Ek Apavitra Raat in Hindi Short Stories by MB (Official) books and stories PDF | एक अपवित्र रात (विश्वकथाएं)

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एक अपवित्र रात (विश्वकथाएं)

एक अपवित्र रात (विश्वकथाएं)

एक अपवित्र रात1

प्रेमिका को सलाह4

स्वागत-रोमन शैली7

आत्मस्वीकृति9

तीन दिलचस्प किस्से14

नंगा लड़का17

मुकाबला19

एक अपवित्र रात

उलरिख वॉन जेटजीखोवन

उलरिख वॉन जेटजीखोवन के वृत्तान्तों से ली गयी यह कहानी 13वीं सदी की है। बोधकथाओं या प्रकृत कथाओं से अलग यह प्रतीक-कथा अपने समय में एक नया आयाम उद्घाटित करती है।

जब लांसलॉट लड़का ही था, जब उसके दाढ़ी नहीं आयी थी, तभी की यह कहानी है, जिसके कारण वह अपने समय के वीरों और सभ्य जनों के बीच ईर्ष्या और कुचर्चा का विषय बन गया था।

एक बार वह दो वीर योद्धाओं के साथ गलागांद्रेज नामक जंगल के राजा के महल में गया। जंगल का वह राजा दो बातों के लिए प्रख्यात था - एक तो यह कि उसकी एक बहुत खूबसूरत लड़की थी, और दूसरी यह कि वह बहुत भयंकर आदमी था। उसके महल का नियम यह था कि कोई भी उसकी सुन्दरी लड़की की ओर यदि जरा भी बुरी निगाह से देखता पाया जाता, तो उसका सर धड़ से अलग कर दिया जाता था। बहुत-से वीर योद्धा यह गलती करके अपनी जान से हाथ धो चुके थे। वह शहजादी कुमारी थी, और उसके पिता की यह प्रतिज्ञा थी कि मृत्यु पर्यन्त वह कुमारी ही रहेगी।

लांसलॉट और उसके साथियों को राजा के भयंकर स्वभाव और हश्र के बारे में पहले ही कुछ मित्रों ने आगाह कर दिया था। उन्होंने तय भी यही किया था कि वे ऐसा कोई काम नहीं करेंगे, जो उस राजा को नागवार गुजरे।

गलागांद्रेज ने उन तीनों की बड़ी खातिर की। रात को जब वे तीनों सोने के लिए जाने लगे, तो गलागांद्रेज ने दहाड़ते हुए कहा, “सज्जनो! मैं चाहूँगा कि आप लोग पूरी पवित्रता से रात गुजारें... आपको उकसानेवाले कारण चाहे जितने संगीन हों, पर आप अपनी रात की पवित्रता की रक्षा करें।”

वे तीनों अभी आराम से लेटे ही थे कि दरवाजा खुला और शहजादी भीतर आयी। वह शमा पकड़े हुए थी। सबसे पहले वह ओर्फिलेट के बिस्तर के पास गयी, जो उन तीनों में सबसे सुन्दर जवान था और बोली, “मैंने प्यार की खूबसूरती के बारे में बहुत कुछ सुना है... यह भी सुना है कि प्यार सोने नहीं देता...”

ओर्फिलेट ने घबराकर कहा, “अगर तुम्हारे पिता को जरा भी शक हो गया, तो मेरी खैर नहीं है। वह चाहते हैं कि तुम कुँवारी रहो और मुझसे भी उन्होंने इस रात पवित्र रहने को कहा है...” इतना कहकर उसने करवट बदल ली और आँखें मूँदकर पड़ रहा।

क्रोधित शहजादी शमा लेकर दूसरे वीर कुरौस के बिस्तर के पास पहुँची। उसका तन और मन धधक रहा था। वह उससे बोली, “वीर कौन है, यह मैं बताऊँगी। जो औरत के लिए कायर नहीं है, वही वीर है। जो प्यार में दृढ़ और स्थिर होता है, वही वीर है। मैंने आपके बारे में बहुत-सी बातें सुनी हैं कि आप वीर भी हैं और प्रेमी भी...”

सोच-विचारकर कुरौस बोला, “आपके पिता ने यह ताकीद की है कि महल में रहते मैं ऐसा कोई काम न करूँ, जिससे उनके राजनियम भंग हों। मैंने यह भी सुना है कि नियम भंग करनेवाले को वह कभी माफ नहीं करते... इसलिए मैं आपसे भी यही कहूँगा कि आप शान्ति से अपने कमरे में जाकर सो रहें और रात को पवित्रता से गुजारें।”

यह सुनते ही शहजादी भीतर-ही-भीतर खौलने लगी, निराश और अपमानित महसूस करने लगी। उसने झटके से शमा को उठाया और चल दी। अभी वह दरवाजे तक पहुँची ही थी कि एक कोमल आवाज आयी, “शहजादी!”

शहजादी ने आश्चर्य से मुड़कर देखा। लांसलॉट अपनी दोनों बाँहें फैलाये उसे आलिंगन में आबद्ध करने के लिए खड़ा था।

शहजादी ने क्रोधित और अपमानित गर्व से कहा, “लड़के, तुम क्या चाहते हो?”

लांसलॉट ने कदम बढ़ाते हुए कहा, “यह सही है कि मैं अभी कच्चा युवक हूँ... पर मैं तुम्हारे पिता के आदेशों और नियमों की फिक्र नहीं करता। न उनसे डरता हूँ... तुमसे खूबसूरत शहजादी भी मैंने नहीं देखी... आओ...”

“युवक! तुम्हारे ओठ दारुसिता की पत्तियों की तरह अछूते हैं और तुम्हारी जुबान में जहर की मदहोशी है!” शहजादी ने बाँहें फैलाते हुए कहा।

“इतना ही नहीं... और भी बहुत कुछ मेरी इस कच्ची उम्र में है!” लांसलॉट ने कहा और शहजादी को उसने बाँहों में भर लिया।

लांसलॉट के दोनों साथियों ने उन दोनों को बहुत समझाया, बहुत मना किया, उन्हें पागल भी कहा, पर उन्होंने कोई चिन्ता नहीं की।

और तब साँसों का उत्तर साँसों ने दिया। स्पर्शों का उत्तर स्पर्शों ने दिया। कामनाओं का उत्तर कामनाओं ने दिया। दृष्टि का उत्तर दृष्टि ने दिया। तन का उत्तर तन ने दिया। मन का उत्तर मन ने दिया।

और पुराने कवियों ने मात्र इतना कहा कि लांसलॉट और शहजादी ने उस रात गहन प्रेम किया, इतना बेइन्तिहा प्यार किया, जितना कि कोई प्रेमी युगल कर सकता है, बस।

लोगों ने इस पागलनप के लिए लांसलॉट को बहुत दोष दिया। लेकिन यह सचमुच बड़े दुख की बात है कि प्यार पर दोषारोपण किया जाए और किसी सुन्दरी के अकेलेपन की कीमत पर यश खरीदा जाए।

***

प्रेमिका को सलाह

ओविड

आर्स आमेतोदिया’ यानी ‘प्यार की खोज’ - यह था पब्लियस ओविडियस नासो यानी ओविड की उस पुस्तक का नाम, जो अपने समय (पहली सदी ई.पू.) की सर्वाधिक लोकिप्रिय पुस्तक सिद्ध हुई। परिणाम? - क्या आप ने कभी किसी हताश रोमन के बारे में सुना है?

