(1)
समय की सलवटें
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समय की सलवटों को सहेजता
उलझनों की झुरमुटों से झाँकता
एक चेहरा
निहारता है
दुलारता है
अपने अतीत को
जिसने मजबूती दी है
उसके असतित्व को।
अब मालूम है
कानून की कलाबाज़ियाँ
जो रोज रोज उघारता
जाँचता परखता है जनेन्द्रियाँ।
उसकी सोच पलट गयी है -
उसके पास है समाधान
अब वह नहीं है नादान
क्यों हो परेशान
हारी हुई बाजी नहीं है
वो
अकेले चलने को है तैयार
क्योंकि साथ है आत्मबल का हथियार।
न्याय तो उसी दिन मिल गया
जिस दिन धरती पर पांव दिया।
धीरे धीरे एहसास हुआ,
एहसास को बनाए रखना,
और जिन्दगी भर एहसास की रखवाली,
जैसे संगीनों के साये में सीमा की रखवाली,
चौकीदारों के पहरे में घरों की रखवाली,
बाँधो के बंधन में नदियों की रखवाली।
रखवाली में खतरा बना ही रहता है,
जरा सी चूक पर हंगामा बरपता है।
एहसास यह पले-
जो तुम हो वही हैं हम,
तुम में है दम तो हम भी नहीं कम,
तुम भी कोख से
मैं भी कोख से,
चलो साथ साथ।
हँसो साथ साथ।
पढ़ो साथ साथ।
खेलो साथ साथ।
बंधो साथ साथ।
जीओ और मरो साथ साथ।
ना तुम जीते ना हम जीते,
हम तो बने ही हैं हाथ में देने हाथ।
(2)
स्याही
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कागज पर स्याही से लिखी कविता कहानियाँ,
कई बार काट छाँट की
पन्नों को फाड़ा मरोड़ा,
एक तरफ ओलंपिक खेलों पर नज़र,
दूसरी तरफ मनोभावों पर रह रह कर,
ढ़ीली पड़ती पकड़।
टेंशन में एकाग्रता कहाँ रह पाती है।
खेलों में जीत हार का
मन पर भी गहराई में होता है असर।
यही कारण न तो कविता
न ही कहानी की निर्झरनी
स्याही बन
निकल रही है कागज पर।
ऐसा ही होता है जब मन विचलित होकर,
नहीं कर पाता
मंजिल तक सफर।
(3)
चक्रव्यूह
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चक्रव्यूह भेद जो निकल लिये ,
और जीत सदा ही हस्त किये ।
घर के द्रोही जयचन्दों के,
नापाक इरादे परख लिये।
बस समझो ऐसों का सर्वनाश है ।
लाखों उपाय कर भी ले
रहना उसको अब निरुपाय है ।
गद्दारों की खातिर सोचें
यह भी तो धिक्कार न्याय है।
(4)
समय
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समय तू धीरे धीरे चल,
अन्तिम दिन है इतना हलचल,
तो कैसा होगा कल।
पल पल निकल रहा है हमसे,
मत मुझसे आगे निकल,
वर्ष वर्ष यूं बीता जाये,
देकर कुछ शुभफल।
(5)
संशय
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संशय मिटा,काला धन्धा पिटा,
सबको लूटने वाले,देखो लूटा।
नोटबंदी की मार,
हजार पाँच सौ बेकार,
बक्सों में बंद काली कमाई को धिक्कार ।
कल तक ऐंठने वाले भींगी बिल्ली दिखा,
जाल मोदी का मारा ऐसा लपेटा
सबको लूटने वाले देखो कैसे लूटा।
(6)
रक्षाबंधन
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रक्षाबंधन
सिर्फ बंधन नहीं है कच्चे धागों का,
ये बंधन तो राह दिखाता,
हम जैसे अभागों का।
बहना रहें सुरक्षित शिक्षित
राखी नहीं दिखावों का।
हर पल पूरी करें तमन्ना,
और ढाल बनें तलवारों का।
(7)
हया-शर्म
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हया शर्म सब छोड़ के करते ऐसे काम,
अपनी सुविधा बनी रहे बाकी हो परेशान।
बाकी हों परेशान कि चलें वो सीना तान,
ऐसे दुष्टों का करिये तुरत ही मर्दन मान।
(8)
पटना की गर्मी
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जल गया !जल गया !जल गया रे!
