Pratiksha in Hindi Poems by Tara Gupta books and stories PDF | प्रतीक्षा

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प्रतीक्षा

इस पुस्तक में सभी रचनाएं मेरी बहुत पहले की

लिखी है। कविताओं में प्रेम के भावों के साथ

आस एवं विश्वास का भी सामंजस्य है।आशा करती हूं , पाठकों को मेरी रचनाएं पसंद आयेगी।

धन्यवाद

वंदना

मां मुझे ज्ञान दे, मां मुझे वरदान दे ।

अज्ञानता तिमिर हर के,ज्ञान का श्रृंगार दे।

कोई न मजबूरी हो, कल्पना न कोरी हो।

लेखनी में मां मेरी ,शब्द का भंडार दे ।

तन मन में शक्ति हो, वाणी में ओज हो।

देशद्रोह मिटा सकूं, मां ऐसी देश भक्ति दे ।

तोड दूं उन रीतियों को, छिनती मुस्कान जो।

मां! मुझे प्रीत के संस्कार का वरदान दे।

कर सकूं काम मैं, देश हित के विकास का

भावनाओं में मेरी , ऐसा तू उबाल दे ।

मां मुझे ज्ञान दे , मां मुझे वरदान दे ।।

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अंत: व्यथा

अंतर मन की ये ज्वाला ,

क्यों मुझको तडपाती है।

अपनो ने मुंह मोड़ लिया,

याद उनकी क्यों आती है।।

मन के पन्ने पर तो था ,

तेरा ही तो नाम लिखा ।

वादे तेरे झूठे थे या ,

झूठा तूने नाम दिया ।।

मन के टूटे तारों से,

ध्वानि ये कैसी आती है।

पल पल बढ़ती आहट ,

बार बार चौकाती है ।।

थकी हुई सुधियों के तटपर ,

आशा दीप निहार रही ।

पल पल घटती लौ भी,

करूना से तुम्हें पुकार रही।।

सासों की संध्या शिथिल हुई,

अब मैं तो चलने वाली हूं।

घन अश्रु से बुझा जलन को,

मन क्या तन भी छोडे जाती हूं ।।

तुम तरूवर मैं लता तुम्हारी

तुम तरूवर मैं लता तुम्हारी ,

मुझको तेरी चाह बहुत है ।

डाली डाली मर्म है तेरा,

और लिपटना कर्म है मेरा।

तुम बन जाओ मनु अगर तो

मैं श्रद्धा बन जाऊं तुम्हारी ।।

प्यासा मन कब तक तरसेगा ,

नभ से कब बादल बरसेगा ।

घट घट में प्यास बहुत है। ,

बूंद बूंद की आस बहुत है।

बन जाओ तुम नभ के बादल ,

प्यासी धरती बनु तुम्हारी ।।

निशा दिवस का मेल अनोखा,

सुख दुःख जीवन है अनदेखा।

कर्म धर्म की राह बहुत है,

जीवन में मधुमास बहुत हैं।

तुम सूरज चंदा बन जाओ ,

मैं बन जाऊं किरन तुम्हारी ।।

प्रेरणा

तुम बनो मेरी प्रेरणा, मै गीत की रचना करूं ।

है प्रकृति में भाव अगनित,औ सजीला रूप भी।

दे दो अपने भाव मनके, हैं अनेकों रूप तुममें ।

बैठ सम्मुख मैं तेरे, तेरा ही अभिनंदन करूं ।

शक्ति है विश्वास भी ,और भावना कर्म की।

त्याग ममता प्रेम का मैं ,जानती हूं मर्म भी।

हर डगर पर साथ दो, है यहीअभिलाषा मेरी।

जिंदगी के सफ़र में सुंदर स्वर्ग की रचना करूं।

जानती हूं भाग्य का ही , होता यहां सब खेल है।

उदित नहीं हुआ अभी,सूरज मेरे सौभाग्य का।

आस संग, विश्वास का संयम संजोकर सदा।

जला प्रेम दीपक हृदय में भाव मैं तुममें भरूं ।।

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अनमोल सखि नयनों की भाषा।