तुम्हारा पति भी उस डिनर-पार्टी में आमन्त्रित है, जिसमें कि मैं। मेरी तो यही इच्छा है कि भोजन से उसका गला घुट जाए और वह अकड़ जाए और उसे उठाकर ले जाना पड़े। क्या मुझे मात्र मेहमान बनकर ही रह जाना पड़ेगा और केवल इतना ही अधिकार मुझे रह जाएगा कि मैं उस शरीर को सिर्फ देख ही सकूँ, जिसे मैं प्यार करता हूँ? और तुम्हें छूने का अधिकार किसी और को प्राप्त होगा? क्या तुम उसी की ओर झुकती रहोगी और अपने सिर से उस ‘बेचारे’ के सीने को गरमाती रहोगी - जबकि वह कभी-कभार यों ही अपना हाथ तुम्हारी गरदन पर रखता रहेगा?

अब इस बात पर कौन आश्चर्य प्रकट करेगा कि जब एक सुन्दरी की शादी हो रही थी और शराब मेजों पर आ चुकी थी, तो लैपिथों और घुड़सवारों के बीच फसाद छिड़ गया? मैं जंगल का प्राणी नहीं हूँ और न ही मेरे अंग घोड़े जैसे हैं, लेकिन अपने आपको तुमसे दूर रखने के लिए मैं यही कर सकता हूँ। इसलिए अच्छा हो, इस डिनर के लिए एक खास शिष्टाचार अपने दिमाग में बिठा लो और इतनी दृढ़ता से बिठा लो कि मेरे इन शब्दों को तुम्हारे दिमाग से न तो पूरब की यह ठण्डी हवाएँ मिला सकें, न दक्खिन की झुलसा देनेवाली लूएँ!

अपने पति से पहले ही आने की कोशिश करो। ऐसा नहीं कि मेरे दिमाग में कोई ऐसी योजना है कि तुम पहले आओगी, तो मैं यह करूँगा। फिर भी, अगर हो सके, तो मेरे साथ चुपचाप सरकती जाना। जब वह कोच पर पसर कर लेटे, तो तुम भी अच्छी पत्नी की तरह उसके साथ पसर जाना। पर इस बात का ध्यान रखना कि तुम मेरा पाँव जरूर छू दो और कोई तुम्हें ऐसा करते हुए देख भी नहीं पाए। अपनी नजर मेरे चेहरे पर ही रखना और मेरे हर इशारे, हर हाव-भाव की ओर ध्यान देना। मेरे गुप्त इशारों को तुरन्त पहचानना और जवाब देती रहना। बिना एक शब्द बोले, मैं अपनी भृकुटियों से ही तुम्हें सब तरह की बातें बताता चला जाऊँगा और शराब से भीगी मेरी अँगुलियाँ जो-जो शब्द बनाती जाएँगी, तुम उन्हें पढ़ लोगी। जब तुम्हें याद आए कि मैंने तुम्हें ज्यादा भींच दिया है, तो अपनी खूबसूरत अँगुली अपने फूल-से कोमल गालों पर रख देना। अगर मेरे व्यवहार में तुम्हें कुछ भी आपत्तिजनक लगे, तो अपने कान के निचले हिस्से को हौले से दबा देना। और जब मैं कुछ ऐसा कह दूँ, जिससे तुम्हारे भीतर खुशी और आनन्द की लहरें उठने लगें, तो अपनी अँगुली की अँगूठी को घुमा देना और उसे घुमाती ही रहना।

जब भी तुम यह चाहो कि तुम्हारे पति के साथ कोई शरारत की जानी चाहिए - और वह इस लायक है कि उसके साथ जितनी बुराई की जाए, उतनी ही कम है - तो तुम मेज को वैसे ही पकड़ लेना, जैसे प्रार्थना के समय लोग वेदी को पकड़ लेते हैं। अगर तुम उतनी ही चालाक हो, जितनी मैं तुम्हें मानता हूँ, तो अपने पति से कहना कि वह उस प्याले को खुद पीए, जो उसने तुम्हारे लिए मिलाया हो और फिर नौकर को अपनी मरजी की शराब लाने के लिए धीमी आवाज में कहना। तुम्हारे प्याले को रखते ही मैं उसे उठा लूँगा और जहाँ से तुम्हारे ओठों ने उसे छुआ होगा, वहीं मैं भी छू दूँगा। अगर वह तुम्हें कोई ऐसी चीज खाने को मजबूर करे, जो उसे अच्छी लगी है, तो उसका जूठा मत खाना। और उसको इसका मौका भी मत देना कि अपनी बाँहों से तुम्हारी गरदन को घेरकर वह तुम्हें अपने करीब खींच ले। उसके बस्साते सीने पर अपना नाजुक सिर मत रखना। उसे इस बात का मौका भी मत देना कि वह तुम्हारी छातियों और फुसलानेवाले चुचकों को पकड़ सके। और, सबसे ज्यादा, उसे चुम्बन मत करने देना। अगर तुमने उसे चूमने की मूर्खता की, तो हमारा प्रणय-सम्बन्ध एकदम खुल जाएगा, क्योंकि मैं एकदम चिल्ला दूँगा, ‘‘तुम मेरी हो, उसकी नहीं।’’ और मैं तुम पर झपट पड़ूँगा। खैर, उस तरह की भूलें तो मुझे दिख ही जाएँगी। मैं इस बात को लेकर ज्यादा चिन्तित और शंकालु रहूँगा कि वस्त्रों के नीचे क्या चल रहा है। उसकी जाँघ को अपनी जाँघ से मत छुलाना। उसकी टाँग पर अपनी टाँग मत रखना। अपने खूबसूरत पाँव से उसकी गन्दी टाँग को मत गुदगुदाना। यह मेरी बदकिस्मती है कि सब तरह के बिम्ब मुझे परेशान किये हुए हैं, क्योंकि यही सब कुछ मैं खुद करता रहा हूँ। मेरे अपने उदाहरण का डर ही मुझे गिराये दे रहा है। मेरी लड़की ने और मैंने अक्सर इसी तरह सबकी नजरों से बचाकर क्षण भर का आनन्द पाया है। लेकिन मुझे यकीन है, तुम उसके लिए ऐसा कभी नहीं करोगी। बहरहाल, उस स्थान से सभी वस्त्र अलग किये रखना, जहाँ कुछ भी होने की सम्भावना हो सकती है। पीने के लिए पति को प्रोत्साहित करती रहना, पर इस प्रोत्साहन में चुम्बनों को मत शामिल करना। और जब यह पी रहा हो, तो चोरी से और शराब ढालना न भूलना। अगर वह पीकर ऊँघने लगे और पसर जाए, तभी पता चल पाएगा कि हमारे पास सम्पर्क का मौका है या नहीं। जब तुम जाने लगोगी, तभी हर आदमी चलने को उठेगा। घर की ओर जाते समय भीड़ के बीचोंबीच चलना मत भूलना। वहाँ हम एक-दूसरे को ढूँढ़ लेंगे, और तुम मेरे जिस किसी अंग को रगड़ सको, रगड़ देना।