पटना में आके जल गया रे।
पसीना जो ऐसा बह गया रे
देह का जल सब निकल गया रे।
पटना की गर्मी में पिघल गया रे
लावा में हवा बदल गया रे।
(9)
होली की ब्यूटी
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होली की ब्यूटी
कभी कभी तेरी छवि,
सबको लुभाती है,
कभी कभी तेरी हँसी,
सबको हँसाती है।
कभी कभी ब्यूटी तेरी,
सबको फँसाती है,
होली में शिकवे शिकायत नहीं,
तू रंग वर्षाती है।
होली होली,हैप्पी होली!
होली होली ही- ही होली!
सबको जीना सिखाती है
होली है,होली है,होली है।
चाल तेरी ऐसी शराबीओठ
तेरी ऐसी गुलाबी,
सबको झटके लगाती है,
मुखरा तेरा चंदा का टुकड़ा,
बालों में तेरे फूलों का गजरा,
आँखों में तेरे सूरमे का कजरा,
सबकी जान ले जाती है।
होली होली,हैप्पी होली!
होली होली ही -ही होली!
सबको जीना सिखाती है
होली है,होली है,होली है।
साल दर साल चेहरा तेरा,
साल दर साल नखरा तेरा,
साल दर साल घँघरा तेरा,
हँसकर होली सजाती है।
होली होली हैप्पी होली!
होली होली ही -ही होली!
सबको जीना सिखाती है
होली है,होली है,होली है।
तेरी अदा सबसे जुदा,
तेरी आँखें जिसपर फिदा,
सारा जमाना है
रंगों की रंगत,
हर दिल की मन्नत,
सब बैर मिटाना है
होली होली,हैप्पी होली!
होली होली ही -ही होली!
सबको प्रेम दिखाना है।
होली है,होली है,होली है।
(10)
रंग -गुलाल
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होली है डाल,लाल रंग वो गुलाल,
लाज शरम आज कहाँ ना कोई सवाल।
बड़ा छोटा संग संग करें मिल बवाल,
मस्ती में डूब जांए चलें बेढ़व चाल।
गाँव नगर ढ़ोल बजे और बजे झाल,
फाग के उल्लास में हो गये बेहाल।
जोगी जी के सा-रा-रा में ना कोई सुरताल,
भंग के तरंग में सब हैं गोलमाल।
होली है डाल, लाल रंग वो गुलाल
होली हमजोली बिना और बिन धमाल,
होली भौजी शाली बिना और बिना गाल।
छूटे ना गोरी कोई रंग दो रंग डाल,
प्रेम की पिचकारी में जादू है कमाल।
होली है डाल,लाल रंग वो गुलाल
(11)
जय या क्षय
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अब जय होगा या क्षय होगा,
जीवन में कोई प्रलय होगा,
हर रोज बिगड़ते मौसम में,
हर रोज रोज के मातम में,
उद्धारक का कब उदय होगा।
रोज रोज़ घटित घटनाओं पर,
पता नहीं कब मन उद्वेलित होगा।
देखते सुनते इन आँखों कानों पर,
विरोध का स्वर अजय होगा।
तब जीवन में कोई प्रलय होगा।
(12)
मंच सजाया
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मंच सजाया,
भीड़ जुटाया,
तारीफ में सुन्दर शब्द सजाया।
अगले दिन अखबारों में,
कहीं नहीं एक पंक्ति पाया ।
घुटता रहता है वह नित दिन ,
अपने व्यर्थ खर्चों को गिन गिन ,
महीना साल बीता हल्लों में,
ले भागा कोई उसका हक छिन ।
(13)
मैं अकेला
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मैं अकेला,
पूरा जिला
,
भेदकर शत्रु का किला।