उर में छिपी हुई व्याकुलता ,

आहट पर होती आकुलता।

भावों की इनमें होती क्षमता,

मौन समर्पण भी है पलता।

कर देती है ये दूर विषमता,

ले जीवन से मधुरिम आशा

अनमोल सखि नयनों की भाषा।।

जितने भाव हृदय में उठते ,

नैनों में आकर छा जाते ।

नैन शब्द खोजते फिरते,

नैन नैन से जब मिल जाते ।

अंत: स्थल में मधुर मिलन की,

उठती रहती प्रेम पिपासा।

अनमोल सखि नयनोंकी भाषा।।

उठे पलक में आमंत्रण है,

झुके पलक में मौंन निमंत्रण।

तिरछे चितवन का रूप सजिला

कोमल कलियों सा है शर्मिला। अश्रु नयन में भर-भर आते,

समझे न प्रितम इनकी परिभाषा। अनमोल सखि नयनों की भाषा ।।

मौन व्यथा

प्रणय साधना हुई न पूरी,

मृगतृष्णा में भटक रही हूं।

कर भावुकता को मैं काबू ,

अन्तर मन में तडप रही हूं ।

पूर्ण रूप से व्यक्त न होती,

मेरी पीड़ा कब सोती है।।

कुछ खट्टी, कुछ मीठी यादें,

निज सपने निज अपनी बातें।

मधुर कल्पना में रच बस कर,

भावों के संग रस छंदों में ।

मेरी लेखनी की आकुलता,

कुछ कहने को व्याकुल होती है।।

मौसम की हर आहट पर ,

मन आकाश द्रवित हो जाता।

प्यासे अधरों पर गीत जो आते,

दर्द मेरा आधा हो जाता।

शब्द शब्द मे तुम बस जाओ,

समझूं प्रीत सफल होती है ।।

क्या क्या व्यथा बताऊं मैं

छोड गये तुम भंवर जाल में, अनजाने पीपल की छांव में।

मन पत्ते सा डोल रहा, इस विरानों के ‌ गांव में।

कोई अपना नहीं दिखता है, किसको दर्द दिखाऊं मैं ।।

सुन कर दर्द मेरी आहों का, लोग जताते अपना पन है ।

शब्दों के प्रलोभन में , रिश्तों का सम्मोहन है ।

झूठे रिश्ते नातों से कैसे संबंध बढाऊं मैं ।।

इस धूप छांव के जीवन में , पग उठते हैं डरते डरते ।

बढ़ रही अंतस की ज्वाला, बात न ई करते करते ।

हर भावों में दर्द छिपा है, क्या क्या व्यथा दिखाऊं मैं।।

अनकही बहुत सी बातें हैं, अब खामोशी में जीती हूं ।

हुआ तिरोहित द्रवित हृदय, विचलित भावनल में ।

बहते अश्रु कणों से , कैसे प्यास बुझाऊं मैं ।।

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। । मैं राह तुम्हारी तक लूं ।।

मन भावों का सजा घरौंदा मंदिर मान लिया है।

तेरी पूजा तेरा अर्चन, मन में ठान लिया है ।

उर में श्रद्धा के भाव लिए, तेरा अर्चन कर लूं ।।

मैं राह तुम्हारी तक लूं ।।

अपना सारा जीवन मैंने, तेरे नाम किया है।

यादों के पनघट पर, मैंने स्नान किया है ।

वर्ण पद लय छंदों से,तेरा शत शत वंदन कर लूं।

मैं राह तुम्हारी तक लूं।।

तेरे आने से महकेगी मेरे जीवन की गली गली ।

मधुवन की हर डाली, हर पल्लव हर कली कली।

फूल फूल चुन कर मैं , स्वागत की लड़ियां गढ़ लूं।

मैं राह तुम्हारी तक लूं।।

मेरे मन की मधुर कल्पना, हैएक दूजे का सपना।

हो अराधना मेरी पूरी,रह न जाए अर्चना अधूरी।

मिले प्रसाद में अपनापन, अर्पण तन मन कर दूं।

मैं राह तुम्हारी तक लूं ।।

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।। फूलों से बिदाई ले लूंगी ।।