अफसोस कि मेरी यह सारी सलाहें ज्यादा-से-ज्यादा कुछ ही घण्टों के लिए उपयोगी हो सकती हैं! जब हम अलविदा कहेंगे, तो मुझे तुम्हें भीतर जाने ही देना पड़ेगा। रात को तो तुम अपने पति की रहोगी - दरवाजे के पीछे बन्द! और अपने आँसुओं सहित मैं केवल तुम्हारे दरवाजे तक ही जा सकता हूँ, उसके आगे नहीं। तब वह वे सभी चुम्बन ले लेगा, जो वह लेना चाहेगा, और चुम्बनों से भी कुछ ज्यादा... और तुम्हें उसको वह सब खुलेआम देना पड़ेगा, जो मैं केवल चोरी-छिपे ही पा सकता हूँ। पर एक काम है, जो तुम कर सकती हो - तुम जहाँ तक मुमकिन हो, बुरी तरह पेश आ सकती हो - तुम समर्पण में भी शरीर को कड़ा और कठोर बनाकर विरोध कर सकती हो। प्यार का एक शब्द भी मत फुसफुसाना, ताकि सारा काम ही गड़बड़ा जाए। मैं प्रार्थना करूँगा कि इस सारी यन्त्रणा में से उसे कुछ भी प्राप्त न हो। लेकिन अगर तुम उसके लिए इसे नहीं बिगाड़ सकतीं, तो कम-से-कम खुद भी आनन्द मत उठाना और फिर घर जाने पर जो कुछ भी हो, कल मुझे सीधी-सरल भाषा में बता देना कि तुमने उसकी मदद के लिए कुछ भी नहीं किया।

***

स्वागत-रोमन शैली

ऐपुलियस

्रथम शताब्दी के अन्तिम चरण में रोमन साहित्य में दो शानदार कृतियों की वृद्धि हुई : एक थी ऐपुलियस की पुस्तक ‘सुनहरा गधा’ और दूसरी पेट्रोनियस की पुस्तक ‘सेटिरिकोन’। इन दोनों कृतियों का साहित्यिक स्तर अपने काल की अन्य कृतियों से कहीं ऊँचा है। प्रचलित संस्कृति ही इनका आधार था, जिसने इन्हें एकदम जीवन्त बना डाला है।

प्राचीन यूनान में बड़े बेहूदा मिजाज का एक आदमी रहता था। वह अपनी पत्नी को ताले में बन्द करके रखता था, ताकि कोई भी आदमी उससे मिल-जुल न सके। एक दिन उसे किसी काम से दूसरे शहर जाना पड़ा। जाने से पहले उसने एक जनखे, मिरमेक्स को बुलवाया। “सुन,” उसने जनखे से कहा, “अगर कोई आदमी गली में से गुजरते हुए मेरी बीवी को अँगुली से भी छू देगा, तो मैं तुझे खोह में जंजीरों से जकड़वा दूँगा। और तुझे भूखा मार डालूँगा।” इतना कहकर शान्त मन से वह यात्रा पर चल दिया।

मिरमेक्स मालिक की धमकी से डर गया। उसने मालिक की बीवी अरीती को ताले में बन्द कर दिया। वह सारा दिन भीतर बैठी ऊन कातती रहती। शाम को जब कभी उसे घूमने जाना होता, तो मिरमेक्स उसके साथ जाता और उसके पल्लू को थामे रहता।

अब, अरीती की खूबसूरती किसी से छुपी नहीं थी। फिलेसिटेरस नाम का एक युवक तो उसके पीछे दीवाना-सा था। उसने एक दिन मिरमेक्स को अकेले में पकड़ लिया और अपने दिल की बात उससे कह डाली। उसने कहा कि अरीती के प्यार में मैं झुलस रहा हूँ। “तुम्हारे लिए डर की कोई बात नहीं है।” वह बोला, “बस, मैं तो रात को घर के भीतर जाऊँगा। और थोड़ी देर बाद ही लौट आऊँगा।” तब उसने मिरमेक्स को सोने के कुछ चमचमाते सिक्के दिखाते हुए कहा, “ये सब तुम्हें मिल सकते हैं।”

इस सुझाव से वह गुलाम इस कदर बौखला गया कि डर के मारे भाग खड़ा हुआ। उस रात, स्वर्ण और कर्तव्य के दो पाटों के बीच पिसता हुआ, वह सो नहीं पाया। लेकिन सवेरा होने तक स्वर्ण की जीत हो चुकी थी। वह अपनी मालकिन के पास भागकर गया और उसने फिलेसिटेरस का सन्देश कह सुनाया। बरसों ताले में बन्द रही होने के कारण अरीती तो ऐसे किसी मौके की तलाश में ही थी। उसने सुझाव स्वीकार कर लिया। फिर मिरमेक्स दौड़ा-दौड़ा गया और फिलेसिटेरस को उसने बताया कि मालकिन उसके स्वागत के लिए तैयार है। मिरमेक्स को स्वर्ण-मुद्राएँ तुरन्त मिल गयीं।

उसी रात वह फिलेसिटेरस को अरीती के कमरे में ले गया। पर आधी रात के वक्त, मुख्य द्वार पर जोर से दस्तक होने लगी। अरीती का पति अचानक लौट आया था। जब दस्तक का किसी ने कोई जवाब नहीं दिया, तो वह चिल्लाने लगा और एक पत्थर से दरवाजे को पीटने लगा। गुलाम इस कदर डर गया कि मुश्किल से बोला कि चाबी खो गयी है और अँधेरे में मिल नहीं रही है। इस बीच फिलेसिटेरस भी अरीती की बाँहों से निकलकर खड़ा हो गया। गुलाम ने जैसे ही द्वार खोला और मालिक अन्दर आया, वैसे ही फिलेसिटेरस अँधेरे का फायदा उठाकर वहाँ से खिसक गया, पर दुर्भाग्य से अपने जूते वहीं छोड़ गया।

पति जब सुबह सोकर उठा, तो उसे अपने बिस्तर के नीचे किसी अजनबी के जूते दिखाई दिये। सच्चाई समझते उसे देर नहीं लगी। उसने फौरन जूतों को अपनी जेबों में ठूँस लिया और कहने लगा कि वह बीवी के प्रेमी को जरूर ढूँढ़ निकालेगा। उसने हुक्म दिया कि मिरमेक्स के हाथ उसकी पीठ पर बाँध दिये जाएँ। तब वह उसे खोह की तरफ ले चला।

भाग्यवश ऐसा हुआ कि फिलेसिटेरस उधर से आ निकला। पूरा दृश्य देखकर उसे अपनी गलती का भान हुआ। उसने तुरन्त एक तरकीब सोची और भागकर मिरमेक्स के पास पहुँचा। “बदमाश!” वह चिल्लाया, “मुझे उम्मीद है, तेरा मालिक तुझे ठीक ही सजा देगा...मैं तुझे खूब अच्छी तरह जानता हूँ। तू ही वह चोर है, जिसने कल शाम हमाम के पास से मेरे जूते चुरा लिये थे!”