सजा दिया सपनों का मेला।
(14)
तूफ़ान और भूचाल
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चल पड़ा जिन राहों पर,चलूं साल दर साल।
डिगा नहीं सकता ध्रुव को तूफान और भूचाल।
ताक़त देखनी है तो फेंको अपना नकली खाल।
महारथी नहीं चलते छिपकर,चलो सिंह की चाल।
बहुत फैलाये तुमने अबतक, षड्यंत्रों का जाल।
एक संपेरा ऐसा मिल गया विष की कि पड़ताल।
(15)
धूप-छांव
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कभी धूप बन कभी छाँव बन ,
कभी फूल बन कभी काँट बन,
बढ़ते रहो तू हर कदम,
रख पास मत कोई भी गम।
मुस्कान से मिलता है दम,
तू पाल मत कोई भरम।
सपने सजा,बाजा बजा,
तूफान से तू ले मजा।
मिल जाएगा सच्चा करम,
मिट जाएगा संशय भरम।
देखो जरा तू घूम कर,
नजरें फिरा कुछ दूर पर,
कई लोग हैं पागल बने,
उन्मत बने घायल बने,
रख हाथ उनकी पीठ पर,
मत डांट उनकी खीझ पर।
बन जाओ उनका हमकदम,
भरो भाव कि वे भी अह
म।
हँसना सदा जब मन करे,
रोना भी तू जब दिल करे,
ये राह हैं फिसलन भरे,
गिर गिर के भी जो चल पड़े,
करते रहो जो बन पड़े,
शाश्वत यही मेरा धरम,
जीवन का ये सच्चा मरम।
कभी धूप बन कभी छाँव बन,
कभी फूल बन कभी काँट बन,
बढ़ते रहो तू हर कदम,
रख पास मत कोई भी गम।
(16)
भूलना
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भूलना लोगों की आदत होती है
,
और भूल जाना समय की जरूरत होती है।
अगर ना भूलें तो ये मुसीबत होती है
,
भूलने के बाद आयी याद मुहब्बत होती है।
(17)
पल को थाम
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उस पल को थाम लो
जो फिर ना आयेगा
आयेगी सिर्फ याद और
तुमको रुलायेगा।
कई लम्हे कई अवसर
फिसलते हैं चूक से
बीते को बिसारोगे
तब सब कुछ पायेगा।
उस पल को
धीरज से काम लो
मिहनत से नाम होगा
तद़वीर ही तकदीर से
ऊपर उठायेगा।
कई साथी कई संगी
मारेंगे तुमको लंगी
खाकर इनकी ठोकर
नवयुग बनायेगा।
(18)
सोशल मीडिया
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नींद खुलते ही
सोशल मीडिया पर
गुडमार्निंग गुडमार्निंग की
झड़ी लग जाती है
रात में सोने से पहले
सोने की याद दिलाती
गुडनाइट गुडनाइट की
कड़ी बन जाती है।
बहुत खिझता था।
लगातार खोलकर पढना
औपचारिकता बस ही सही
जवाब भेजना पड़ता था।
पर इन दिनों मैं काफी खुश रहता हूँ।
खिझता नहीं
मन उकताता नहीं।
पर ऐसा क्या परिवर्तन हुआ मुझमें
बताता हूँ -
आज के बदलते परिवेश में
द्रुत गति से बढ़ते देश में
सड़कों पर चलती गाड़ियों
सुनसान राह,जंगल -झाड़ियों
मकान और उसकी चहारदीवारियों
आतंकी -नक्सलियों की गोली बारियों
मौतों के व्यापारियों
के बीच से जो बच निकलता है
वही सुबह में गुडमार्निंग
और रात में गुडनाइट भेजता है
अब मैं ढ़ूंढ़कर कम्पलिमेंट पढ़ता हूँ
और सबों की कुशलता तलाशता हूँ।
मुक्तेश्वर प्रसाद सिंह
सहरसा