कोमल किसलय के अंचल पर, यह ओस नहीं बिखरी देखो ।

सृष्टि के नव पल्लव पर, ये नेह वृष्टि हमारी है ।

नव विकसित आशाओं में, मै शबनम बन के जी लूगीं ।।

है नही साज आवाज मधुर , है नहीं रागिनी भैरव की ।

मत राग विभावरी समझो तुम , यह प्रणय गीत है जीवन का।

सुख दुःख की लय पर जीवन, का हर पल हस कर सह लूंगी ।।

ये अश्रु नही बहते मेरे, ये अरमानों की बारिश है।

नम आंचल, मन है सूना, सूना घर का कोना-कोना ।

तुम यादों में बसते रहो, मै तन्हाई में जी लूगीं ।।

भावों से मुखरित जीवन में पतझर के गीत नहीं होते,

कलियों की मृदुल जवानी में , केवल मुस्कान छिपी होती।

तुम बन के चमन महकते रहो, मैं फूलों से बिदाई ले लूंगी।।

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।। मेरे अं त: की पीड़ा ।।

तुम क्या जानो मेरे अंत: की पीड़ा । क्यों कि न देखा तुमने!

सरिता की उठती लहरों में, भंवरों का बनता मिटता जाल ।

चंदा से मिलने को आतुर, सागर में लहरों का उछाल ।।

तुम क्या जानो ? क्यों कि न महसूस किया तुमने ।

क्यों छाई अम्बर में घटा काली । विरहन दामिनी की मुस्कान निराली।

झर झर बहते नभ के आंसू रीती करतेअम्बर की प्याली ।।

तुम क्या जानो ? क्यों कि न जाना तुमने ।

क्यों चटकी कलियां उपवन में, छलका के अपना रस छंद।

टूट गयीं सारी पंखुड़ियां, लुटा गई अपनी मकरंद।।

तुम क्या जानो ? क्योंकि न सुना तुमने ।

सुरभित अमराई में , कूकती कोयल की गुंजार ।

पी पी करती पपीहे की, दर्द भरी वो करूण पुकार ।

तुम क्या जानो। मेरे अंत: पीड़ा को ।।

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एक अध्याय

जिंदगी के साज पर छेड़ो नयी कहानी, रात गई बात गई और अब यादें पुरानी।।

आज जीवन का नया अध्याय खोलो ।

भाग्य डोलेगा अगर कुछ आज बोलो ।

प्रलय की आंधियों से डटकर लड़ूंगी।

तम मय तिमिर को भेद मैआगे बढूंगी।

तुम बनो प्रेरणा मैं प्रेरणा अधिकारणी । रात गई बात गई और अब यादें पुरानी।।

नव विभा का व्योम में है नया रूप निखरा।

मन अचेतन,बंद पलकें,हृदय में एक चेहरा।

तुम नयी आभा बनो,मैं अब किरन तुम्हारी ।

अब नहीं रोकेगी,राह कोई भी बाधा हमारी।

तुम बनो हृदय मेरा , मैं हृदय की स्वामिनी । रात गई बात गई ,और अब यादें पुरानी।।

तुम हो प्रणय की शक्ति औ विश्वास मेरा ।

जिंदगी की धूप छांव में रहेगा साथ तेरा ।

अब न जीवन में कहीं कोई कमी होगी ।

प्यार के पथ की थकन भी दूर होगी ।

तुम बनो पंथ मेरा, मैं पथ की अनुगामिनी ।रात गई बात गई और अब यादें पुरानी ।।

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