इस बात का पति पर फौरन असर हुआ। मिरमेक्स को एक लात जमाते हुए वह बोला, “अरे गुलाम! अगर तू अपनी जिन्दगी के बाकी दिन किसी गुफा में नहीं गुजारना चाहता, तो इन महाशय के जूते फौरन वापस कर दे!” उसने जूते अपनी जेब से निकाले और जनखे के मुँह पर दे मारे और फिलेसिटेरस से भी माफी माँग ली। “मैं खूब समझता हूँ, श्रीमान,” फिलेसिटेरस बोला, “आजकल के गुलाम भरोसे के लायक हैं ही नहीं!”

पति सन्तुष्ट था। वह तुरन्त अपनी पत्नी से मिलने घर चल दिया। ‘आखिर वह भी तो इतने दिनों से उसके इन्तजार में होगी’ - उसने सोचा।

***

आत्मस्वीकृति

गियोवानी बोकेशियो

बोकेशियो (1313-1375) विश्व साहित्य के महान व्यक्तित्वों में से एक हैं। ‘डेकामेरॉन’ की सौ कहानियाँ मजाकिया लहजे और पार्थिव दायित्वों के कारण, अपने वक्त की पहचान बन गयी हैं। इनमें जिन्दगी के प्यार और मानवीय आत्मा की झलक है। यहाँ ‘डेकामेरॉन’ की पहली कहानी का रूपान्तर दिया जा रहा है।

एक बहुत ही धनी-मानी व्यापारी था, जिसका नाम था - मेसे म्युसियाटो फ्रांजेसी। उसे नाइट का खिताब मिल गया था। कुछ ऐसी मजबूरी आयी कि उसे फ्रांस के बादशाह के भाई, कालो से जातेरा के साथ तसकानी की यात्रा पर जाना पड़ा। जिसका निवेदन मिला पोप केनोफेस से। म्युसियाटो के काम कुछ इस कदर चारों तरफ उलझे और फैले हुए थे कि वह इतनी जल्दी और आसानी से छूट नहीं पा रहा था। इसलिए उसने तय किया कि वह दूसरों के जिम्मे अपने काम सौंप देगा। लेकिन एक मुश्किल बाकी रह गयी कि कोई विश्वासी आदमी मिल सके, जो उसकी उधारी रकम का बकाया बरगुण्डियन लोगों से वसूल सके। वह जानता था कि बरगुण्डियन लोग कितने झगड़ालू, धोखेबाज और बेहूदे हैं और उनसे पार पा सकनेवाला कोई माई का लाल उसे मिल सकेगा, यह वह सोच नहीं पा रहा था।

बड़ी गहन विचारणा और चिन्तन के बाद उसे एक नाम सूझा - से सियापेलेट्टो दा प्रैटो, जो अक्सर उसके पेरिस वाले निवासस्थान पर आता-जाता था। वह बहुत ही ठिगना था लेकिन वेशभूषा से बड़ा ही तेजदम लगता था।

सियापेलेट्टो दस्तावेजों को प्रमाणित करनेवाला एक अफसर था। जब भी उसे जाली दस्तावेज बनाने को कहा जाता, वह बना देता। ऐसा वह स्वेच्छा से कर देता, जबिक दूसरा कोई अगर करता भी, तो भारी रकम लेता। वह कसमें खाकर झूठी गवाही बड़ी शान से देता। उन दिनों फ्रांसीसियों का कसमों पर बड़ा विश्वास था और झूठी कसमें खाना-खिलाना आसान नहीं रह गया था।

कुछ और भी खसूसियत उसमें थीं, जैसे शैतानियाँ, शरारतें करने में उसे तकलीफ भी उठानी पड़ जाए, तो उसे तकलीफ नहीं होती थी। अफवाहें और दुश्मनी पैदा करके दोस्त-दोस्त या रिश्तेदारों को लड़ा देने में उसे मजा आता था। कत्ल तक के षड्यन्त्र में शामिल होने में उसे शरमिन्दगी नहीं होती थी, बल्कि खुशी-खुशी वह शामिल होता था। कई बार तो उसने खुद लोगों की गरदनें साफ कर दीं।

गिरजे की तरफ कभी उसे कदम उठाते नहीं देखा गया था। औरतों की तरफ उसकी रुचि कुत्सित थी। यानी कह लीजिए कि शायद उससे ज्यादा बुरा आदमी पैदा नहीं हुआ था। लम्बे अरसे तक उसकी चालाकियाँ मेसे म्युसियाटो की मदद करती रहीं, जिसके कारण मेसे म्युसियाटो उसे फँसने से बचा लेता।

जब म्युसियाटो के दिमाग में सियापेलेट्टो का नाम आया, तो मेसे के दिमाग में उसकी सारी जिन्दगी भी कौंध गयी। और उसने तय कर लिया कि उससे बढ़कर बरगुण्डियन लोगों से निबटने वाला मुश्किल से मिल पाएगा। यह सोचकर उसने से सियापेलेट्टो को बुलवाया और उससे कहा, “से सियापेलेट्टो, तुम जानते ही हो कि मैं अब हर चीज से मुक्ति ले रहा हूँ। तमाम सारी बातों के बीच मेरी यह भी परेशानी थी कि इन बदजात बरगुण्डियन लोगों से कैसे निबटा जाएगा। तुमसे अच्छा और कोई आदमी इस काम के लिए नजर नहीं आता, जो उनसे मेरा बकाया रुपया वसूल कर सके। तुम वसूल करके लाओ। उसका उचित हिस्सा तुम्हें मिले, ऐसी भी इच्छा है।”

से सियापेलेट्टो ने फौरन काम की हाँ भर ली। अदालती अधिकार उसे मिल गये। बादशाह की तरफ से सुरक्षा सम्बन्धी कागजात भी मिल गये। यह सब साथ बटोर कर जनाब बरगुण्डी पहुँच गये। और वहाँ पहुँचकर उसने बड़े सलीके से, शान्ति से पैसे वसूलने शुरू किये - ऐसे, जैसे कि उसने अपनी सारी शैतानी हरकतें आखिर के लिए सुरक्षित रख छोड़ी थीं।

वह जिनके यहाँ ठहरा था, वह दो भाई थे और दोनों मेसे म्युसियाटो की वजह से उसकी बड़ी इज्जत करते थे। इनके घर में वह बीमार हो गया। दोनों भाई परेशान थे। फौरन डॉक्टर को बुलाया गया। नौकर-चाकर उसकी देखभाल में लगा दिये गये और वह सब कुछ मुहैया करने की कोशिश की गयी, जिससे सियापेलेट्टो स्वस्थ हो सके। लेकिन सारी उपचार-व्यवस्था बेकार सिद्ध हो रही थी क्योंकि (जैसा डॉक्टरों ने बताया) भला आदमी एक तो काफी बूढ़ा हो चुका था और दूसरे बड़ी अव्यवस्थित जिन्दगी जीने के कारण रोजाना खराब से खराबतर स्थिति में बढ़ता जा रहा था। दोनों भाई बड़े परेशान! एक दिन दोनों इस समस्या पर विचार करने लगे।

“इस आदमी के बारे में अब क्या किया जाए?” एक ने कहा, “उसका काफी पैसा अपने पास है। इस तरह बीमार हालत में उसे भेजा भी नहीं जा सकता क्योंकि लोग कहेंगे, पहले अपने घर में रखा, डॉक्टर बुलाया, अब, जब मरने के नजदीक पहुँच गया है, तब घर से बाहर कर दिया। वह जिन्दगी भर बुराइयों में फँसा रहा है। गिरजे जाने का नाम नहीं लेगा और न अपने पाप स्वीकारेगा। बिना स्वीकार के कोई भी गिरजा उसकी लाश तक नहीं स्वीकारेगा। फिर लाश कुत्तों की तरह गटर में फेंक दी जाएगी और अगर ऐसा हो गया, तो इस देश के लोग हमारे घरों पर धावा बोलेंगे, चीजें उठा ले जाएँगे, कौन जाने आग लगा बैठें। इसलिए हम हर तरह से मुसीबत में हैं।”

से सियापेलेट्टो, दीवार के बिलकुल पास ही लेटा हुआ था। उसने वह सब सुन लिया था, जो उसके बारे में कहा गया था। उसने उन दोनों भाइयों को बुलवाया और कहा, “तुम्हें मेरे बारे में किसी प्रकार के संकोच करने की जरूरत नहीं है। तुमने जो कुछ कहा, वह सब मैंने सुन लिया है। और जैसा तुम सोचते हो, यदि ऐसा है, तो स्थिति वैसी ही होगी, जैसा तुम सोचते हो। लेकिन ऐसा होगा नहीं। मैंने अपनी जिन्दगी में ईश्वर के खिलाफ बड़े पाप किये हैं। अब अगर मरते समय एक और कर लिया, तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा। इसलिए कोई अच्छा पवित्रात्मा सन्त बुलवाओ, और बाकी मेरे ऊपर छोड़ दो।”

गोकि दोनों भाई इस दिशा में बहुत उम्मीद नहीं बाँध पा रहे थे, फिर भी उन्होंने सन्त-महात्मा की खोज में नौकर भेजा ताकि कोई साधु आकर उसकी स्वीकारोक्ति सुन सके। एक बूढ़ा सन्त मिला -विद्वान, धर्मात्मा, जिसके प्रति लोग स्वतः श्रद्धालु थे।

और जब सन्त सियापेलेट्टो के कमरे में पहुँचा, तो वह उसकी बगल में जाकर बैठ गया और उसे धीरे-धीरे सान्त्वना देने लगा। सन्त ने पूछा कि वह कितने अरसे से स्वीकारोक्ति की मनःस्थिति में है। से सियापेलेट्टो, जो कभी भी इस मनःस्थिति में नहीं आया था, बोला, “फादर, यह हमारा रिवाज है कि कम-से-कम हफ्ते में एक बार तो गिरजे में जाकर अपने गुनाहों पर नजर डालें, तो गोकि ऐसे अनेक सप्ताह बीते हैं, जब हमने अक्सर गुनाहों पर नजर डाली है, लेकिन यह सही है कि पिछले आठ दिनों से, जब से मैं बीमार पड़ा, मन ऐसा नहीं किया। बीमारी ने मुझे मजबूर कर दिया।” सन्त ने कहा, “बेटे, तुमने ठीक किया है, बल्कि तुमने जैसा किया है, उसको तो लोगों को आदर्श मानकर चलना चाहिए।”

सन्त ने फिर पूछा कि उसने कभी किसी स्त्री के साथ किसी वासना-सम्बन्ध में अपने को अपवित्र तो नहीं किया? से सियापेलेट्टो ने एक आह भरी। “फादर, इस बारे में सच बोलते मुझे शर्म आ रही है, क्योंकि डर है कि उसे झूठी शान बघारना न मान लिया जाए।”

“बहादुरी से सच-सच बताओ,” सन्त ने कहा, “क्योंकि सत्य बोलने में कोई पाप नहीं होता।”

“चूँकि आप मुझे ढाढस बँधा रहे हैं। मैं बता रहा हूँ, मैं उसी तरह पवित्र हूँ, जिस तरह माँ की कोख से पवित्र आया था।”

“भगवान तुमपर मेहरबान हो।” सन्त ने कहा, “ऐसा करके तुमने बहुत बड़ा काम किया है, क्योंकि उसके विपरीत करने के लिए हमसे ज्यादा तुम स्वतन्त्र हो, जो कि अनुशासन के बन्धन में बँधे रहते हैं। इस तरह तुमने ज्यादा पुण्य कमाया है।”

सन्त ने प्रसन्न होकर फिर कहा, “तुम इस तरह अपनी आत्मा में सोच रहे हो, इससे मुझे खुशी है। लेकिन यह तो बताओ, तुम कभी माया की तरफ खिंचे हो, यानी कि क्या तुमने उचित से अधिक की चाहना की है?”

से सियापेलेट्टो बोला, “फादर, आप मुझे गलत न समझें, इसलिए कि मैं इन सूदखोरों के घर में ठहरा हुआ हूँ, मेरा इनसे कोई लेना-देना नहीं। मैं तो केवल इन्हें चेताने आया था और इन्हें इस घिनौनी अर्थ-लिप्सा से छुड़ाने आया था। आपको विश्वास होना चाहिए, मेरे पिता मेरे पास काफी सम्पत्ति छोड़ गये, लेकिन जब वे मरे, तो मैंने उसका अधिकांश ईश्वर के काम में दे दिया। अपने काम से अपनी जीविका कमाकर जो बचाया, उसका आधा हमेशा ईश्वर के बन्दों के लिए बाँट दिया। बाकी आधा अपने लिए रखा।”

इसके बाद सन्त ने उससे और तमाम बातों पर सवाल किये, जिनका उत्तर उसने इसी तरह दिया लेकिन जब वह मुक्ति-मन्त्र देने को ही था कि से सियापेलेट्टो आहें भरते-भरते रोने लगा।

“यह क्यों, मेरे बेटे?” सन्त ने पूछा।

से सियापेलेट्टो ने कहा, “एक गुनाह और रह गया है, जिसकी चर्चा मैंने नहीं की। उसके कहने में मुझे बेहद शरमिन्दगी लग रही है। लेकिन जब-जब मैं उसकी याद करता हूँ, मुझे इसी तरह रोना आता है। ईश्वर उसके लिए मुझे कभी माफ नहीं करेगा।”

सन्त ने कहा, “तुम खुलकर बताओ, मैं ईश्वर से तुम्हारे लिए प्रार्थना करूँगा।”

से सियापेलेट्टो एक आह भरकर बोला, “फादर, आपने वादा किया है कि आप ईश्वर से मेरे लिए प्रार्थना करेंगे, इसलिए आपको बता रहा हूँ कि जब मैं छोटा था, मैंने एक बार अपनी माँ को कोसा था।”

सन्त ने कहा, “तुम्हें यह गुनाह इतना बड़ा लगता है? अरे, आदमी रोज दिन भर ईश्वर को कोसते रहते हैं और वह उनको माफ करता रहता है - जो सच्चे दिल से इसके लिए पछतावा करते हैं। तो क्या तुम सोचते हो, वह तुम्हें नहीं माफ करेगा?”

और जब सन्त ने देखा कि अब उसके पास स्वीकार करने के लिए कोई और गुनाह नहीं रह गया, तो उसने अपने वरदान देकर उसपर मुक्ति-मन्त्र की वर्षा कर दी। इस सबके बाद सन्त ने कहा, “से सियापेलेट्टो, ईश्वर की दया से तुम जल्दी ही अच्छे हो जाओगे, लेकिन मान लो, अगर ईश्वर तुम्हारी आत्मा को अपने पास बुलाना ही चाहे, तो क्या तुम इसके लिए तैयार हो कि तुम्हारी मिट्टी हमारे कानवेण्ट में दफनायी जाए?”

से सियापेलेट्टो ने कहा, “बेशक, फादर, आपके यहाँ के अलावा मैं और कहीं नहीं चाहता कि दफनाया जाऊँ। आप मेरे लिए ईश्वर से प्रार्थना करनेवाले हैं और मैं आपके प्रति विशेष श्रद्धा रखता हूँ।”

सन्त पुरुष ने कहा कि वह उसकी बातों से बहुत प्रसन्न है और अपना आशीष देकर वह वापस चला गया।

उसके थोड़ी ही देर के बाद से सियापेलेट्टो की हालत बिगड़ने लगी और वह चल बसा। दोनों भाइयों ने उसी के पैसे पर उसे बाइज्जत दफनाने की व्यवस्था कर दी।

जब पवित्र सन्त ने, जिसने उससे स्वीकारोक्ति करायी थी, सुना कि उसका देहान्त हो गया है, तो उसने सभी सन्तों को बुलाया और बताया कि उसके गुनाहों की स्वीकारोक्ति से उसने से सियापेलेट्टो को कितना महान समझा था और इस धारणा के साथ कि उसके माध्यम से ईश्वर कोई चमत्कार अवश्य करेगा, उसने सभी को इसके लिए राजी किया कि उसका शरीर कानवेण्ट में दफनाने के लिए विशेष आदर और निष्ठा के साथ प्राप्त किया जाना चाहिए।

जब लाकर उसे गिरजे में रखा गया, तो स्वीकारोक्ति कराने वाले सन्त ने उसके जीवन, उसके संयम, उसकी सादगी, उसकी पवित्रता आदि पर विशेष उपदेश दिये और फिर बताया कि उसने अपना आखिरी गुनाह किस तरह रो-रोकर बताया था।

इसके अलावा सन्त ने और भी बहुत-सी बातें कहीं, जिसका ऐसा गहरा प्रभाव पड़ा कि सारे लोग प्रार्थना के बाद उसकी लाश पर टूट पड़े और उसके स्पर्श को पाकर धन्य हो लेने के लिए लालायित हो उठे।

उसकी ख्याति ऐसी फैली कि उसकी पवित्रता और भक्ति के सामने बड़े-बड़े सन्तों की ख्याति फीकी पड़ गयी।

***

तीन दिलचस्प किस्से

सादी

सादी (जन्म 1200 ईस्वी) की पुस्तक ‘गुलिस्ताँ’ ने उसे न केवल ख्याति ही दी, उसे विश्व-साहित्य में भी स्थान दिला दिया। इस संग्रह की सभी कहानियाँ, किसी न किसी उपदेशात्मक टिप्पणी को रेखांकित करती हैं। यहाँ सादी की तीन कहानियाँ दी जा रही हैं।

1

एक आदमी ने अपने काम में महारत हासिल कर ली थी। वह कुश्ती कला में सर्वगुण सम्पन्न था। अपनी कला के तीन सौ साठ दाँव वह जानता था और लगभग हर दिन वह कोई-न-कोई नया दाँव दिखाता रहता था। एक खूबसूरत नौजवान शागिर्द को वह बहुत पसन्द करता था। इसलिए उसने उसे तीन सौ उनसठ दाँव सिखा दिये थे। केवल एक नहीं सिखाया था।

नौजवान शागिर्द में कुश्ती कला को एक और महारथी मिल गया था - वह ताकत से भरपूर था, इसलिए कोई भी पहलवान उसके सामने टिक नहीं पाता था। आखिर एक दिन उसने सुलतान के सामने जाकर कहा कि अब उसका उस्ताद इतना बूढ़ा हो चुका है कि वह उसे अपने से बेहतर पहलवान मानने से इनकार करता है। “मैं ताकत में उससे किसी नज़र से कम नहीं हूँ।” वह बोला, “मुझे सभी दाँव भी मालूम हैं।”

सुलतान को उसकी यह बात पसन्द नहीं आयी। उसने हुक्म दिया कि मुकाबला होना चाहिए। मुकाबले के लिए एक बड़े मैदान की खोज की गयी। मुकाबले के दिन वजीर और दूसरे दरबारी मैदान में इकट्ठा हुए। नौजवान शागिर्द किसी झूमते हुए मस्त हाथी की तरह अखाड़े में दाखिल हुआ। ऐसा लगता था जैसे वह लोहे के मजबूत पहाड़ को भी हिलाकर रख देगा। उस्ताद जानता था कि उसका शागिर्द ताकत में उससे इक्कीस है, इसलिए उसने उस पर वही दाँव आजमाया, जो उसने उसे नहीं सिखाया था। शागिर्द चकरा गया। उस्ताद ने उसे दोनों हाथों से उठा लिया और उसे अपने सिर से भी ऊँचा उठाकर जमीन पर पटक दिया।

दर्शकों की भीड़ हो-हल्ला करने लगी। सुलतान ने आज्ञा दी कि उस्ताद को फौरन शाही लिबास और धन इनाम में दिया जाए। तब सुलतान ने नौजवान शागिर्द की इस बात के लिए भर्त्सना की कि वह अपने आपको अपने उस्ताद से बेहतर पहलवान समझता था।

नौजवान बोला, “शाहे आलम, मेरे उस्ताद ने अपनी ताकत और क्षमता के बल पर मुझे नहीं हराया। उन्होंने एक ऐसे दाँव से मुझे पीट डाला, जो उन्होंने मुझे सिखाया ही नहीं था।

उस्ताद ने कहा, “मैंने आज के जैसे मौके के लिए ही उसे बचा रखा था। सयानों ने कहा भी है : ‘अपने दोस्त को भी इतनी ताकत मत सौंपो कि तुम्हारा दुश्मन हो जाने पर वह उसी ताकत से तुम्हें गिरा दे।’ क्या तुमने उस आदमी की बात नहीं सुन रखी, जिसे उसके किसी शागिर्द ने ही नुकसान पहुँचाया था? या तो इस दुनिया में एहसान नाम की चीज कभी थी ही नहीं, या फिर आज उसका वजूद नहीं रह गया है। मैंने आज तक कोई ऐसा आदमी नहीं देखा है, जिसे मैंने तीर चलाना सिखाया हो और उसने आखिर में मुझे ही अपना निशाना न बनाया हो!”

2

उन्होंने एक आलिम से पूछा, “किसी खूबसूरत दोशीजा के साथ अगर कोई छुपकर आराम से बैठा हो, दरवाजे बन्द हों, दुश्मन सो रहे हों, तमन्नाएँ सुलग रही हों। जवानी छलक रही हो, जैसी कि अरबी कहावत है, खजूरें पक गयी हों, रखवाला कोई अड़चन न डाल रहा हो, क्या तब आदमी जब्र करके खुद को रोक सकता है?”

आलिम ने जवाब दिया, “अगर वह दोशीजा से अपने को बचा ले जाए, तब भी बदनामी से नहीं बच पाएगा। अगर आदमी जब्र करके खुद को रोक ले, तब भी दुनिया उसके बारे में गलत ही सोचती रहेगी। आदमी चाहे अपनी आग को दबा जाए, पर दुनिया की जबान बन्द नहीं कर पाएगा!”

और अल्लाह जानता है, आलिम ने गलत नहीं कहा था। दुनिया में कौन ऐसा इनसान है, जिसे दुनिया की जबान ने काटा नहीं है?

3

एक बार की बात है कि उमर-उल-ऐस का एक गुलाम भाग गया। एक आदमी उसके पीछे भेजा गया। वह उसे पकड़कर ले आया। वजीर उस गुलाम का दुश्मन था, इसलिए उसने हुक्म दिया कि उसका सर कलम कर दिया जाए, ताकि दूसरे गुलामों को भी सबक मिले कि भागने का क्या नतीजा होता है।

गुलाम उमर-उल-ऐस के सामने जमीन पर लेट गया और बोला, “माई-बाप, आपकी आज्ञा से मेरी जो गत बनायी जाए, वह कानून की नजर में उचित होगी। मालिक के सामने गुलाम की बिसात ही क्या है! पर यह देखते हुए कि मैं आपके घर के ऐश्वर्य में पला और बड़ा हुआ हूँ, इसलिए मैं नहीं चाहता कि कयामत के दिन आप पर मेरे खून का इल्जाम लगाया जाए। अगर आपका इरादा गुलाम को मार डालने का ही है, तो यह काम भी आप कानून के तहत ही कीजिए, जिससे कयामत के दिन आपको तकलीफ न उठानी पड़े।”

राजा ने पूछा, “तो यह काम कैसे किया जाए?”

गुलाम ने कहा, “आप मुझे इस बात की इजाजत दे दीजिए कि मैं वजीर का खून कर दूँ और तब, इसके बदले में, आप मुझे कत्ल कर देने का हुक्म दे सकते हैं - तभी आपका मुझे मारना न्यायसंगत भी होगा।”

राजा हँस पड़ा और उसने वजीर से पूछा कि उसकी इस सम्बन्ध में क्या राय है।

वजीर बोला, “शहनशाह, अपने मरहूम वालिद के मकबरे के लिए इस बदमाश को छोड़ दीजिए, ताकि मैं भी संकट से बच सकूँ। जुर्म मैंने किया है, क्योंकि मैंने सयानों के शब्दों को भुला दिया, जो कहते हैं कि अगर तुम किसी ऐसे आदमी के साथ लड़ोगे, जो तुम पर ढेले फेंकता है, तो अपनी बेवकूफी की वजह से तुम अपना ही सिर फोड़ोगे। अपने दुश्मन पर तीर चलाते वक्त तुम्हें खुद उसके निशाने की पहुँच से बाहर ही रहना चाहिए।”

***

नंगा लड़का

मीस्तर एकहार्ट

मीस्तर एकहार्ट (1260-1328) के बारे में खास कुछ पता नहीं। लेकिन जर्मन छोटी कहानी के बीज एकहार्ट की लघुकथाओं में बखूबी देखे जा सकते हैं।

मीस्तर एकहार्ट को (एक दिन) एक खूबसूरत नंगा लड़का मिला।

उसने उससे पूछा कि वह कहाँ से आया था।

वह बोला, “मैं खुदा के पास से आया हूँ।”

“तुमने उसे कहाँ छोड़ा?”

“भले दिलों में।”

“तुम जा कहाँ रहे हो?”

“खुदा के पास।”

“वह कहाँ मिलेगा तुम्हें?”

“जहाँ मैं सभी जीवों से बिछड़ूँगा।”

“तुम हो कौन?”

“राजा।”

“तुम्हारा राज्य कहाँ है?”

“मेरे दिल में।”

“तो देखना, कोई उस पर कब्जा न कर ले!”

“अच्छी बात।”

तब वह उसे अपने कमरे में ले गया।

“तुम अपनी मरजी से कोई भी कोट ले लो।”

“तब मैं राजा कहाँ रह जाऊँगा?”

और तब वह गायब हो गया।

दरअसल वह स्वयं खुदा था - और थोड़ा-सा मौज-मजा करने आ गया था।

***

मुकाबला

मिगुएल डि सर्वाण्टीज़

पिकारेस्क नॉबेल का जनक और स्पेन का सर्वाधिक प्रतिभाशाली कथाकार सर्वाण्टीज़ (1547-1616) जिन्दगी भर गरीबी और गुमनामी से जूझता रहा। अपने जमाने को समझने में सर्वाण्टीज़ किस कदर सफल रहा, इसका अनुमान यहाँ प्रस्तुत अंश से लग सकता है, जो आज के भाषणवादी राजनीतिज्ञों पर भी करारे व्यंग्य का काम करता है।

एक बार ऐसा हुआ कि यहाँ से कोई साढ़े चार योजन दूर एक महाशय का गधा पेड़ों के एक झुण्ड में खो गया। लोग कहते हैं कि यह उनकी एक नौकरानी की कारस्तानी थी - लेकिन सच्चाई क्या है, किसी को पता नहीं। इतना जरूर निश्चित था कि गधा खो गया था और मिल नहीं रहा था - न जमीन पर, न उसके नीचे, न उसके ऊपर।

अब इस गधे को खोये हुए कोई एक पखवाड़ा बीता था। कुछ लोग कहते हैं कि ज्यादा दिन बीते थे, कि इसी कस्बे के एक और महाशय उन महाशय से बाजार में मिल गये, जिनका गधा खोया था और “भाई”, वह बोले, “मुझे आप खासा इनाम दें, तो मैं आपको आपके गधे के बारे में सूचना दे सकता हूँ।”

“सच!” दूसरे महाशय ने उत्तर दिया, “वह तो मैं दूँगा ही! पर मुझे बताइए तो सही कि वह बेचारा जानवर है कहाँ?”

“अरे,” उन महाशय ने कहा, “आज सुबह ही सामनेवाली पहाड़ी पर तो मैंने उसे देखा है - बिना काटी बोरे और फर्नीचर के! और वह इतना दुबला हो चुका है कि देखकर मेरे दिल को कष्ट हुआ... पर साथ ही इतना जंगली बन गया है कि जबकि उसे मैं अपने आगे-आगे घर ले गया होता, वह तो ऐसे भागा, जैसे उसके भीतर शैतान बैठा हुआ हो। और वह घने जंगल में घुस गया। अब अगर आप चाहें, तो हम दोनों इकट्ठे जाएँ और उसे ढूँढ़ निकालें। मैं जरा घर जाऊँगा और अपने इस गधे को वहाँ छोड़ूँगा। फिर वापस आपके पास आऊँगा। तब हम तुरन्त चलेंगे।”

“ठीक, है भाई,” दूसरे ने कहा, “मैं आपका बड़ा आभारी हूँ और कभी-न-कभी आपके इस नेक काम का बदला जरूर चुका दूँगा।”

कहानी इससे ज्यादा या कम नहीं थी। जो इसे जानते हैं, वे भी इसे लफ्ज-ब-लफ्ज यों ही सुनाते हैं। थोड़े में कहें, तो वे दोनों महाशय, हाथ-में-हाथ डाले पहाड़ी पर चढ़ गये और सब ओर गधे को ढूँढ़ने लगे। लेकिन बहुत ढूँढ़ने पर भी गधा नहीं मिला। तब जिन महाशय ने उसे देखा था, वह बोले, “मेरी बात सुनिए, भाई, आपके इस गधे को ढूँढ़ निकालने की एक तरकीब मेरी खोपड़ी में आयी है। वह जरूर मिल जाएगा। चाहे वह धरती में ही क्यों न समा गया हो। आपको पता होना चाहिए, मैं बड़ी अच्छी तरह रेंक सकता हूँ, बस, अगर आप भी उसी तरह रेंक सकें, तो काम बन जाएगा।”

दूसरे महाशय बोले, “अरे, उसमें तो मेरा कोई मुकाबला ही नहीं कर सकता!”

“तो ठीक है। मेरी योजना यह है कि आप पहाड़ी के एक ओर जाइए और मैं दूसरी ओर जाता हूँ। एक बार आप रेंकें, एक बार मैं रेंकूँगा। मेरा खयाल है कि अगर आपका गधा आसपास कहीं होगा, तो वह अपने ‘भाई’ की आवाज सुनकर जरूर जवाब देगा।’

“ईश्वर की सौगन्ध भाई,” दूसरे महाशय ने कहा, “दुर्लभ योजना है आपकी भी!”

अब योजना के मुताबिक वे एक-दूसरे से अलग हो गये। और जब वे काफी दूर-दूर हो गये, तो उन्होंने इतना अच्छा रेंकना शुरू कर दिया कि एक-दूसरे को धोखे में डाल दिया। और गधे के मिलने की उम्मीद में जब वे एक-दूसरे को मिल गये, तो “क्या यह मुमकिन है, भाई,” गधे के मालिक ने कहा, “कि जो रेंका, वह मेरा गधा नहीं था?”

“वाकई, भाई, वह नहीं, मैं ही रेंक रहा था,” दूसरे महाशय ने जवाब दिया।

“अच्छा, भाई,” मालिक महाशय चिल्लाये, “तब तो आप में और गधे में फर्क कर पाना ही कठिन है! मैंने तो इतनी स्वाभाविक आवाज कभी जिन्दगी में सुनी नहीं थी!”

“अजी छोड़िए, साहब,” दूसरे महाशय बोले, “मैं तो आपके सामने कुछ भी नहीं हूँ। आप तो पूरे साम्राज्य में किसी भी रेंकने वाले से दोगुना अच्छे हैं और मैं आपसे आधा ही! आपकी आवाज बड़ी बुलन्द है और दूर तक पहुँचनेवाली भी! आपकी लय भी शानदार है, आप कुछ भी छोड़ते नहीं और आपकी तान पूर्ण और मार्मिक है! थोड़े में कहूँ, श्रीमन्, तो मैं आपके आगे पानी भरता हूँ!”

“अच्छा तो, भाई,” गधे के मालिक ने कहा, “आइन्दा मैं अपने इस गुण के बारे में हमेशा ध्यान रखूँगा, क्योंकि यद्यपि मैं जानता था कि मैं अच्छा रेंक लेता हूँ, पर उससे पहले मैंने अपने आपको इतना अच्छा रेंकनेवाला नहीं समझा था!”

“तो देखा,” दूसरे महाशय बोले, “अज्ञान के कारण कई बार दुर्लभ गुण भी नष्ट हो जाते हैं! कोई भी आदमी अपनी ताकत और गुणों को तब तक नहीं जानता, जब तक वह उनकी परीक्षा नहीं कर लेता।”

“सही है, भाई,” मालिक महाशय बोले, “अगर यह काम, जिसे हम कर रहे हैं, हमारे हाथ में नहीं आया होता, तो मुझे इस चमत्कारी गुण का कभी पता ही नहीं चलता, तो आओ, फिर इसमें जुट जाएँ।”

इस पारस्परिक प्रशंसा के बाद वे फिर अलग-अलग चल दिये। फिर से वे रेंकने लगे-यह पहाड़ी के इस ओर और वह पहाड़ी के उस ओर। लेकिन फायदा कुछ नहीं हुआ, क्योंकि इस बार भी रेंकने से वे धोखा खा गये और फिर-एक दूसरे के सामने जा पहुँचे।

अन्त में उन्होंने यह निश्चय किया कि वे एक बार नहीं, दो-दो बार रेंकेंगे, ताकि यह पता चल सके कि वे ही रेंक रहे हैं, गधा नहीं।

पर इससे भी कोई फायदा नहीं हुआ - रेंक-रेंक उनकी जान निकल गयी, लेकिन गधे ने कोई उत्तर नहीं दिया। और दरअसल वह उत्तर देता भी तो कैसे, जबकि वह बेचारा - बाद में जब वह उन्हें दिखाई दिया, तो मर चुका था, और भेड़ियों द्वारा लगभग आधा खाया जा चुका था!

“हाय रे यह दिन! बेचारा घास खाने वाला जीव!” मालिक महाशय चिल्लाये। “अब इसमें हैरानी की कोई बात नहीं है कि उसने अपने प्यारे मालिक की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। अगर वह जिंदा होता, तो वह अवश्य रेंका होता! पर अब जाने दो : भाई, मुझे इतनी सन्तुष्टि जरूर है कि यद्यपि मैंने उसे खो दिया है, फिर भी मैंने आपकी उस दुर्लभ प्रतिभा की खोज कर ली है - उसी ने मुझे इस भारी कष्ट में सहारा दिया है और ईश्वर करे सबको ऐसा मौका मिलता रहे!”

“महाशय, शीशा सही हाथों में है,” दूसरे महाशय ने कहा, “और अगर मठाधीश अच्छा गाते हैं, तो युवा भिक्षु भी उनसे ज्यादा पीछे नहीं हैं।”

इसके साथ ही, वे दोनों महाशय, मुँह झुकाये, रुँधे और बैठे गले सहित घर लौट आये, फिर अपने पड़ोसियों को उन्होंने पूरी कहानी लफ्ज-ब-लफ्ज सुना दी और साथ ही एक-दूसरे के रेंकने की प्रशंसा भी की।

संक्षेप में कहें, तो एक ने एक सिरे को पकड़ा और दूसरे ने दूसरे सिरे को। फिर छोकरों ने कहानी को पकड़ा, फिर निकम्मे जाहिलों ने... और फिर हमारे कस्बे में इतनी हा-हू और ढेंचू-ढेंचू हुई कि कोई सोच सकता है कि दोजख हमारे बीच ही आ फैला था!

पर यह दिखाने के लिए कि शैतान खाई में मुर्दा नहीं बना पड़ा रहता, और हर बेवकूफ चीज पर सवार हो जाता है और लोगों के कान उमेठने लगता है, हमारे पड़ोसी कस्बों ने भी इसे अपना लिया... उससे उनके-हमारे बीच दुश्मनी हो गयी... और अब कल या किसी अगले रोज कस्बे वालों से हमारा मुकाबला भी होनेवाला है...