पे जश्न नहीं, हार का गम नहीं।


20.हवा का भी अलग नाम लिख रखा है,
राम श्याम कहीं रमजान लिख रखा है।
दुआओं में ऐसा दिखा न असर पहले,
वन्दन कहीं तो सलाम लिख रखा है।


21.हाथ में होते हुए भी,
नहीं है आदमी के हाथ में,
अजीब है ये लकीरें
आदमी के हाथ की।


22.जीवन में रफ्तार के लिए ये जरूरी है,
कि विचारों में स्थिरता हो।


23.पंख हीं तो कतरें हैं , उम्मीद अभी बाकी है,
खुश ना हो सय्याद तेरी जीत अभी बाकी है।





24.जनता की आवाज बताते भी नहीं,
दबाते भी नहीं, उठाते भी नहीं।


25.कुछ इस तरह खत्म किया किस्सा तुम्हारी जीत का,
तुमने हमें हरा दिया और हमने तुम्हारे जमीर को।


26.ना खाओ हमसे कोई कसमे खुदा कसम,
या तो झूठी तेरी कसमें या तो तेरा खुदा।


27.अजी सुनते हैं,
मेरी रूठने से काहे आप इतना डरते हैं?


28.हममें तुममे पग डग जग में गर तेरे भगवान,
तो मंदिर के आगे झूठन क्यूँ खाता इंसान।


29.खुदा इन अमीरों को करे क्यों स्वीकार?
जिन्हें गरीबों की तस्वीरों से हीं बस है प्यार।


30.गलती ये नहीं कि तुम गलत हो,
गलती है औरों को गलत समझना।


31.झूठ के बाजार में यूँ मिला नहीं,
माजरा क्या है, तू हिला नहीं ।


32.कौन कहता है खुदा इंसाफ नहीं करता,
पलंग गरीबों को नसीब नहीं,
और अमीरों को नींद।




33.इस तरह से मुझसे ना मेरा हाल पूछो,
जो जनता नही मैं ना वो सवाल पूछो।


34.मेरे मरने में कोई आमिताभ कसर बाकी है,
जिंदगी का मुझपे लगता है असर बाकी है।


35.वकीलों का जीवन ना जीत में हार में,
जीते हैं बार में या पीते हैं बार में।


36.ना पूछो जनाब यूँ कि हम क्या करते है,
कूचे में दफन कर समंदर बस लिखते हैं।


37.इस तरह अमीर का कर्ज तू उतार दे,
ख्वाब तू उधार ले नींद तू उधार दे।


38.खुदा भी परेशान, फितरत-ए -इन्सान?
सोचता कुछ और,कहता कुछ और और करता कुछ और।


39.थोड़ा सा मै झुकूँ ,थोडा सा तू खुल जा,
मुझे तेरी इंसानियत रहे याद ,तू मेरी हैवानियत भूल जा।


40.फूलों के हार सजाऊँ मैं तब तक,
राहों में काँटे बिछाये तू जब तक।


अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित